Munshi Premchand Biography In Hindi – मुंशी प्रेमचंद की जीवनी

मुंशी प्रेमचंद का संछिप्त जीवन परिचय हिंदी में – (Munshi Premchand Biography in Hindi)

Munshi Premchand Biography in Hindi

नाम – धनपत राय श्रीवास्तव उर्फ़ नवाब राय उर्फ़ मुंशी प्रेमचंद पिता का नाम – अजीब राय माता का नाम – आनंदी देवी पत्नी – शिवरानी देवी व्यवसाय – अध्यापक, लेखक, पत्रकार जन्म स्थान – लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत जन्म तारीख – 31 जुलाई 1880 अवधि/काल – आधुनिक काल उल्लेखनीय कार्य – गोदान, कर्मभूमि, रंगभूमि, सेवासदन, निर्मला और मानसरोवर मृत्यु – 8 अक्टूबर, 1936 वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत

Munshi Premchand Biography in Hindi – मुंशी प्रेमचंद की जीवनी

Munshi Premchand Biography in Hindi – मुंशी प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू में महान लेखक थे, जिनका जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था। इनको नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता था। इनके पिता का नाम अजीब राय और माता का नाम आनंदी देवी था, पत्नी शिवरानी देवी थी। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योग्यदान को देखते हुए बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहा था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा को विकसित किया था, जिससे पूरी सदी के साहित्य को मार्गदर्शन मिला।

प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी थी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। प्रेमचंद को संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक के रूप में जाना जाता है। 20वी सदी के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में की तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उस समय इनके योग्यदान को अतुलनीय माना गया था।

मुंशी प्रेमचंद की रचना-दृष्टि बहुत सारे साहित्य रूपों में प्रवृत्त हुई। इन्होने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। इनको “‘उपन्यास सम्राट” की उपाधि मिली है। प्रेमचंद कुल १५ उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद,7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की लेकिन नाम और यश उनको उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई।

इनके बारे में भी पढ़ें –

प्रेमचंद्र की जीवनी अंग्रेजी में

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

गूगल के CEO सुन्दर पिचाई का जीवन परिचय

शुरुआती जीवन परिचय –

1880 में जन्मे मुंशी प्रेमचंद वाराणसी शहर में रहते थे, उनके पिता वहीं लमही गाव में ही डाकघर के मुंशी थे, मुंशी प्रेमचन्द को नवाब राय नाम से ज्यादा जाना जाता है। इनका जीवन बहुत ही दुखदायी और कास्टपूर्ण रहा है, प्रेमचंद जी जब साथ साल के थे तभी उनकी माता का देहांत हो गया , उसके बाद उनके पिता की नौकरी यानि ट्रांसफर गोरखपुर हो गया, जहाँ इनके पिता ने दूसरी शादी कर ली, इनको अपनी सौतेली माँ से उतना अच्छा प्यार और दुलार नहीं मिला, 14 वर्ष की उम्र में इनके पिता का भी देहांत हो गया इस तरह से इनके बचपन में मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था।

इन सब के बाद प्रेमचंद बहुत टूट चुके थे घर का सारा भार अब उनके कन्धों पर आ गया था, इतनी समस्या हो गयी थी की उनके पास पहनने के लिए कपडे तक नहीं हुआ करते थे ऐसी हालात में उन्होंने एक दिन अपनी सभी किताबों को बेचने के लिए एक पुस्तक की दुकान पर पहुंचे वहां उन्हें एक स्कूल के हेड मास्टर मिले, हेड मास्टर ने देखा प्रेमचंद अपनी पुस्तकों को बेच रहे है तो उन्होंने प्रेमचंद को अपने वहां स्कूल में नौकरी दे दी। अपनी गरीबी से लड़ते हुए प्रेमचन्द ने अपनी पढ़ाई मैट्रिक तक पहुंचाई। वे अपने गाँव से दूर बनारस पढ़ने के लिए नंगे पाँव जाया करते थे। आगे चलकर वकील बनना चाहते थे। मगर गरीबी ने तोड़ दिया।

1921 में गांधी के आह्वान पर उन्होने अपनी नौकरी छोड़ दी। इसके बाद उन्होने ने मर्यादा नामक पत्रिका में सम्पादन का कार्य किया। उसके बाद उन्होंने 6 साल तक माधुरी नामक पत्रिका में संपादन का काम किया। वर्ष 1930 से 1932 के बीच उन्होने अपना खुद का मासिक पत्रिका हंस एवं साप्ताहिक पत्रिका जागरण निकलना शुरू किया। उन्होने ने मुंबई मे फिल्म के लिए कथा भी लिखी थी।

उनके कहानी पर एक फिल्म बनी थी जिसका नाम मजदुर था, यह 1934 में प्रदर्शित हुई। लेकिन फ़िल्मी दुनिया उसको पसंद नहीं आयी और वो वापस बनारस आ गए। मुंशी प्रेमचंद 1915 से कहानियां लिखना शुरू कर दिए थे। वर्ष 1925 में सरस्वती पत्रिका में सौत नाम से प्रकाशित हुई। वर्ष 1918 ई से उन्होने उपन्यास लिखना शुरू किया। उनके पहले उपन्यास का नाम सेवासदन है। प्रेमचंद ने लगभग 12 उपन्यास 300+ के करीब कहानियाँ कई लेख एवं नाटक लिखे है।

मुंशी प्रेमचंद से जुड़े कुछ रोचक तक्थ –

  • उन्होंने अपने जीवनकाल में तक़रीबन 300 लघु कथाये और 14 उपन्यास, बहुत से निबंध और पत्र भी लिखे है।
  • बहु-भाषिक साहित्यों का हिंदी अनुवाद भी किया है।
  • उनकी प्रसिद्ध रचनाओ का उनकी मृत्यु के बाद इंग्लिश अनुवाद भी किया गया
  • प्रेमचंद एक उच्चकोटि के इंसान थे।
  • 1900 में मुंशी प्रेमचंद को बहरीच के सरकारी Dist School में Assistant Teacher का जॉब भी मिल गयी थी जहाँ वो महीने के 20 रूपये सैलरी पाते थे।
  • कुछ ही महीनों के बाद उनका स्थानान्तरण प्रतापगढ़ की जिला स्कूल में हुआ, जहा वे एडमिनिस्ट्रेटर के बंगले में रहते थे और उनके बेटे को पढ़ाते थे।
  • प्रेमचंद ने अपना पहला लेख “नवाब राय” के नाम से ही लिखा था।
  • प्रेमचंद के सारे लेख और उपन्यास 8 अक्टूबर 1903 से फेब्रुअरी 1905 तक बनारस पर आधारित उर्दू साप्ताहिक आवाज़-ए-खल्कफ्रोम में प्रकाशित किये जाते थे।
  • उनके जीवन का ज्यादातर समय बनारस और लखनऊ में गुजरा।
  • आगे चलकर वो आधुनिक कथा साहित्य के जन्मदाता कहलाए, उन्हें कथा सम्राट की उपाधि प्रदान की गई।
  • अपनी कहानियों में प्रेमचंद ने मनुष्य के जीवन का सच्चा चित्र खींचा है।
  • 8 अक्टूबर 1936 को जलोदर रोग से उनका देहावसान हो गया।
  • उनके नाम से डाक टिकट भी जारी हुआ था।

मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध पुस्तकें –

• गोदान 1936 • कर्मभूमि 1932 • निर्मला 1925 • कायाकल्प 1927 • रंगभूमि 1925 • सेवासदन 1918 • गबन 1928 • नमक का दरोगा • पूस की रात • पंच परमेश्वर • माता का हृदय • नरक का मार्ग • वफ़ा का खंजर • पुत्र प्रेम • घमंड का पुतला • बंद दरवाजा • कायापलट • कर्मो का फल • कफन • बड़े घर की बेटी • राष्ट्र का सेवक • ईदगाह • मंदिर और मस्जिद • प्रेम सूत्र • माँ • वरदान • काशी में आगमन • बेटो वाली विधवा

मुंशी प्रेमचंद Munshi Premchand Biography in Hindi से जुडी जानकारी आप को कैसे लगी ?

Leave a Reply Cancel reply

You must be logged in to post a comment.

achhigyan.com

मुंशी प्रेमचंद की जीवनी | About Munshi Premchand Biography In Hindi

Premchand – मुंशी प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय प्रसिद्ध लेखक तथा उपन्यासकार में से एक हैं। उनका जन्म का नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, उन्होंने अपने दुसरे नाम “नवाब राय” के नाम से अपने लेखन की शुरुवात की लेकिन बाद में उन्होंने अपने नाम को बदलकर “प्रेमचंद” रखा। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ कहकर संबोधित किया था।

About Munshi Premchand Biography In Hindi

मुंशी प्रेमचंद का परिचय –  Hindi Writer Munshi Premchand Biography in Hindi

धनपत राय श्रीवास्तव उर्फ़ नवाब राय उर्फ़ मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand)
31 जुलाई, 1880
लमही गाँव, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
8 अक्तूबर 1936, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मुंशी अजायब लाल
आनन्दी देवी
शिवरानी देवी
श्रीपत राय और अमृत राय (पुत्र)
हिन्दी, उर्दू
अध्यापक, लेखक, उपन्यासकार
गोदान, कर्मभूमि, रंगभूमि, सेवासदन

प्रेमचंद ने अपने जीवन में एक दर्जन से भी ज्यादा उपन्यास, तक़रीबन 300 लघु कथाये, बहुत से निबंध और कुछ विदेशी साहित्यों का हिंदी अनुवाद भी किया है। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे।

प्रारंभिक जीवन – Early Life of Munshi Premchand 

प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी केनिकट लमही गाँव में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी था। व पिता का नाम मुंशी अजायबराय था। उनके पिता लमही में डाकमुंशी (पोस्ट ऑफीस) थे। उनके पूर्वज विशाल कायस्थ परिवार से संबंध रखते थे, जिनके पास अपनी खुद की छह बीघा जमीन भी थी। उनके दादा गुर सहाई राय पटवारी थे। प्रेमचंद अपने माता-पिता के चौथे पुत्र थे। उनके माता-पिता ने उनका नाम धनपत राय रखा, जबकि उनके चाचा महाबीर ने उनका उपनाम “नवाब” रखा। प्रेमचंद द्वारा अपने लिए चुना गया पहला नाम “नवाब राय” था।

शिक्षा और शादी – Munshi Premchand Education

उनकी शिक्षा का आरंभ उर्दू, फारसी से हुआ और जीवनयापन का अध्यापन से पढ़ने का शौक उन्‍हें बचपन से ही लग गया। जब मुंशी प्रेमचंद 7 साल के थे तभी उन्होंने लालपुर की मदरसा में शिक्षा प्राप्त करना शुरू किया। मदरसा में प्रेमचंद ने मौलवी से उर्दू और फ़ारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया।

जब प्रेमचंद 8 साल के हुए तो उनके माँ की एक लंबी बीमारी के चलते मृत्यु हो गयी यही। उनकी दादी, ने बाद में प्रेमचंद को बड़ा करने की जिम्मेदारी उठाई, लेकिन वह भी कुछ दिनों बाद चल बसी। उस समय प्रेमचंद को अकेला महसूस होने लगा था, क्योकि उनकी बहन का भी विवाह हो चूका था और उनके पिता पहले से ही काम में व्यस्त रहते थे। और उनके पिता दोबारा शादी कर ली ताकि बच्चो की देखभाल हो सके लेकिन प्रेमचंद को अपने सौतेली माँ से उतना प्यार नही मिला जितना उन्हें चाहिये था। लेकिन प्रेमचंद को बनाने में उनकी सौतेली माँ का बहुत बड़ा हाथ रहा है।

13 साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ ‘शरसार’, मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनके पिता के जमनिया में स्थानांतरण होने के बाद 1890 के मध्य में प्रेमचंद ने बनारस के क्वीन कॉलेज में एडमिशन लिया।

1895 मे उन दिनों की परंपरा के अनुसार मात्र 15 साल की आयु में ही उनका पहला विवाह हो गया। उस समय वे सिर्फ 9 वी कक्षा की पढाई कर रहे थे। पत्नी उम्र में प्रेमचंद से बड़ी और बदसूरत थी। पत्नी की सूरत और उसके जबान ने उनके उपर जले पर नमक का काम किया। इस बारे मे प्रेमचंद स्वयं लिखते हैं, “उम्र में वह मुझसे ज्यादा थी। जब मैंने उसकी सूरत देखी तो मेरा खून सूख गया” उसके साथ – साथ जबान की भी मीठी न थी। उन्होने अपनी शादी के फैसले पर पिता के बारे में लिखा है “पिताजी ने जीवन के अन्तिम सालों में एक ठोकर खाई और स्वयं तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डुबो दिया: मेरी शादी बिना सोंचे समझे कर डाली।” हालांकि उनके पिताजी को भी बाद में इसका एहसास हुआ और काफी अफसोस किया।

1897 में एक लंबी बीमारी के चलते प्रेमचंद के पिता की मृत्यु हो गयी थी। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने उस समय दूसरी श्रेणी में मेट्रिक की परीक्षा पास कर ही ली। लेकिन क्वीन कॉलेज में केवल पहली श्रेणी के विद्यार्थियों को ही फीस कन्सेशन दिया जाता था। इसीलिए प्रेमचंद ने बाद में सेंट्रल हिंदु कॉलेज में एडमिशन लेने की ठानी लेकिन गणित कमजोर होने की वजह से वहा भी उन्हें एडमिशन नही मिल सका। इसीलिये उन्होंने पढाई छोड़ने का निर्णय लिया।

वे आर्य समाज से प्रभावित रहे, जो उस समय का बहुत बड़ा धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था। उन्होंने विधवा-विवाह का समर्थन किया और 1906 में दूसरा विवाह अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुरूप बाल-विधवा शिवरानी देवी से किया। उनकी तीन संताने हुईं- श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव।

प्रेमचन्द की आर्थिक विपत्तियों का अनुमान इस घटना से लगाया जा सकता है कि पैसे के अभाव में उन्हें अपना कोट बेचना पड़ा और पुस्तकें बेचनी पड़ी। एक दिन ऐसी हालत हो गई कि वे अपनी सारी पुस्तकों को लेकर एक बुकसेलर के पास पहुंच गए। वहाँ एक हेडमास्टर मिले जिन्होंने उनको अपने स्कूल में अध्यापक पद पर नियुक्त किया।

सादा एवं सरल जीवन के मालिक प्रेमचन्द सदा मस्त रहते थे। उनके जीवन में विषमताओं और कटुताओं से वह लगातार खेलते रहे। इस खेल को उन्होंने बाज़ी मान लिया जिसको हमेशा जीतना चाहते थे। कहा जाता है कि प्रेमचन्द हंसोड़ प्रकृति के मालिक थे। विषमताओं भरे जीवन में हंसोड़ होना एक बहादुर का काम है। इससे इस बात को भी समझा जा सकता है कि वह अपूर्व जीवनी-शक्ति का द्योतक थे। सरलता, सौजन्य और उदारता की वह मूर्ति थे। जहाँ उनके हृदय में मित्रों के लिए उदार भाव था वहीं उनके हृदय में ग़रीबों एवं पीड़ितों के लिए सहानुभूति का अथाह सागर था। प्रेमचन्द उच्चकोटि के मानव थे।

लेखन कार्य – Munshi Premchand Novels

धनपत राय ने अपना पहला लेख “नवाब राय” के नाम से ही लिखा था। उनका पहला लघु उपन्यास असरार ए मा’ बीड़ (हिंदी में – देवस्थान रहस्य) था जिसमे उन्होंने मंदिरों में पुजारियों द्वारा की जा रही लुट-पात और महिलाओ के साथ किये जा रहे शारीरिक शोषण के बारे में बताया। उनके सारे लेख और उपन्यास 8 अक्टूबर 1903 से फ़रवरी 1905 तक बनारस पर आधारित उर्दू साप्ताहिक आवाज़-ए-खल्कफ्रोम में प्रकाशित किये जाते थे।

1908 मे प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन अर्थात राष्ट्र का विलाप नाम से प्रकाशित हुआ। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत होने के कारण इस पर अंग्रेज़ी सरकार ने रोक लगा दी और इसके लेखक को भविष्‍य में इस तरह का लेखन न करने की चेतावनी दी। सोजे-वतन की सभी प्रतियाँ जब्त कर जला दी गईं। इस घटना के बाद प्रेमचंद के मित्र एवं ज़माना पत्रिका के संपादक  मुंशी दयानारायण निगम  ने उन्हे प्रेमचंद के नाम से लिखने की सलाह दिया। इसके बाद धनपत राय, प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे।

प्रेमचंद ने अपने जीवन में तक़रीबन 300 लघु कथाये और 14 उपन्यास, बहुत से निबंध और पत्र भी लिखे है। इतना ही नही उन्होंने बहुत से विदेशी साहित्यों का हिंदी अनुवाद भी किया है। प्रेमचंद की बहुत सी प्रसिद्ध रचनाओ का उनकी मृत्यु के बाद इंग्लिश अनुवाद भी किया गया है।

प्रेमचन्द की रचना-दृष्टि, विभिन्न साहित्य रूपों में, अभिव्यक्त हुई। वह बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। प्रेमचंद की रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया। उनकी कृतियाँ भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियाँ हैं।

मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु –

सन् 1936 ई में प्रेमचन्द बीमार रहने लगे। उन्होने इस बीमार काल में ही आपने “प्रगतिशील लेखक संघ” की स्थापना में सहयोग दिया। आर्थिक कष्टों तथा इलाज ठीक से न कराये जाने के कारण 8 अक्टूबर 1936 में आपका देहान्त हो गया। और इस तरह वह दीप सदा के लिए बुझ गया जिसने अपनी जीवन की बत्ती को कण-कण जलाकर भारतीयों का पथ आलोकित किया। मरणोपरान्त, उनके बेटे अमृत राय ने ‘कलम का सिपाही’ नाम से उनकी जीवनी लिखी है जो उनके जीवन पर विस्तृत प्रकाश डालती है।

और अधिक लेख :-

  • स्टीव जॉब्स की प्रेरणादायी जीवनी
  • रबीन्द्रनाथ टैगोर जीवनी, निबंध
  • भारत के नोबेल पुरस्कार विजेता
  • योगा कैसे करे : पूरी जानकारी
  • रहीम के लोकप्रिय दोहे हिन्दी अर्थ सहित
  • गोस्वामी तुलसीदास की जीवनी
  • गुरु नानक देव जी की जीवनी

Please Note : – Munshi Premchand Biography & Life History In Hindi मे दी गयी Information अच्छी लगी हो तो कृपया हमारा  फ़ेसबुक ( Facebook)   पेज लाइक करे या कोई टिप्पणी (Comments) हो तो नीचे करे। Munshi Premchand Short Biography & Life story In Hindi व नयी पोस्ट डाइरेक्ट ईमेल मे पाने के लिए  Free Email Subscribe  करे, धन्यवाद।

Related Posts

Hillary Clinton

हिलेरी क्लिंटन की जीवनी | Hillary Clinton Biography In Hindi

लाला हरदयाल की जीवनी | Lala Hardayal Biography in Hindi

लाला हरदयाल की जीवनी | Lala Hardayal Biography in Hindi

10 thoughts on “मुंशी प्रेमचंद की जीवनी | about munshi premchand biography in hindi”.

writer premchand biography in hindi

very usefull

writer premchand biography in hindi

That’s app is ok

writer premchand biography in hindi

Nice… Useful

writer premchand biography in hindi

Nice I like it

writer premchand biography in hindi

This web site is very useful and beneficial to students…

writer premchand biography in hindi

Nice.. I like it

Leave a Comment Cancel Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Dil Se Deshi

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय | Munshi Premchand Biography in Hindi

Munshi Premchand Biography in Hindi

मुंशी प्रेमचंद की जीवनी [जन्म, शिक्षा, पुरुस्कार] और प्रसिद्द उपन्यास | Munshi Premchand Biography (Birth, Education, Awards) and Famous Novels in Hindi

हिन्दी की जीवंत कहानियों के पितामह जिनके साहित्य आधुनिक हिन्दी का मार्गदर्शन करते रहेंगे, साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखने वाले, ‘उपन्यास सम्राट’, संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता, सुधी संपादक, महान कथाकार, शोषित, वंचित, ख़ास तौर पर किसानों को अपने रचनाओं में जगह देने वाले अद्वितीय लेखक धनपत राय श्रीवास्तव उर्फ़ मुंशी प्रेमचंद जी प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी थे. समाज की फूटी कौड़ियों से लेकर बेशक़ीमती मोतियों तक को एक धागे में पिरो कर साहित्य की जयमाला बनाने वाले हिंदी कहानी के प्रतीक पुरुष मुंशी प्रेमचंद जी ने हिन्दी साहित्य को आधुनिक रूप प्रदान किया.

नाम (Name)मुंशी प्रेमचंद
पिता का नाम (Father Name)अजायब राय
जन्म (Birth)31 जुलाई 1880
मृत्यु (Death)8 अक्टूबर 1936
जन्म स्थान (Birth Place)बनारस
कार्यक्षेत्र (Profession)उपन्यासकार
प्रसिद्द उपन्यासगोदान, ईदगाह, पंच परमेश्‍वर, कफन

मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन परिचय (Munshi Premchand Biography)

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 में बनारस के लहमी गाँव में एक सामान्य परिवार में हुआ था. इनके पिताजी का नाम अजायब राय था. इनके पिता एक पोस्ट मास्टर थे. इनकी माता का नाम आनंदी देवी था. बचपन में एक गंभीर बीमारी के कारण इनकी माता का निधन हो गया था. जब मुंशी प्रेमचंद की उम्र सिर्फ आठ वर्ष थी. माता जी के देहांत के बाद बालक मुंशी का जीवन बड़े ही संघर्ष के साथ गुजरा. प्रेमचंद जी माता के प्यार से वंचित रह गए. मुंशी प्रेमचंद जी के पिताजी ने कुछ ही समय पश्चात दूसरा विवाह कर लिया.

बचपन से ही मुंशी प्रेमचंद की किताबें पड़ने में रूचि थी. इनकी प्रारंभिक शिक्षा अपने ही गाँव लहमी के एक मदरसे में पूरी हुई. जहाँ उन्होंने हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया. जिसके बाद इन्होने स्नातक की पढाई के लिए बनारस के महाविद्यालय में दाखिला लिया. आर्थिक कारणों के चलते उन्हें अपनी पढाई बीच में ही छोडनी पड़ी. जिसके बाद वर्ष 1919 में पुनः दाखिला लेकर आपने बी.ए की डिग्री प्राप्त की.

अपने स्कूल के समय में आर्थिक समस्याओं के चलते इन्होने पुस्तकों की दुकान पर भी कार्य किया. बचपन से प्रेमचंद जी पर जिम्मेदारियां आ गई थी. इनके पिताजी ने रुढ़िवादी विचारों के कारण बहुत ही कम उम्र ने मुंशी प्रेमचंद का विवाह कर दिया था. विवाह के वर्ष प्रेमचंद जी सिर्फ पंद्रह साल के थे. इनके पिताजी ने सिर्फ लड़की का परिवार आर्थिक रूप से संपन्न होने के कारण ही उनका विवाह करा दिया था. प्रेमचंद जी और उनकी पत्नी की बनती नहीं थी. मुंशी जी स्वयं अपनी किताब में लिखते हैं कि उनकी पत्नी उम्र में उनसे बड़ी और व्यवहार में बड़ी ही जिद्दी और झगड़ालू प्रवत्ति की थी.

विवाह के एक ही वर्ष पश्चात मुंशी जी के पिताजी की मृत्यु हो गई. जिसके बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी मुंशी जी पर आ गई. परिवार का खर्च चलाने के लिए इन्होने अपनी पुस्तकें तक बेच दी. इसी बीच इन्होनें एक विद्यालय में शिक्षण का भी कार्य किया. कुछ ही समय बाद मुंशी जी ने ख़राब संबंधों के चलते अपनी पत्नी से तलाक ले लिया और कुछ ही समय बाद लगभग 25 वर्ष की उम्र में एक विधवा औरत से दूसरा विवाह किया.

मुंशी प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यास और रचनाएँ (Munshi Premchand Novels and Poetry)

मुंशी प्रेम चंद की पहली प्रकाशित हिंदी पत्रिका का नाम “सौत” है. मुंशी प्रेमचंद ने उपन्यास, लेख, सम्पादकीय, कहानी, नाटक, समीक्षा, संस्मरण आदि कई रचनाएँ लिखीं. मुंशी प्रेमचंद ने कुल 15 उपन्यास लिखे थे जिनमे से प्रमुख उपन्यास कर्मभूमि, निर्मला, गोदान, गबन, अलंकार, प्रेमा, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, प्रतिज्ञा आदि हैं.

मुंशी प्रेमचंद ने कुल 300 से कुछ अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि लिखे हैं. जिनमे से मुख्य कहानियां ‘पंच परमेश्‍वर’, ‘गुल्‍ली डंडा’, ‘दो बैलों की कथा’, ‘ईदगाह’, ‘बड़े भाई साहब’, ‘पूस की रात’, ‘कफन’, ‘ठाकुर का कुआँ’, ‘सद्गति’, ‘बूढ़ी काकी’, ‘तावान’, ‘विध्‍वंस’, ‘दूध का दाम’, ‘मंत्र’ आदि हैं.

मुंशी प्रेमचंद डाक टिकट और सम्मान (Munshi Premchand Postage Stamp and Honours)

Munshi Premchand Postage Stamp

मुंशी प्रेमचंद हस्ताक्षर (Munshi Premchand Signature)

Munshi Premchand Signature

मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु (Munshi Premchand Death)

अपने जीवन के अंतिम दिनों में “मंगलसूत्र” उपन्यास लिख रहे थे. इस दौरान वे गंभीर रूप से बीमार थे और लम्बी बीमारी के चलते 8 अक्टूबर 1936 को मुंशी प्रेमचंद का निधन हो गया.

मुंशी प्रेमचंद के अनमोल वचन (Munshi Premchand Quotes)

  • “ऐश की भूख रोटियों से कभी नहीं मिटती, उसके लिए दुनिया के एक से एक उम्दा पदार्थ चाहिए.”

~मुंशी प्रेमचंद

  • “किसी किश्ती पर अगर फर्ज का मल्लाह न हो तो फिर उसके लिए दरिया में डूब जाने के सिवाय और कोई चारा नहीं.”
  • “मनुष्य का उद्धार पुत्र से नहीं, अपने कर्मों से होता है. यश और कीर्ति भी कर्मों से प्राप्त होती है. संतान वह सबसे कठिन परीक्षा है, जो ईश्वर ने मनुष्य को परखने के लिए दी है. बड़ी~बड़ी आत्माएं, जो सभी परीक्षाओं में सफल हो जाती हैं, यहाँ ठोकर खाकर गिर पड़ती हैं.”
  • “नीतिज्ञ के लिए अपना लक्ष्य ही सब कुछ है. आत्मा का उसके सामने कुछ मूल्य नहीं. गौरव सम्पन्न प्राणियों के लिए चरित्र बल ही सर्वप्रधान है.” “यश त्याग से मिलता है, धोखाधड़ी से नहीं.”
  • “जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में हैं, उनका सुख लूटने में नहीं.”
  • “लगन को कांटों कि परवाह नहीं होती.”
  • “उपहार और विरोध तो सुधारक के पुरस्कार हैं.”
  • “जब हम अपनी भूल पर लज्जित होते हैं, तो यथार्थ बात अपने आप ही मुंह से निकल पड़ती है.”
  • “अपनी भूल अपने ही हाथ सुधर जाए तो,यह उससे कहीं अच्छा है कि दूसरा उसे सुधारे.”
  • “विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला.”
  • “आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर है.”
  • “सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है.”
  • “डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है.”
  • “चिंता रोग का मूल है.”
  • “चिंता एक काली दिवार की भांति चारों ओर से घेर लेती है, जिसमें से निकलने की फिर कोई गली नहीं सूझती.”
  • “अतीत चाहे जैसा हो, उसकी स्मृतियाँ प्रायः सुखद होती हैं.”
  • “दुखियारों को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नहीं होते.”
  • “मै एक मज़दूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं.”
  • “निराशा सम्भव को असम्भव बना देती है.”
  • “बल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद कोई नहीं सुनता.”
  • “दौलत से आदमी को जो सम्‍मान मिलता है, वह उसका नहीं, उसकी दौलत का सम्‍मान है.”
  • “संसार के सारे नाते स्‍नेह के नाते हैं, जहां स्‍नेह नहीं वहां कुछ नहीं है.”
  • “जिस बंदे को पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए मर्यादा और इज्‍जत ढोंग है.”
  • “खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है, जीवन नाम है, आगे बढ़ते रहने की लगन का.”
  • “जीवन की दुर्घटनाओं में अक्‍सर बड़े महत्‍व के नैतिक पहलू छिपे हुए होते हैं.”
  • “कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं.”
  • “मन एक भीरु शत्रु है जो सदैव पीठ के पीछे से वार करता है.”
  • “चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुँचा सकता जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझ कर पी न जाएँ.”
  • “महान व्यक्ति महत्वाकांक्षा के प्रेम से बहुत अधिक आकर्षित होते हैं.”
  • “जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम न जागृत हो, जो हममें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करे, वह हमारे लिए बेकार है वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं है”
  • “आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपने घर की याद आती है.”
  • “जिस प्रकार नेत्रहीन के लिए दर्पण बेकार है उसी प्रकार बुद्धिहीन के लिए विद्या बेकार है.”
  • “न्याय और नीति लक्ष्मी के खिलौने हैं, वह जैसे चाहती है नचाती है.”
  • “युवावस्था आवेशमय होती है, वह क्रोध से आग हो जाती है तो करुणा से पानी भी.”
  • “अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर जाए तो यह उससे कहीं अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे.”
  • “देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता. उसके लिए सच्चा त्यागी होना आवश्यक है.”
  • “मासिक वेतन पूरनमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है.”
  • “क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात नहीं कहता, वह केवल दूसरों का दिल दुखाना चाहता है.”
  • “अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है.”
  • “दुखियारों को हमदर्दी के आँसू भी कम प्यारे नहीं होते”
  • “विजयी व्यक्ति स्वभाव से, बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है.”
  • “नमस्‍कार करने वाला व्‍यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है.”
  • “अच्‍छे कामों की सिद्धि में बड़ी देर लगती है, पर बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं.”
  • “स्वार्थ की माया अत्यन्त प्रबल है.”
  • “केवल बुद्धि के द्वारा ही मानव का मनुष्यत्व प्रकट होता है.”
  • “कार्यकुशल व्यक्ति की सभी जगह जरुरत पड़ती है.”
  • “दया मनुष्य का स्वाभाविक गुण है.”
  • “सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल रहते हैं.”
  • “कर्तव्य कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता. कर्तव्य~पालन में ही चित्त की शांति है.”
  • “नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है.”
  • “अन्याय में सहयोग देना, अन्याय करने के ही समान है.”
  • “आत्म सम्मान की रक्षा, हमारा सबसे पहला धर्म है.”
  • “मनुष्य कितना ही हृदयहीन हो, उसके ह्रदय के किसी न किसी कोने में पराग की भांति रस छिपा रहता है. जिस तरह पत्थर में आग छिपी रहती है, उसी तरह मनुष्य के ह्रदय में भी ~ चाहे वह कितना ही क्रूर क्यों न हो, उत्कृष्ट और कोमल भाव छिपे रहते हैं.”
  • “जो प्रेम असहिष्णु हो, जो दूसरों के मनोभावों का तनिक भी विचार न करे, जो मिथ्या कलंक आरोपण करने में संकोच न करे, वह उन्माद है, प्रेम नहीं.”
  • “मनुष्य बिगड़ता है या तो परिस्थितियों से अथवा पूर्व संस्कारों से. परिस्थितियों से गिरने वाला मनुष्य उन परिस्थितियों का त्याग करने से ही बच सकता है.”
  • “चोर केवल दंड से ही नहीं बचना चाहता, वह अपमान से भी बचना चाहता है. वह दंड से उतना नहीं डरता जितना कि अपमान से.”
  • “जीवन को सफल बनाने के लिए शिक्षा की जरुरत है, डिग्री की नहीं. हमारी डिग्री है – हमारा सेवा भाव, हमारी नम्रता, हमारे जीवन की सरलता. अगर यह डिग्री नहीं मिली, अगर हमारी आत्मा जागृत नहीं हुई तो कागज की डिग्री व्यर्थ है.”
  • “साक्षरता अच्छी चीज है और उससे जीवन की कुछ समस्याएं हल हो जाती है, लेकिन यह समझना कि किसान निरा मुर्ख है, उसके साथ अन्याय करना है.”
  • “दुनिया में विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई भी विद्यालय आज तक नहीं खुला है.”
  • “हम जिनके लिए त्याग करते हैं, उनसे किसी बदले की आशा ना रखकर भी उनके मन पर शासन करना चाहते हैं. चाहे वह शासन उन्हीं के हित के लिए हो.त्याग की मात्रा जितनी ज्यादा होती है, यह शासन भावना उतनी ही प्रबल होती है.”
  • “क्रोध अत्यंत कठोर होता है. वह देखना चाहता है कि मेरा एक-एक वाक्य निशाने पर बैठा है या नहीं. वह मौन को सहन नहीं कर सकता. ऐसा कोई घातक शस्त्र नहीं है जो उसकी शस्त्रशाला में न हो, पर मौन वह मन्त्र है जिसके आगे उसकी सारी शक्ति विफल हो जाती है.”
  • “कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुबाब दिखाने से नहीं.”
  • “सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल रहते हैं.”
  • “दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है.”

इसे भी पढ़े :

  • वी. टी. भट्टाथिरिपाद का जीवन परिचय
  • FDI क्या होता हैं और अर्थव्यवस्था पर पडने वाले प्रभाव
  • आलू चिप्स का बिज़नस कैसे शुरू कर सकते हैं

Leave a Comment Cancel reply

You must be logged in to post a comment.

Easy Hindi

केंद्र एव राज्य की सरकारी योजनाओं की जानकारी in Hindi

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय | Munshi Premchand Biography in Hindi (कहानियां, उपन्यास, रचनाएँ, दोहे, प्रसिद्ध कविता)

Munshi Premchand Biography in Hindi

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand Biography in Hindi) हिंदी साहित्य के क्षेत्र में मुंशी प्रेमचंद की गिनती सबसे साहित्यकारों में की जाती है  उनके द्वारा रचित रचना समाज को एक सही दिशा देने का काम करते हैं। हम आपको बता दें कि मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखी गई कहानी और उपन्यास पृष्ठभूमि आम लोगों के जीवन में घटित होने वाली घटना से संबंधित होती हैं। मुंशी प्रेमचंद की कलम ने समाज के सभी विषयों पर अपनी कलम चलाई थी और उनके द्वारा लिखे गए उपन्यास और कहानी का विषय हमारे जीवन से संबंधित थे | हिंदी साहित्य में 1918 से लेकर 1936 का समय प्रेमचंद युग के  नाम से जाना जाता हैं। मुंशी प्रेमचंद एक मशहूर उपन्यासकार कहानीकार और विचारक थे। उन्होंने कुल मिलाकर डेढ़ दर्जन उपन्यास और 300 कहानी लिखी थी |

ऐसे महान व्यक्तित्व के जीवन के बारे में जानने की उत्सुकता हर एक भारतीय के मन में रहती है कि आखिर में मुंशी प्रेमचंद कौन थे? प्रारंभिक जीवन’ शिक्षा ‘परिवार साहित्यिक करियर ‘प्रमुख रचनाएं’ विवाह मृत्यु  इत्यादि के बारे में अगर आप कुछ नहीं जानते हैं तो आज के आर्टिकल में हम आपको Munshi Premchand Jeevan Parichay के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी उपलब्ध करवाएंगे आपसे अनुरोध है कि आर्टिकल पर बने रहे हैं चलिए जानते हैं:-

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय हिंदी में | Munshi Premchand ji ka Jeevan Parichay- Overview

मुंशी प्रेमचंद
धनपत राय श्रीवास्तव
नबाबराय
31 जुलाई, 1880
लमही ग्राम, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
8 अक्टूबर, 1936
लेखक, अध्यापक, पत्रकार
आनंदी देवी
अजायब राय
शिवारानी देवी (1906-1938)
अमृतराय, श्रीपथराय
कमला देवी
सेवासदन, निर्मला, रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन, गोदान; कर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी; मानसरोवर: नमक का दारोगा, पूस की रात, बड़े भाई साहब, मंत्र
उर्दू, हिन्दी
वर्णनात्मक, व्यंग्यात्मक, भावात्मक तथा विवेचनात्मक
आधुनिक काल
कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध
आधुनिक काल के सर्वोच्च उपन्यासकार एवं कहानीकार
माधुरी, मर्यादा, हंस, जागरण

Also Read: कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जीवन परिचय

मुंशी प्रेमचंद का शुरुआती जीवन ( Munshi Premchand Early Life)

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश, वाराणसी के लमही  गांव में हुआ था हम आपको बता देंगे  इनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था जब उनकी उम्र 6 साल की थी उनके मन का देहांत हो गया उसके बाद उनके पिताजी ने दूसरी शादी कर ली और उनकी सौतेली मां उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती थी  इसके बावजूद भी मुंशी प्रेमचंद अपना अधिकांश में पढ़ाई में व्यतीत करते थे और उन्हें बचपन में किताबें पढ़ने का बहुत ज्यादा शौक था  इसलिए मुंशी प्रेमचंद ने एक किताब की दुकान में काम कर लिया  जहां पर उन्हें किताबें पढ़ने के साथ-साथ पैसे भी मिला करते थे |

मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा (Munshi Premchand Education)

बाल अवस्था में मुंशी प्रेमचंद को काफी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा था  इसके बावजूद भी होगा लगातार अपनी शिक्षा पर ध्यान देते थ सन् 1898 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद इन्होंने एक स्थानीय स्कूल में शिक्षक का काम करना शुरू किया जहां परिवार बच्चों को पढ़ाई करते थे और अपनी शिक्षा भी इसी दौरान उन्होंने पूरी की 1910 में उन्होंने 12वीं की परीक्षा प्राप्त कर ली और उसके बाद  मुंशी जी ने फारसी, इतिहास और अंग्रेज़ी विषयों के क्षेत्र में उन्होंने 1919 में बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।  इसके बाद उन्हें शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर का पद मिल गया लेकिन 1921 में गांधी जी के द्वारा संचालित असहयोग आंदोलन के कारण उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी |

Also Read: कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जीवन परिचय | (शिक्षा, प्रमुख रचनाएँ, पुरस्कार व सम्मान)

मुंशी प्रेमचंद के बारे में व्यक्तिगत जानकारी

पूरा नामधनपत राय श्रीवास्तव
किस नाम से प्रसिद्ध थेनवाब राय, मुंशी प्रेमचंद
जन्म31 जुलाई, 1880
जन्म स्थानलमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
पिता का नामअजायब राय
पिता क्या करते थेपोस्ट ऑफिस क्लर्क
माता का नामआनंदी देवी
मृत्यु8 अक्टूबर, 1936, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मुंशी प्रेमचंद  हिंदी साहित्य में किस कालखंड के रचयिता माने जाते हैंआधुनिक काल
भाषाहिन्दी व उर्दू

मुंशी प्रेमचंद का परिवार ( Munshi Premchand Family)

पिता का नामअजायब राय
माता का नामआनंदी देवी
पत्नी का नामशिवरानी देवी
बच्चों का नामश्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव थे। 

मुंशी प्रेमचंद का विवाह (Munshi Premchand’s Marriage)

15 साल की उम्र में मुंशी प्रेमचंद ने शादी किया लेकिन शादी के बाद उनका वैवाहिक जीवन काफी असफल साबित हुआ उनकी पत्नी काफी झगड़ालू स्वभाव के लिए जिसके कारण उनके वैवाहिक जीवन में हमेशा लड़ाई झगड़ा हुआ करते थे जिसके कारण मुंशी प्रेमचंद ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया और उसके बाद  उन्होंने एक विधवा औरत से शादी की जिनका नाम शिवरानी देवी हैं।  विवाह के उपरान्त उन्हें तीन संतानें हुई जिनके नाम श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव थे। 

मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन (Literary Life of Munshi Premchand)

एक दर्जन उपन्यासों और 300 कहानी मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखी गई थी हम आपको बता दे कि उनकी कहानी की वास्तविकता जितनी मार्मिक आज है उतना उसे समय बिता हम आपको बताते हैं कि उसे वक्त उन्होंने ऐसी कई विषयों पर अपनी कलम चलाई थी | जो सामान्य लोगों के जीवन से संबंधित थे | उन्होंने कई पत्र पत्रिकाओं में भी अपनी कलम चलाई थी  जिसका विवरण नीचे दे रहा है:-

.
1.माधुरी
2.मर्यादा
3.हंस
4.जागरण

प्रेमचंद जी की प्रमुख रचनाओं के नाम | Names of Major Works of Premchand ji

प्रेमचंद ने अपने पूरे साहित्यिक जीवन काल में उपन्यास नाटक और कहानी लिखी थी जिसकी रचना का केंद्र बिंदु समाज में रहने वाला सामान्य नागरिकता और समाज में उसे समय जिस प्रकार की कुरीतियों और असमानता थी | उनका भी उन्होंने पुरजोर विरोध किया और अपने साहित्य के माध्यम से समाज में सामाजिक सुधार लाने का प्रयास किया था |

मुंशी प्रेमचंद जी की प्रमुख कहानियों की सूची

मुंशी प्रेमचंद ने कुल मिलाकर अपने साहित्यिक जीवन में 300 से अधिक कहानी लिखी हैं, उनके कहानियों का संग्रह मानसरोवर में संग्रहित है 1915 में प्रेमचंद की पहली कहानी सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई थी उनके सभी प्रमुख कहानियों की सूची का विवरण हम आपको नीचे दे रहे हैं:-

1. अनाथ लड़की41. दिल की रानी81. मनावन
2. अन्धेर42. दुर्गा का मन्दिर82. मन्त्र
3. अपनी करनी43. दूध का दाम83. मन्दिर और मस्जिद
4. अमृत44. दूसरी शादी84. ममता
5. अलग्योझा45. देवी85.
6. आखिरी तोहफ़ा46. देवी – एक और कहानी86. माता का ह्रदय
7. आखिरी मंजिल47. दो बैलों की कथा87. मिलाप
8. आत्म-संगीत48. दो सखियाँ88. मुक्तिधन
9. आत्माराम49. धिक्कार89. मुबारक बीमारी
10. आल्हा50. धिक्कार – एक और कहानी90. मैकू
11. इज्जत का खून51. नबी का नीति-निर्वाह91. मोटेराम जी शास्त्री
12. इस्तीफा52. नमक का दरोगा92. राजहठ
13. ईदगाह53. नरक का मार्ग93. राष्ट्र का सेवक
14. ईश्वरीय न्याय54. नशा94. र्स्वग की देवी
15. उद्धार55. नसीहतों का दफ्तर95. लैला
16. एक आँच की कसर56. नाग-पूजा96. वफ़ा का खजर
17. एक्ट्रेस57. नादान दोस्त97. वासना की कड़ियां
18. कप्तान साहब58. निर्वासन98. विजय
19. कफ़न59. नेउर99. विश्वास
20. कर्मों का फल60. नेकी100. शंखनाद
21. कवच61. नैराश्य101. शराब की दुकान
22. कातिल62. नैराश्य लीला102. शादी की वजह
23. कोई दुख न हो तो बकरी खरीद ला63. पंच परमेश्वर103. शान्ति
24. कौशल़64. पत्नी से पति104. शान्ति
25. क्रिकेट मैच65. परीक्षा105. शूद्र
26. खुदी66. पर्वत-यात्रा106. सभ्यता का रहस्य
27. गुल्‍ली डण्डा67. पुत्र-प्रेम107. समर यात्रा
28. गृह-दाह68. पूस की रात108. समस्या
29. गैरत की कटार69. पैपुजी109. सवा सेर गेहूँ नमक का दरोगा
30. घमण्ड का पुतला70. प्रतिशोध110. सिर्फ एक आवाज
31. जुलूस71. प्रायश्चित111. सैलानी बन्दर
32. जेल72. प्रेम-सूत्र112. सोहाग का शव
33. ज्‍योति73. बड़े घर की बेटी113. सौत
34. झाँकी74. बड़े बाबू114. स्त्री और पुरूष
35. ठाकुर का कुआँ75. बड़े भाई साहब115. स्वर्ग की देवी
36. तांगेवाले की बड़76. बन्द दरवाजा116. स्वांग
37. तिरसूल77. बाँका जमींदार117. स्‍वामिनी
38. तेंतर78. बेटोंवाली विधवा118. होली की छुट्टी
39. त्रिया-चरित्र79. बैंक का दिवाला
40. दण्ड80. बोहनी

 मुंशी प्रेमचंद जी के प्रमुख उपन्यासों की सूची

1.गोदान6.कर्मभूमि
2.निर्मला7.प्रतिज्ञा
3.रंगभूमि8.मंगलसूत्र
4.गबन9.प्रेमाश्रम
5.सेवासदन10.रूठी रानी

मुंशी प्रेमचंद जी के प्रमुख नाटक | Major plays of Munshi Premchand ji

2.  संग्राम

3.  प्रेम की विधि

प्रेमचंद के जीवन संबंधी विवाद

Munshi Premchand Wikibio:- मुंशी प्रेमचंद महान रचनाकार होने के बावजूद भी उनका जीवन विवाद से भरा हुआ था हम आपको बता दें कि प्रेमचंद के अध्‍येता कमलकिशोर गोयनका ने अपनी पुस्‍तक ‘प्रेमचंद : अध्‍ययन की नई दिशाएं’ में  उन्होंने प्रेमचंद पर कई प्रकार के गंभीर आरोप लगाए हैं ताकि उनके साहित्य के महत्व और उनकी छवि को खराब किया जा सके उन्होंने अपने रचना में आरोप लगाया है कि प्रेमचंद ने अपनी पहली पत्नी को बिना किसी कारण से छोड़ा था और दूसरे विवाह होने के बावजूद भी उनका संबंध कई महिलाओं के साथ रहा जैसा की उनकी उनके दूसरी पत्नी शिवरानी देवी ने ‘प्रेमचंद घर में’ में उद्धृत किया है), इसके अलावा कहा जाता है कि मुंशी प्रेमचंद ने’जागरण विवाद’ में विनोदशंकर व्‍यास के साथ धोखा किया था |

इसके अलावा प्रेमचंद ने अपनी प्रेस के वरिष्‍ठ कर्मचारी प्रवासीलाल वर्मा के धोखाधड़ी जैसी घटना को अंजाम दिया था  प्रेमचंद के बारे में कहा जाता था कि उन्होंने अपनी बेटी की बीमारी को ठीक करने के लिए झाड़ फूंक का सहारा लिया था जबकि उन्होंने अपने कई साहित्यिक रचना में झाड़ फूंक अंधविश्वास बताया था  इतने आरोप लगाने के बाद भी मुंशी प्रेमचंद की अहमियत हिंदी साहित्य में अधिक है और लोग उनकी काबिलियत को सलाम करते हैं |

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय PDF

मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय का पीडीएफ (PDF) अगर आप प्राप्त करना चाहते हैं तो उसका विवरण हम आपको आर्टिकल में उपलब्ध करवाएंगे:-

Download PDF :

पुरस्कार व सम्मान (Awards And Honors)

मुंशी प्रेमचंद को अपने साहित्यिक जीवन में निम्नलिखित प्रकार के पुरस्कार और सम्मान दिए गए थे इसका विवरण हम आपको नीचे दे रहे हैं आई जानते हैं-

●  मुंशी प्रेमचंद के नाम का 30 पैसे डाक टिकट जारी किया गया है |

●  मुंशी प्रेमचंद के नाम पर प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है जिसमें बचपन समय में मुंशी प्रेमचंद पढ़ाई करते थे |

प्रेमचंद के अनमोल वचन | (Premchand’s Precious Words)

प्रेमचंद के द्वारा रचित अनमोल वचन कौन-कौन से हैं इसका संक्षिप्त और विस्तार पूर्व विवरण  नीचे आपको उपलब्ध करवा रहे हैं  चलिए जानते हैं-

1.क्रोध में मनुष्य अपनी मन की बात नहीं कहता,वह केवल दूसरों का दिल दुखाना चाहता है।
2.धन खोकर यदि हम अपनी आत्मा को पा सकते हैं, तो कोई महंगा सौदा नहीं है।
3.सिर्फ उसी को अपनी संपत्ति समझो, जिसे तुमने मेहनत से कमाया है।
4.अन्याय का सहयोग देना, अन्याय करने के सामान है।
5.आत्मसम्मान की रक्षा करना, हमारा सबसे बड़ा और पहला धर्म है।
6.विपत्ति से बढ़कर… अनुभव सिखाने वाले वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला।
7.खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है, जीवन नाम है सदैव आगे बढ़ते रहने वाली लगन का है।

Faq’s: Munshi Premchand Biography in Hindi

Q.2 मुंशी प्रेमचंद का जन्म कब और कहां हुआ था.

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था |

Q.3 मुंशी प्रेमचंद की कितनी रचनाएं हैं?

मुंशी प्रेमचंद ने कुल मिलाकर 300 से अधिक रचनाएं लिखी हैं। उनके सभी कहानियों का संग्रह मानसरोवर में संग्रहित किया गया है

Q.4 प्रेमचंद ने कौन सी भाषा लिखी थी?

प्रेमचंद अपनी रचना हिंदी और उर्दू में लिखा करते थे |

Q.5 प्रेमचंद का पहला उपन्यास कौन सा है?

प्रेमचंद का पहला उपन्यास सेवा सदन का जो 1918 में प्रकाशित हुआ था |

Q.6 मुंशी प्रेमचंद की मृत्यृ कब हुई?

1936 के बाद से मुंशी प्रेमचंद का  स्वास्थ्य खराब हो गया और पैसे की कमी के कारण उनका इलाज भी अच्छी तरह से नहीं हो पाया था  8 अक्टूबर 1936  को उन्होंने आखिरी सांस ली आज भले ही मुंशी प्रेमचंद इस दुनिया में नहीं है लेकिन हिंदी साहित्य में उनकी जगह कोई भी साहित्यकार ले नहीं सकता है और उन्होंने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में जिस प्रकार का योगदान दिया हैं।

Summary: मुंशी प्रेमचंद जीवनी (Munshi Premchand Jivani)

इस लेख में हमने Munshi Premchand Biography in Hindi  के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी उपलब्ध करवाई है ऐसे में आर्टिकल संबंधित कोई भी आप बहुमूल्य सुझाव या प्रश्न है तो आप हमारे कमेंट सेक्शन में जाकर पूछ सकते हैं उसका उत्तर हम आपको जरूर देंगे तब तक के लिए धन्यवाद और मिलते हैं अगले आर्टिकल में यदि आप बायोग्राफी संबंधित अपडेट जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप Easyhindi.in को Bookmark कर ले जैसे ही कोई नई पोस्ट पब्लिश की जाएगी उसकी जानकारी आपको नोटिफिकेशन के माध्यम से मिल जाएगा |

इस ब्लॉग पोस्ट पर आपका कीमती समय देने के लिए धन्यवाद। इसी प्रकार के बेहतरीन सूचनाप्रद एवं ज्ञानवर्धक लेख easyhindi.in पर पढ़ते रहने के लिए इस वेबसाइट को बुकमार्क कर सकते हैं

Leave a reply cancel reply.

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

Related News

writer premchand biography in hindi

Arijit Singh Biography in Hindi | अरिजीत सिंह बायोग्राफी हिंदी में

writer premchand biography in hindi

Arunima Sinha Biography in Hindi | अरुणिमा सिन्हा बायोग्राफी इन हिंदी

writer premchand biography in hindi

Vijay Sethupathi Biography In Hindi | विजय सेतुपति बायोग्राफी हिंदी में

writer premchand biography in hindi

Tenali Ramakrishna Biography In Hindi | तेनाली रामाकृष्ण का जीवन परिचय

Munshi Premchand Biography in Hindi | मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय

Munshi Premchand

वास्तविक नामधनपत राय श्रीवास्तव
उपनाम • मुंशी प्रेमचंद
• नवाब राय

उनके चाचा महाबीर ने उन्हें "नवाब" उपनाम दिया था, जो एक अमीर जमींदार थे।
व्यवसाय • कवि
• उपन्यासकार
• लघुकथा लेखक
• नाटककार
जाने जाते हैंभारत में सबसे महान उर्दू-हिंदी लेखकों में से एक होने के नाते
पहला उपन्यासदेवस्थान रहस्य (असरार-ए-म'आबिद); 1903 में प्रकाशित
आखिरी उपन्यासमंगलसूत्र (अपूर्ण); 1936 में प्रकाशित
उल्लेखनीय उपन्यास• सेवा सदन (1919 में प्रकाशित)

• निर्मला (1925 में प्रकाशित)

• गबन (1931 में प्रकाशित)

• कर्मभूमि (1932 में प्रकाशित)

• गोदान (1936 में प्रकाशित)
पहली प्रकाशित कहानीदुनिया का सबसे अनमोल रतन (1907 में उर्दू पत्रिका ज़माना में प्रकाशित)
आखिरी प्रकाशित स्टोरीक्रिकेट मैचिंग; उनकी मृत्यु के बाद 1938 में ज़माना में प्रकाशित हुई
उल्लेखनीय लघु कथाएँ• बड़े भाई साहब (1910 में प्रकाशित)

• पंच परमेश्वर (1916 में प्रकाशित)

• बूढ़ी काकी (1921 में प्रकाशित)
• शतरंज के खिलाड़ी (1924 में प्रकाशित)
• नमक का दरोगा (1925 में प्रकाशित)

• पूस की रात (1930 में प्रकाशित)

• ईदगाह (1933 में प्रकाशित)
• मंत्र
जन्मतिथि 31 जुलाई 1880 (शनिवार)
जन्मस्थान लमही, बनारस राज्य, ब्रिटिश भारत
मृत्यु तिथि 8 अक्टूबर 1936 (गुरुवार)
मृत्यु स्थल वाराणसी, बनारस राज्य, ब्रिटिश भारत
मृत्यु कारणलम्बी बीमारी के चलते मृत्यु
आयु (मृत्यु के समय)
राशिसिंह (Leo)
हस्ताक्षर/ऑटोग्राफ
राष्ट्रीयता भारतीय
गृहनगर वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत
धर्म हिन्दू
जाति कायस्थ:
स्कूल/विद्यालय• क्वींस कॉलेज, बनारस (अब, वाराणसी)
• सेंट्रल हिंदू कॉलेज, बनारस (अब, वाराणसी)
कॉलेज/विश्वविद्यालयइलाहाबाद विश्वविद्यालय
शैक्षिक योग्यता• प्रेमचंद ने वाराणसी के लम्ही के एक मदरसे में एक मौलवी से उर्दू और फारसी का अध्ययन किया।
• उन्होंने क्वीन्स कॉलेज से मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी के साथ उत्तीर्ण किया।
• उन्होंने 1919 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य, फारसी और इतिहास में बीए किया।
विवाद• उनके कई समकालीन लेखकों ने अक्सर उनकी पहली पत्नी को छोड़ने और एक बाल विधवा से शादी करने पर उनकी आलोचना की। यहां तक ​​कि उनकी दूसरी पत्नी, शिवरानी देवी ने अपनी पुस्तक "प्रेमचंद घर में" में लिखा है कि उनके अन्य महिलाओं के साथ भी संबंध थे।

• विनोदशंकर व्यास और प्रवासीलाल वर्मा, जो उनके प्रेस "सरस्वती प्रेस" में वरिष्ठ कार्यकर्ता थे, ने उन पर धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया था।

• बीमार होने पर अपनी बेटी के इलाज के लिए रूढ़िवादी हथकंडे अपनाने के लिए उन्हें समाज के एक धड़े से आलोचना मिली।
वैवाहिक स्थिति विवाहित
विवाह तिथि• वर्ष 1895 (पहली शादी, अरेंज मैरिज)
• वर्ष 1906 (दूसरी शादी, लव मैरिज)
पत्नी • उन्होंने 15 साल की उम्र में 9वीं कक्षा में पढ़ते समय एक अमीर जमींदार परिवार की लड़की से शादी कर ली।
• शिवरानी देवी (बाल विधवा)
बच्चे - 2
• अमृत राय (लेखक)

• श्रीपथ राय
- कमला देवी

उनके सभी बच्चे उनकी दूसरी पत्नी से हैं।
माता/पिता - अजायब राय (डाकघर में क्लर्क)
- आनंदी देवी
भाई/बहन - ज्ञात नहीं
- सुग्गी राय (बड़ी)

उनकी दो और बहनें थीं जिनकी मृत्यु शिशु अवस्था में हो गई थी।
शैलीकथा
उपन्यासकारजॉर्ज डब्ल्यू एम रेनॉल्ड्स (एक ब्रिटिश कथा लेखक और पत्रकार)
लेखकचार्ल्स डिकेंस, ऑस्कर वाइल्ड, जॉन गल्सवर्थी, सादी शिराज़ी, गाइ डे मौपासेंट, मौरिस मैटरलिंक, और हेंड्रिक वैन लून
उपन्यासजॉर्ज डब्ल्यू एम रेनॉल्ड्स द्वारा "द मिस्ट्रीज़ ऑफ़ द कोर्ट ऑफ़ लंदन"
दार्शनिक
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी , गोपाल कृष्ण गोखले, और बाल गंगाधर तिलक

Munshi Premchand

मुंशी प्रेमचंद से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां

  • मुंशी प्रेमचंद एक भारतीय लेखक थे जो अपने कलम नाम मुंशी प्रेमचंद से अधिक लोकप्रिय हैं। उन्हें अपनी लेखन की विपुल शैली के लिए जाना जाता है। जिन्होंने भारतीय साहित्य की एक विशिष्ट शाखा “हिंदुस्तानी साहित्य” में कई उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाएँ दी हैं।

Munshi Premchand’s House in Lamahi Village, Varanasi

  • उनके दादा गुरु सहाय राय ब्रिटिश सरकार के अधिकारी थे और उन्होंने ग्राम भूमि रिकॉर्ड-कीपर का पद संभाला था; जिसे उत्तर भारत में “पटवारी” के नाम से जाना जाता है।
  • सात साल की उम्र में उन्होंने अपने गांव लमही के पास लालपुर में एक मदरसे में उर्दू की पढ़ाई करना शुरू कर दिया, जहां उन्होंने एक मौलवी से फारसी और उर्दू की शिक्षा प्राप्त की।
जिस तरह सूखी लकड़ी जल्दी से जल उठती है, उसी तरह क्षुधा (भूख) से बावला मनुष्य ज़रा-ज़रा सी बात पर तिनक जाता है।”
  • उनकी माँ के निधन के बाद प्रेमचंद को उनकी दादी ने पाला था; हालाँकि उनकी दादी की भी जल्द ही मृत्यु हो गई। इस हादसे ने प्रेमचंद को अपनी माँ से अकेला और बे-सहारा बना दिया; क्योंकि उनके पिता एक व्यस्त व्यक्ति थे जबकि उनकी बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी।

Tilism-e-Hoshruba

  • उन्होंने अपने जीवन में कुछ निबंधों, बच्चों की कहानियों और आत्मकथाओं के अलावा 14 उपन्यास और करीब 300 लघु कथाएँ लिखीं हैं।
बच्चों के लिए बाप एक फालतू-सी चीज – एक विलास की वस्तु है, जैसे घोड़े के लिए चने या बाबुओं के लिए मोहनभोग। माँ रोटी-दाल है। मोहनभोग उम्र-भर न मिले तो किसका नुकसान है; मगर एक दिन रोटी-दाल के दर्शन न हों, तो फिर देखिए, क्या हाल होता है।”
हमें अपने साहित्य का स्तर ऊंचा करना होगा, ताकि वह समाज की अधिक उपयोगी सेवा कर सके… हमारा साहित्य जीवन के हर पहलू पर चर्चा करेगा और उसका आकलन करेगा और हम अब अन्य भाषाओं और साहित्य के बचे हुए खाने से संतुष्ट नहीं होंगे। हम स्वयं अपने साहित्य की पूंजी बढ़ाएंगे।”
  • गोरखपुर प्रवास के दौरान उन्होंने अपनी पहली साहित्यिक रचना लिखी; हालाँकि यह कभी प्रकाशित नहीं हो सकी और अब खो भी गई।
  • 1890 के दशक के मध्य में अपने पिता की जमनिया में पोस्टिंग के बाद, प्रेमचंद ने बनारस के क्वींस कॉलेज में दाखिला लिया। क्वीन्स कॉलेज में 9वीं कक्षा में पढ़ते हुए उन्होंने एक अमीर जमींदार परिवार की लड़की से शादी कर ली। कथित तौर पर शादी उनके नाना ने तय की थी।

Queen’s College in Varanasi where Munshi Premchand studied

  • अपनी पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्होंने बनारस में एक वकील के बेटे को 5 रुपये के मासिक वेतन पर कोचिंग देना शुरू किया।
  • प्रेमचंद इतने उत्साही पाठक थे कि एक बार उन्हें कई कर्जों से छुटकारा पाने के लिए अपने पुस्तकों के संग्रह को बेचना पड़ा और यह एक ऐसी घटना के दौरान था जब वह अपनी एकत्रित पुस्तकों को बेचने के लिए एक किताब की दुकान पर गए थे। जिसके बाद वह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के चुनार में एक मिशनरी स्कूल के प्रधानाध्यापक से मिले, जहाँ उन्हें शिक्षक की नौकरी की पेशकश की। प्रेमचंद ने 18 रुपये के मासिक वेतन पर नौकरी स्वीकार कर ली।

Bust of Munshi Premchand in Pratapgarh

  • अपने पहले लघु उपन्यास ‘असरार ए माआबिद’ में उन्होंने छद्म नाम “नवाब राय” के तहत लिखा, उन्होंने गरीब महिलाओं के यौन शोषण और मंदिर के पुजारियों के बीच भ्रष्टाचार को संबोधित किया। हालाँकि उपन्यास को सिगफ्रीड शुल्ज और प्रकाश चंद्र गुप्ता जैसे साहित्यिक आलोचकों से आलोचना मिली, जिन्होंने इसे “अपरिपक्व काम” करार दिया।

A special issue of Urdu magazine Zamana

  • उनका दूसरा लघु उपन्यास ‘हमखुरमा-ओ-हमसवब’ जिसे उन्होंने छद्म नाम ‘बाबू नवाब राय बनारसी’ के तहत लिखा था। इस उपन्यास में उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के मुद्दे पर प्रकाश डाला; यह मुद्दा जो तत्कालीन रूढ़िवादी समाज में नीले रंग से बोल्ट की तरह था।

Soz-e-Watan By Premchand

  • उर्दू पत्रिका ज़माना के संपादक मुंशी दया नारायण निगम ने उन्हें छद्म नाम “प्रेमचंद” की सलाह दी थी।
  • वर्ष 1914 में जब प्रेमचंद ने पहली बार हिंदी में लेख लिखना शुरू किया, तब वह उर्दू के एक लोकप्रिय कथा लेखक बन चुके थे।

Saut By Munshi Premchand

  • हिंदी में उनका पहला प्रमुख उपन्यास “सेवासदन” (मूल रूप से उर्दू में बाज़ार-ए-हुस्न शीर्षक से लिखा गया) जिसे कलकत्ता स्थित प्रकाशक द्वारा 450 में ख़रीदा गया।
  • 8 फरवरी 1921 को गोरखपुर में महात्मा गांधी द्वारा आयोजित एक बैठक में भाग लेने के बाद, जहां गांधी ने असहयोग आंदोलन में योगदान देने के लिए लोगों को अपनी सरकारी नौकरी छोड़ने के लिए बुलाया था। प्रेमचंद ने गोरखपुर के नॉर्मल हाई स्कूल में अपनी नौकरी छोड़ने का फैसला किया; हालाँकि वह शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं थे और उनकी पत्नी भी उस समय अपने तीसरे बच्चे के साथ गर्भवती थी।
जीवन एक दीर्घ पश्चाताप के सिवा और क्या है!” (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

Hans Magazine

  • ऐसा माना जाता है कि प्रेमचंद को बॉम्बे में गैर-साहित्यिक कार्यों का व्यावसायिक वातावरण पसंद नहीं था और 4 अप्रैल 1935 को बनारस लौट आए, जहाँ वह 1936 में अपनी मृत्यु तक रहे।
  • उनके अंतिम दिन आर्थिक तंगी से भरे थे और 8 अक्टूबर 1936 को लम्बी बीमारी के चलते उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के कुछ दिन पहले, प्रेमचंद को लखनऊ में प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अध्यक्ष के रूप में चुना गया था।
जीत कर आप अपने धोखेबाजियों की डींग मार सकते हैं, जीत में सब-कुछ माफ है। हार की लज्जा तो पी जाने की ही वस्तु है।”
  • रवींद्रनाथ टैगोर और इकबाल जैसे अपने समकालीन लेखकों के विपरीत उन्हें भारत के बाहर ज्यादा सराहना नहीं मिली। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति न मिलने का कारण यह माना जाता है कि उन्होंने कभी भारत से बाहर यात्रा नहीं की और न ही विदेश में अध्ययन किया था।
हममें खूबसूरती का मायार बदला होगा (हमें सुंदरता के मापदंडों को फिर से परिभाषित करना होगा)।”
सबसे ज्यादा प्रसन्न है हामिद। वह चार-पांच साल का गरीब-सूरत, दुबला-पतला लड़का, जिसका बाप गत वर्ष हैजे की भेंट हो गया और मां न जाने क्यों पीली होती-होती एक दिन मर गई। किसी को पता न चला, क्या बीमारी है। कहती भी तो कौन सुनने वाला था। दिल पर जो बीतती थी, वह दिल ही में सहती और जब न सहा गया तो संसार से विदा हो गई। अब हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोद में सोता है और उतना ही प्रसन्न है। उसके अब्बाजान रुपए कमाने गए हैं। बहुत-सी थैलियां लेकर आएंगे। अम्मीजान अल्लाह मियां के घर से उसके लिए बड़ी अच्छी-अच्छी चीजें लाने गई है, इसलिए हामिद प्रसन्न है। आशा तो बड़ी चीज है और फिर बच्चों की आशा! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती हैं।”

Google Doodle celebrates Premchand on his 136th birthday

  • मुंशी प्रेमचंद की साहित्यिक कृतियों से प्रेरित होकर कई हिंदी फिल्में, नाटक और टेलीविजन धारावाहिक बने हैं।

Mahatma Gandhi Biography in Hindi | महात्मा गांधी जीवन परिचय

सन्दर्भ [ + ]

सन्दर्भ
1
2
3
4, 5
6, 7
8
9
10

Related Posts

Esha Deol

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

  • Choose your language
  • मुख्य ख़बरें
  • अंतरराष्ट्रीय
  • उत्तर प्रदेश
  • मोबाइल मेनिया
  • बॉलीवुड न्यूज़
  • मूवी रिव्यू
  • खुल जा सिम सिम
  • आने वाली फिल्म
  • बॉलीवुड फोकस
  • श्री कृष्णा
  • व्रत-त्योहार
  • श्रीरामचरितमानस

लाइफ स्‍टाइल

  • वीमेन कॉर्नर
  • नन्ही दुनिया
  • दैनिक राशिफल
  • आज का जन्मदिन
  • आज का मुहूर्त
  • वास्तु-फेंगशुई
  • टैरो भविष्यवाणी
  • पत्रिका मिलान
  • रत्न विज्ञान
  • धर्म संग्रह
  • मील के पत्थर

हिन्दी के महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद

  • 104 शेयरà¥�स

Biography of Premchand | हिन्दी के महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद

FILE

writer premchand biography in hindi

writer premchand biography in hindi

  • वेबदुनिया पर पढ़ें :
  • महाभारत के किस्से
  • रामायण की कहानियां
  • रोचक और रोमांचक

Ganesh Chaturthi 2024: गणेश जी के मस्तक की रोचक कथा

Ganesh Chaturthi 2024: गणेश जी के मस्तक की रोचक कथा

WHO ने चेताया, भारत में चांदीपुरा वायरस का प्रकोप 20 वर्षों में सबसे ज्यादा

WHO ने चेताया, भारत में चांदीपुरा वायरस का प्रकोप 20 वर्षों में सबसे ज्यादा

क्या पीरियड्स के समय एक्सरसाइज से ओवेरी पर पड़ता है बुरा असर? जानिए क्या है सच्चाई

क्या पीरियड्स के समय एक्सरसाइज से ओवेरी पर पड़ता है बुरा असर? जानिए क्या है सच्चाई

क्या गले हुए केले खाना सेफ है? जानें कैसे करें डाइट में शामिल

क्या गले हुए केले खाना सेफ है? जानें कैसे करें डाइट में शामिल

बिस्तर पर ही करें ये 7 में से कोई एक एक्सरसाइज, तेजी से कम होगा वजन

बिस्तर पर ही करें ये 7 में से कोई एक एक्सरसाइज, तेजी से कम होगा वजन

और भी वीडियो देखें

writer premchand biography in hindi

पेल्विक हेल्थ का बच्चे की सेहत पर क्या असर पड़ता है, जानिए कैसे पेल्विक को मजबूत और स्वस्थ रखें

पेल्विक हेल्थ का बच्चे की सेहत पर क्या असर पड़ता है, जानिए कैसे पेल्विक को मजबूत और स्वस्थ रखें

शिक्षा पर आधारित हैं ये हिंदी फिल्में सशक्त तरीके से देती हैं अपना सन्देश

शिक्षा पर आधारित हैं ये हिंदी फिल्में सशक्त तरीके से देती हैं अपना सन्देश

Teachers Day Special: अभिनय की दुनिया के ये चेहरे पहले रह चुके थे टीचर

Teachers Day Special: अभिनय की दुनिया के ये चेहरे पहले रह चुके थे टीचर

अगर आंखों में पलकें नहीं होंगी तो क्या होगा? जानें क्या है इनका काम

अगर आंखों में पलकें नहीं होंगी तो क्या होगा? जानें क्या है इनका काम

अरबी के पत्ते हैं सेहत के लिए बहुत फायदेमंद, जानें कैसे करें डाइट में शामिल

अरबी के पत्ते हैं सेहत के लिए बहुत फायदेमंद, जानें कैसे करें डाइट में शामिल

  • हमारे बारे में
  • विज्ञापन दें
  • हमसे संपर्क करें
  • प्राइवेसी पालिसी

Copyright 2024, Webdunia.com

प्रेमचंद का जीवन परिचय | Biography of Munshi Premchand in Hindi

(मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय, Biography of Munshi Premchand in Hindi) – मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य के एक महान कहानीकार व उपन्यासकार थे जिन्होंने अपनी अद्वितीय रचनात्मक क्षमता से हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी। 

प्रेमचंद बचपन से ही पुस्तकों से बहुत ज्यादा लगाव रखते थे जिसकी वजह से उनका मन पुस्तकों की तरफ खींचता चला गया। पुस्तकें पढ़ना उनका शौक बन गया था। पुस्तकें पढ़ने की इसी प्रवृत्ति के कारण वे धीरे-धीरे लेखन के क्षेत्र में आ गए।

प्रेमचंद के द्वारा रचित कहानियां एकदम सरल और स्पष्ट है। उनकी कहानियों की प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण यह रहा है कि उन्होंने आमजन के जीवन को अपनी कहानियों में दिखाने का प्रयास किया है और लोगों को अच्छा संदेश दिया है।

Table of Contents

प्रेमचंद का परिचय (Introduction to Premchand)

नाममुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand)
वास्तविक नामधनपत राय श्रीवास्तव
जन्म31 जुलाई 1880, लमही, बनारस (भारत)
माताआनंदी देवी
पिताअजायब राय
भाईनहीं
बहिनसुग्गी
पत्नीशिवारानी देवी
पुत्रअमृतराय
कहानियाँपंच परमेश्वर, ईदगाह, गुप्त दान, दो बैलों की कथा, बड़े घर की बेटी व अन्य
उपन्यासरंगभूमि, सेवासदन, गब्बन, गोदान, कर्मभूमि व अन्य
योगदानशिक्षाप्रद कहानियां और उपन्यासों की रचना
प्रसिद्धि का कारणउपन्यासकार, कहानीकार
मृत्यु8 अक्टूबर 1936, बनारस (भारत)
उम्र56 वर्ष

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही ( वाराणसी के पास एक गांव) में हुआ था। उनके जन्म का मूल नाम “धनपत राय श्रीवास्तव” था।

प्रेमचंद के पिता का नाम अजायब राय तथा माता का नाम आनंदी देवी था। अजायब राय एक पोस्ट ऑफिस में क्लर्क का काम करते थे तथा आनंदी देवी गृहणी थी। 

प्रेमचंद अपनी माता आनंदी देवी के व्यक्तित्व से बहुत ज्यादि प्रभावित हुए। इसीलिए उन्होंने अपनी बड़े घर की बेटी कहानी में मुख्य पात्र आनंदी देवी को बनाया जिसे देखकर ऐसा लगता है कि संभवत: उन्होंने अपनी माता के संदर्भ में यह कहानी लिखी थी।

शुरुआती जीवन (Early life)

धनपत राय अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। उनकी दो बड़ी बहनें जन्म लेने के बाद ही मृत्यु को प्राप्त हो गई। उनकी एक जीवित बहन थी जो उनसे बड़ी थी जिसका नाम सुग्गी था।

जब बालक धनपत राय 7 वर्ष के हुए तब उन्हें लमही के एक मदरसे में पढ़ने के लिए भेजा गया। 

विधाता की होनी को कौन टाल सकता था। दुर्भाग्यवश, जब धनपत मात्र 8 वर्ष के थे तब उनकी माता आनंदी देवी की एक लंबी बीमारी के चलते मृत्यु हो गई।

उनकी माता के देहांत हो जाने के बाद, धनपत का पालन-पोषण उनकी दादी मां ने किया। परंतु, दादी मां भी बहुत जल्द ही गुजर गई। जिसके कारण धनपत अकेले पड़ गए क्योंकि उनके पिता क्लर्क थे और उन्होंने दूसरी शादी की भी कर ली। 

फिर भी धनपत को अपनी सौतेली माता से थोड़ा बहुत स्नेह जरूर मिला।

उन्होंने एक पुस्तक-होलसेलर के पास पुस्तकें बेचने का कार्य करना शुरू किया जिसके उपरांत उन्हें बहुत सारी पुस्तकें फ्री में पढ़ने के लिए मिल जाती थी और इसी वजह से पुस्तकों में उनकी रुचि बनी।

प्रेमचंद का विवाह (Marriage of Premchand)

धनपत बनारस के क्वींस कॉलेज में अध्ययन कर रहे थे। जब वह नौवीं कक्षा में थे तब उनका विवाह करवा दिया गया। उस समय धनपत की उम्र मात्र 15 वर्ष थी। 

यह विवाह धनपत के नाना ने तय करवाया था। लड़की एक संपन्न भू-मालिक के परिवार से थी। हालांकि, वह धनपत से उम्र में बड़ी, झगड़ालू, तथा कम सुंदर थी। ।

1896 के समय में, प्रेमचंद की पत्नी व सौतेली माता के बीच में झगड़े हुआ करते थे तब प्रेमचंद ने अपनी पत्नी को एक दिन फटकार लगा दी। जिसकी वजह से उनकी पत्नी ने आत्महत्या करने की कोशिश की। वह अपने मायके चली गई। प्रेमचंद ने अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए कोई रुचि नहीं दिखाई जिसकी वजह से उनकी शादी टूट गई।

1906 में प्रेमचंद ने एक विधवा बालिका शिवरानी देवी के साथ विवाह किया। उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम अमृतराय था।

लेखन में आगमन (Advent in writing)

प्रेमचंद ने दसवीं पास करने के बाद बनारस के केंद्रीय हिंदू कॉलेज में प्रवेश लेना चाहा। परंतु, वहां की अंकगणित उन्हें समझ नहीं आई और बाद में उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी।

पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्होंने अध्यापन का कार्य शुरू किया जिसके लिए उन्हें ₹18 प्रति महीने की सैलरी पर रखा गया। बनारस के एक वकील के बेटे को पढ़ाने के लिए उन्हें ₹5 प्रति महीना मिला करता था।

1900 में प्रेमचंद ने गवर्नमेंट डिस्ट्रिक्ट स्कूल में एक असिस्टेंट टीचर की जॉब प्राप्त की। इस जॉब के लिए उन्हें ₹20 प्रति महीना मिला करता था। 

अध्यापन कार्य के दौरान उन्हें काफी सारा समय मिल जाया करता था जिसमें उन्होंने लेखन कार्य को शुरू किया। 

प्रेमचंद ने अपना पहला उपन्यास देवस्थान रहस्य लिखा और उपन्यास में अपने आप को नवाब राय नाम दिया। जिसकी वजह से उन्हें मुंशी प्रेमचंद के अलावा नवाब राय के नाम से भी जाना जाता है।

सोजे वतन घटनाक्रम व प्रेमचंद नाम अधिग्रहण ( Soje Vatan & adoption of the name Premchand)

1909 में प्रेमचंद के द्वारा लिखे गए एक उपन्यास सोजे वतन के बारे में ब्रिटिश सरकार को पता चल गया। सोजे वतन में देश की आजादी से जुड़ी हुई कहानियां लिखी गई थी। 

उस समय प्रेमचंद हमीरपुर जिले के एक स्कूल में अध्यापन का कार्य कर रहे थे। हमीरपुर जिले के ब्रिटिश कलेक्टर ने प्रेमचंद के घर पर रेड डालने के आदेश दिए। इस रेड में प्रेमचंद के घर में 500 के लगभग सोजे वतन की प्रतिलिपियां (फोटो कॉपी) पाई गई। सोजे वतन की उन सभी प्रतिलिपियों को वहीं पर जलाकर राख कर दिया गया।

इस घटनाक्रम के बाद जमाना उर्दू मैगजीन के एडिटर ने उनको यह सलाह दी कि वे अपने नाम को चेंज कर लें। उन्होंने बताया कि वह अपना नाम नवाब राय से प्रेमचंद रख ले। 

इसके बाद प्रेमचंद ने अपने सभी साहित्यकारों को प्रेमचंद के नाम से प्रकाशित करना शुरू कर दिया।

प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियां (The famous stories from Premchand)

प्रेमचंद की लेखन कला ही ऐसी थी कि उनके द्वारा लिखी गई सभी कहानियाँ प्रसिद्ध हुई। उनकी कहानियों में सरलता व स्पष्टता दिखाई पड़ती है जिसकी वजह से यह आमजन को आसानी से समझ में आ जाती है। उनकी कहानियां मनोरंजन, भाव इत्यादि से भरी रहती है और अंत में एक शिक्षाप्रद संदेश देती है।

प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियां-

  • दो बैलों की कथा
  • बड़े घर की बेटी
  • पंच परमेश्वर
  • आखिरी मंजिल

मुंशी प्रेमचंद की सभी कहानियों को एक-एक कर पढ़ने के लिए आगे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-  मुंशी प्रेमचंद की कहानियां

प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यास (The famous novels from Premchand)

प्रेमचंद मात्र कहानीकार ही नहीं बल्कि एक बहुत बड़े उपन्यासकार भी थे। उनके द्वारा रचित उपन्यास बहुत प्रसिद्ध हुए हैं। उनके द्वारा रचित कुछ उपन्यास निम्नलिखित हैं –

 अन्य उपन्यास पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें ।

प्रेमचंद की मृत्यु (Death of Premchand)

प्रेमचंद ने अपने अध्यापन कार्य को छोड़ दिया और 18 मार्च 1921 को बनारस चले आए। ‌अपनी जॉब छोड़ने के बाद उन्होंने सिर्फ साहित्य कार्य पर ध्यान दिया। जॉब छोड़ने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति भी खराब होने लग गई।

उन्होंने भारत के असहयोग आंदोलन में साथ देने के लिए महात्मा गांधी के कहने पर ब्रिटिश सरकार की जॉब छोड़ दी। 

8 अक्टूबर 1936 को मुंशी प्रेमचंद की बनारस में मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने भी उनके ऊपर एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था – प्रेमचंद घर में ।

यह भी पढ़ें – कबीरदास की जीवन परिचय

उत्तर- मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कहानीकार व उपन्यासकार थे। उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही, बनारस में हुआ था। प्रेमचंद को बचपन से ही पुस्तकें पढ़ने का बहुत शौक था जिसकी वजह से वह धीरे-धीरे लेखन के कार्य में आ गए। वहीं से उन्होंने कहानियां और उपन्यास लिखने शुरू किए। उनके द्वारा रचित कहानियां व उपन्यासों ने हिंदी साहित्य को एक नई मोड़ दी। 

उत्तर- प्रेमचंद की प्रसिद्ध कुछ कहानियां – दो बैलों की कथा, बड़े घर की बेटी, पंच परमेश्वर, बूढ़ी काकी, कफन, ईदगाह, जुलूस, आखिरी मंजिल, ज्वालामुखी व अन्य।

उत्तर- मुंशी प्रेमचंद की माता का नाम आनंदी देवी तथा पिता का नाम अजायब राय था।

उत्तर- मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही, बनारस में हुआ था।

Show Your Love ❤

Related posts:

Leave a comment जवाब रद्द करें.

अगली बार जब मैं टिप्पणी करूँ, तो इस ब्राउज़र में मेरा नाम, ईमेल और वेबसाइट सहेजें।

Notify me of new posts by email.

  • More Networks

HindiSwaraj

मुंशी प्रेमचन्द्र जीवनी | munshi premchand Biography in Hindi | मुंशी प्रेमचन्द्र का जीवन परिचय | munshi premchand jivani

By: Sakshi Pandey

munshi premchand Biography in Hindi | मुंशी प्रेमचन्द्र जीवनी

Biography of munshi premchand, know how his literature influenced freedom struggle & social evils, मुंशी प्रेमचन्द्र का शुरुआती जीवन (munshi premchand biography in hindi), अपने जन्म के बारे में मुंशी जी लिखते हैं – (munshi premchand poem), मुंशी प्रेमचन्द्र का परिवार (munshi premchand family), मुंशी प्रेमचन्द्र की शिक्षा (munshi premchand education), लेखक के रूप में मुंशी प्रेमचन्द्र (munshi premchand writer ), कानपुर पहुंचे मुंशी प्रेमचन्द्र (munshi premchand book), नवाब राय से मुंशी प्रेमचन्द्र पड़ा नाम (munshi premchand original name), बनारस वापस लौटे मुंशी प्रेमचन्द्र (munshi premchand life), फिल्म इंडस्ट्री में मुंशी प्रेमचन्द्र (munshi premchand ), मुंशी प्रेमचन्द्र का निधन (munshi premchand death), मुंशी प्रेमचन्द्र की रचनाएं (munshi premchand ki rachnaye), मुंशी प्रेमचन्द्र जी की प्रसिद्ध कहानियां (munshi premchand stories).

अमूमन हिन्दी साहित्य का इतिहास अनगिनत होनहार शख्सियतों के हुनरों से खजाना है। लेकिन इसी कड़ी में एक नाम ऐसा भी है, जिसने अपनी कल्पना और कलम के समागम को साहित्य के पन्नों पर कुछ इस कदर उकेरा कि लोग उनकी कलम के कायल हो गए। दशकों बाद भी उनकी कहानियां हर बच्चे की जुबां पर हैं, तो उनके उपन्यासों की दास्तां के दीवाने भी कई हैं। हिन्दी साहित्य के सुनहरे इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाली वो अद्भुत हस्ती हैं मुंशी प्रेमचन्द्र। (munshi premchand biograophy in Hindi )

यहाँ पढ़ें : Mukesh Ambani Biography in Hindi

नाममुंशी प्रेमचन्द्र
जन्मतिथि31 जुलाई 1880
जन्म स्थानलमही, बनारस
आयु56 वर्ष
माताआनन्दी देवी
पितामुंशी अजायब राय
पत्नीशिवरानी देवी
बेटाअमृत राय
मृत्यु8 अक्टूबर 1936

यहाँ पढ़ें :   biography in hindi of Great personalities यहाँ पढ़ें :   भारत के महान व्यक्तियों की जीवनी हिंदी में

यहाँ पढ़ें : डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जीवनी

मुंशी प्रेमचन्द्र का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश राज्य में बनारस (वाराणसी) जिले के लमही नामक गांव में हुआ था। मुंशी जी के बचपन का नाम (munshi premchand childhood name) धनपत राय था। तीन बहनों में सबसे छोटे भाई मुंशी जी नवाब राय के नाम से भी मशहूर थे।

सन् अट्ठारह सौ अस्सी, लमही सुंदर ग्राम। प्रेमचंद को जनम भयो, हिन्दी साहित काम।। परमेश्वर पंचन बसें, प्रेमचंद कहि बात। हल्कू कम्बल बिन मरे, वही पूस की रात।।

यहाँ पढ़ें : lata mangeshkar ki jivani in hindi यहाँ पढ़ें : वेंकैया नायडू जीवनी

munshi premch Biography in Hindi

मुंशी जी के पिता अजायब राय गांव के ही डाकघर में मुंशी थे, वहीं उनकी माता का नाम आनन्दी था, जिनके नाम का जिक्र मुंशी प्रेमचन्द्र की मशहूर कहानी बड़े घर की बेटी में आनन्दी का किरदार निभाने वाली मुख्य नायिका के रूप में मिलता है।

मुंशी प्रेमचन्द्र बचपन से ही अपनी मां और दादी के बेहद करीब थे। लेकिन मुंशी जी महज 8 साल के थे, जब उनकी माता का स्वर्गवास हो गया और कुछ समय बाद उनकी दादी भी चल बसीं। वहीं उनकी बड़ी बहन की भी शादी हो चुकी थी।ऐसे में मुंशी जी बेहद अकेले हो गए। इसी बीच पिता का तबादला गोरखपुर हो गया।

मंशी जी के बचपन का जिक्र करते हुए रामविलास शर्मा जी कहते हैं- “जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। जब पंद्रह वर्ष के हुए तब उनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष के होने पर 1897 में उनके पिता का भी देहांत हो गया।”

मुंशी जी नौंवी कक्षा में थे, जब उनका विवाह एक बड़े सेठ की बेटी से कर दिया गया था। हालांकि साल 1906 में शिवरानी राय से हुआ, जोकि एक बाल विधवा थीं।

यहाँ पढ़ें : Rajnath Singh biography in hindi यहाँ पढ़ें : ज्योतिरादित्य सिंधिया जीवनी

मुंशी जी ने 7 साल की उम्र में लमही में ही स्थित एक मदरसे से अपनी स्कूली शिक्षा शुरु की थी। मुंशी जी को बचपन से ही किताबें पढ़ने का बेहद शौक था। उन्होंने छोटी सी उम्र में पारसी भाषा में लिखित तिलिस्म-ए-होशरुबा किताब पढ़ ली थी। इसी दौरान मंशी जी को किताबों की दुकान पर नौकरी मिल गई। किताबों की बिक्री के साथ-साथ मुंशी जी को यहां ढ़ेर सारी किताबें पढ़ने का मौका मिला।

वहीं मुंसी जी ने एक मिशनरी स्कूल से अंग्रेजी भाषा की शिक्षा प्राप्त की, जिसके बाद उन्होंने जॉर्ज रेनॉल्ड्स के द्वारा लिखी मशहूर किताब ‘ द मिस्ट्री ऑफ द कोर्ट ऑफ लंदन ’ का आठवां संस्करण भी पढ़ा।

हालांकि किताबों के शौकीन मुंशी जी गणित में काफी कमजोर थे। नतीजतन उन्हें बनारस के क्वीन्स कॉलेज में दाखिला तो मिल गया लेकिन विश्वविद्यालय के नियमानुसार परीक्षाओं में पहली श्रेणी हासिल करने वाले विद्यार्थियों को ही आगे की पढ़ाई करने की अनुमति थी। वहीं प्रेमचन्द्र जी का नाम दूसरी श्रेणी में आने के कारण कॉलेज से उनका नाम काट दिया गया।

जिसके बाद उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में दाखिला लेने की कोशिश की लेकिन गणित कमजोर होने के कारण यहां भी बात न बन सकी।

मुंशी जी की शिक्षा के बारे में लिखते हुए रामविलास शर्मा जी कहते हैं कि- “1910 में मुंशी जी ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद 1919 में अंग्रेजी, फारसी और इतिहास विषय से स्नातक किया। जिसके बाद मुंशी जी शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए।

हालांकि 1921 में महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन का आह्वान करने के साथ ही मुंशी जी ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और पूरी तरह से साहित्य के कार्य जुट गए।

यहाँ पढ़ें : कबीर दास जीवनी यहाँ पढ़ें : योगी आदित्यनाथ का जीवन परिचय 

munshi premch Biography in Hindi

मुंशी प्रेमचन्द्र के अंदर लिखने का हुनर बचपन से ही था। उन्होंने अपनी पहली कहानी गोरखपुर में ही लिखि थी। यह कहानी एक पढ़े-लिखे नौजवान और एक पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखने वाली महिला की प्रेम कहानी थी।

दरअसल पन्द्रह – सोलह साल तक की जिस उम्र में आम बच्चे दुनिया से रुबरु होने की कला सीखना शुरु करते हैं, उसी उम्र तक मुंशी जी जिंदगी की कई हकीकतों से वाकिफ हो चुके थे। राम विलास शर्मा की जुबां में – “सौतेली माँ का व्यवहार, बचपन में शादी, पंडे-पुरोहित का कर्मकांड, किसानों और क्लर्कों का दुखी जीवन-यह सब प्रेमचंद ने सोलह साल की उम्र में ही देख लिया था।”

शायद यही कारण था कि उनकी परिपक्कवता की झलक उनके साहित्य में आसानी से देखी जा सकती थी। मुंशी जी ने ‘देवस्थान रहस्य’ शीर्षक नाम से अपना पहला उन्यास लिखा, जिसे उन्होंने ‘नवाब राय’ केनाम से प्रकाशित कराया। ( munshi premchand ka jivan parichay )

साल 1909 में इन्सपेक्टर के पद पर तैनात मुंशी जी का तबादला कानपुर हो गया। इसी दौरान मुंशी जी की मुलाकात प्रसिद्ध उर्दू पत्रिका ‘जमाना’ के संपादक मुंशी दया नारायण निगम से हुई।

जिसके बाद जमाना के हर संस्करण में मुंशी जी के द्वारा लिखी अनगिनत कहानियां और विचार छपने लगे। इन विचारों में राजनीतिक टिप्पणियों से लेकर तंज, रोचक कहानियां सहित कई मंनोरंजन की लेखनियां शामिल थीं।

मुंशी प्रेमचन्द्र जी की पहली कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’ 1907 में जमाना पत्रिका का हिस्सा बना। वहीं उनका दूसरा उपन्यास ‘प्रेमा’ भी 1907 में ही संपादित हुआ। यह उपन्यास विधवा विवाह पर आधारित था।

1907 में जमाना ने पहली बार मुंशी जी की कहानियों का कलेक्शन ‘शोज-ए-वतन’ के नाम से छापा।

1909 में ही मुंशी जी का तबादला हमीरपुर कर दिया गया। इस समय तक मुंशी जी न सिर्फ साहित्य की दुनिया में बल्कि समूचे हिन्दुस्तान में उर्दू लेखक के रुप में एक जानी-मानी हस्ती बन चुके थे।

इसी दौरान पहली बार ब्रिटिश हुकूमत की नजर मुंशी जी द्वारा लिखी कहानी संग्रह ‘शोज-ए-वतन’ पर पड़ी। ब्रिटिश सरकार ने मुंशी जी की इस किताब पर बैन लगा दिया और इसी के साथ मुंशी जी के घर की तलाशी के दौरान किताब की 500 कॉपियों को भी जला कर राख कर दिया गया।

इतने बड़े हादसे और मुंशी जी से ब्रिटिश हुकूमत की नाराजगी के बाद जमाना पत्रिका के संपादक दया नारायण जी ने जमाना के सभी संस्करणों से मुंशी जी का नाम नवाब राय से बदल कर प्रेमचन्द्र रख दिया और तब से मुंशी जी साहित्य की दुनिया में प्रेमचन्द्र के नाम से प्रख्यात हो गए।

यहाँ पढ़ें : Y S Jagan Mohan Reddy biography यहाँ पढ़ें : Uddhav Thackeray Biography in Hindi

1921 में आजादी की आवाज बने महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन का आगाज किया। गांधी जी के आह्वान पर समूचा देश ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक जुट हो गया। इसी कड़ी में राष्ट्रप्रेम से प्रेरित होकर मुंशी जी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और बनारस वापस लौट कर अपना सारा जीवन साहित्य को सौंपने का फैसला कर लिया।

1923 में मुंशी जी ने बनारस में सरस्वती प्रेस की नींव रखी। 1924 में मुंशी जी ने भक्तिकाल के मशहूर कवि सूरदास पर आधारित ‘रंगभूमि’का प्रकाशन किया। वहीं एक के बाद एक प्रेमचन्द्र द्वारा प्रकाशित कई लेखिनिया लोकप्रिय होती गईं।

1928 में मुंशी जी ने मशहूर उपन्यास गबन (munshi premchand gaban) का प्रकाशन किया। जिसके बाद बनारस में उन्हें मर्यादा पत्रिका का संपादक नियुक्त कर दिय गया और फिर बाद में मुंशी जी ने लखनऊ आधारित माधुरी पत्रिका के संपादन का कार्य संभाला।

यहाँ पढ़ें : अमित शाह की जीवनी

31 मई 1934 को मुंशी प्रेमचन्द्र हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई पहुंच गए।  बंबई में मुंशी जी को अजंता सीनेटोन के बैनर तले फिल्म लेखन के लिए 8000 रुपए पर एक साल का कॉन्ट्रैक्ट मिला।

मुंशी प्रेमचन्द्र ने मोहन भवानी के निर्देशन में बनी फिल्म मजदूर की कहानी लिखी। इस फिल्म को दिल्ली और लाहौर में रिलीज किया गया। फिल्म फैक्ट्री में काम करने वाले गरीब मजदूरों पर आधारित थी। नतीजतन फिल्म की रिलीज के साथ ही कई दिल्ली और लाहौर के मील मदजूरों ने अपने मालिकों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया, जिसके चलते ब्रिटिश सरकार ने फिल्म पर पाबंदी लगा दी।

वहीं दूसरी तरफ बनारस में मुंशी जी की सरस्वती प्रकाशन कर्ज में डूब चुकी थी और मजदूर फिल्म से प्रभावित होकर प्रकाशन के कामगारों ने भी कई महीनों की तनख्वा बकाया रहने पर हड़ताल शुरु कर दी।

लिहाजा 4 अप्रैल 1935 को मुंशी जी बनारस के लिए रवाना ह गए। हालांकि बाद में बाम्बे टॉकीज के मालिक हिमांशु रॉय ने कई बार मुंशी जी से बंबई वापस आने की गुजारिश की लेकिन मुंशी जी बनारस छोड़ कर जाना मुनासिब नहीं समझा।

यहाँ पढ़ें : निर्मला सीतारमण की जीवनी यहाँ पढ़ें : अरविंद केजरीवाल जीवनी

बंबई से वापस आने के बाद मुंशी जी ने इलाहाबाद में बसने का फैसला किया। इसी दौरान1936 में मुंशी जी को लखनऊ आधारित प्रोग्रेसिव राइटर एसोसीएशन का अध्यक्ष चुना गया। इसी साल पिछले काफी दिनों से बिमार (munshi premchand death cause) होने के कारण 8 अक्टूबर 1936 को हिन्दी साहित्य के महान लेखक मुंशी प्रेमचन्द्र जी ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

1936 में ही मुंशी जी की मशहूर उपन्यास गोदान (munshi premchand godan) प्रकाशित हुई, जिसका प्रकाशन अंग्रेजी में ‘द गिफ्ट ऑफ काऊ’ के नाम से हुआ।शुल्ज ने गोदान का जिक्र करते हुए लिखा- गोदान एक बेहतरीन और संतुलित उपन्यास है। हालांकि मुंशी जी की रचनाएं उचित अनुवाद के अभाव में सीमित जनसंख्या तक ही पहुंच सुनिश्चित कर सकेंगी। जिसके कारण रविन्द्रनाथ टैगोर और इकबाल जैसे अन्य महान लेखकों की अपेक्षा मुंशी प्रेमचन्द्र का नाम देश के बाहर कुछ चुंनिदा लोग ही जान सकेंगे।”

मुंशी जी के निधन के बाद 1938 में उनकी आखिरी कहानी ‘क्रिकेट मैचिंग’ का प्रकाशन जमाना पत्रिका में किया गया।

मुंशी जी के मशहूर उपन्यास (munshi premchand novels)

Devasthan RahasyaAsrar-e-Ma’abidAwaz-e-Khalk

Prema
Hamkhurma-o-Ham SawabIndian Press/Hindustan Publishing House
SevaSadanBazaar-e-HusnCalcutta Pustak Agency
RangbhoomiChaugan-e-HastiDarulIshaat
GabanGhabanSaraswati Press, Benares; Lajpatrai& Sons, Urdu Bazaar
KarmabhoomiMaidan-e-AmalMaktabaJamia, Delhi
GodanSaraswati Press
Duniya ka Sabse Anmol RatanZamana1907
Beti ka DhanZamana1915
SautSaraswati Press1915
Panch ParmeshwarSaraswati Press1916
Shatranj ke KhiladiMadhuri1924
IdgahChand1933
LotteryZamana

यहाँ पढ़ें: अन्य महान व्यक्तियों की जीवनी

Reference- 29 March 2021, munshi premchand Biography in Hindi , wikipedia

writer premchand biography in hindi

I am enthusiastic and determinant. I had Completed my schooling from Lucknow itself and done graduation or diploma in mass communication from AAFT university at Noida. A Journalist by profession and passionate about writing. Hindi content Writer and Blogger like to write on Politics, Travel, Entertainment, Historical events and cultural niche. Also have interest in Soft story writing.

Leave a Comment Cancel reply

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

मुंशी प्रेमचंद की जीवनी Munshi Premchand Biography in Hindi

इस लेख में आप मुंशी प्रेमचंद की जीवनी Munshi Premchand Biography in Hindi हिन्दी में आप पढ़ेंगे। इसमें आप प्रेमचंद जी का परिचय, जन्म व प्रारंभिक जीवन, शिक्षा, साहित्य, निजी जीवन, मृत्यु जैसी की जानकारियाँ दी गई है।

Table of Content

मुंशी प्रेमचंद का परिचय Munshi Premchand Introduction in HIndi

उनकी कलम में इतनी शक्ति थी, कि उनके द्वारा रचित प्रत्येक रचना में कई रहस्य छुपे रहते थे, जो किसी ना किसी प्रकार के संदेश स्वयं के भीतर समेटे हुए रहते थे। 

उर्दू व हिंदी के महान लेखकों में से एक मुंशी प्रेमचंद्र जी को बंगाल के प्रसिद्ध उपन्यासकार ‘शरतचंद्र चट्टोपाध्याय’ द्वारा “उपन्यास सम्राट” की उपाधि प्रदान की गई है। प्रेमचंद की रचनाएं यथार्थवाद और बहुमूल्य होती है। 

मुंशी प्रेमचंद्र का वास्तविक नाम ‘धनपत राय श्रीवास्तव’ था। वे मुख्यतः उर्दू और हिंदी भाषा में अपने विचारों को लिखना पसंद करते थे। साहित्य जगत में उनके बेमिसाल योगदान को देखते हुए हर साल उनके जन्मदिन पर “मुंशी प्रेमचंद्र जयंती” भी मनाई जाती है।

मुंशी प्रेमचंद का जन्म व प्रारंभिक जीवन Munshi Premchand Birth and Early Life in Hindi

कहा जाता है कि जब मुंशी प्रेमचंद सिर्फ 7 साल के थे, तभी उनकी माता का देहांत हो गया। बहुत छोटी उम्र में उनका विवाह संपन्न कर दिया गया। 

अगले ही वर्ष जब वे 16 साल के हुए तभी उनके पिता भी चल बसे। मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन बड़े ही कठिनाइयों से गुजरा, जहां उनके ऊपर बहुत कम उम्र में ही गृहस्थ की जिम्मेदारियां भी लाद दी गई।

मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा Education of Munshi Premchand in Hindi

घर की मुश्किल परिस्थितियों को देखकर उन्होंने कम आमदनी पर छोटी सी नौकरी भी की, जहां उन्हें थोक मूल्य किताबों की बिक्री करने वाले व्यापारी के यहां काम मिला। उन्होंने अपनी पढ़ाई के साथ अपनी रुचि को भी और गहरा किया। 

मुंशी प्रेमचंद का साहित्य में स्थान Literary Work by Munshi Premchand

अपने पहले रचना का जिक्र के रुप में उन्होंने एक नाटक प्रस्तुत किया। जो दुर्भाग्य वश कभी प्रकाशित नहीं हुआ। मुंशी जी के उपलब्ध लेखनो में उनकी पहली रचना उर्दू भाषा में रचित उपन्यास ‘असरारे मआबिद’ थी, जिसे धारावाहिक में प्रकाशित भी किया गया था। 

तत्पश्चात इसका हिंदी रूपांतरण किया गया, जिसका नाम ‘देवस्थान रहस्य’ रखा गया। वर्ष 1907 में प्रकाशित हुआ मुंशी जी का दूसरा उपन्यास उर्दू भाषा में रचित हमखुर्मा व हमसवाब था।

वर्ष 1910 में मुंशी प्रेमचंद्र का पहला कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ, जिसका नाम ‘सोज़े – वतन’ (देश का विलाप) था। गौरतलब है कि मुंशीजी “नवाब” नाम से अपनी सभी रचनाएं लिखते थे। 

लेकिन देश भक्ति के रंग से ओतप्रोत उनकी इस रचना ने विदेशी सरकार के मन में भय खड़ा कर दिया, जिसके बाद उन्होंने इसकी सभी प्रतियां भी जप्त कर ली और मुंशी प्रेमचंद्र जी को इस तरह के लेख कभी न लिखने की चेतावनी भी दे डाली।

मुंशी प्रेमचंद्र जी अंग्रेजी सरकार द्वारा जनता के उत्पीड़न, शोषण और बाकी सामाजिक मुद्दों पर खुलकर लिखते थे। अक्सर उन्हें कोर्ट कचहरी में भी तलब कर लिया जाता था। जब उन पर लोगों को भड़काने के आरोप लगने लगे तो उन्होंने अपना नाम नवाब से बदलकर ‘प्रेमचंद्र’ रख लिया। 

बीसवीं सदी में प्रकाशित होने वाली प्रसिद्ध उर्दू ‘जमाना पत्रिका’ के संपादक तथा मुंशी जी के पुराने मित्र दया नारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद्र नाम रखने की सलाह दी थी।

जिस तरह अंधेरे में एक दीपक चारों तरफ उजाला कर देता है, उसी प्रकार मुंशी प्रेमचंद्र जी की रचनाएं भी गुलामी के दौर में लोगों में उत्साह भरने का काम करता था। स्वतंत्रता संघर्ष में अपनी भागीदारी दिखाते हुए प्रेमचंद्र जी ने गांधी जी के आवाहन पर वर्ष 1921 में अपनी नौकरी का त्याग कर दिया।

मुंशी प्रेमचंद का निजी जीवन Personal Life of Munshi Premchand in Hindi

अपने पहले वैवाहिक जीवन में कभी भी मुंशी प्रेमचंद्र सुखी नहीं रहे, ऐसा उनका मानना था। उनके पिता ने एक अमीर घराने की लड़की से मुंशी प्रेमचंद का विवाह 15 साल की कच्ची उम्र में ही कर दिया। 

सौभाग्य से उनका दूसरा विवाह सफल रहा। उनकी दूसरी पत्नी ने हर कदम पर मुंशी प्रेमचंद्र जी का साथ दिया, जिसके वजह से उनकी तरक्की दिन दुगना रात चौगुना होने लगी। 

मुंशी प्रेमचंद की 5 छोटी कहानियाँ 5 Short Stories of Munshi Premchand 

ठाकुर का कुआँ.

गांव में जोखू और गंगी नामक एक गरीब दंपत्ति रहता था, जो निचले वर्ग से ताल्लुक रखता था। उसी गांव में ठाकुर परिवार भी निवास करता था, जो बेहद अमीर और ऊंची जाति का था। जोखू और गंगी बड़े ही मुश्किल से अपना गुजारा कर पाते थे। 

गंगी ने उसे पानी ला कर दिया, लेकिन जैसे ही जोखू ने उसे पीने के लिए हाथ बढ़ाया उसे बड़ी ही बदबू आ रही थी। उनके पास शुद्ध पानी नहीं था। 

बर्तन के शोर-शराबे के बाद जब हवेली में कुछ लोगों को कुएं के पास किसी के होने की भनक लगी, तो गंगी कैसे भी अपनी जान बचा कर बिना पानी लिए ही वापस घर आ गई और उसने देखा कि जोखू वही बदबूदार गंदा पानी पी रहा था, यह देखकर गंगी अपने आंसू नहीं रोक सकी।

दो बैलों की कथा

यह कहानी हीरा और मोती नमक दो बैलों की हैं, जिन्हें झुरी ने बचपन से ही बड़े लाड प्यार से पालकर बड़ा किया था। एक दिन झुरी को किसी वजह से अपने ससुराल में अपने साले गया के पास अपनी दोनों बैलों को छोड़कर कहीं जाना पड़ा।

हीरा और मोती को यह लगा कि झूरी उन्हें किसी दूसरे मालिक को बेच दिया है। बहुत जल्द ही दोनों ही गया के चंगुल से छूट कर वापस घर पहुंच गई। यह देखकर झूरी तो बहुत खुश हुआ , लेकिन उसकी पत्नी इससे बड़ी गुस्सा हुई। 

दुसरी बार जब हीरा और मोती को गया के पास छोड़ा गया, तो वह उनके साथ बड़ा ही खराब रवैया अपनाने लागा। वह अपनी गायों को हष्ट पुष्ट चार डालता, लेकिन वही हीरा और मोती को खराब भूसा डाल देता था। एक दिन कैसे भी दोनों ही बेल रस्सी छुड़ाकर भाग निकले और मटर के खेत में पहुंच गए। 

वहां के लोगों ने हीरा और मोती को मटर का खेत बर्बाद करते देख लिया और उन्हें पकड़ कर बहुत यातनाएं दी। अंत में हीरा और मोती को एक कसाई के हाथों बेच दिया गया। 

जब कसाई उन्हें अपने साथ ले जा रहा था तभी हीरा और मोती ने अपने मालिक के घर का रास्ता पहचान लिया और दौड़ कर उसके पास पहुंच गई। बड़े दिनों से गुमशुदा हीरा और मोती को देखकर झूरी और उसकी पत्नी बहुत खुश हुए।

यह कहानी समाज के एक ऐसे चेहरे को प्रदर्शित करता है, जहां बड़े बुजुर्गों के साथ अपमान तथा अन्याय किया जाता है। इस कहानी में बुद्धिराम और उसकी पत्नी रूपा द्वारा बूढ़ी काकी को नीचा दिखा कर अपमानित किया जाता है। 

यह कहानी होरीराम नामक एक किसान की है, जिसके परिवार में उसकी पत्नी धनिया, दो बेटियां सपना और रूपा तथा एक बेटा गोबर रहता है। वह एक गरीब किसान होता है, जो बड़ी मुश्किल से अपने परिवार को पालता है। होरी और उसकी पत्नी की यह इच्छा होती है, की उनके पास भी एक गाय हो। 

इसके पश्चात होरी का अंतिम संस्कार करने के लिए धनिया पंडित बुलाती है, जो यह शर्त रखता है, कि धनिया को अपनी बिरादरी वालों को भोजन करवाना पड़ेगा और पंडित को एक गाय दान करनी होगी। 

मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं Major Literary Works by Munshi Premchand in Hindi

मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु death of premchand.

मुंशी जी का निधन हिंदुस्तान कि साहित्य और कला जगत के लिए सबसे बड़ी क्षति थी। आज करोड़ों लोगों के दिलों में मुंशी प्रेमचंद्र जी अपनी रचनाओं के कारण जीवित हैं।

मुंशी प्रेमचंद जयंती Munshi Premchand Jayanti

writer premchand biography in hindi

Similar Posts

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की जीवनी us president donald trump biography in hindi, छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी biography of chhatrapati shivaji maharaj in hindi, सुनील मित्तल का जीवन परिचय sunil bharti mittal biography in hindi, डॉ. ज़ाकिर हुसैन का जीवन परिचय dr. zakir hussain biography in hindi, फखरुद्दीन अली अहमद की जीवनी fakhruddin ali ahmed biography in hindi, सिकंदर महान का इतिहास alexander the great history in hindi, leave a reply cancel reply.

sanjeevnihindi

प्रेमचन्द का जीवन परिचय | Biography 0f Premchand In Hindi | PremChand Ka Jivan Parichay

हिन्दी कथा साहित्य के कुशल चितेरे मुंशी प्रेमचंद को हिंदी तथा उर्दू भाषा के सर्वकालिक महान लेखकों में से एक माना जाता है । उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य का वह सूरज है जिसकी चमक कभी कम नहीं हो सकती ।

उनकी कहानियों के पात्र आम जन-जीवन के इतने निकट होते हैं कि उन्हें समाज के हर वर्ग में देखा जा सकता है । प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, इन्हें नवाब राय तथा प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है।

उपन्यास लेखन के क्षेत्र में प्रेमचंद के योगदान को देखते हुए बंगाल के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार शरदचंद्र चट्टोपाध्याय ने इन्हे उपन्यास सम्राट के नाम से संबोधित किया था ।

साथ ही इनके प्रसिद्ध साहित्यकार पुत्र अमृत राय ने इन्हें कलम का सिपाही नाम दिया । हिंदी साहित्य जगत में अमर उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद को अत्यंत गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है।

सामाजिक कुरीतियों तथा मानव जीवन के प्रत्येक पहलू को इन्होंने अपनी सशक्त लेखनी द्वारा इतने सजीव और मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया है कि पुस्तक पढ़ते समय कहानी के पात्र पाठक की आंखों के आगे सहज ही किसी चलचित्र की भांति साकार हो उठते हैं।

प्रिय पाठकों ! प्रेमचन्द का जीवन परिचय | Biography of Premchand in Hindi | premchand ka jivan parichay लेख के माध्यम से हम आपको बता रहे हैं कि हिंदी साहित्य के प्रथम उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद भारत के उन महान लेखकों में से थे जिन्होंने अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों, रूढिवादियों एवं शोषणकर्ताओं पर कुठाराघात करके अपने पाठकों को न केवल स्वस्थ मनोरंजन दिया बल्कि सामाजिक बुराइयों के दुष्परिणाम को उजागर करते हुए जड़ से समाप्त करने का संदेश दिया।

लगभग आधी शताब्दी का समय बीत जाने के बाद भी प्रेमचंद की कथावस्तु का ताना-बाना हम समाज में ठीक वैसा ही पाते हैं । तो चलिए दोस्तों जानते हैं प्रेमचंद कि जीवनी/ कहानी के बारे में –

Table of Contents

प्रेमचन्द का जीवन परिचय | Biography Of Premchand In Hindi | PremChand Ka Jivan Parichay

प्रसिद्ध नाममुंशी प्रेमचंद
अन्य नाम नवाब राय
वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव
जन्म तारीख31 जुलाई 1880
जन्म स्थान लमही गांव, वाराणसी, उत्तर-प्रदेश
मृत्यु8 अक्टूबर 1936
पिता का नाम मुंशी अजायब राय
माता का नाम आनन्दी देवी
पत्नी का नामशिवरानी देवी
पुत्र/पुत्री के नामश्रीपत राय , अमृत राय, कमला देवी
ज्ञात भाषाएंहिंदी, उर्दू
कर्मभूमि गोरखपुर
शिक्षास्नातक
व्यवसायअध्यापन, लेखन , पत्रकारिता
प्रसिद्ध रचनाएं गबन, गोदान, कफ़न ,रंगभूमि, कर्मभूमि, निर्मला

प्रेमचन्द का जीवन परिचय ( Premchand Ji ka Jeevan Parichay )- Munshi Premchand Biography in Hindi

मुंशी प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई, 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से लगभग छः किलोमीटर दूर लमही गांव में एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनका असली नाम धनपतराय था। उनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल था, और माता का नाम आनन्दी देवी था ।

पिता डाकघर में मुंशी के पद पर सरकारी नौकरी करते थे। मुंशी प्रेमचंद बचपन में बहुत नटखट और शैतान बालक थे । उन्हें मिठाई के रूप में गुड़ खाने का बहुत शौक था । उस जमाने में उर्दू भाषा का सरकारी काम-काज की भाषा में विशेष प्रभाव था।

प्रेमचन्द के घराने में सभी उर्दू के जानकार थे, अतः पिता ने उन्हें भी प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू में दिलाने की शुरूआत की। गांव के करीब लालगंज नामक गांव में एक मौलवी के पास उन्हें उर्दू-फारसी शिक्षा के लिए भेजा ।

प्रेमचंद की शिक्षा-दीक्षा – Education of Premchand

आरम्भिक शिक्षा मौलवियों से प्राप्त करने वाले प्रेमचन्द ने मैट्रिक की परीक्षा 1898 में पास कर ली थी । और उसके बाद स्थानीय विद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे । नौकरी के साथ-साथ इन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा ।

You May Also Read

  • महादेवी वर्मा जी का जीवन एवं साहित्यिक परिचय
  • कबीर दास का जीवन परिचय, Kabir Das Biography In Hindi   
  • सूरदास जी का जीवन परिचय, Surdas Biography in Hindi  
  • तुलसीदास का जीवन परिचय , Tulsidas Biography in Hindi

इन्होंने 1910 में इतिहास, दर्शन, फारसी और अंग्रेजी में इण्टर की परीक्षा पास की और 1919 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य, फारसी व इतिहास विषयों में द्वितीय श्रेणी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की, फिर शिक्षा विभाग में डिप्टी इंस्पेक्टर बने ।

Biography Of Premchand In Hindi

व्यक्तिगत जीवन – Personal Life (Premchand ki Jivani)

प्रेमचंद कायस्थ परिवार से थे, उनका परिवार बड़ा था और मात्र 6 बीघा जमीन थी । प्रेमचंद के दादाजी गुरु सहाय लाल एक पटवारी थे। पिता डाक मुंशी थे जिनका वेतन लगभग ₹25 प्रतिमाह था । उनकी माता आनंदी देवी कुशल गृहिणी थीं ।

घरेलू वातावरण ऐसा था कि पिता नौकरी पर तो मां घरेलू काम-काज में ! बच्चा पढ़ रहा है या नहीं, इस बात को देखने वाला कोई न था। यही वजह थी कि प्रेमचन्द का स्वभाव खिलन्दड़ बन गया।

थोड़ी सी पढ़ाई, ढेरों खेल बचपन के खिलन्दड़ दिनों को प्रेमचन्द कभी न भूले। उनके उपन्यास और कहानियों में जगह-जगह उन दिनों के खेलों का जिक्र मिल जाता है। मां के साथ दादी का लाड़ प्यार भी खूब मिलता था।

इस तरह बचपन के दिन प्रेमचन्द के खूब मौज-मस्ती में गुजरे । पर, अभी उनकी उम्र सात साल की ही थी कि मां ऐसी गम्भीर रूप से बीमार पड़ीं कि उठ न सकीं।

बालक धनपत को बेसहारा छोड़कर मां इस दुनिया से सिधार गयीं। मां के निधन से जीवन में आयी रिक्तता का वर्णन मुंशी प्रेमचन्द ने अपने उपन्यासों में जगह-जगह लिखा है।

उनके पिता ने 2 वर्ष बाद ही दूसरा विवाह कर लिया। प्रेमचंद को छोटी उम्र में ही सौतेली माँ का साथ मिला, निश्चित ही सौतेली मां से शायद उन्हें वह ममता प्राप्त नहीं हुई, जो एक माँ से प्राप्त होती है, शायद इसी कारण उनकी रचनाओं में कई जगहों पर सौतेली मां का वर्णन है।

प्रेमचंद का विवाह – Marriage of Premchand

15 वर्ष की छोटी उम्र में ही प्रेमचंद का विवाह हो गया । उनकी यह शादी उनके सौतेले नाना के द्वारा कराई गई थी। उस समय की रचनाओं के विवरण से ऐसा लगता है कि उनकी पत्नी ना तो देखने में ही सुंदर थी और शायद झगड़ालू प्रवृत्ति की थी।

इन सब कारणों से उनका यह विवाह लंबा नहीं चल सका, और उन्होंने अपनी पत्नी से संबंध विच्छेद कर लिया। शादी के एक वर्ष बाद ही उनके पिता का निधन हो गया, और परिवार का पूरा बोझ इन पर ही आ गया । उन्हें पाँच लोगों के परिवार का खर्च उठाना पड़ता था।

उनके आर्थिक संकट का पता इस बात से चलता है कि उन्होंने पैसों के अभाव के कारण अपना कोट और किताबें बेच दीं थीं ।

प्रेमचंद का दूसरा विवाह – Second Marriage of Premchand

सन् 1906 में प्रेमचंद ने शिवरानी देवी नाम की एक बाल-विधवा से दूसरा विवाह कर लिया । शिवरानी देवी से उनको तीन संतान थी – श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी ।

शिवरानी देवी के पिता फतेहपुर के पास रहने वाले एक जमीदार थे। समय के उस दौर में एक विधवा से विवाह करने वाले प्रेमचंद के साहसी व्यक्तित्व का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

दूसरे विवाह के पश्चात प्रेमचंद की परिस्थितियों में बदलाव आया, आर्थिक संकट कम हो गए, वह अपने लेखन कार्य को अधिक सजगता से करने लगे , और उनकी पदोन्नति हुई और वे स्कूलों के डिप्टी इंस्पेक्टर बन गए ।

ये प्रेमचंद जी के खुशहाली के दिन थे , इन्ही दिनों इनकी पाँच कहानियों का संग्रह “सोज़े वतन” प्रकाशित हुआ , और बहुत लोकप्रिय हुआ।

प्रेमचंद की साहित्यिक रूचि – Literary Interest of Premchand

Premchand Ki Jivani in Hindi में उनकी साहित्यिक रुचि के बारे में आपको यहाँ बताने जा रहे हैं- प्रेमचंद को बचपन से ही पढ़ने का बड़ा शौक था।

उन्होंने उस जमाने के मशहूर लेखकों रतननाथ सरसार , मिर्जा रुसवा और मौलाना शरर की कृतियों को बड़े चाव से पढ़ा और उसका मनन किया।

“ तिलिस्म होशरुबा ” उस जमाने की बहुत मशहूर तिलिस्मी और अय्यारी कथानक पर आधारित पुस्तक थी, कई खण्डों में थी, उन्होंने वह बारह-तेरह साल की उम्र में पूरी पढ़ डाली थी।

अंग्रेजी भाषा में लिखी लेखक रेनाल्ड की “मिस्ट्रीज ऑफ द कोर्ट ऑफ लन्दन” भी उन्होंने पढ़ी। मौलाना सज्जाद हुसैन की हास्य कृतियों का भी अध्ययन किया।

अय्यारी, तिलिस्म, रहस्य-रोमांच, हास्य कृतियों का शौक से अध्ययन करने वाले प्रेमचन्द उन विषयों के एकदम विपरीत सामाजिक जीवन पर आधारित उपन्यास और कहानियां कैसे लिखने लगे।

यह जरा ताज्जुब की बात लगती पर शायद कुदरत ने उन्हें कलम के सिपाही के रूप में ही उतारा था। सिपाही बनकर सामाजिक जीवन की व्यथा की कलम के माध्यम से रक्षा की और जीवन भर उसी काम में लगे रहे।

प्रेमचन्द का साहित्यिक परिचय- Literary Introduction of Premchand

प्रेमचन्द ने अपनी लेखनी की शुरूआत भी उर्दू भाषा में की। धनपत राय के बजाय उन्होंने नवाबराय के नाम से लिखना आरम्भ किया।

उनकी पहली कहानी मात्र 17 वर्ष की उम्र में, 1907 में ज़माना पत्रिका में प्रकाशित हुई। कहानी का शीर्षक था ‘संसार का सबसे अनमोल रत्न’ ।

लेखन की शुरूआत की तो लिखते चले गये और कहानियां छपती चली गयीं। 1910 में उनका पहला कहानी संग्रह “सोज़े-वतन” ( राष्ट्र का विलाप ) शीर्षक से छपकर बाजार में आया ( क्योंकि यह राष्ट्रभक्ति की भावना से ओतप्रोत था ) तो अंग्रेज सरकार के कान खड़े हुए।

सोजे वतन के लिए हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने प्रेमचंद को तलब किया , तथा उन पर अपनी पुस्तक सोजे वतन के माध्यम से जनता को भड़काने का आरोप लगाया गया ।

सोज़े-वतन को जब्त कर उसकी प्रतियां जला दी गयीं। कलम के सिपाही पर कलम चलाने की पाबन्दी लग गयी। प्रेमचंद उस समय नवाब राय के नाम से लिखा करते थे।

नवाब राय पर सरकारी तौर पर अनेक प्रतिबन्ध लग गये। इन प्रतिबन्धों के कारण वे नवाब राय के नाम से न लिख सकते थे।

तब, उस समय के प्रसिद्ध पत्रकार प्रेमचंद के अभिन्न मित्र ज़माना पत्रिका के सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें नया नाम दिया – प्रेमचन्द ।

और इसके बाद वे प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे। पत्रिका के लेखन कार्य की शुरुआत उन्होंने जमाना पत्रिका से ही शुरू की।

प्रेमचंद पर महात्मा गाँधी जी का प्रभाव – Influence of Mahatma Gandhi on Premchand

सन् 1920 में, महात्मा गाँधी जी के आन्दोलन से प्रभावित होकर उनके आह्वान पर प्रेमचन्द ने सरकारी नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया ।

  • भगत सिंह का जीवन परिचय , Bhagat Singh Biography In Hindi
  • बागेश्वर धाम महाराज धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री का सम्पूर्ण जीवन परिचय
  • स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय, जीवनी

प्रेमचंद का कार्य क्षेत्र – Premchand’s Work Area

नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद कुछ समय तक मर्यादा पत्रिका का संपादन किया, फिर लगभग 6 वर्ष तक माधुरी नाम की एक अन्य पत्रिका का संपादन भी किया ।

फिर 1930 में बनारस में ही रहते हुए प्रेमचंद जी ने अपना ही स्वयं का एक मासिक पत्र हंस के नाम से प्रकाशित किया तत्पश्चात 1932 में जागरण नाम का एक और साप्ताहिक पत्र शुरू किया ।

1934 में रिलीज हुई मजदूर नामक फिल्म की कथा का लेखन इन्होंने ही किया परन्तु मुंबई (बम्बई) की सभ्यता और फिल्मी दुनिया की आवों-हवा उन्हें रास ना आई और अपने 1 वर्ष का कॉन्ट्रैक्ट का समय पूरा किए बगैर ही अपने 2 महीने की पगार छोड़कर बनारस वापस आ गए ।

1936 में उन्होंने अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन की अध्यक्षता भी की। प्रेमचंद जी ने 1915 से कहानियां लिखना प्रारंभ किया तथा 1918 से उपन्यासों को लिखना भी प्रारंभ किया।

पंच परमेश्वर , प्रेमचन्द जी की हिन्दी में प्रकाशित पहली कहानी थी। उन्होंने 300 के लगभग कहानियां और15 उपन्यास लिखे। 3 नाटक, 10 अनुवाद 7 बाल-पुस्तकें, भाषण, पत्र, लेख और सम्पादन कार्य भी किया।

पर उनकी ख्याति का मूल आधार उपन्यास व कथा साहित्य बना। प्रेमचंद जी की कई रचनाओं का अनुवाद रूसी, जर्मनी, अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में हुआ । गोदान उपन्यास को उनकी कालजयी रचना माना जाता है ।

प्रेमचंद की रचनाएं- Compositions of Premchand

मुंशी प्रेमचंद की लेखन प्रतिभा साहित्य की विभिन्न विधाओँ में दिखाई देती है क्योंकि उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, लेख, समीक्षा, संस्मरण, संपादकीय आदि लगभग प्रत्येक क्षेत्र में साहित्य सृजन किया।

इसी कारण “उपन्यास सम्राट” उपाधि उन्हे अपने जीवन काल में ही मिल गई थी। सेवा सदन, गबन, कायाकल्प, प्रेमाश्रय, रंगभूमि और गोदान उपन्यास उनकी श्रेष्ठ कृतियों में गिने जाते हैं।

उनकी कहानियां मानसरोवर के आठ खण्डों में संकलित हैं। उनके निबन्ध ‘कुछ विचार’ नामक पुस्तक में संकलित हैं। सामाजिक और राजनीतिक निबन्ध ‘विविध प्रसंग’ में संग्रहीत हैं। कफन उनके द्वारा लिखी गई अंतिम कहानी थी ।

Premchand ki Rachnaen, Premchand Biography in Hindi

रचनाओं का विषय- Subject of Compositions

उनकी रचनाओं का मूल विषय राष्ट्रीय जागरण और समाज सुधार है, जिसकी वजह से उनकी रचनाएं आदर्शवाद से प्रेरित कही  जाती है।

किसान, शोषित व  मजदूरों  के प्रति उनकी बहुत सहानुभूति होती थी। उनकी रचनाओं में आदर्श और यथार्थ का सहज चित्रण मिलता है।

भाषा – Language

मुंशी प्रेमचंद की भाषा सहज, सरल तथा पात्रों के अनुकूल है । इसी कारण उन्हें उपन्यास सम्राट कहा गया।

“मुंशी” उपनाम के विषय में बहस – (Munshi Premchand in Hindi )

प्रेमचन्द का जीवन परिचय में हम आपको बता रहे है कि प्रेमचंद जी को हमेशा “मुंशी प्रेमचंद” के नाम से पुकारा जाता है परंतु उनके नाम प्रेमचंद के पहले ” मुंशी” शब्द कब और कैसे जुड़ा इस विषय में लोगों के बीच एक अलग प्रकार की बहस हमेशा रही है।

कुछ लोगों का कहना है प्रेमचंद जी एक अध्यापक थे तथा अध्यापकों को उस काल में मुंशी कहा जाता था, इसी कारण उन्हें मुंशी प्रेमचंद कहा जाने लगा।

इस मान्यता के अलावा कुछ अन्य लोगों का तर्क है कि प्रेमचंद जी कायस्थ थे, और उन दिनों कायस्थ लोगों के नाम के पहले सम्मान के तौर पर “मुंशी” शब्द का प्रयोग करने की परंपरा थी।

इन सभी तर्कों में सबसे प्रमाणिक तथ्य यह है कि – प्रेमचंद एवं ‘कन्हैयालाल मुंशी ‘ के सह संपादन में “हंस” नाम का एक पत्र प्रकाशित होता था।

उसी पत्र की कुछ प्रतियों पर कन्हैयालाल मुंशी का पूरा नाम छापने के स्थान पर केवल “मुंशी” ही छपा होता था और इसके साथ ही प्रेमचंद का नाम भी छपा होता था , अतः वह पढ़ने वाले को इस प्रकार दिखाई देता था – मुंशी, प्रेमचंद

हंस पत्र के संपादक दो अलग-अलग लोग प्रेमचंद तथा कन्हैयालाल मुंशी थे । परंतु लंबे समय तक इन दो नामों को पढ़ते-पढ़ते लोगों ने इसे एक ही नाम की तरह पढ़ना, बोलना शुरू कर दिया।

और इस प्रकार ‘ प्रेमचंद’ “मुंशी प्रेमचंद” बन गए। मुंशी शब्द उनके नाम का एक ऐसा अभिन्न उपसर्ग बन गया कि मुंशी शब्द के बिना उनका नाम अधूरा प्रतीत होता है।

प्रेमचंद की मृत्यु- Premchand Death

अपने जीवन के अंतिम दिनों में प्रेमचंद जी गंभीर रूप से बीमार हो गए , उनकी लंबी बीमारी के कारण उनका अंतिम उपन्यास “मंगलसूत्र” भी पूरा नहीं हो सका, जिसे उनके साहित्यकार पुत्र अमृत ने पूर्ण किया ।

अंततः महान रचनाकार “कलम के जादूगर” का निधन 8 अक्टूबर, 1936 को जलोदर नामक भयंकर बीमारी के कारण वाराणसी में हुआ।

  • पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय, इतिहास
  • प्रथम आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का जीवन परिचय

लगभग 33 वर्षों के अपने लेखकीय जीवन में वे हिंदी साहित्य को ऐसी विरासत देकर गए हैं जो चिरकाल तक हमारी धरोहर रहेगी।

इस प्रकार अपने साहित्य-प्रेम की लौ से अपने जीवन को तिल-तिल जलाकर हिन्दी साहित्य के पथ को आलोकित कर यह दीप हमेशा के लिए बुझ गया ।

प्रेमचंद पर डाक टिकट व सम्मान – Postage Stamp and Honour on Premchand

भारतीय डाक एवं तार विभाग की और से मुंशी प्रेमचंद जी की स्मृति में व उन्हें सम्मान प्रदान करने के लिए 31 जुलाई 1980 को उनकी जन्मशती के महत्वपूर्ण मौके पर 30 पैसे का एक डाक टिकट जारी किया गया।

Biography Of Premchand In Hindi

प्रेमचंद गोरखपुर के जिस विद्यालय में शिक्षक के तौर पर कार्यरत थे वहां “प्रेमचंद साहित्य संस्थान” की स्थापना की गई है । इसी विद्यालय में उनकी एक वक्ष प्रतिमा तथा उन से जुड़ी हुई वस्तुओं का एक संग्रहालय भी बनवाया गया है।

सरकार की ओर से प्रेमचंद जी की 125 वीं सालगिरह पर घोषणा की गई कि उनके गांव में प्रेमचंद जी के नाम पर एक स्मारक तथा शोध एवं अध्ययन केंद्र की स्थापना की जाएगी।

प्रश्न – प्रेमचंद का जन्म कब हुआ ?

उत्तर – प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 में हुआ ।

प्रश्न – प्रेमचंद किस नाम से मशहूर हैं ?

उत्तर – प्रेमचंद, मुंशी प्रेमचंद के नाम से मशहूर हैं ।

प्र श्न – प्रेमचंद के कितने बच्चे थे ?

उत्तर – प्रेमचंद के दो बेटे तथा एक बेटी थी ।

प्रश्न – प्रेमचंद के दादाजी का क्या नाम था ?

उत्तर – प्रेमचंद के दादाजी का नाम श्री गुरु सहाय राय था ।

प्रश्न – प्रेमचंद के माता-पिता का क्या नाम है ?

उत्तर – प्रेमचंद के पिता का नाम मुंशी अजायब लाल था, और माता का नाम आनन्दी देवी था ।

प्रश्न – प्रेमचंद की पहली कहानी कौन सी है ?

उत्तर – प्रेमचंद के नाम से प्रकाशित उनकी पहली कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ है ।

प्रश्न – प्रेमचंद की अंतिम कहानी कौन सी है ?

उत्तर – प्रेमचंद का सर्वाधिक महत्वपूर्ण व अंतिम उपन्यास ‘गोदान’ को माना जाता है।

प्रश्न – प्रेमचंद की मृत्यु कब और कैसे हुई ?

उत्तर – प्रेमचंद की मृत्यु 8 अक्टूबर, 1936 को जलोदर नामक भयंकर बीमारी के कारण वाराणसी में हुई ।

तो दोस्तों , प्रेमचन्द का जीवन परिचय | Premchand ki Jivani in Hindi | premchand ka jivan parichay | premchand biography in hindi लेख आपको कैसा लगा ?

हमें पूर्ण विश्वास है कि आपको महान उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय से संबंधित वृहत एवं विस्तृत जानकारी अवश्य पसंद आई होगी।

दोस्तों जैसा कि हमने पहले भी कहा है कि आपकी समालोचना से हमें बेहतर लिखने की प्रेरणा मिलती है । अतः हमारे लेख पढ़ने के बाद कमेंट बॉक्स में अपनी राय लिखकर हमें अवश्य भेजें।

अगर इस लेख से संबंधित आपके कोई प्रश्न हो तो आप कॉमेंट करके पूछ सकते हैं, लेख को पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद !

अंत में – हमारे आर्टिकल पढ़ते रहिए , हमारा उत्साह बढ़ाते रहिए , खुश रहिए और मस्त रहिए।

ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जियें ।  

  • स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय
  • ए पी जे अब्दुल कलाम का जीवन परिचय

Share with your Love ones

  • Click to share on Facebook (Opens in new window)
  • Click to share on WhatsApp (Opens in new window)
  • Click to share on Twitter (Opens in new window)
  • Click to share on LinkedIn (Opens in new window)
  • Click to share on Telegram (Opens in new window)
  • Click to email a link to a friend (Opens in new window)

47 thoughts on “प्रेमचन्द का जीवन परिचय | Biography 0f Premchand In Hindi | PremChand Ka Jivan Parichay”

  • Pingback: नए साल पर निबंध 2022हिंदी Happy New Year Essay In Hindi 2022
  • Pingback: क्रिसमस डे 2021पर निबंध Essay on Christmas Day 2021 in Hindi
  • Pingback: Biography of Veer Chandra Singh Garhwali Hindi me, Jeevni

Leave a Comment Cancel reply

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

इस लेख में प्रसिद्ध उपन्यासकार हिंदी साहित्य के पितामह मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय (Biography of Munshi Premchand in Hindi) जानने वाले हैं। इस जीवन परिचय में इनके परिवार, माता-पिता, उनका बचपन का नाम, जन्म कब और कहां हुआ, प्रमुख रचनाएं और अंतिम पूर्ण उपन्यास आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।

मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य की नींव रखने वाले प्रथम ऐसे उपन्यासकार, कहानीकार है, जिन्होंने अपनी रचनाओं में निम्न वर्गीय लोग जैसे कि किसान आदि को महत्वपूर्ण स्थान दिया।

Biography of Munshi Premchand in Hindi

मुंशी प्रेमचंद का बचपन बहुत ही कष्टकारी था। फिर भी मुंशी प्रेमचंद ने अपना साहस नहीं छोड़ा और अपने इसी मेहनत के चलते आज भी श्रेष्ठ उपन्यासकार तथा कहानीकार है।

तो आइए मुंशी प्रेमचंद के बारे में विस्तारपूर्वक सभी जानकारी प्राप्त करते हैं कि उन्होंने किन परिस्थितियों का सामना करके इस उपलब्धि को प्राप्त किया है।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand Biography in Hindi)

नाममुंशी प्रेमचंद
अन्य नामश्रेष्ठ उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद, धनपत राय
पिता का नामअजायब राय
माता का नामआनन्दी देवी
जन्म तारीख31 जुलाई 1880
जन्म स्थानलमही गाँव (वाराणसी)
पत्नी का नामशिवरानी देवी
उम्र56 वर्ष
पतालमही गाँव, वाराणसी
स्कूल
कॉलेज
शिक्षा
मृत्यु8 अक्टूबर 1936
भाषाउर्दू, हिंदी
नागरिकताइंडियन
धर्महिन्दू
जातिकायस्थ परिवार (श्रीवास्तव)

मुंशी प्रेमचंद कौन थे?

मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ कहानीकार तथा उपन्यासकार है। मुंशी प्रेमचंद का स्थान हिंदी साहित्य में उपन्यासकार के रूप में सबसे ऊपर है। मुंशी प्रेमचंद अपनी रचनाओं को बड़ी ही मेहनत और लगन के साथ लिखा करते थे।

ऐसा भी कहा जाता है कि मुंशी प्रेमचंद जब अपनी रचनाओं को लिखना प्रारंभ करते थे तो वह उस किरदार में स्वयं को मान लेते थे और फिर अपनी रचनाओं की विशेषता प्रकट करते थे।

उनके इसी विशेषता के कारण उन्हें हिंदी साहित्य में सर्वश्रेष्ठ उपन्यासकार और कथाकार के रूप में ख्याति प्राप्त है।

मुंशी प्रेमचंद का जन्म कब और कहां हुआ?

प्रेमचंद का जन्म वाराणसी जिले के लमही नामक ग्राम में 31 जुलाई 1880 को हुआ था। प्रेमचंद का बचपन बड़ी कठिनाइयों में व्यतीत हुआ। जीवन की विषम परिस्थितियों में भी उनका अध्ययन क्रम निरंतर चलता रहा।

मुंशी प्रेमचंद के पिता का नाम अजायब राय था और माता का नाम आनन्दी देवी था। मुंशी प्रेमचंद के पिता डाकखाने में एक नौकर के तौर पर काम करते थे।

मुंशी प्रेमचंद के बचपन का नाम और उनकी कहानी

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के बचपन का नाम धनपत राय था। जब मुंशी प्रेमचंद की उम्र लगभग 8 वर्ष की थी तभी उनके माता का स्वर्गवास हो गया।

अपनी माता के स्वर्गवास हो जाने के पश्चात उनको जीवन में बहुत ही विषम परिस्थितियों से गुजारना पड़ा।

मुंशी प्रेमचंद के पिता अजायब राय ने दूसरा विवाह कर लिया, जिसके कारण प्रेमचंद चाह कर भी माता का प्रेम और स्नेह नहीं प्राप्त कर सके।

लोगों का कहना है कि अपने घर की भयंकर गरीबी के कारण उनके पास पहनने के लिए कपड़े भी नहीं थे और ना ही खाने के लिए पर्याप्त भोजन होता था।

इन सब परिस्थितियों के बावजूद घर में उनकी सौतेली माता का व्यवहार में उनकी हालत को और खराब कर देता था।

मुंशी प्रेमचंद जी का विवाह

लोगों का कहना है कि जब मुंशी प्रेमचंद महज 15 वर्ष के थे तभी उनके पिता ने उनका विवाह करा दिया था।

जिस लड़की से मुंशी प्रेमचंद का विवाह हुआ था, वह मुंशी प्रेमचंद से उम्र में बड़ी और बहुत ही बदसूरत भी थी।

मुंशी प्रेमचंद की पत्नी की सूरत बुरी तो थी, साथ ही उनके पत्नी का व्यवहार भी बहुत बुरा था। पत्नी की कटुता पूर्ण बातें ऐसी लगती थी कि जैसे कोई जले पर नमक छिड़क रहा हो।

उन्होंने अपनी एक रचना में स्वयं लिखा है “उम्र में वह मुझसे ज्यादा थी, तब मैंने उसकी सूरत देखी तो मेरा खून सूख गया।”

मुंशी प्रेमचंद ने अपने विवाह को लेकर अपने पिता के ऊपर भी कुछ लिखा है “पिताजी ने जीवन के अंतिम सालों में एक ठोकर खाई और स्वयं तो गिरे ही साथ में मुझे भी डुबो दिया, मेरी शादी बिना सोचे समझे कर डाली।”

हालांकि मुंशी प्रेमचंद के पिता को उनके इस करनी का बाद में पश्चाताप भी हुआ।

मुंशी प्रेमचंद के विवाह के ठीक 1 वर्ष बाद उनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद अचानक पूरे परिवार का बोझ मुंशी प्रेमचंद के सर आ गया।

अब मुंशी प्रेमचंद के ऊपर 5 लोगों का खर्चा आन पड़ा। इन पांच लोगों मे उनकी विधवा माता, उनके दो बच्चे और उनकी पत्नी के साथ-साथ स्वयं का भी बोझ था।

प्रेमचंद के आर्थिक विपत्ति का अनुमान इस घटना से लगाया जा सकता है कि उन्हें पैसों की इतनी जरूरत थी कि उन्हें अपना कोट भी बेचना पड़ा, कोट के साथ-साथ उन्हें अपनी पुस्तक बेचनी पड़ी।

वह जब एक बार अपनी पुस्तक को बेचने के लिए बुकसेलर के पास पहुंचे, तभी वहां पर एक स्कूल के हेड मास्टर आन पड़े और उन्होंने मुंशी प्रेमचंद को अपने विद्यालय में अध्यापक पद पर नियुक्त किया।

यह भी पढ़े: मुंशी प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां

मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा

मुंशी प्रेमचंद ने बीए तक की शिक्षा प्राप्त की। जीवन की विषम परिस्थितियों में भी उनका अध्ययन क्रम चलता रहा। उन्होंने उर्दू का भी विशेष ज्ञान प्राप्त किया।

जैसा कि आपको पहले बताया उनके बचपन का नाम धनपत राय था और मुंशी प्रेमचंद को उर्दू का विशेष ज्ञान था, इस कारण उन्होंने अपनी एक पत्रिका को अपने नाम धनपत राय के उर्दू अर्थ नवाब राय नाम से कहानी लिखते थे।

आजीविका चलाने हेतु मुंशी प्रेमचंद द्वारा कार्य

मुंशी प्रेमचंद ने आज इनका चलाने के लिए एक विद्यालय में अध्यापक पद को सुशोभित किया और अपने इस बात को अपने कर्तव्य और निष्ठा के साथ करने लगे।

अपने इसी कर्तव्य निष्ठा के दम पर वह उस विद्यालय के अध्यापक से सब इंस्पेक्टर बन गए। वह कुछ समय तक काशी विद्यापीठ में भी अध्यापक के पद को सुशोभित किया है।

मुंशी प्रेमचंद की कृतियां

प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य के हर एक विधाओं में अपनी उत्कृष्ट रचना के जरिए हिंदी साहित्य के लेखकों में अपना उत्कृष्ट स्थान बनाया है।

प्रेमचंद ने अपनी अधिकांश रचना उर्दू भाषा में लिखी, जिसके बाद में हिंदी में रूपांतरित किया गया। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी, जर्मनी, रूसी जैसे अनेक भाषाओं में भी अनुवाद किया गया।

प्रेमचंद ने कुल 300 के करीब कहानियां, 12 से भी अधिक उपन्यास और कुछ नाटक भी लिखे। कुछ साहित्य का इन्होंने अनुवाद कार्य भी किया।

कहानी लेखन की शुरुआत इन्होंने 1915 से करी, वही उपन्यास लिखने की शुरुआत 1918 से की थी। कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट भी माना जाता है।

इनकी कहानी रचना में कफन सबसे ज्यादा प्रख्यात माना जाता है और इनके अंतिम कहानी थी, जिसे इन्होंने हिंदी और उर्दू में लिखी थी।

इनकी सभी उपन्यासों में गोदान सबसे अधिक चर्चा में रहती है। प्रेमचंद की साहिब रचना का समय 33 वर्षों का रहा और इस 33 वर्षों में इन्होंने साहित्य की ऐसी विरासत आज की पीढ़ी को देकर गए, जो गुणों की दृष्टि से अमूल्य है।

प्रेमचंद के साहित्य का आरंभ 1901 में शुरू हुआ, जो पहली हिंदी कहानी सरस्वती पत्रिका मैं सोत नाम से प्रकाशित हुई और अंतिम कहानी कफन 1936 में प्रकाशित हुई।

प्रेमचंद की कहानियों का दौर 20 वर्षों तक चला, जिसमें अनेकों रंग देखने को मिले है। इनकी कहानी में काल्पनिक, पौराणिक, धार्मिक रचनाएं थी।

1908 में प्रेमचंद के पांच कहानियों का संग्रह सोजे वतन प्रकाशित हुआ था, जो एक देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत था। जिस कारण अंग्रेजी सरकार ने प्रेमचंद को कहानी लिखने पर प्रतिबंध लगा दिया।

इससे पहले तक प्रेमचंद धनपत राय नाम से अपने कहानियों का प्रकाशन करते थे। लेकिन अंग्रेजी सरकार के इस घोषणा के बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से आगे कहानियों का प्रकाशन करना शुरू किया।

प्रेमचंद नाम से इनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी 1910 में जमाना पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।

उनके कृतियों में जीवन सत्य का आदर्श रूप उभर कर सामने आता है। इसके परिणाम स्वरूप वे सार्वभौमिक कलाकार के रूप में भी प्रतिष्ठित है।

मुंशी प्रेमचंद ने कहानी संग्रह, उपन्यास, नाटक, निबंध, अनुवाद इत्यादि रचनाएं की है, जिनमें से कुछ प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं।

कहानी संग्रह

सप्त सरोज, प्रेम पूर्णिमा, लाल फीता, नवनीत, बड़े घर की बेटी, नमक का दरोगा, प्रेम द्वादशी, प्रेम प्रमोद, प्रेम पचीसी, प्रेम प्रसून, प्रेम तीर्थ, प्रेम चतुर्थी, शब्द सुमन, प्रेम पंचमी, प्रेरणा, प्रेम प्रतिज्ञा, पंच प्रसून, समर यात्रा, नवजीवन आदि।

प्रेमचंद ने एक से बढ़कर एक उपन्यास लिखे, इनकी उपन्यास रचना इनके समय काल में बहुत ज्यादा प्रसिद्ध हुई। यहां तक कि आज भी उनके उपन्यास को लोग बहुत ही चाव से पढ़ते हैं।

प्रेमचंद का पहला उपन्यास 8 अक्टूबर 1903 को उर्दू साप्ताहिक ‘’आवाज-ए-खल्क़’’ में ‘अपूर्ण’ नाम से प्रकाशित हुआ था।

इनका दूसरा उपन्यास ‘हमखुर्मा व हमसवाब’ था और 1907 में इस उपन्यास का ‘प्रेमा’ नाम से हिंदी में रूपांतरण होकर प्रकाशित हुआ।

प्रेमचंद ने अपने अधिकांश उपन्यास को उर्दू भाषा में लिखा। हालांकि अधिकांश उर्दू उपन्यासों का हिंदी में रूपांतरण किया गया।

1918 में प्रेमचंद ने “सेवासदन” नाम का उपन्यास की रचना की। हालांकि यह उपन्यास हिंदी में लिखी गई थी।

उर्दू में लिखी गई इस उपन्यास का नाम ‘बाजारे-हुस्‍न’ था। यह उपन्यास वेश्यावृत्ति पर आधारित है। इस उपन्यास के जरिए प्रेमचंद ने भारत के नारी की पराधीनता को बताया है।

1921 में अवध के किसान आंदोलन के दौर में प्रेमचंद की आई उपन्यास “प्रेमाश्रम” में किसान जीवन का वर्णन किया गया है। इसे भी प्रेमचंद ने ‘गोशाए-आफियत’ नाम से पहले उर्दू में लिखा था।

लेकिन सबसे पहले इसका हिंदी रूपांतरण का प्रकाशन हुआ। इस तरह 1903 से शुरू होकर 1936 तक ‘गोदान’ तक इनका उपन्यास पहुंचकर खत्म हुआ।

साल 1925 में प्रेमचंद की आई उपन्यास रंगभूमि में इन्होंने एक अंधे भिखारी सूरदास को कथा का नायक बनाकर हिंदी कथा साहित्य में क्रांतिकारी बदलाव लाने का प्रयास किया।

इनका उपन्यास रचना “गोदान” हिंदी साहित्य के उत्कृष्ट उपन्यास मानी जाती है, जिसका स्थान विश्व साहित्य में भी बहुत मायने रखता है।

इस उपन्यास में इन्होंने एक सामान्य किसान को पूरे उपन्यास का नायक बनाकर भारत के उस समय किसान स्थिति को बहुत ही सुंदर तरीके से वर्णित किया है।

मंगलसूत्र प्रेमचंद की अंतिम उपन्यास रचना थी, जो अधूरी थी। प्रेमचंद की कई उपन्यासों का दुनिया की कई भाषाओं में रूपांतरण किया गया।

इस तरह प्रेमचंद ने हिंदी उपन्यास को जो ऊंचाई प्रदान की है, वह सच में सराहनीय है।

यह भी पढ़े: कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जीवन परिचय

प्रसिद्ध उपन्यास संग्रह

सेवा सदन, रंगभूमि, कर्मभूमि, गोदान, गबन, कायाकल्प, निर्मला, सेवा सदन, प्रेम आश्रम, मंगलसूत्र आदि। मुंशी प्रेमचंद का अधूरा उपन्यास मंगलसूत्र है।

मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियां

शतरंज के खिलाड़ी, पूस की रात, आत्माराम, रानी सारंधा आदि मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियां हैं।

मुंशी प्रेमचंद की कथा शिल्प

मुंशी प्रेमचंद का विशाल कहानी साहित्य मानव प्रकृति, मानव इतिहास तथा मानवीयता के हृदयस्पर्शी एवं कलापूर्ण चित्र से परिपूर्ण है।

उन्होंने सांस्कृतिक उन्नयन, राष्ट्र सेवा, आत्म गौरव आदि के सचिव एवं रोचक चित्रण के साथ-साथ मानव के वास्तविक स्वरूप को दर्शाने में अपूर्व कौशल दर्शाया है।

उनकी कहानियों में दमन, शोषण एवं अन्याय के विरुद्ध आवाज बुलंद करने की सलाह दी गई है तथा सामाजिक विकृतियों पर व्यंग के माध्यम से प्रहार किया गया है।

मुंशी प्रेमचंद की कहानी रचना का केंद्र बिंदु मानव है। उनकी कहानियों में लोक जीवन के विभिन्न पक्षों का मार्मिक चित्रण किया गया है।

प्रेमचंद के कथावस्तु का गठन समाज के विभिन्न धरातल को स्पर्श करते हुए यथार्थ जगत की घटनाओं, भावनाओं, चिंतन – मनन एवं जीवन संघर्षों को लेकर चलता है।

मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में पात्रों का मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है।

इसके साथ ही इन्होंने मानव की अनुभूतियों एवं संवेदना को भी महत्व दिया है। मुंशी प्रेमचंद मानव मन के सूक्ष्म तम भाव का आकर्षण चित्र अपनी रचनाओं में लाने में सफल रहे हैं।

मुंशी प्रेमचंद की भाषा शैली

मुंशी प्रेमचंद ने अपनी भाषा शैली के क्षेत्र में उदार एवं व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है। मुहावरों और लोकोक्तियों की लाक्षणिक तथा आकर्षक योजना ने उनकी अभिव्यक्ति को और भी अधिक सशक्त बनाया है।

उनकी कहानियों का वास्तविक सौंदर्य का मुख्य आधार उनके पात्रों की सहायता है, जिसके लिए मुंशी प्रेमचंद ने जन भाषा का स्वाभाविक प्रयोग किया है जैसे कि कल्लू, हरखू इत्यादि जैसे सरल शब्द।

उनकी भाषा में व्यवहारिकता एवं साहित्यकता का सजीव चित्रण है। मुंशी प्रेमचंद की भाषा शैली सरल, रोचक, प्रवाह एवं प्रभावपूर्ण है।

मुंशी प्रेमचंद की साहित्यिक रुचि

मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में आपको गरीबी, आभाव, शोषण तथा उत्पीड़न आदि जैसी दैनिक जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियां मिल जाएंगे।

मुंशी प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में इन साहित्य रुचियो को इसलिए स्थान दिया है क्योंकि यह खुद भी इस परिस्थितियों से गुजर चुके हैं।

प्रेमचंद जब मिडिल स्कूल में थे, उन्होंने तभी से उपन्यास को पढ़ना आरंभ कर दिया था। मुंशी प्रेमचंद को बचपन से ही उर्दू आती थी, इसलिए उन्होंने अपने कुछ उपन्यास को उर्दू में लिखा है।

प्रेमचंद के जीवन संबंधी विवाद

प्रेमचंद निसंदेह एक महान रचनाकार है, लेकिन इसके बावजूद भी प्रेमचंद के जीवन पर कई आरोप लगाए गए हैं।

प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी द्वारा प्रेमचंद के जीवन पर लिखा गया रचना “प्रेमचंद घर में” उद्धृत किया हैं, जिसके माध्यम से कुछ लोग प्रेमचंद पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि इन्होंने अपनी पहली पत्नी को बिना वजह छोड़ दिया था और दूसरी विवाह के बाद भी इनका संबंध अन्य महिलाओं से रहा था।

कमल किशोर गोयनका द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘प्रेमचंद: अध्‍ययन की नई दिशाएं’ में इन्होंने प्रेमचंद के जीवन पर कुछ आरोप लगाकर उनके महत्व को कम करने का प्रयास किया है।

प्रेमचंद के जीवन से संबंधित चाहे कुछ भी विवाद हो लेकिन अपनी उत्कृष्ट रचनाओं के कारण ही आज भी युवाओं के बीच इनकी रचनाएं काफी ज्यादा प्रसिद्ध है।

यही कारण है कि आज भी इनके विवादों पर किसी का नजर नहीं पड़ता है। लोग इनकी काबिलियत को देखते हैं। इनके द्वारा लिखे गए अनेकों उपन्यास, कहानी और कविताओं की सराहना करते हैं।

मुंशी के विषय में विवाद

प्रेमचंद जिन्हें ‘मुंशी प्रेमचंद’ के नाम से भी जाना जाता है। असल में तो इनका नाम धनपत राय था, लेकिन इनके नाम के आगे मुंशी शब्द किस तरह और कब जुड़ा इसके बारे में सटीक रूप से किसी को भी मालूम नहीं है।

हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि प्रेमचंद अपने समय में अध्यापक रह चुके हैं और उस समय अध्यापकों को प्रायः मुंशीजी कहा जाता था।

यह भी कारण हो सकता है कि प्रेमचंद को मुंशी प्रेमचंद कहा जाता है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि मुंशी शब्द कायस्थों के नाम के पहले सम्मान पूर्वक लगाया जाता था और इसीलिए प्रेमचंद के नाम के पहले मुंशी शब्द जुड़ गया।

इस तरह बहुत से लोगों का मानना है कि मुंशी शब्द एक सम्मान सूचक शब्द है, जो प्रेमचंद के प्रशंसकों ने कभी लगा दिया होगा।

प्रोफेसर सुखदेव सिंह के अनुसार प्रेमचंद ने कभी भी अपने नाम के आगे मुंशी शब्द का प्रयोग नहीं किया था।

कुछ लोगों का यह भी मानना है कि प्रेमचंद और कन्हैयालाल मुंशी के सह संपादन में “हंस” नामक पत्रिका इनके समय में निकलता था। यह कारण भी प्रेमचंद के नाम के आगे मुंशी लगाने का हो सकता है।

मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु

जैसा कि आपको बताया मुंशी प्रेमचंद का एक अपूर्ण उपन्यास मंगलसूत्र है। मंगलसूत्र अपूर्ण रहने का कारण है कि जब मुंशी प्रेमचंद मंगलसूत्र की रचना कर रहे थे और उन्होंने लगभग मंगलसूत्र उपन्यास की आधी रचना को पूरा कर लिया था, तभी अचानक उनकी तबीयत में कुछ बदलाव आया और उनकी मृत्यु हो गई। मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु 8 अक्टूबर 1936 को हुई।

प्रेमचंद के बारे में रोचक तथ्य

  • प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था, लेकिन इनकी रचना सोजे वतन जो पांच कहानियों का संग्रह था और यह कहानी देशभक्ति से ओतप्रोत था। इसलिए अंग्रेजी सरकार ने इन पर कहानी लिखने के लिए प्रतिबंध लगा दिया था। जिस कारण इन्होंने अपना नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से अपनी कहानियों को पत्रिका में प्रकाशन करना शुरू किया। उसके बाद से इनकी जितनी भी रचनाएं आई, उसमें प्रेमचंद नाम लिखा होता था।
  • 1936 में प्रेमचंद ने लखनऊ में भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन की अध्यक्षता की थी।
  • प्रेमचंद ने अपनी पहली पत्नी को छोड़कर एक विधवा महिला शिवरानी देवी से दोबारा विवाह किया था।
  • प्रेमचंद को कलम के सिपाही का उपनाम इनके बेटे अमृत राय ने दिया था।
  • 1921 में प्रेमचंद महात्मा गांधी के आवाहन पर अपनी नौकरी छोड़ दी थी।
  • प्रेमचंद ने मासिक पत्र हंस, जागरण नामक सप्ताहिक पत्र और माधुरी नामक पत्रिका का संपादन अपने समय में किया था।
  • प्रेमचंद की दूसरी पत्नी शिवरानी देवी ने भी प्रेमचंद की जीवनी प्रेमचंद घर में नाम से लिखी थी। इस पुस्तक का प्रकाशन साल 1944 में पहली बार किया गया था, लेकिन बाद में साल 2005 में दोबारा इसको संशोधित करके प्रकाशित किया गया था। इसमें उन्होंने प्रेमचंद के व्यक्तित्व के कई हिस्से का उजागर किया है।

पुरस्कार व सम्मान

  • प्रेमचंद की 125 वीं सालगिरह पर उत्तर प्रदेश सरकार ने वाराणसी में प्रेमचंद के नाम पर एक स्मारक, शोध एवं अध्ययन संस्थान बनाने की घोषणा की थी।
  • प्रेमचंद गोरखपुर के जिस स्कूल में पढ़ाया करते थे, वहां पर साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है। जिसके बरामदे में एक भित्तीलेख है, जिसके दाहिने ओर प्रेमचंद का चित्र उकेरा गया है और वहां पर प्रेमचंद के जीवन से संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है और इनकी एक प्रतिमा भी स्थापित है।
  • 31 जुलाई 1980 को प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाकघर विभाग की ओर से 30 पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया गया था।

कलम का सिपाही लेखक प्रेमचंद को कहा जाता है। क्योंकि प्रेमचंद के लेखन का मुकाबला आज के बड़े-बड़े लेखक भी नहीं कर पाए हैं। ये अपने समय के सबसे बड़े साहित्यकार हुए हैं, इसीलिए इन्हें कलम का सिपाही कहा जाता है।

प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था।

प्रेमचंद को कलम का सिपाही कहकर उनके बेटे ने ही इन्हें सम्मान दिया था। प्रेमचंद के बेटे अमृत राय ने प्रेमचंद की जीवनी कलम के सिपाही के नाम से लिखी थी, जिसका बाद में अंग्रेजी और उर्दू भाषा में भी रूपांतरण किया गया और चीनी, रूसी जैसे अन्य विदेशी भाषाओं में भी इसका रूपांतरण किया गया।

प्रेमचंद के बेटे अमृतराय द्वारा लिखी गई प्रेमचंद की जीवनी ‘कलम का सिपाही’ का पहला संस्करण 1962 में प्रकाशित हुआ था।

प्रेमचंद को उनके उपन्यास सेवासदन के प्रकाशन के बाद उन्हें अच्छी ख्याति मिली और एक अच्छे उपन्यासकार के रूप में जाने जाने लगे। यह उपन्यास वेश्यावृत्ति पर आधारित उपन्यास है।

प्रेमचंद द्वारा 1922 में रचित इनके उपन्यास प्रेमाश्रम किसान जीवन पर आधारित है।

प्रेमचंद की आखिरी कहानी रचना मंगलसूत्र है। मंगलसूत्र को प्रेमचंद की आखिरी उपन्यास मानी जाती है।

31 जुलाई 1880

मुंशी प्रेमचंद के पिता डाकखाने में एक नौकर के तौर पर काम करते थे।

आज के इस लेख में आपको बताया कि हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद के बचपन का समय किस प्रकार से व्यतीत हुआ है और उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में भी हमने इस लेख के माध्यम से आपको बताया है।

हम उम्मीद करते हैं कि हमारे द्वारा शेयर की गई यह उपन्यास सम्राट प्रेमचंद का जीवन परिचय (munshi premchand biography in hindi) आपको पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर जरूर करें। यदि आपका इस लेख से जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

कवि सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय

रबीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय

प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय

माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय

Rahul Singh Tanwar

Related Posts

Leave a comment जवाब रद्द करें.

Hindi

Munshi Premchand Biography in Hindi | मुंशी प्रेमचंद बायोग्राफी – Hindi Family

Photo of Raghav Saini

नमस्कार, मित्रो आज हमने आप सभी के लिए Munshi Premchand Biography in Hindi पर एक प्रेणा दायक सच्ची कहानी लाये है। जो एक ऐसे इंसान के जीवन पर आधारति है। जो अपने जीवन काल का सबसे महान कवियों में से एक कवी रहा है। जैसा की आप सभी जानते है की हिंदी एक सुंदर और विविध भाषा है, जिसमें अनगिनत बारीकियां और जटिलताएं हैं जो इसे बोलने वालों की एक विस्तृत श्रृंखला के अनुकूल बनाती हैं। इस कारण से, प्रसिद्ध लेखक मुंशी प्रेमचंद सहित पूरे इतिहास में कई विद्वानों के लिए हिंदी एक महत्वपूर्ण विषय रहा है।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand biography in Hindi)

प्रेमचंद हिंदी को मुख्यधारा में लाने वाले नए रूपों और शैलियों को बनाने के लिए नवीन तकनीकों का उपयोग करके हिंदी भाषा के आधुनिकीकरण में अग्रणी थे। उन्होंने हिंदी व्याकरण और वाक्य रचना की पेचीदगियों को समझने के लिए बड़े पैमाने पर अध्ययन किया, और इन अंतर्दृष्टि को अपने लेखन में शामिल किया ताकि उन कार्यों का निर्माण किया जा सके जो सुलभ और व्यावहारिक दोनों थे।

प्रेमचंद के हिन्दी साहित्य में योगदान के बावजूद उनका जीवन भी चुनौतियों और संघर्षों से भरा रहा। ग्रामीण भारत में गरीबी में जन्मे प्रेमचंद ने जीवन भर अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए संघर्ष किया। हालाँकि, इन चुनौतियों के बावजूद, उन्होंने कभी भी सार्थक और स्थायी रचनाएँ बनाने के अपने समर्पण में कोई कमी नहीं की, जो आज भी हिंदी की साहित्यिक विरासत को समृद्ध करती हैं।

{ मुझ उम्मीद है की मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand Biography in Hindi) पढ़कर आपको काई बाते सिखने को मिल रही होगी }

मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा (Munshi Premchand Education)

दोस्तों मुंशी प्रेमचंद हिंदी भाषा के एक महान कवियों में से एक कवी है जिन्होंने अपने जीवन काल में हिंदी भाषा के महत्व को अपनी योग्यताओ के माध्यम से काफी उचाईयो तक ले कर गए है। मुंशी प्रेमचंद लमही में अपनी शिक्षा के बाद, प्रेमचंद जी वाराणसी चले गए जहाँ उन्होंने औपचारिक शिक्षा प्राप्त की। वहां उन्होंने अपनी जूनियर और सीनियर स्कूली शिक्षा विभिन्न संस्थानों से की। वह स्कूल में एक औसत छात्र था जिसके कारण उसे सोलह वर्ष की आयु में शिक्षक के सहायक (हाकिम) की नौकरी करनी पड़ी।

शिक्षक के सहायक के रूप में काम करने के बाद, उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में अध्ययन किया और वर्ष 1904 में इंटरमीडिएट पूरा किया। बाद में, उन्होंने अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन करने के लिए रेनशॉ कॉलेज, कटक में प्रवेश लिया।

प्रेमचंद जी की हिंदी साहित्य में रुचि भी इस दौरान बढ़ी और उन्होंने हिंदी में गंभीर रचनाएँ लिखना शुरू कर दिया और अपनी प्रारंभिक लेखन उपलब्धियों के लिए प्रशंसा प्राप्त की। वर्ष 1907 में प्रेमचंद जी ने सोज-ए-वास्ल (विवाह की पीड़ा) शीर्षक से लघु कथाओं का एक संग्रह प्रकाशित किया, जिसे मुंशी प्रेमचंद अमन नाथ प्राग नारायण द्विवेदी ज्ञान चंद विद्याभूषण आदि सहित उस समय के प्रमुख साहित्यिक दिग्गजों से आलोचनात्मक प्रशंसा मिली। प्रोत्साहन, प्रेमचंद जी ने वर्ष 1907 में शतरंज के खिलाड़ी (शतरंज के खिलाड़ी) शीर्षक से छह लघु कथाओं का एक और संग्रह जारी किया।

बाद में, प्रेमचंद जी इलाहाबाद चले गए जहाँ उन्होंने लेडीज जर्नल के कार्यालय में काम करना शुरू किया। इस समय के दौरान, उन्होंने कुछ उपन्यास भी लिखे, जिन्हें पाठकों और आलोचकों से समान रूप से मिश्रित समीक्षा मिली, लेकिन वर्षों से उनके काम के लिए व्यापक मान्यता प्राप्त हुई। वर्ष 1912 में प्रेमचंद जी का विवाह शिवरानी देवी से हुआ, जो उस दौर में हिंदी साहित्य की एक प्रमुख महिला लेखिका भी थीं। साथ में उनके तीन बच्चे हुए जिन पर प्रेमचंद जी का काफी लगाव था।

मुंशी प्रेमचंद की कार्यशैली

प्रेमचंद जी एक विपुल लेखक थे जिन्होंने हिंदी साहित्य के इतिहास में कुछ सबसे प्रभावशाली कार्यों का निर्माण किया। उन्होंने अपनी पहली कहानी, “गोदान” (एक गाय का उपहार) 13 साल की उम्र में लिखी और जीवन भर कई प्रशंसित कहानियों, उपन्यासों और नाटकों को लिखा। प्रेमचंद ने अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए भी लिखना नहीं छोड़ा। अपने जीवन के अंतिम चरण के दौरान भी जब वे बीमारी और गरीबी से जूझ रहे थे, तब भी उन्होंने लिखना जारी रखा और अपनी कुछ महान कृतियों को भावी पीढ़ियों के लिए अपनी विरासत के रूप में पीछे छोड़ गए। उनका लेखन वर्षों से कई लेखकों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है, और आज भी पाठकों को प्रभावित करता है।

प्रेमचंद की रचनाएं | Munshi Premchand Ki Pramukh Rachnaye

Munshi premchand stories in hindi.

इज्जत का खून

इस्तीफा

ईश्वरीय न्याय

एक आँच की कसर

कप्तान साहब

कर्मों का फल अन्धेर

अपनी करनी

अमृत

आखिरी तोहफ़ा

आत्म-संगीत

कोई दुख न हो तो

कौशल़

गैरत की कटार

गुल्‍ली डण्डा

घमण्ड का पुतला

ज्‍योति

जुलूस

ठाकुर का कुआँ

त्रिया-चरित्र

तांगेवाले की बड़

तिरसूल

दण्ड

दुर्गा का मन्दिर

दूसरी शादी

दिल की रानी

दो सखियाँ

नबी का नीति-निर्वाह

नरक का मार्ग

नसीहतों का दफ्तर

नाग-पूजा

निर्वासन

पंच परमेश्वर

पत्नी से पति बन्द दरवाजा

पुत्र-प्रेम

प्रतिशोध

प्रेम-सूत्र

परीक्षा

पूस की रात

बेटोंवाली विधवा

बड़े घर की बेटी बड़े भाई साहब

बाँका जमींदार

मैकू

मन्त्र

मनावन

मुबारक बीमारी

र्स्वग की देवी

राष्ट्र का सेवक

लैला

विजय

विश्वास

शंखनाद

शूद्र

शराब की दुकान

शादी की वजह

स्वांग होली की छुट्टी दूध का दाम

स्त्री और पुरूष

स्वर्ग की देवी

सभ्यता का रहस्य

समर यात्रा

समस्या

स्‍वामिनी

सिर्फ एक आवाज

सोहाग का शव

होली की छुट्टी

नम क का दरोगा

गृह-दाह

मित्रो मुझे उम्मीद है की आपको हमारी पोस्ट Munshi Premchand Biography in Hindi पर मुंशी प्रेमचंद जी जीवनी पढ़ने में काफी सहायता मिली होगी की कैसे और किस तरह जीवन जिया जा सकता है। मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में आपको ऐसी कई बाते जानने को मिलेगी जो इन्होने अपने जीवन को आधार मान कर लिखी है। दोस्तों अगर आपको हमारा आर्टिकल पसंद आया है तो आप इसे शेयर करना ना भूले। धन्यवाद।

आप यह भी पढ़ सकते है

  • Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi
  • Famous Suryakant Tripathi Nirala Poems In Hindi
  • Famous Mahadevi Verma Poems in Hindi
  • Atal Bihari Vajpayee Poems in Hindi

Photo of Raghav Saini

Raghav Saini

With product you purchase, subscribe to our mailing list to get the new updates.

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur.

KBC Online Registration – Check KBC Registration Eligibility 2022

विराट कोहली का जीवन परिचय virat kohli biography in hindi, related articles.

Virat Kohli

अंगिरा धर का जीवन परिचय | Angira Dhar Biography in Hindi

Leave a reply cancel reply.

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

Premchand's Photo'

1880 - 1936 | Banaras , India

The first prominent Hindi-Urdu fiction writer who gave artistic expression to social concerns through his novel and stories.

  • Index of Books 186247

arrow

  • Agriculture 67 Article Collection 169 Astrology 24 Autobiography 413 Banned Books 15 Bibliography 56 Biography 2568 Calligraphy 14 Catalogue / Index 460 Children's Literature 1816 Catalogue / Index 6 Dastaan 7 Drama 33 Entertainment 13 Geet 8 General Knowledge 17 Geography 1 History 11 Islamiyaat 38 Learning Resources 49 Magazines 57 Mathematics 32 Medicine 7 Moral and Ethical 41 Nazm 159 Novel 50 Personality 105 Pratham Books 56 Psychological 1 Quatrain 1 Research And Criticism 24 Science 34 Story 593 Text Books 102 Translation 57 Upbringing And Nourishment 33 Comments 13 Communal Harmony 25 Constitution 32 Dastarkhwan 21 Diary 67 Dictionary 548 Directory 11 Drama 910 Drama History & Criticism 31 Historical 37 Romantic 27 Social 39 Economics 127 Education 286 Idustries & Profession 4 Encyclopedia 64 Entertainment 11 Environment 21 Essays & Profiles 1073 Essays 834 Profiles 173 Feminism 76 Fiction 1341 Dastaan 378 Moral and Ethical 25 Novel 35 Short Stories 223 Film Songs 783 Folk Song 15 Folk tales 21 Freedom Movement 145 Geography 70 Health 39 General Health 22 Infant health / Gynaecology 7 Hikayaat 86 Hinduism 4 History 2611 Cultural History 243 History Of Literature 119 Indian History 782 Islamic History 561 World History 281 Humorous 574 Humorous History & Criticism 30 Poetry 71 Prose 292 Hunting's 21 Idioms 46 Interviews 51 Islamiyat 599 Journalism 181 Column 7 kavita 27 Language & Literature 1595 Aestheticism 9 Criticism 104 History 303 IntiKhab 137 Language 521 Tazkira 50 Lateefe 44 Law 173 Lectures 518 Letters 629 History & Criticism 61 Life Style 19 General Information 12 Linguistics 154 Logic 50 Manuscript 269 Mathematics 76 Medicine 631 Ayurveda 28 Homeopathy 15 Surgery 11 Tibb-e-Unani 245 Memoir 66 Monograph 184 Moral and Ethical 314 Movements 262 Literary movements 66 political movements 157 Religious Movements 42 Music 65 Myths 4 Novel 3801 Biographical 43 Detective 160 Historical 228 History & Criticism 7 Humorous 21 Moral and Ethical 169 Psychological 6 Romantic 509 Social 549 Novella 60 Others 511 Parody 7 Philosophy 186 Physics 3 Political 225 India 45 world 39 Prosody 135 Prostitute 17 Psychology 27 Publications Of Munshi Naval Kishore 1445 Religions 2421 Buddhism 23 Christianity 32 Comparative Study 8 Hindu-mat 59 Islamiyat 2218 Sikhism 59 Remnants 12 Reportage 92 Research & Criticism 5266 Aestheticism 18 Articles / Papers 1075 Autobiography 11 Biography 114 Children's Literature 20 Comparative Study 1 Compiled 169 Criticism 1372 Dastaan 21 Dictionary 7 Drama 34 Essays 54 Fiction 200 Ghazal 48 History 18 Idioms 5 Iqbaliyat 133 Lectures 7 Letters 14 Magazines 3 Marsiya 54 Masnavi 31 Naat 22 Nazm 24 Novel 94 Poetry 913 Prose 40 Qasida 13 Quatrain 10 Rekhti 1 Reportage 7 Research 686 Research Methodology 11 Short-story 88 Tazkira 13 Translation 9 Travelogue 13 Reviews 79 satire 9 Science 169 Sexology 28 Short-story 2460 Horror fiction 10 Symbolic / Artistic Stories 83 Sketch Writing 4 Sketches 246 Sketches: History & Criticism 60 Social issues 74 Custums 5 Sociology 14 Story 54 Story Collection 32 Sufism / Mystic 1664 Chishtiya 240 Discourses 211 History of Sufism 56 Naqshbandiya 108 Philosophy of Sufism 61 Poetry 164 Qadiriyya 115 Research / Criticism 118 Sama And Others Terminology's 102 Suhrawardiyya 45 Tazkira 234 Syllabus 89 Talks 27 Tazkira 883 Text Books 441 Criticism 76 Fiction 54 History Of Literature 13 Non Fiction 50 Poetry 32 Translation 3938 Autobiography 54 Biography 150 Catalogue / Index 4 Chemistry 2 Children's Literature 73 Constitution 11 Critique / Research 27 Dastaan 53 Diary 3 Doha 2 Drama 128 Economics 36 Epics 56 Essays 31 Geography 19 Hikayaat 22 History 398 Humorous 5 Huntings 1 Islamiyat 209 Law 15 Lecture 42 Letter 54 Medicine 65 Notebook / Dairy 3 Novel 579 Philosophy 84 Poetry 300 Political 12 Psychology 15 Science 35 Short Story 194 Social issues 10 Sufism / Mystic 150 Translation: History & Criticism 8 Travelogue 36 Travelogue 484 Wars 33 Women's writings 6880 Autobiography 41 Biography 114 Children's literature 26 Compilation 233 Criticism 304 Drama 34 Feminism 13 Novel 614 Poetry 325 Prose 38 Stories 381 Travelogue 18 Women's Translations 119
  • University Urdu Syllabus
  • Index of Authors
  • E-Books by Contributor

writer premchand biography in hindi

  • Bait Bazi 12
  • Catalogue / Index 5
  • Couplets 62
  • Deewan 1360
  • Exegesis 152
  • Humorous 40
  • Intikhab 1438
  • Keh mukarni 7
  • Kulliyat 653
  • Majmua 4110
  • Marsiya 350
  • Masnavi 715
  • Musaddas 48
  • Qit'a 52
  • Quatrain 266
  • Quintuple 18
  • Remainders 27
  • shahr-Ashob, Hajw, Zatal Nama 13
  • Tareekh-Goi 20
  • Translation 77
  • Hindi & English Books
  • Short story 63

Profile of Premchand

Pen Name : 'Prem'

Real Name : Dhanpat Rai Srivastav

Born : 31 Jul 1880 | Lamhi , Uttar pradesh

Died : 08 Oct 1936 | Banaras , Uttar pradesh

Prem Chand is among the greatest short-story writers and Novel-writers of both Urdu and Hindi languages. The adherents of Hindi-literature call him ‘Upanyas Samrat’, that is the king of novel writing. What he wrote in his nearly 35-year literary career bears the stamp of a communal togetherness. There is no precedent in Urdu fiction for the intense patriotism that is evident in his writings. He was so obsessed with the freedom movement that he resigned from his good job of 20 years, which he had obtained after a long period of poverty and hardship, in response to Mahatma Gandhi's "non-cooperation" movement. His writings provide vivid images of the social and political life of the early 30-35 years of the twentieth century. He took his characters from everyday life and made these ordinary characters extremely special with his brilliant storytelling and captivating expression. Prem Chand's sense of woman's greatness, femininity and respect for her rights is also not found anywhere else. Prem Chand was both an idealist and a realist. His writings seem to be a constant search for a balance between idealism and realism.

Munshi Prem Chand was born on 31 July 1880 in Mouza Lamhi, near Banaras. His real name was Dhanpat Rai and at home he was called Nawab Rai. It was under this name that he began his literary career. His father, Ajaib Rai, worked for Rs. 20 a month at the Post Office and lived a life of hardship. According to the constitution of the time, Prem Chand received his early education from the village maulvi in the school, then his father was transferred to Gorakhpur and he was admitted in the school there. But soon after, Ajaib Singh changed his mind and returned to his village. When Prem Chand was seven years old, his mother died and his father remarried. After that, the atmosphere in the house became even more bitter than before, from which Prem Chand took solace in books. From a bookseller, he began reading translations of countless novels from world literature. At the age of fifteen, against his will, he married an ugly girl older than him. A few days later, Ajaib Rai also passed away and besides his wife, the responsibility of stepmother and two step brothers fell on his head. He had not even passed the tenth grade yet. He used to walk ten miles barefoot to Banaras every day, teach tuition and return home at night to study. Thus, he passed the matriculation examination in 1889. He did not get admission in the college due to poor arithmetic, so he got a job in a school. He then obtained a degree from Allahabad Training School in 1904 and in 1905 he was posted to a government school in Kanpur. It was here that he met Munshi Diya Narain Nigam, editor of Zamana magazine. This magazine became a launching pad for him in literature. In 1908, Prem Chand moved to Mahoba (Hamirpur district) as a sub-inspector of madrassas. In 1914 he was sent to Basti as a Master Normal School and in 1918 he was transferred to Gorakhpur. The following year he completed his B.Sc. in English, Literature, Persian and History. In 1920, when the non-cooperation movement was on the rise and the Jallianwala Bagh incident took place shortly after, Gandhiji came to Gorakhpur. In 1922, after resigning from his job, Prem Chand opened a spinning wheel shop which did not work, so he got a job in a private school in Kanpur. He then set up the Sarasvati Press in Banaras, which was lost and had to close. Twice in 1925 and 1829, he worked for the Naval Kishore Press in Lucknow, wrote textbooks and edited a Hindi magazine, Madhuri. The government confiscated his writings several times but they somehow managed to get him out. In 1934, he came to Bombay at the invitation of a film company and wrote the story of a film, Mazdoor, but influential people banned its screening in Bombay. The film was released in Delhi and Lahore but was later banned there as well due to fears of unrest in the industry. In this film, he himself played the role of a labor leader. In Bombay, he could have found more writing work in films, but he did not like the ways of the film industry and returned to Banaras. In 1936, Prem Chand was elected president of the Progressive Writers' Association in Lucknow. The last days of Prem Chand's life were full of hardships and constant illness. He died on October 8, 1936.

Prem Chand and his first wife reached an impasse, and the latter left his home for her mother’s. After their separation, Prem Chand married a young widow Shiv Rani Devi against the wishes and customs of the family. He had a daughter Kamala and two sons Shri Pat Rai and Amrit Rai.

Prem Chand's first creation was a comedy-drama he wrote at the age of 14, based on his ugly uncles. The following year, he wrote another play, Honhar Barwa Ke Chakne. Neither of these plays were ever printed. His literary career began five or six years later with a short novel titled ‘Asrar-e-Ma’bid’, which was published serially in the weekly Awaaz-e-Haq in Banaras between 1903 and 1904. But a friend of Prem Chand, Munshi Betab Barelvi, claims that his first novel was Pratap Chandra, which was written in 1901 but was not published and later came out in the form of ‘Jalva-e-Isar’. In 1916, he completed his huge novel "Bazaar-e-Husn" which no publisher could find and it became popular in Hindi under the name "Siva Sadan". The novel was published in Urdu in 1922. The same thing happened with the novels that were written after that. The "Gosht-e-Afeet" was completed in 1922 and was published in 1928. While the Hindi edition of "Prem Ashram" was published in 1922. Nirmala was published in Hindi in 1923 and in Urdu in 1929. "Chogan Hasti" was written in 1924 and published under the name "Rang Bhoomi" and was declared the best work of the year by the Indian Academy, but the novel was published in Urdu in 1927. In this way, Prem gradually became a Hindi writer because he got better compensation from Hindi publishers. The same thing happened with "Ghaban" and "Maidan-e-Amal" (Karam Bhoomi in Hindi). "Gowdan" is Prem Chand's last novel which was published in 1936. In the last few days, Prem Chand had started writing "Mangal Sutra" which remained incomplete.

In addition to the novel, eleven collections of Prem Chand's short-stories have been published. It began in 1907 when he wrote “Duniya Ka sabse anmol ratan”. By 1936, he had written hundreds of stories, but in Urdu this number is about 200 because many Hindi stories could not be translated into Urdu. Soz-e-Watan, Prem Chand's first collection of short-stories, appeared under the pen-name of Nawab Rai. He was questioned by the government and all copies of the book were burnt. After that he started writing under the name of Prem Chand. His other collections include Prem Pachisi, Prem Batisi, Prem Chalisi, Firdous Khayal, Khak Parwana, Khawab Khayal, and Wardat.

No other author has been as influential as Prem Chand in Urdu fiction. Many of his works have been translated into other languages. One of the great virtues of Prem Chand is his simple and smooth language and clear and unpretentious style of writing. He started writing at a time when fictional tales and love stories were rife. Prem Chand came and turned this tide. He took his readers out of the bright and colorful world of the city and into the dark and miserable world of the village. It was the discovery of a new world in Urdu fiction. The study of Prem Chand cannot be justified without understanding the vastness and depth of this world, because the aesthetics of Prem Chand's art and its basic truths were nurtured in this broad context and made it achieve the status of a legend.

USEFUL LINKS : | https://en.wikipedia.org/wiki/Premchand

Tagged Under

 alt=

Rekhta Foundation

Devoted to the preservation & promotion of Urdu

Rekhta Dictionary

A Trilingual Treasure of Urdu Words

Online Treasure of Sufi and Sant Poetry

World of Hindi language and literature

Rekhta Learning

The best way to learn Urdu online

Rekhta Books

Best of Urdu & Hindi Books

writer premchand biography in hindi

Encyclopedia Britannica

  • History & Society
  • Science & Tech
  • Biographies
  • Animals & Nature
  • Geography & Travel
  • Arts & Culture
  • Games & Quizzes
  • On This Day
  • One Good Fact
  • New Articles
  • Lifestyles & Social Issues
  • Philosophy & Religion
  • Politics, Law & Government
  • World History
  • Health & Medicine
  • Browse Biographies
  • Birds, Reptiles & Other Vertebrates
  • Bugs, Mollusks & Other Invertebrates
  • Environment
  • Fossils & Geologic Time
  • Entertainment & Pop Culture
  • Sports & Recreation
  • Visual Arts
  • Demystified
  • Image Galleries
  • Infographics
  • Top Questions
  • Britannica Kids
  • Saving Earth
  • Space Next 50
  • Student Center

Premchand

Our editors will review what you’ve submitted and determine whether to revise the article.

  • International Journal of Creative Research Thoughts - Munshi Premchand: The Emperor of Novels
  • Maps of India - Munshi Premchand Biography
  • IndiaNetzone - Munshi Premchand

Premchand (born July 31, 1880, Lamahi, near Varanasi , India—died October 8, 1936, Varanasi) was an Indian author of novels and short stories in Hindi and Urdu who pioneered in adapting Indian themes to Western literary styles.

Premchand worked as a teacher until 1921, when he joined Mohandas K. Gandhi ’s Noncooperation Movement . As a writer, he first gained renown for his Urdu-language novels and short stories. Except in Bengal , the short story had not been an accepted literary form in northern India until Premchand’s works appeared. Though best known for his works in Hindi, Premchand did not achieve complete fluency in that language until his middle years. His first major Hindi novel , Sevasadana (1918; “House of Service”), dealt with the prostitution and moral corruption among the Indian middle class. Premchand’s works depict the social evils of arranged marriages, the abuses of the British bureaucracy , and exploitation of the rural peasantry by moneylenders and officials.

Much of Premchand’s best work is to be found among his 250 or so short stories, collected in Hindi under the title Manasarovar (“The Holy Lake”). Compact in form and style, they draw, as do his novels, on a notably wide range of northern Indian life for their subject matter. Usually they point to a moral or reveal a single psychological truth.

Premchand’s other novels include Premashram (1922; “Love Retreat”), Rangabhumi (1924; “The Arena”), Ghaban (1928; “Embezzlement”), Karmabhumi (1931; “Arena of Actions”), and Godan (1936; The Gift of a Cow ).

  • Submissions
  • Request Book Reviews
  • Terms and Conditions
  • Privacy Policy
  • Onkar Sharma

Literary Yard

Search for meaning

writer premchand biography in hindi

Munshi Premchand: A short biography of the Hindi Novelist

By: Shailendra Chauhan

PREMCHAND1

A pioneer of modern Hindi and Urdu social fiction, Munshi Premchand’s real name was Dhanpat Rai. He wrote nearly 300 stories and novels. Among his best known novels are: Sevasadan, Rangmanch, Gaban, Nirmala and Godan. Much of Premchandâs best work is to be found among his 250 or so short stories, collected in Hindi under the title Manasarovar.Three of his novels have been made into films.Premchandâs literary career started as a freelancer in Urdu. He was born at Lamahi near Banaras (now Varanasi) on 31st July,1880. His father Munshi Ajaib Lal was a clerk in the postal department.

Premchandâs early education was in a madarsa under a maulvi, where he learnt Urdu. Premchand was only eight years old when his mother died. His grandmother took the responsibility of raising him but she too died soon. He was married when he was 15 and in the 9th grade . His father also died and after passing the intermediate he had to stop his study. He got a job as a teacher in the primary school. In 1919, he passed his B.A., with English, Persian and History. After a series of promotions he became Deputy Inspectors of Schools. In response to Mahatma Gandhiâs call of non-cooperation with the British he quit his job. After that he devoted his full attention to writing.

His first story appeared in the magazine Zamana published from Kanpur.In his early short stories he depicted the patriotic upsurge that was sweeping the land in the first decade of the past century. Soz-e-Watan, a collection of patriotic stories published by Premchand in 1907, attracted the attention of the British Government In 1914, when Premchand switched over to Hindi, he had already established his reputation as a fiction writer in Urdu. While writing Urdu novels and short stories he emphasised in presenting the realities of life and he made the Indian villages his theme of writing. His novels describe the problems of the urban middle-class and the countryâs villages and their problems. He also emphasised on the Hindu-Muslim unity. His famous works include Godan, Maidan-e-Amal, Bay-wah, Chaugaan etc.

It would not be wrong to say that Premchand was the Father of Urdu short- stories. Short stories or afsanas were started by Premchand. As with his novels, his afsanas also mirror the society that he lived in. With a simple and flowing writing some of his works depict excellent use of satire and humour. His later works used very simple words and he started including Hindi words too to honestly potray his characters.

His famous afsanas are Qaatil Ki Maan, Zewar Ka Dibba, Gilli Danda, Eidgaah, Namak Ka Daroga and Kafan. His collected stories have been published as Prem Pachisi, Prem Battisi, Wardaat and Zaad-e-Raah. Premchand was the first Hindi author to introduce realism in his writings. He pioneered the new form – fiction with a social purpose.He supplemented Gandhijiâs work in the political and social fields by adopting his revolutionary ideas as themes for his literary writings.

Besides being a great novelist, Premchand was also a social reformer and thinker.His greatness lies in the fact that his writings embody social purpose and social criticism rather than mere entertainment. Literature according to him is a powerful means of educating public opinion.He believed in social evolution and his ideal was equal opportunities for all. Premchand died in 1936 and has since been studied both in India and abroad as one of the greatest writers of the century.

Share this:

' src=

Leave a Reply Cancel reply

Related posts.

a stranger in my own country

  • Books Reviews

Review: A Stranger in My Own Country, The 1944 Prison Diary by Hans Fallada

writer premchand biography in hindi

Review: “The Midnight Library” by Matt Haig

writer premchand biography in hindi

Essay Books Reviews

A literary interpretation of the “fall of man” story in genesis 3.

photo of people reaching each other s hands

Compassion: Healing a Disconnected World

Type your email…

  • Archaeology/History
  • Content Marketing
  • Environment
  • Global Politics
  • Literary criticism
  • LiteraryArt
  • Non-Fiction
  • Video Interviews

Recent Posts

  • ‘Big white moon glowing’ and other summer haiku
  • To the Men in Blue
  • ”Love in the fast lane” and other poems
  • Mistake City
  • I proposed for the first time

Recent Comments

writer premchand biography in hindi

Certainly one of the most popular writers in India, Premchand is one of the most celebrated writers who has his credentials as the earliest Hindustani writer too. Born and raised as Dhanpat Rai, first he tried with a pen name of Nawab Rai but finally, he decided to go with the name which later on went to become the legend – Premchand! He has been widely credited as Upanyas Samrat by writers for his tireless writing of novels. The chaotic person that he was, he has tried his hands well over many different literary genres. The pile of his literary works include more than dozen novels, more than two hundred and fifty short stories, several essays and also translations.

Premchand Indian authors

Premchand, the evergreen writer of India, came on the earth on 31 July 1850 in Lahmi, near Varanasi. His life was not like ordinary or casual person’s life; it wasn’t at all straightforward, and the quick deaths of his mother and grandmother had a great impact on him in a very fragile age. As a child, like most of us, he has had a deep interest in listening and reading the stories. At this very early age, he sought his respite in the writing of fiction and it changed the whole story of his life! The first novel by Premchand, Asrar e Ma’abid (DevasthanRahasya) The Secret of God’s Abode came out rather earlier. It tried to explore the priestly corruption and it got the buzz but did not succeed as expected. He often was a very sensitive observer of the human emotions as well as the surroundings and he picked up only the issues close to humane for his writings. In the second novel, Prema, Premchand raised the issues of widow marriages (remarriages) in those times.

Premchand was an active translator as well and he translated the works, rather classics in other languages, into the Hindi language when he began writing in Hindi. And then, his first novel, or the major novel in Hindi, Seva Sadan, came out in 1919. And the novel offered Premchand, the Hindi author, a very popular popularity. It tried to come out with the problems of common people in those times and unfortunately, his novels depict the problems even of the modern society. We don’t believe that Premchand was a mutual visionary; our country has been on the wrong side of the fortune! And after Seva Sadan, Premchand went for a ride of fame with his novels one after one. Nirmala in 1925 and Pratigya in 1927 further pushed the reputation of Premchand to a new height. Readers were now expecting more and more from him and they got as well. Major creations by Premchand are as following:

Idgah Gaban Godan Bade Ghar Ki Beti Namak Ka Daroga Rangbhoomi Shatranj Ke Khiladi

Premchand is certainly one of the major writers of modern India and he offered the readers a realistic fiction which came out with not only the problems but also possible solutions. He is often regarded as one of the pro-poor writers and rightly so, because most of his life, or complete life, in a simple manner.

Share this article: 

Explore More in this Category: 

Aravind Adiga books biography novels author critical analysis

Aravind Adiga

Aurijit Ganguli novelist author books

Aurijit Ganguli

Jhumpa Lahiri author books biography

Jhumpa Lahiri

Leave a reply cancel reply.

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Post Comment

COMMENTS

  1. प्रेमचंद

    प्रेमचंद. धनपत राय श्रीवास्तव ( ३१ जुलाई १८८० - ८ अक्टूबर १९३६) जो प्रेमचंद नाम से जाने जाते हैं, वो हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक ...

  2. Munshi Premchand Biography In Hindi

    मुंशी प्रेमचंद का संछिप्त जीवन परिचय हिंदी में - (Munshi Premchand Biography in Hindi) नाम - धनपत राय श्रीवास्तव उर्फ़ नवाब राय उर्फ़ मुंशी प्रेमचंद. पिता का ...

  3. मुंशी प्रेमचंद की जीवनी

    मुंशी प्रेमचंद का परिचय - Hindi Writer Munshi Premchand Biography in Hindi. प्रेमचंद ने अपने जीवन में एक दर्जन से भी ज्यादा उपन्यास, तक़रीबन 300 लघु कथाये, बहुत से ...

  4. मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

    मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन परिचय (Munshi Premchand Biography) मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 में बनारस के लहमी गाँव में एक सामान्य परिवार में हुआ था ...

  5. प्रेमचंद

    लेखक कथाकार निबंधकार. प्रेमचंद के बारे में जानें । उनकी जीवनी देखें एवं उनका पूरा नाम, जन्म स्थान, एवं रूचि से संबन्धित विवरण पढें।.

  6. मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

    Also Read: कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जीवन परिचय मुंशी प्रेमचंद का शुरुआती जीवन (Munshi Premchand Early Life). मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश, वाराणसी के ...

  7. Munshi Premchand Biography in Hindi

    जीवन परिचय. वास्तविक नाम. धनपत राय श्रीवास्तव [1] Dainik Jagran. उपनाम. • मुंशी प्रेमचंद. • नवाब राय. नोट: उनके चाचा महाबीर ने उन्हें "नवाब" उपनाम ...

  8. Biography of Premchand

    प्रेमचंद के उपनाम से लिखने वाले धनपत राय श्रीवास्तव हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। उन्हें मुंशी प्रेमचंद व ...

  9. Biography of Munshi Premchand in Hindi

    मृत्यु. 8 अक्टूबर 1936, बनारस (भारत) उम्र. 56 वर्ष. मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Biography of Munshi Premchand in Hindi) मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही ...

  10. मुंशी प्रेमचन्द्र जीवनी

    munshi premchand Biography in Hindi - मुंशी प्रेमचन्द्र का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर ...

  11. प्रेमचंद की जीवनी

    प्रेमचंद की जीवनी | Biography of Premchand in Hindi! 1. प्रस्तावना । 2. व्यक्तित्व एवं ...

  12. मुंशी प्रेमचंद की जीवनी Munshi Premchand Biography in Hindi

    मुंशी प्रेमचंद का जन्म व प्रारंभिक जीवन Munshi Premchand Birth and Early Life in Hindi. उत्तर प्रदेश के वाराणसी के लमही नामक एक छोटे से गांव में 31 जुलाई 1880 में ...

  13. प्रेमचन्द का जीवन परिचय

    Biography Of Premchand In Hindi. व्यक्तिगत जीवन - Personal Life (Premchand ki Jivani) प्रेमचंद कायस्थ परिवार से थे, उनका परिवार बड़ा था और मात्र 6 बीघा जमीन थी । प्रेमचंद के ...

  14. मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Biography of Munshi Premchand in Hindi)

    यहां Biography of Munshi Premchand in Hindi में प्रेमचंद का जन्म, माता-पिता, प्रमुख रचनाएं, उपन्यास आदि के बारे में विस्तार से बताया है।

  15. Munshi Premchand Biography in Hindi

    Munshi Premchand Stories In Hindi. मित्रो मुझे उम्मीद है की आपको हमारी पोस्ट Munshi Premchand Biography in Hindi पर मुंशी प्रेमचंद जी जीवनी पढ़ने में काफी सहायता मिली होगी की ...

  16. Premchand

    Premchand. Dhanpat Rai Srivastava[ 2] (31 July 1880 - 8 October 1936), better known as Munshi Premchand based on his pen name Premchand[ 3][ 4] ( pronounced [preːm t͡ʃənd̪] ⓘ ), was an Indian writer famous for his modern Hindustani literature. Premchand was a pioneer of Hindi and Urdu social fiction. He was one of the first authors to ...

  17. Premchand

    Profile of Premchand. Pen Name : 'Prem'. Real Name : Dhanpat Rai Srivastav. Born : 31 Jul 1880 | Lamhi, Uttar pradesh. Died : 08 Oct 1936 | Banaras, Uttar pradesh. Prem Chand is among the greatest short-story writers and Novel-writers of both Urdu and Hindi languages. The adherents of Hindi-literature call him 'Upanyas Samrat', that is the ...

  18. Premchand

    Premchand (born July 31, 1880, Lamahi, near Varanasi, India—died October 8, 1936, Varanasi) was an Indian author of novels and short stories in Hindi and Urdu who pioneered in adapting Indian themes to Western literary styles. Premchand worked as a teacher until 1921, when he joined Mohandas K. Gandhi 's Noncooperation Movement.

  19. Munshi Premchand: A short biography of the Hindi Novelist

    Much of Premchandâs best work is to be found among his 250 or so short stories, collected in Hindi under the title Manasarovar.Three of his novels have been made into films.Premchandâs literary career started as a freelancer in Urdu. He was born at Lamahi near Banaras (now Varanasi) on 31st July,1880. His father Munshi Ajaib Lal was a clerk ...

  20. Premchand

    Premchand was an active translator as well and he translated the works, rather classics in other languages, into the Hindi language when he began writing in Hindi. And then, his first novel, or the major novel in Hindi, Seva Sadan, came out in 1919. And the novel offered Premchand, the Hindi author, a very popular popularity.

  21. Premchand Writer Biography in Hindi: Unveiling a Literary Legend

    Premchand Writer Biography in Hindi. Premchand, whose real name was Dhanpat Rai Srivastava, was a famous writer in Hindi literature. He is known for his simple yet powerful storytelling.

  22. मुंशी प्रेमचंद की जीवनी Munshi Premchand Biography in Hindi

    Biography of Munshi Premchand in Hindi. Munshi Premchand Biography in Hindi. मुंशी प्रेमचंद (Hindi Writer Munshi Premchand) को आधुनिक हिंदी का पितामह कहा जाता है| आसमान में जो स्थान ध्रुव तारे का है ...

  23. Premchand: His Life and Times

    Premchand (1880-1936) remains indisputably the greatest writer of fiction in Hindi and Urdu. Widely regarded as the definitive biography of the writer, Premchand: His Life and Times is also an invaluable sourcebook for anyone who wishes to understand the origins and milieu of Hindi and Urdu writing in the twentieth century.