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रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध (Rabindranath Tagore Essay in Hindi)

रबीन्द्रनाथ टैगोर

रबीन्द्रनाथ टैगोर एक महान भारतीय कवि थे। उनका जन्म 7 मई 1861 में कोलकाता के जोर-साँको में हुआ था। इनके माता-पिता का नाम शारदा देवी (माता) और महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर (पिता) था। टैगोर ने अपनी शिक्षा घर में ही विभिन्न विषयों के निजी शिक्षकों के संरक्षण में ली। कविता लिखने की शुरुआत इन्होंने बहुत कम उम्र में ही कर दी थी। वो अभी-भी एक प्रसिद्ध कवि बने हुए हैं क्योंकि उन्होंने हजारों कविताएँ, लघु कहानियाँ, गानें, निबंध, नाटक आदि लिखें हैं। टैगोर और उनका कार्य पूरे विश्वभर में प्रसिद्ध है। वो पहले ऐसे भारतीय बने जिन्हें “गीतांजलि” नामक अपने महान लेखन के लिये 1913 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वो एक दर्शनशास्त्री, एक चित्रकार और एक महान देशभक्त भी थे जिन्होंने हमारे देश के राष्ट्रगान “जन गण मन” की रचना की।

रबीन्द्रनाथ टैगोर पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Rabindranath Tagore in Hindi, Rabindranath Tagore par Nibandh Hindi mein)

रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).

रबीन्द्रनाथ टैगोर, रबीन्द्रनाथ ठाकुर के नाम से भी जाने जाते थे और गुरुदेव के नाम से अधिक प्रसिद्ध थे। वो एक महान भारतीय कवि थे जिन्होंने देश को कई प्रसिद्ध लेखन दिया। वो कालीदास के बाद दूसरे महानतम कवि हैं। आज, वो पूरी दुनिया में एक महानतम कवि और लेखक के रुप में प्रसिद्ध हैं।

जन्म और शिक्षा

उनका जन्म महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर (पिता) और शारदा देवी (माता) के घर 1861 में 7 मई को कलकत्ता के जोर-साँको में एक अमीर और सुसंस्कृत परिवार में हुआ था। 1875 में जब टैगोर 14 वर्ष के थे तभी इनकी माता का देहांत हो गया। अपने शुरुआती उम्र में ही इन्होंने कविता लिखने में रुचि को विकसित कर लिया था। वो एक चित्रकार, दर्शनशास्त्री, देशभक्त, शिक्षाविद्, उपन्यासकार, गायक, निबंध लेखक, कहानी लेखक और रचनात्मक कार्यकर्ता थे।

लेखन और संघर्ष

उपन्यास और लघु कथा के रुप में उनका महान लेखन मानव चरित्र के बारे में उनकी बुद्धिमत्ता, गहरे अनुभव और समझ की ओर इशारा करता है। वो एक ऐसे कवि थे जिन्होंने देश को बहुत प्यारा राष्ट्रगान “जन गण मन” दिया है। उनके कुछ महत्वपूर्ण कार्य हैं: “गीतांजलि, आमार सोनार बांग्ला, घेर-बेर, रबीन्द्र संगीत” आदि। “गीतांजलि” के उनके महान अंग्रेजी संस्करण लेखन के लिये 1913 में उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वो पहले भारतीय और पहले एशियाई थे जिनको ये सम्मान प्राप्त हुआ। वो 1902 में शांति निकेतन में विश्व भारती यूनिवर्सिटी के संस्थापक थे।

जलियाँवाला बाग नरसंहार के ख़िलाफ़ एक विरोध में 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा दिये गये अवार्ड “नाइटवुड” को इन्होंने अपने देश और देशवासियों के प्रति प्यार के कारण वापस कर दिया। इनका महान लेखन आज भी देश के लोगों को प्रेरणा देता है।

यूट्यूब पर देखें: Rabindranath Tagore Essay in Hindi

निबंध 2 (300 शब्द)

रबीन्द्रनाथ टैगोर एक प्रसिद्ध भारतीय कवि थे जो गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध थे। टैगोर का जन्म कलकत्ता के जोर-साँको में 7 मई 1861 को एक अमीर सुसंस्कृत परिवार में हुआ था। उनके अभिवावक महर्षि देवेन्द्रनाथ (पिता) और शारदा देवी (माता) थीं। वो बचपन से ही कविताएँ लिखने के शौक़ीन थे। एक महान कवि होने के साथ ही, वो एक मानवतावादी, देशभक्त, चित्रकार, उपन्यासकार, कहानी लेखक, शिक्षाविद् और दर्शनशास्त्री भी थे। वो देश के सांस्कृतिक दूत थे जिन्होंने पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति के ज्ञान को फैलाया है। वो अपने समय के एक प्रतिभासंपन्न बच्चे थे जिसने बहुत महान कार्य किये। कविता लेखन के क्षेत्र में वो एक उगते सूरज के सामान थे।

कविताओं या कहानी के रुप में अपने लेखन के माध्यम से लोगों के मानसिक और नैतिक भावना को अच्छे से प्रदर्शित किया। आज के लोगों के लिये भी उनका लेखन अग्रणी और क्रांतिकारी साबित हुआ है। जलियाँवाला बाग नरसंहार की त्रासदी के कारण वो बहुत दुखी थे जिसमें जनरल डायर और उसके सैनिकों के द्वारा अमृतसर में 1919 में 13 अप्रैल को महिलाओं और बच्चों सहित बहुत सारे निर्दोष लोग मारे गये थे।

वो एक महान कवि होने के साथ ही एक देशभक्त भी थे जो हमेशा जीवन की एकात्मकता और इसके भाव में भरोसा करता है। अपने पूरे लेखन के द्वारा प्यार, शांति और भाईचारे को बनाये रखने के साथ ही उनको एक रखने और लोगों को और पास लाने के लिये उन्होंने अपना सबसे बेहतर प्रयास किया।

अपनी कविताओं और कहानियों के माध्यम से प्यार और सौहार्द के बारे में उन्होंने अच्छे से बताया था। टैगोर के पूरे जीवन ने एक दूसरे से प्यार और सौहार्द के स्पष्ट विचार को भी उपलब्ध कराया। निम्न वक्तव्यों से उनका देश के प्रति समर्पण दिखायी देता है, “मेरा देश जो हमेशा भारत है, मेरे पितर का देश है, मेरे बच्चों का देश है, मेरे देश ने मुझे जीवन और मजबूती दी है”। और दुबारा, “मैं फिर से अवश्य भारत में पैदा होऊँगा”।

निबंध 3 (400 शब्द)

रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म भारत के कलकत्ता में 7 मई 1861 को देवेन्द्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के घर हुआ था। उनका जन्म एक समृद्ध और सुसंस्कृत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने घर पर निजी शिक्षकों के माध्यम से प्राप्त की और कभी स्कूल नहीं गये हालांकि उच्च शिक्षा के लिये इंग्लैंड गये थे। टैगोर 8 वर्ष की उम्र से ही कविता लिखने लगे थे। उनकी कविताएँ स्यूडोनिम भानुसिंहों के तहत प्रकाशित हुयी जब वो केवल 16 वर्ष के थे। कानून की पढ़ाई करने के लिये 1878 में वो इंग्लैंड चले गये हालांकि बिना पढ़ाई को पूरा किये वापस भारत लौट आये क्योंकि उन्हें एक कवि और लेखक के रुप में आगे बढ़ना था।

इंग्लैंड से लंबी समुद्री यात्रा के दौरान उन्होंने अपने कार्य गीतांजलि को अंग्रेजी में अनुवादित किया। जिस वर्ष गीतांजलि का प्रकाशन हुआ था उसी वर्ष के समय उन्हें साहित्य के लिये नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपने लेखन में भारतीय संस्कृति की रहस्यवाद और भावनात्मक सुंदरता को दिखाया जिसके लिये पहली बार किसी गैर-पश्चिमी व्यक्ति को इस प्रतिष्ठित सम्मान से नवाज़ा गया।

एक प्रसिद्ध कवि होने के साथ ही साथ, वो एक प्रतिभाशाली लेखक, उपन्यासकार, संगीतकार, नाटक लेखक, चित्रकार और दर्शनशास्त्री थे। कविता और कहानी लिखने के दौरान कैसे भाषा पर नियंत्रण रखना है इसकी उन्हें अच्छे से जानकारी थी। वो एक अच्छे दर्शनशास्त्री थे जिसके माध्यम से स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान भारतीय लोगों की बड़ी संख्या को उन्होंने प्रभावित किया।

भारतीय साहित्य के लिये उनका योगदान बहुत बड़ा और अविस्मरणीय है। उनके रबीन्द्रसंगीत में दो गीत बहुत प्रसिद्ध हुए क्योंकि वो दो देशों के राष्ट्रगान हैं “जन मन गण” (भारत का राष्ट्रगान) और “आमार सोनार बांग्ला” (बांग्लादेश का राष्ट्रगान)। उनकी रचनात्मक लेखन, चाहे वो कविता या कहानी के रुप में हों, आज भी उसे कोई चुनौती नहीं दे सकता। शायद वो पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने असरदार लेखन से पूरब और पश्चिम के बीच की दूरी को कम कर दिया।

उनकी एक और रचना ‘पूरवी’ थी जिसमें उन्होंने सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक आदि जैसे बहुत सारे विषयों के तहत संध्या और सुबह के गीतों को दर्शाया है। 1890 में उनके द्वारा मनासी लिखा गया था जिसमें उन्होंने कुछ सामाजिक और काव्यात्मक कविताओं को संग्रहित किया था। उनके ज़्यादतर लेखन बंगाली लोगों के जीवन पर आधारित होते थे। उनकी एक दूसरी रचना ‘गलपगुच्छा’ थी जिसमें भारतीय लोगों की गरीबी, पिछड़ापन और निरक्षरता पर आधारित कहानियों का संग्रह था।

उनकी दूसरी कविता संग्रह जैसे सोनार तारी, कल्पना, चित्रा, नैवेद्या आदि और गोरा, चित्रांगदा और मालिनी, बिनोदिनी और नौका डुबाई, राजा और रानी आदि जैसे उपन्यास हैं। वो बहुत ही धार्मिक और आध्यात्मिक पुरुष थे जिन्होंने मुश्किल वक्त़ में दूसरों की बहुत मदद की। वो एक महान शिक्षाविद् थे इस वजह से उन्होंने एक शांति का निवास-स्थान, शांतिनिकेन नाम के एक अनोखी यूनिवर्सिटी की स्थापना की। भारत की स्वतंत्रता को देखे बिना ही रबीन्द्रनाथ टैगोर 7 अगस्त 1941 को दुनिया से चल बसे।

Essay on Rabindranath Tagore in Hindi

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रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध (Rabindranath Tagore Essay In Hindi)

Essay on Rabindranath Tagore In Hindi

In this Article

रबीन्द्रनाथ टैगोर पर 10 लाइन (10 Lines On Rabindranath Tagore In Hindi)

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भारत के इतिहास में कई प्रसिद्ध और महान कवि और लेखक रहे हैं, जिनमें रबीन्द्रनाथ टैगोर का नाम सबसे बेहतरीन लेखकों में आता है। रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 में कोलकाता के जोरासांका के एक धनी परिवार में हुआ था। टैगोर जी के पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर और माँ का नाम शारदा देवी था। दोनों माता-पिता ने रबीन्द्रनाथ टैगोर की बहुत अच्छे से परवरिश की था। अच्छे परिवार से होने की वजह से उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की थी। बचपन से इन्हें कविताएं लिखने का शौक था और बहुत कम उम्र में ही उन्होंने कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। एक प्रसिद्ध कवि होने के साथ-साथ उन्होंने कई मशहूर कथाएं, लघु कथाएं, निबंध, गीत, नाटक आदि भी लिखे। उनकी रचनाएंआज भी बेहद प्रसिद्ध हैं और वह पहले ऐसे भारतीय रहे जिनको उनके महान लेखन ‘गीतांजली’ के लिए 1913 में ‘नोबेल पुरस्कार’ मिला। अच्छे कवि और लेखक होने के साथ-साथ वह एक सच्चे देशभक्त भी थे। रबीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत के राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ की भी रचना की। उनके लेखन और व्यक्तित्व का हर भारतीय कायल है।

रबीन्द्रनाथ टैगोर पर 10 लाइन का बेहद सरल वाक्य नीचे दिया गया जिससे बच्चे एक अच्छा निबंध लेख तैयार कर सकते हैं।

  • रबीन्द्रनाथ टैगोर को ‘गुरुदेव’ नाम से भी जाना जाता है।
  • टैगोर जी का जन्म कोलकाता में 7 मई 1861 में हुआ था।
  • इनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर और माता का नाम शारदा देवी था।
  • रबीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि, लेखक, संगीतकार, नाटककार, चित्रकार और दार्शनिक थे।
  • इन्हें बचपन से कविताएं और कहानियां लिखने का बहुत शौक था।
  • भारत के प्रसिद्ध राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ इन्होंने ने ही लिखी की।
  • बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ भी इन्होंने लिखी थी।
  • साल 1913 में लेखन गीतांजली के लिए रबीन्द्रनाथ टैगोर को ‘नोबल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
  • महान कवि रबीन्द्रनाथ टैगोर की मृत्यु 7 अगस्त 1941 में हुई थी।
  • भारतीय साहित्य में उनका योगदान अमूल्य है और लोग आज भी उन्हें याद करते हैं।

दुनिया भर में रबीन्द्रनाथ टैगोर की छवि एक महान कवि, लेख, साहित्यकार और देशभक्त की है और लाखों युवा उनसे आज भी प्रभावित है। यदि आपके बच्चे को भी ऐसे महान व्यक्तित्व वाले रबीन्द्रनाथ टैगोर पर हिंदी में निबंध लिखने को दिया गया है तो यह एस्से सैंपल उनकी काफी सहायता करेगा।

रबीन्द्रनाथ टैगोर भारत के महान कवि होने के साथ-साथ एक प्रसिद्ध लेखक, साहित्यकार, संगीतकार आदि भी थे। टैगोर जी का जन्म कोलकलता में हुआ था। रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 में कोलकाता के जोरासांको में हुआ था। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर और माता का नाम शारदा देवी था। टैगोर जी अपने अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थे। टैगोर जी के परिवार वाले सभी बहुत शिक्षित और कला से प्यार करने वाले थे। अच्छे परिवार से होने की वजह से रबीन्द्रनाथ टैगोर की ज्यादातर पढ़ाई घर ही हुई थी। पढ़ाई में अधिक रूचि होने की वजह से उन्हें वकालत पढ़ने के लिए इंग्लैंड भेजा गया। लेकिन 1 साल 18 महीने बाद वह वापस भारत लौट आए। टैगोर जी को बचपन से कविताएं लिखने का शौक था और उन्होंने कम उम्र में ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया और उन्हें बहुत जल्द प्रसिद्धि भी हासिल हो गई। भारत का राष्टगान ‘जन गण मन’ इनकी प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है। इसके अलावा टैगोर जी के नाम कई कवितायें, लघु कहानियां, उपन्यास, नाटक और निबंध हैं। उन्हें साहित्य सेवा की वजह से नोबल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। दुर्भाग्यपूर्ण 7 अगस्त 1941 में उन्होंने अंतिम सांस ली। लेकिन आज भी उनकी रचनाएं लोगों के बीच बेहद प्रसिद्ध हैं और उन्हें हमेशा के लिए अमर कर गई।

रबीन्द्रनाथ टैगोर पर 400 से 500 शब्दों का हिंदी में लॉन्ग एस्से लिखने के लिए नीचे दिए गए निबंध सैंपल को पढ़ें, इस निबंध की मदद से आपका बच्चा खुद एक अच्छा निबंध लिख सकता है।

रबीन्द्रनाथ टैगोर भारत के लोकप्रिय और प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार थे। उनका जन्म कोलकाता के देवेन्द्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के घर 7 मई 1861 में एक अमीर और सुसंस्कृत परिवार में हुआ था। 14 साल की उम्र में टैगोर जी की माँ का देहांत हो गया था। इन्हें कम उम्र में ही कविताएं लिखने में रूचि विकसित कर ली थी। वह एक कवि, उपन्यासकार, लेखक, संगीतकार, नाटककार, देशभक्त आदि थे। उनकी कई प्रसिद्ध रचनाओं की वजह से उन्होंने बहुत नाम कमाया और लोगों के बीच काफी प्रसिद्ध भी हुए। इतना ही नहीं उन्हें नोबल पुरस्कार से भी सम्मानत किया गया था। लेकिन 7 अगस्त 1941 में भारत में महान रचनात्मक कार्यकर्त्ता को हमेशा के लिए खो दिया।

रबीन्द्रनाथ टैगोर का शुरूआती जीवन और बचपन  (Early Life and Childhood of Rabindranath Tagore)

मशहूर कवि रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 में रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म कोलकाता के धनी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर और माता का नाम शारदा देवी था। टैगोर जी के पिता ब्रम्ह समाज के वरिष्ठ नेता होने के साथ सीधे और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। रबीन्द्रनाथ टैगोर समाज में रबीन्द्रनाथ ठाकुर और गुरुदेव के नाम से भी जाने जाते थे। टैगोर अपने माँ-बाप की सबसे छोटी संतान थे। 14 साल की उम्र में टैगोर जी ने अपनी माँ को खो दिया था। उनके पिता हमेशा काम के सिलसिले में अक्सर बाहर रहा करते थे, इसलिए उनकी देख रेख अक्सर नौकर ही करते थे।

रबीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा (Education of Rabindranath Tagore)

रविंद्रनाथ टैगोर बचपन से ही बहुत तेज दिमाग के थे। उनकी ज्यादातर शिक्षा घर पर ही हुई थी। लेकिन बाद में उनका दाखिला कोलकाता के प्रसिद्ध स्कूल सेंट जेवियर विद्यालय में करवाया था। इनके पिता एक वरिष्ठ नेता होने की वजह से समाज सेवा से जुड़े थे और वो चाहते थे कि रबीन्द्रनाथ बैरिस्टर बने। उनके पिता ने  साल 1878 मे उनका दाखिला लंदन के विश्वविद्यालय मे कराया था लेकिन टैगोर जी का मन बैरिस्टर की पढ़ाई में नहीं लगता था, इसलिए साल 1880 मे वह बिना डिग्री के बंगाल लौट वापस आए। उनकी रूचि साहित्य मे थी, उन्हें आधुनिक शिक्षा प्रणाली बिल्कुल पसंद नहीं थी। वह मानते थे कि पुरानी शिक्षा प्रणाली नई शिक्षा प्रणाली से काफी बेहतर है। रबीन्द्रनाथ जी ने अपने घर से ही बहुत कुछ सीखा था, जैसे – भूगोल, कला, इतिहास, साहित्य, गणित, संस्कृत और अंग्रेजी जिसमें उनकी मदद उनके बड़े भाई हरेंद्रनाथ टैगोर ने की थी। रविंद्रनाथ के पिता ने अपने बच्चों को अंग्रेजी और संगीत सीखने के लिए हमेशा जोर डालते थे और इसी वजह से उन्होंने घर में कुछ संगीतकारों को रखा था।

रविंद्रनाथ टैगोर का विवाह (Rabindranath Tagore’s Marriage)

रवींद्रनाथ टैगोर की शादी 9 दिसंबर 1883 में 10 वर्षीय मृणालिनी नाम की युवती से हुई थी। उनसे उन्हें 5 बच्चे थे, जिनमें से दो की मृत्यु हो गई। शादी के 19 साल में ही उन्होंने अपनी पत्नी मृणालिनी को भी खो दिया था और उसके बाद उन्होंने कभी विवाह नहीं किया।

रबीन्द्रनाथ टैगोर के काम और सफलताएं (Rabindranath Tagore’s Works and Successes)

रबीन्द्रनाथ टैगोर ने 16 साल की कम उम्र से ही नाटक की दुनिया में कदम रखा और 20 साल में उन्होंने अपना असली नाटक ‘वाल्मिकी प्रतिभा’ तैयार किया। उनके असाधारण नाटकों में से एक है ‘विसर्जन’ जिसको 1890 में लिखा गया था, उनके सर्वश्रेष्ठ नाटकों में से एक माना जाता है। टैगोर ने 16 साल में लघु कहानी लिखना शुरू कर दिया था और पहली कहानी ‘भिखारिनी’ थी। उन्हें बांग्ला में लघु कहानियां लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। साल 1891 और 1895 के बीच उनके द्वारा लिखी गई प्रभावशाली 84 कहानियां शामिल हैं। रबीन्द्रनाथ टैगोर ने लगभग आठ उल्लेखनीय उपन्यासों का निर्माण किया। उनकी ‘गीतांजलि’ कविता ने उन्हें और भी सफलता दिलाती है, इसकी वजह से उन्हें साल 1913 में नोबल पुरस्कार मिला था। उनके द्वारा लगभग 2230 गाने लिखे गए हैं, जिन्हें ‘रवीन्द्रसंगीत’ के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने भारत के राष्ट्रगान, जन गण मन जैसी बेहतरीन रचना की है।

  • टैगोर जी अपने माता-पिता की 13 संतानों में सबसे छोटे थे।
  • रबीन्द्रनाथ टैगोर ने सिर्फ 8 साल कम उम्र में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था।
  • ‘शांतिनिकेतन’ की स्थापना रबीन्द्रनाथ टैगोर के पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर ने की थी जो पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित है। 
  • 14 जुलाई 1930 में टैगोर ने अल्बर्ट आइंस्टीन से उनके घर पर मुलाकात की थी।
  • साल 1915 में रबीन्द्रनाथ टैगोर को किंग जॉर्ज पांच द्वारा नाइटहुड से सम्मानित किया गया था।
  • रबीन्द्रनाथ टैगोर के नाम पर कुल 8 म्यूजियम हैं, जिनमें से तीन भारत में और पांच बांग्लादेश में हैं।
  • रबीन्द्रनाथ टैगोर ने 60 साल की उम्र के बाद से चित्रकारी करना शुरू किया था।

1. रबीन्द्रनाथ टैगोर के बेहतरीन साहित्यिक काम कौन से हैं?

रबीन्द्रनाथ टैगोर के बेहतरीन साहित्यिक कृतियों में ‘गीतांजलि’, ‘द होम एंड द वर्ल्ड’, ‘द गार्डनर’, ‘काबुलीवाला’ और नाटक में ‘द पोस्ट ऑफिस’ शामिल हैं।

2. रबीन्द्रनाथ टैगोर के घर का उपनाम क्या था?

रबीन्द्रनाथ टैगोर के घर पर उन्हें सब ‘रबी’ बुलाते थे।

 3. टैगोर के पिता द्वारा शांतिनिकेतन में स्थापित विश्वविद्यालय का क्या नाम है?

रबीन्द्रनाथ टैगोर के पिता ने शांतिनिकेतन में ‘विश्वभारती विश्वविद्यालय’ की स्थापना की थी।

रबीन्द्रनाथ टैगोर के इस निबंध से बच्चों को इतिहास में मौजूद महान कवि, रचनात्मक व्यक्ति और देश प्रेमी के बारे में जानकारी मिलेगी। वे बच्चों के लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा है इनका साहित्य की दुनिया में बड़ा योगदान रहा है। इस निबंध के माध्यम से बच्चे रबीन्द्रनाथ टैगोर के जीवन और उनके व्यक्तित्व के बारे में गहराई से जान सकेंगे और एक अच्छा निबंध लेख तैयार कर सकेंगे।

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रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध 10 lines (Rabindranath Tagore Essay in Hindi) 200, 250, 300, 500, शब्दों मे

essay on rabindranath tagore in hindi

Rabindranath Tagore Essay in Hindi – रवींद्रनाथ टैगोर भारत के सबसे पोषित पुनर्जागरण शख्सियतों में से एक हैं, जिन्होंने हमें दुनिया के साहित्यिक मानचित्र पर रखा है। वे एक कवि के कवि थे और न केवल आधुनिक भारतीय साहित्य बल्कि आधुनिक भारतीय मानस के भी निर्माता थे। टैगोर असंख्य दिमाग वाले और एक महान कवि, लघु कथाकार, उपन्यासकार, नाटककार, निबंधकार, चित्रकार और गीतों के संगीतकार थे। एक सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और सौंदर्यवादी विचारक, शिक्षा में एक नवप्रवर्तक और ‘वन वर्ल्ड’ विचार के चैंपियन के रूप में उनकी दुनिया भर में प्रशंसा उन्हें एक जीवंत उपस्थिति बनाती है। गांधी ने उन्हें ‘महान प्रहरी’ कहा। वे गुरुदेव के नाम से भी प्रसिद्ध थे।

रवींद्रनाथ टैगोर निबंध 10 लाइन्स (Rabindranath Tagore Essay 10 Lines in Hindi) 100 – 150 Words

  • 1) रवींद्रनाथ टैगोर एक प्रसिद्ध भारतीय कवि, दार्शनिक और नोबेल पुरस्कार विजेता थे।
  • 2) उनका जन्म 1861 में कलकत्ता में हुआ था और वे तेरह बच्चों में सबसे छोटे थे।
  • 3) उन्होंने कई कविताएँ, उपन्यास, लघु कथाएँ और निबंध लिखे।
  • 4) टैगोर ने अपनी पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी।
  • 5) उन्हें उनकी कविता गीतांजलि के लिए जाना जाता है।
  • 6) टैगोर एक संगीतकार भी थे, और उन्होंने दो हजार से अधिक गीतों की रचना की।
  • 7) उनके कुछ लोकप्रिय गीतों में “जन गण मन” और “अमर सोनार बांग्ला” शामिल हैं।
  • 8) उन्होंने 1921 में विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना की।
  • 9) उन्हें साहित्य में नोबेल पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।
  • 10) रवींद्रनाथ टैगोर ने 7 अगस्त 1941 को अंतिम सांस ली।

रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध 200 शब्द (Essay on Rabindranath Tagore 200 words in Hindi)

रवींद्रनाथ टैगोर एक महान भारतीय कवि और अपने माता-पिता के सबसे छोटे पुत्र थे। वह उन्नीसवीं सदी, बंगाल में ब्रह्म समाज के एक नेता थे। रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही ग्रहण की लेकिन उच्च शिक्षा इंग्लैंड में ली। वह अपनी औपचारिक स्कूली शिक्षा के लिए सत्रह साल की उम्र में इंग्लैंड गए लेकिन पूरा नहीं कर सके। उनकी रुचि और आम मानवता के साथ घनिष्ठ संपर्क कुछ सामाजिक सुधार करने के लिए देश की ओर उनका ध्यान आकर्षित करता है। फिर उन्होंने शांतिनिकेतन में एक स्कूल शुरू किया जहां उन्होंने शिक्षा के उपनिषद आदर्शों का पालन किया।

उन्होंने खुद को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन में भी शामिल किया और अपने स्वयं के गैर-भावनात्मक और दूरदर्शी तरीकों का पालन किया। गांधी जी उनके एक समर्पित मित्र थे। देश के प्रति उनका अथाह प्रेम तब दिखा जब उन्होंने 1915 में देश में ब्रिटिश नीतियों के विरोध के रूप में ब्रिटिश सरकार द्वारा दिए गए सम्मान को वापस कर दिया।

वह एक अच्छे लेखक थे और अपने मूल बंगाल में लेखन में सफलता प्राप्त करते थे। लेखन में उनकी निरंतर सफलता ने उन्हें भारत की आध्यात्मिक विरासत की एक प्रसिद्ध आवाज बनने में सक्षम बनाया। मानसी, सोनार तारी, गीतांजलि, गीतिमल्या, बलाका आदि उनकी कविता के कुछ विषम खंड हैं। कविताओं के अलावा, वे नृत्य नाटक, संगीत नाटक, निबंध, यात्रा डायरी, आत्मकथाएँ आदि लिखने में भी प्रसिद्ध थे।

रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध 250 शब्द (Essay on Rabindranath Tagore 250 words in Hindi)

रवींद्रनाथ टैगोर एक भारतीय बहुश्रुत, कवि, संगीतकार और कलाकार थे जिन्होंने 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में बंगाली साहित्य और संगीत को फिर से आकार दिया। वह भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रीय गान के लेखक थे, और 1913 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले गैर-यूरोपीय थे।

टैगोर का प्रारंभिक जीवन

7 मई 1861 को उनका जन्म कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता एक प्रसिद्ध धार्मिक नेता और विद्वान थे। टैगोर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर प्राप्त की, मुख्य रूप से अपने पिता और अन्य निजी ट्यूटर्स से। वह कम उम्र से ही एक उत्साही पाठक थे, और साहित्य और कविता के प्रति आकर्षित थे। टैगोर को 1878 में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेजा गया था, लेकिन खराब स्वास्थ्य के कारण वे डिग्री के बिना घर लौट आए।

टैगोर की साहित्यिक कृतियाँ जो हमें प्रेरित करती हैं

टैगोर का पहला कविता संग्रह, “भानुसिम्हा ठाकुरर पदबली,” 1877 में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने कविता, उपन्यास, नाटक और निबंध के कई और संग्रह प्रकाशित किए। टैगोर की रचनाएँ अक्सर अंधेरे और निराशा से बचने के विषयों का पता लगाती हैं, और उनकी रचनाएँ अक्सर आधुनिक दुनिया में आध्यात्मिकता के विचार का पता लगाती हैं। वह एक विपुल लेखक थे और उनकी रचनाओं का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है।

रवींद्रनाथ टैगोर बंगाली साहित्य, संगीत और कला में एक प्रभावशाली व्यक्ति थे। उनके कार्यों का बंगाली संस्कृति पर स्थायी प्रभाव पड़ा है और अभी भी भारत और बांग्लादेश में व्यापक रूप से पढ़ा और प्रदर्शित किया जाता है। वह साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले गैर-यूरोपीय थे, और उन्हें अब तक के सबसे महान बंगाली लेखकों में से एक माना जाता है।

रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध 300 शब्द (Essay on Rabindranath Tagore 300 words in Hindi)

रवींद्रनाथ टैगोर एक प्रसिद्ध भारतीय कवि थे, जिन्हें गुरुदेव के नाम से जाना जाता है। उनका जन्म कोलकाता में 7 मई 1861 को एक समृद्ध और सांस्कृतिक परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता महर्षि देबेंद्रनाथ (पिता) और शारदा देवी (मां) थे। उन्हें बचपन से ही कविता लिखने का बहुत शौक था। वे एक महान कवि होने के साथ-साथ एक मानवतावादी, देशभक्त, चित्रकार, उपन्यासकार, कहानीकार, शिक्षाविद और दार्शनिक भी थे। वह देश के लिए एक सांस्कृतिक राजदूत थे जिन्होंने भारतीय संस्कृति के ज्ञान को पूरी दुनिया में फैलाया। रवींद्रनाथ टैगोर अपने समय के एक प्रतिभाशाली और प्रतिभाशाली बच्चे थे जिन्होंने महान कार्य किए। वे कविता लेखन के क्षेत्र में उगते हुए सूर्य के समान थे।

उन्होंने कविता या कहानियों के रूप में अपने लेखन के माध्यम से लोगों की मानसिक और नैतिक भावना को अच्छी तरह दिखाया है। उनका लेखन आज के लोगों के लिए भी पथप्रदर्शक और क्रांतिकारी साबित हुआ है। वह जलियांवाला बाग में नरसंहार त्रासदी के कारण बहुत दुखी थे, जिसमें 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में जनरल डायर और उनके सैनिकों द्वारा महिलाओं और बच्चों सहित कई निर्दोष लोगों की हत्या कर दी गई थी।

वे एक महान कवि होने के साथ-साथ एक देशभक्त भी थे जो हमेशा जीवन की एकता और उसकी अभिव्यक्ति में विश्वास करते थे। अपने लेखन के माध्यम से, उन्होंने प्रेम, शांति और भाईचारे को बनाए रखने के लिए लोगों को एकजुट करने के लिए बहुत करीब लाने की पूरी कोशिश की। उन्होंने अपनी कविताओं और कहानियों के माध्यम से प्रेम और सद्भाव के बारे में अच्छी तरह से वर्णन किया है। उनका पूरा जीवन भी एक दूसरे को प्रेम और सदभाव का स्पष्ट दर्शन कराता है। अपने देश के प्रति उनकी भक्ति को निम्नलिखित कथन से दिखाया गया है, “मेरा देश जो हमेशा के लिए भारत है, मेरे पूर्वजों का देश, मेरे बच्चों का देश, मेरे देश ने मुझे जीवन और शक्ति दी है।” और फिर से, “मैं फिर से भारत में जन्म लूंगा।

रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध 500 शब्द (Essay on Rabindranath Tagore 500 words in Hindi)

रवींद्रनाथ टैगोर एक प्रसिद्ध भारतीय कवि थे। इसके अलावा, वह एक महान दार्शनिक, देशभक्त, चित्रकार और मानवतावादी भी थे। लोग अक्सर उनके संबंध में गुरुदेव शब्द का प्रयोग करते थे। इस असाधारण व्यक्तित्व का जन्म 7 मई 1861 को कलकत्ता में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा विभिन्न शिक्षकों द्वारा घर पर ही हुई। साथ ही इस शिक्षा के द्वारा उन्हें अनेक विषयों का ज्ञान प्राप्त हुआ। उनकी उच्च शिक्षा इंग्लैंड में हुई। इन सबसे ऊपर, रवींद्रनाथ टैगोर ने बहुत कम उम्र से ही कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था।

रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाएँ

रवींद्रनाथ टैगोर ने सोलह वर्ष की आयु से ही नाटक लिखना शुरू कर दिया था। बीस वर्ष की आयु में, रवींद्रनाथ टैगोर ने मूल नाटकीय कृति वाल्मीकि प्रतिभा लिखी। सबसे उल्लेखनीय, रवींद्रनाथ टैगोर का काम भावनाओं पर केंद्रित है न कि कार्रवाई पर। 1890 में उन्होंने एक और नाटक विसर्जन लिखा। विसर्जन शायद रवींद्रनाथ टैगोर की सर्वश्रेष्ठ नाटक कृति है।

इसी तरह, सोलह वर्ष की उम्र से रवींद्रनाथ टैगोर ने लघु कथाएँ लिखना शुरू किया। उनकी पहली लघुकथा भिकारिणी थी। सबसे उल्लेखनीय, वह बंगाली भाषा की लघु कहानी शैली के संस्थापक हैं। टैगोर ने निश्चित रूप से 1891 से 1895 तक कई कहानियाँ लिखीं। साथ ही, इस अवधि की कहानियाँ गल्पगुच्छा के संग्रह का निर्माण करती हैं। यह 84 कहानियों का एक बड़ा संग्रह है।

रवींद्रनाथ टैगोर निश्चित रूप से उपन्यासों के भी संपर्क में थे। उन्होंने आठ उल्लेखनीय उपन्यास लिखे। इसके अलावा उन्होंने चार उपन्यास लिखे।

रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं का सबसे अच्छा संग्रह गीतांजलि है। सबसे उल्लेखनीय, रवींद्रनाथ टैगोर को 1913 में गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। इसके अलावा, उनकी अन्य महत्वपूर्ण काव्य रचनाएँ मानसी, सोनार तोरी और बलका हैं।

रवींद्रनाथ टैगोर निश्चित रूप से गीतों में कम नहीं थे। आदमी को 2230 शक्तिशाली गाने लिखने की प्रतिष्ठा प्राप्त है। उपयोग में लोकप्रिय नाम रवींद्रसंगीत है, जो टैगोर के गीतों को संदर्भित करता है। उनके गीत निश्चित रूप से भारतीय संस्कृति को दर्शाते हैं। उनका प्रसिद्ध गीत अमर सोनार बांग्ला बांग्लादेश का राष्ट्रगान है। इन सबसे ऊपर उन्होंने भारत का राष्ट्रगान जन गण मन लिखा।

रवींद्रनाथ टैगोर को ड्राइंग और पेंटिंग में भी उत्कृष्ट कौशल प्राप्त था। शायद, रवींद्रनाथ टैगोर लाल-हरे रंग के वर्णान्ध थे। इसी वजह से उनकी कलाकृतियों में अजीबोगरीब रंग थीम होते हैं।

रवींद्रनाथ टैगोर का राजनीति में योगदान

रवींद्रनाथ टैगोर राजनीति में सक्रिय थे। वह भारतीय राष्ट्रवादियों के पूर्ण समर्थन में थे। इसके अलावा, वह ब्रिटिश शासन के विरोध में थे। उनके काम Manast में उनके राजनीतिक विचार शामिल हैं। उन्होंने कई देशभक्ति गीत भी लिखे। रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए प्रेरणा को बढ़ाया। उन्होंने देशभक्ति के लिए कुछ रचनाएँ लिखीं। ऐसे कार्यों के लिए जनता में अपार प्रेम था। यहां तक ​​कि महात्मा गांधी ने भी इन कार्यों के लिए अपना पक्ष दिखाया।

सबसे उल्लेखनीय, रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने नाइटहुड का त्याग किया था। इसके अलावा, उन्होंने 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड का विरोध करने के लिए यह कदम उठाया।

अंत में, रवींद्रनाथ एक देशभक्त भारतीय थे। वह निश्चित रूप से कई प्रतिभाओं का व्यक्ति था। साहित्य, कला, संगीत और राजनीति में उनका योगदान शानदार है।

रवींद्रनाथ टैगोर पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

Q.1 रवींद्रनाथ टैगोर को अपनी प्रसिद्ध रचनाएँ लिखने के लिए किसने प्रेरित किया.

उत्तर. टैगोर की रचनाएँ काफी हद तक प्रकृति की उनकी टिप्पणियों, हिंदू दर्शन की शिक्षाओं और बंगाल की साहित्यिक विरासत से प्रेरित थीं। वे कबीर और रामप्रसाद सेन जैसे कई कवियों से भी प्रेरित थे।

Q.2 रवींद्रनाथ टैगोर के पालन-पोषण ने उनके लेखन को कैसे प्रभावित किया?

उत्तर. एक बड़े, बहु-सांस्कृतिक परिवार में रवींद्रनाथ टैगोर के पालन-पोषण ने उन्हें कई विविध संस्कृतियों और साहित्यिक कार्यों से अवगत कराया, जिसने उनके लेखन को बहुत प्रभावित किया।

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रबीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय – Rabindranath Tagore biography in Hindi

रबीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय – Rabindranath Tagore biography in Hindi : रबीन्द्रनाथ टैगोर या रबीन्द्रनाथ ठाकुर विभिन्न प्रतिभाओं से निपुण व्यक्ति थे.

पूरी दुनिया भर में रबीन्द्रनाथ टैगोर को उनके साहित्यिक कार्य – कविता, नाटक और विशेष रूप से उनके गीत के लेखन के लिए पहचाना जाता हैं.

रबीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय - Rabindranath Tagore biography in Hindi

इसके अलावा गुरुदेव रबीन्द्रनाथ ठाकुर संगीतकार, दार्शनिक, समाज सुधारक और एक जाने माने चित्रकार थे. हमारे देश का राष्ट्रीय गान – जन गन मन… की रचना रबीन्द्रनाथ टैगोर की ही देन है. साहित्यिक क्षेत्र में अद्भुत योगदान के कारण रबीन्द्रनाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार भी मिल चूका है.

क्या आप जानते है? नोबल पुरस्कार को प्राप्त करने वाले एशिया के प्रथम व्यक्ति रबीन्द्रनाथ टैगोर थे.

सर रबीन्द्रनाथ टैगोर(Rabindranath Tagore information) ने कम उम्र से लेखन कार्य शुरू कर दिया था. Rabindranath Tagore जब केवल सोलह वर्ष के थे, तब उन्होंने अपनी पहली लघु कहानी ‘भानिसिंह’ प्रकाशित की.

इस पोस्ट में हम आपको रबीन्द्रनाथ टैगोर के सम्पूर्ण जीवन का परिचय (Rabindranath Tagore biography in Hindi) करवाएंगे. इसलिए आप इस बायोग्राफी को अंत तक जरूर पढ़े.

रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म और परिवार

Rabindranath Tagore introduction in Hindi : सर रबीन्द्रनाथ टैगोर को रबीन्द्रनाथ ठाकुर के नाम से भी जाना जाता हैं. रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 07 मई 1861 को कोलकात्ता में ब्राह्मण कुल में हुआ था.

रबीन्द्रनाथ टैगोर के पिताजी का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर और माता का नाम शारदा देवी था. रबीन्द्रनाथ टैगोर देवेन्द्रनाथ टैगोर की चौदहवीं संतान थे. रबीन्द्रनाथ टैगोर सहित वे चौदह भाई बहन थे.

पिताजी देवेन्द्र ठाकुर एक दार्शनिक, शास्त्रीय संगीतकार और यात्री थे. 1870 में बंगाल के पुन:जागरण के समय टैगोर परिवार अग्रणी था और अनेक साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन किया.

कच्ची उम्र में ही माता के निधन हो जाने पर उनका पालन पोषण नौकरों के हाथो हुआ. कुछ समय बाद प्रारम्भिक शिक्षा समाप्त होने पर पढाई के लिए विदेश चले गए.

रबीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा

उनकी आरंभिक शिक्षा कोलकत्ता के सम्मानित सैंट जेवियर स्कूल में हुई. इसके बाद उनका मन बैरिस्टर की पढाई करने का हुआ तो उन्होंने 1878 में अपना नाम इंग्लेंड के एक पब्लिक स्कूल में लिखा दिया. लेकिन, 1880 में डिग्री पूरी किये बिना ही वे भारत लौट आये.

रबीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा इतनी प्रभाव शाली नहीं थी. स्कूल की शिक्षा का आनंद लेने की बजाय वे हमेशा कुछ न कुछ सोचते रहते थे. भले ही उनकी स्कूली शिक्षा अच्छी नही हुई हो लेकिन, वे हमेशा अपने साथ किताबें, कलम और स्याही रखते थे. रबीन्द्रनाथ टैगोर हमेशा कुछ न कुछ लिखते रहते थे.

रबिन्द्रनाथ टैगोर का करियर

life of Rabindranath Tagore in hindi : जब रबीन्द्रनाथ टैगोर मात्र आठ साल के थे, तब उन्होंने पहली बार एक कविता लिखी थी. उसके बाद सोलह वर्ष की उम्र में उनकी एक लघु कहानी ‘भानुसिंह’ नाम से प्रकाशित हुई. साहित्यिक क्षेत्र में उनका योगदान कीसी भी माप से परे हैं.

कलकत्ता के रहने वाले रबीन्द्रनाथ टैगोर की मातृभाषा बांग्ला थी. रबीन्द्रनाथ टैगोर ने बांग्ला में नए छंद, गद्य पेश किये. रबीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी शिक्षा तो छोड़ दी लेकिन साहित्य को नहीं छोड़ा.

साहित्य और कला के क्षेत्र में रबीन्द्रनाथ टैगोर ने अनेक कविताये, लघु कथाएं, नाटक और गीतों पर कई किताबें लिखी. रबीन्द्रनाथ टैगोर की सबसे प्रसिद्ध रचना ‘गीतांजलि’ हैं. पूरे भारत और इंग्लैंड सहित पूरे यूरोप में यह बहुत बड़े स्तर पर प्रकाशित हुई थी.

बांग्लादेश के राष्ट्र गान ‘अमर सोनार बांग्ला’ और भारत के ‘जन गन मन’ के रचियता रबीन्द्रनाथ टैगोर ही है.

इंग्लैंड से भारत लौटते ही सबसे पहले उन्होंने अपनी ‘मानसी’ पूस्तक को पूरा किया जो कि कविताओ कि श्रंखला थी. इस पुस्तक में राजनीतिक और सामाजिक व्यंग्य थे जो हास्यास्पद तरीके से बंगालियों पर सवाल उठाते और उनका मजाक उड़ाते थे. ऐसा कहा जाता हैं कि मानसी में उनकी सर्वश्रेष्ठ कवितायें लिखी गयी थी.

1883 में रबिन्द्रनाथ टैगोर ने मृणालिनी देवी से सादी कर ली थी. सादी के मात्र 4 महीनो के बाद उनकी भाभी कादम्बरी देवी ने आत्म हत्या कर ली थी. दरअसल इसके पीछे कुछ अनसुलझे तथ्य हैं, जिनकी चर्चा हम आगे करेंगे.

रबीन्द्रनाथ टैगोर एक सफल साहित्यिकार और कवि थे. रबीन्द्रनाथ टैगोर ने 2232 संगीत कृतियाँ लिखी और सफलतापूर्वक 12 पुस्तकें प्रकाशित की. उन्होंने बंगाली भाषा में प्राथमिक तौर पर लिखा लेकिन हिंदी क्षेत्र में भी उनका योगदान सराहनीय है. रबीन्द्रनाथ टैगोर की पुस्तके भारत के साथ साथ विदेशो में भी खूब चलती थी और आज भी चलती हैं.

साहित्य पर लिखने के अलावा उन्होंने अपना पारिवारिक व्यवसाय को भी संभाला. लगभग दस वर्षों तक वे शहजादपुर में अपनी पैतृक सम्पदा पर काम करते रहे.

60 वर्ष की उम्र में रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath thakur) ने चित्रकारी क्षेत्र में अपना हाथ आजमाया, और समकालीन कलाकारों की सूची में अपना नाम शीर्ष पर दर्ज करवा लिया.

रविंद्रनाथ टैगोर का वैवाहिक जीवन

biography of Rabindranath Tagore : 1883 में रबिन्द्रनाथ टैगोर का विवाह 10 साल की लड़की मृणालिनी देवी से हुआ था. रबीन्द्रनाथ टैगोर और मृणालिनी के संयोग से पांच संतान हुई, जिसमे तीन पुत्रियाँ और दो पुत्र थे.

लेकिन, मृणालिनी देवी और टैगोर का सम्बन्ध ज्यादा लम्बा नहीं चला. 1902 में मृणालिनी की मृत्यु हो गई. इसके बाद उनकी दो बेटियों की भी मृत्यु हो गई. इसके बाद रबीन्द्रनाथ टैगोर ने फिर कभी सादी नहीं की.

नोबल पुरस्कार और रबीन्द्रनाथ टैगोर

रबीन्द्रनाथ टैगोर  शुरुआत में केवल बांग्ला भाषा में लिखते थे. लेकिन जब उनकी पुस्तकों का अनुवाद दूसरी भाषा होना शुरू हो गया तो रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित गीतांजलि पश्चिमी देशो में खूब चली थी.

इसी के चलते उनको 1913 में महान साहित्यिक योगदान के लिए साहित्यिक नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

इसके कुछ समय बाद, 1915 में, ब्रिटिश सरकार द्वारा टैगोर को नाइट की उपाधि दी गई. 1940 में, टैगोर को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया था.

रवींद्रनाथ टैगोर को गुरु देव की उपाधि

history of Rabindranath Tagore in hindi : 6 मार्च 1915 को रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधीजी को ‘महात्मा’ की उपाधि दी. उसके बाद महात्मा गांधीजी ने उनको गुरुदेव कहकर संबोधित किया.

इसके अलावा महात्मा गाँधी ने रविंद्रनाथ को विश्वकवि की उपाधि दी. रवींद्रनाथ टैगोर महात्मा गाँधी के काम से काफी प्रभावित थे.

रबीन्द्रनाथ टैगोर का आजादी लड़ाई में योगदान

चूँकि रबीन्द्रनाथ टैगोर एक कवि थे इसलिए समय समय पर उन्होंने अपनी कविताओं और लेखों के माध्यम से आवाज उठाई. रबीन्द्रनाथ टैगोर का आजादी लड़ाई में योगदान उनके द्वारा लिखे गए गीतों के माध्यम से देखा जा सकता हैं.

उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद की निंदा की, उन्होंने ब्रिटिश शासन को जनता की सामाजिक “बीमारी” के रूप में देखा. उन्होंने अपने लेखन में, भारतीय राष्ट्रवादियों के समर्थन में आवाज उठाई.

रवींद्रनाथ टैगोर ने 1905 में बंगाल विभाजन के बाद बंगाली आबादी को एकजुट करने के लिए बांग्लार माटी बांग्लार जोल (हिंदी में – बंगाल की मिट्टी, बंगाल का पानी) गीत लिखा था.

जातिवाद के खिलाफ उन्होंने राखी उत्सव की शुरुआत की, जहां हिंदू और मुस्लिम समुदायों के लोगों ने एक-दूसरे की कलाई पर रंग-बिरंगे धागे बांधे.

जब अमृतसर में नरसंहार हुआ तो रबीन्द्रनाथ टैगोर ने लॉर्ड हार्डिंग द्वारा दी गई नाइटहुड का त्याग कर दिया. यह भी ब्रिटिश सरकर के विरुद्ध होने का प्रमाण हैं.

रबीन्द्रनाथ टैगोर का शिक्षा में योगदान

Gurudeva Rabindranath Tagore in Hindi: गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर विश्वभारती विश्वविद्यालय के माध्यम से अद्वितीय योगदान दिया. विश्वभारती विश्वविद्यालय में स्वतंत्रतापूर्वक और रचनात्मक रूप से शिक्षा प्रदान की जाती थी.

ग्रामीण विकास के लिए रबिन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था कि – ‘अगर गाँवो का विकास करना हैं तो पहले वहां के लोगो को शिक्षित करना होगा.’

सर रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा दिए गए योगदान से प्रभावित होकर डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने निम्न पक्तियां कही हैं –

“टैगोर समझदारी के प्रतीक है, और मनुष्य की वह भावना है जिसने हमको नए समाज और नए सभ्यता को देखने के लिए मानव जाति के दिलों और और सोच को ऊपर उठाया.”

रवींद्रनाथ टैगोर और शांतिनिकेतन

शान्तिनिकेतन कोलकत्ता से 212 किलोमीटर की दुरी पर बीरभूम जिले में स्थित हैं. इसकी स्थापना टैगोर परिवार ने 22 दिसम्बर 2001 में की थी. आज के समय में शांति निकेतन एक पर्यटन स्थल के रूप ने गिना जाता हैं.

लेकिन शांतिनिकेतन उस समय एक बहुत बड़ा शिक्षण केंद्र था. शांतिनिकेतन का दूसरा नाम “विश्व भारती विश्वविद्यालय” हैं. रबीन्द्रनाथ टैगोर ने इस जगह के बारें में कई कविताएँ और गीत लिखे.

यह विश्वविद्यालय प्रत्येक विद्यार्थी के लिए खुला था जो कुछ सीखने के लिए उत्सुक था. इस विश्वविद्यालय में कक्षाएं और सीखने का दायरा चार दीवारों के भीतर सीमित नहीं था. इसके बजाय, विश्वविद्यालय के मैदान में विशाल बरगद के पेड़ों के नीचे, खुली जगह में कक्षाएं लगती थीं. यह उस वक्त एक रस्म थी.

रवींद्रनाथ टैगोर की मौत के साथ मुठभेड़

Rabindranath Tagore in Hindi story : जब रबीन्द्रनाथ टैगोर मात्र चौदह वर्ष के थे तब उनकी मां शारदा देवी का निधन हो गया. अपनी माँ के अचानक मौत के बाद उन्होंने स्कूल से परहेज करना शुरू कर दिया, और शहरों में यात्रा करना शुरू कर दिया.

माँ की मृत्यु के बाद उनकी भाभी कादंबरी देवी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. रबीन्द्रनाथ टैगोर अपनी भाभी से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने इस पर एक उपन्यास ’नस्तानिरह’ लिख डाला.

सादी के चार महीनों के बाद भाभी कादम्बरी देवी ने आत्म हत्या कर ली थी. इस विषय को लेकर रविंद्रनाथ टैगोर पर कुछ अटकले लगाई जाती हैं कि उनके भाभी के साथ कुछ सम्बन्ध थे. लेकिन इसकी पुष्टि में कोई प्रमाण नहीं हैं.

बाद में, उनकी पत्नी मृणालिनी देवी की भी बीमारी के कारण मृत्यु हो गई. इसके बाद उन्होंने अपनी दो बेटियों को खो दिया, जिनको वे सबसे अधिक  प्रेम करते थे. अपने परिवार की इतनी मौतों ने उनको अंदर तक झकझोर कर रख दिया, लेकिन फिर भी उन्होंने कलम उठाने मे संकोच नहीं किया.

 रबीन्द्रनाथ टैगोर की मृत्यु कैसे हुई

Rabindranath Tagore death : अपने अंतिम समय में रबीन्द्रनाथ टैगोर जोरासंको हवेली के उपर के कमरे में रहते थे. 7 अगस्त 1941 को 80 वर्ष की आयु में रबीन्द्रनाथ टैगोर की मृत्यु हो गई.

रबीन्द्रनाथ टैगोर की प्रमुख कृतियाँ

गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला, क्षणिका रबीन्द्रनाथ टैगोर की प्रमुख कृतियाँ हैं.

इसके अलावा उन्होंने 2200 से अधिक गीत लिखे.  सुनो दीपशालिनी, सखी आए वो कौन, दिन पर दिन रहे बीत, क्यों आँखों में छलका जल, खोलो तो द्वार – ये रबीन्द्रनाथ टैगोर के कुछ प्रमुख गीत है.

रबीन्द्रनाथ टैगोर से जुड़े कुछ तथ्य  – Rabindranath Tagore facts in Hindi

गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर नोबेल साहित्य पुरस्कार जीतने वाले पहले गैर-यूरोपीय व्यक्ति थे.

आप में से बहुत से लोग जानते हैं कि टैगोर ने 2 राष्ट्रगान लिखे थे. भारत के लिए “जन गण मन” और बांग्लादेश के लिए “अमर सोनार बांग्ला”. बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं कि उन्होंने श्रीलंका के राष्ट्रगान “श्रीलंका मठ” की रचना भी की थी.

सर रबीन्द्रनाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार में जो राशि मिली थी उस राशि से उन्होंने एक स्कूल का निर्माण करवाया, जिसका नाम विश्व-भारती रखा गया.

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि रबीन्द्रनाथ टैगोर कलर ब्लाइंड थे. 60 साल की उम्र में उन्होंने पेंटिग का काम शुरू किया. उन्होंने पेंटिंग में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था. लेकिन वे हरे और लाल कलर के लिए ब्लाइंड थे.

रबीन्द्रनाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से मिले पदक को शांति निकेतन में रखा गया था. सन 2004 में उनका पदक चोरी हो गया था. बाद में पुन: दुसरे पदक उनको दिए गए.

सर रबीन्द्रनाथ टैगोर के नाम से आठ संग्रहालय बने हुए हैं. जिनमे से पांच बांग्लादेश में हैं और तीन भारत मे है.

उनकी बहन स्वर्णकुमारी देवी बंगाल की प्रसिद्ध और जानी मानी कवियत्रि और उपन्यासकार थी. संगीत और सामाजिक क्षेत्रों मे महत्व पाने वाली बंगाल की प्रथम महिला थी.

जब शुरुआत में रबीन्द्रनाथ टैगोर ने चित्रकारी शुरू की तो उनका हाथ बिलकुल नहीं जमता था. इसी बात को लेकर वे काफी ना-खुश थे.

इसी विचार पर उन्होंने एक बार जगदीशचंद्र बोस को लिखा, “जिस तरह एक माँ अपने बदसूरत बेटे को भी सबसे ज्यादा स्नेह करती हैं, उसी तरह मैं भी अपनी कलाकृति को चुपके से निहारता हूँ और खुश होता हूँ.

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By: savita mittal

जीवन परिचय | Rabindranath Tagore Essay in Hindi

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मानव इतिहास में कुछ ऐसे लोग हुए हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा से पूरे विश्य को आलोकित किया, रवीन्द्रनाथ टैगोर भी एक ऐसी ही प्रतिमा थे। गुरुदेव के नाम से मशहूर रवीन्द्रनाथ टैगोर दुनिया के पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिनकी रचनाओं देश (भारत, बांग्लादेश) ने अपना राष्ट्रगान बनाया। बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कला के विभिन्न क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया।

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रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर था। ीन्द्रनाथ ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने घर पर ही प्राप्त की। उन्हें स्कूली शिक्षा के लिए पास के एक स्कूल में मेजा गाथा पर स्कूल के वातावरण को वे सहन नहीं कर पाए, जिसके बाद उनके पिता ने घर पर ही उनकी पढ़ाई की पूरी व्यवस्था कर दी।

उनके घर पर देश के गणमान्य विद्वानों, साहित्यकारों और शिल्पकारों का आना-जाना लगा रहता था। यही कारण है कि औपचारिक रूप से स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाने के बावजूद उन्होंने अपने घर पर ही साहित्य, समीन एवं शिल्प का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया।विद्वानों की संगति के साथ-साथ 9 वर्ष की आयु से ही अपने पिता के साथ विभिन्न स्थलों के भ्रमण का प्रभाव उन पर कुछ इस तरह पड़ा कि बाल्यावस्था में ही उन्होंने कविता लिखना प्रारम्भ कर दिया।

Rabindranath Tagore Essay in Hindi

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बाद में अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त करने के लिए में 17 वर्ष की आयु में लन्दन गए और लन्दन विश्वविद्यालय में उन्होंने एक वर्ष तक अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने कहीं औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की, परन्तु साहित्य-सृजन के प्रति उनका लगाव बढ़ गया। साहित्यिक उपलब्धियाँ स्वीन्द्रनाथ ने 12 वर्ष की आयु से ही काव्य-सृजन शुरू कर दिया था. बाद में उन्होंने गद्य साहित्य की रचना भी शुरू की और अपनी अधिकतर रचनाओं का उन्होंने अंग्रेजी में अनुवाद भी किया।

अपनी प्रसिद्ध फाव्य पुस्तक ‘गीतांजलि’ के अंग्रेज़ी अनुवाद के लिए उन्हें वर्ष 1913 में साहित्य का ‘नोबेल पुरस्कार’ प्राप्त हुआ और वे यह पुरस्कार प्राप्त करने माले केवल भारत ही नहीं, बल्कि एशिया के मी प्रथम व्यक्ति बने। ‘गीतांजलि’ स्वीन्द्रनाथ ठाकुर की एक अमर काव्य कृति है। इसी के गीतों ने उन्हें ‘विश्वकवि’ के रूप में प्रतिष्ठित किया।

कुछ लोगों का यह मानना है कि इसका अनुवाद किसी अंग्रेज कवि ने किया था, किन्तु अब यह बात सिद्ध हो चुकी है कि यह अनुवाद किसी और ने नहीं, बल्कि स्वयं स्वीन्द्रनाथ टैगोर ने ही किया था। उन्होंने अपनी रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद कैसे प्रारम्भ किया? इसके पीछे एक छोटी-सी कहानी है। प्रारम्भ में ये केवल अपनी मातृभाषा बांग्ला में हो लिखते थे। जब वे लन्दन अंग्रेजी भाषा की शिक्षा प्राप्त करने गए थे, उस दौरान 17 वर्ष की आयु में उनकी मुलाकात अंग्रेज़ी के विश्वविख्यात रोमाटिक कवियों एवं लेखकों से हुई। उनमें से कई उनके अच्छे मित्र हो गए।

अपने उन मित्रों के साथ आयोजित काव्य गोष्ठियों में अपनी बाग्ला कविताओं को सुनाने के दृष्टिकोण से वे उनका अनुबाद अंग्रेजी में किया करते थे। उन कवियों एवं लेखकों ने उनके काव्य की काफी प्रशंसा की। इसके बाद से उन्होंने अपनी अधिकतर रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद प्रारम्भ कर दिया था। बाद में कवि कीट्स ने उनके अनुवाद की भूमिका लिखी।

ये किसी एक विचारधारा के कवि नहीं थे, चल्कि उनके काव्य में पूरी मानवता का समावेश था। यही कारण है कि पूरी दुनिया के लोगों के कषि होने के कारण उन्हें विश्वकवि की सज्ञा दी गई। कबि होने के साथ-ही-साथ वे कथाकार उपन्यासकार, नाटककार, निबन्धकार, संगीतकार और चित्रकार भी थे।

उनकी सभी चौरासी कहानियाँ गत्पगुच्छ की तीन जिल्दों में संगृहीत हैं। ये अपनी कहानियाँ ‘सबुज पत्र’ (हरे पत्ते) में छपयातें थे। टैगोर की कविताओं की पाण्डुलिपि को सबसे पहले विलियम रोथेनस्टाइन ने पढ़ा और ये इतने मुग्ध हो गए कि उन्होंने अंग्रेज़ी कवि कीट्स से सम्पर्क किया और पश्चिमी जगत के लेखकों, कवियों, चित्रकारों और चिन्तकों से टैगोर का परिचय कराया तथा इण्डिया सोसायटी से इसके प्रकाशन की व्यवस्था की।

विश्व की अनेक भाषाओं में उनकी रचनाओ के अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। महात्मा गाँधी ने उनकी प्रतिभा से अभिभूत होकर उन्हें ‘गुरुदेव’ की संज्ञा दी थी। भारत के राष्ट्रगान जन-गण-मन और बाग्लादेश के राष्ट्रगान आमार सोनार बांग्ला के रचयिता रवीन्द्रनाथ टैगोर ही हैं। उनका सपना था भारत में एक ऐसे शिक्षण संस्थान की स्थापना करना, जहाँ विद्यार्थी प्राकृतिक वातावरण में शिक्षा प्राप्त कर सके।

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नोबेल पुरस्कार के रूप में प्राप्त धनराशि की सहायता से उन्होंने पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के बोलपुर में वर्ष 1921 में शान्ति निकेतन, जिसे विश्वभारती विश्वविद्यालय भी कहा जाता है. की स्थापना की। वर्ष 1951 में भारत सरकार ने इसे केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया। विदेशी दासता के चंगुल में फंसे देश की मुक्ति के लिए शिक्षा के क्षेत्र में जिस क्रान्ति की आवश्यकता थी, उस दृष्टि से यह उनका एक महानतम योगदान था।

रवीन्द्रनाथ के प्रसिद्ध उपन्यासों में ‘चोखेर बाली’, ‘नौका डूबी’, ‘गोरा’ आदि उल्लेखनीय है। ‘राजा ओ रानी’. ‘बिसर्जन’ तथा ‘चित्रांगदा’ उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। इनमें उनकी नाटय प्रतिभा अपनी पूरी शक्ति के साथ प्रकट हुई है। उनके द्वारा सृजित संगीत को आज रवीन्द्र संगीत के रूप में एक अलग शास्त्रीय संगीत का दर्जा प्राप्त है। उन्होंने लगभग * 2,230 गीतों की रचना की।

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ठुमरी शैली से प्रभावित ये गीत मानवीय भावनाओं केअलग-अलग रंग प्रस्तुत करते हैं। अपने जीवन के अन्तिम दिनों में उन्होंने चित्र बनाना भी शुरू किया था और अपने चित्रो से उन्हें एक चित्रकार के रूप में भी विश्वस्तरीय ख्याति मिली। उनके चित्रों में युग का संशय, मोह, क्लान्ति और निराशा के स्वर प्रकट हुए हैं। जब देश अपनी स्वतन्त्रता के लिए ब्रिटिश सरकार से संघर्ष कर रहा था, तब अपने सृजन से उन्होंने इस संघर्ष में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। यही कारण है कि जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के बाद उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई नाइट (सर) की उपाधि लौटा दी थी।

स्बीन्द्रनाथ ने साहित्य, संगीत, शिल्प, शिक्षा प्रत्येक क्षेत्र में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। उनकी मृत्यु – अगस्त, 1941 को हुई। उनके निधन पर महात्मा गाँधी ने कहा था-“आज भारत के रवि का अस्त हो गया”, हालांकि टैगोर और महात्मा गाँधी के बीच राष्ट्रीयता और मानवता को लकर हमेशा वैचारिक मतभेद रहा। गाँधीजी राष्ट्रबाद को प्रथम स्थान पर रखते थे, वहीं टैगोर मानवता को राष्ट्रबाद से अधिक महत्त्व देते थे।

अपने जीवनकाल में टैगोर ने साहित्य जगत को इतनी विशाल सम्पदा दी कि उम्र पर अधिकार और उसमें पारंगत होना सबके लिए सम्भव नहीं है। उनके गीतों में जीवन का अमर संन्देश है, प्रेरणा है और ऐसी पूर्णता है, जो हृदय के सब जमायों को दूर करने में सक्षम है। वास्तव में, स्वीन्द्र के दर्शन में भारतीय संस्कृति के विविध अंगों का समावेश है। उनके बोत मनुष्य की आत्मा को आवेशों की लहरों में डूबने के लिए नहीं छोड़ देते, बल्कि उसे उन लहरों से खेलते हुए पार उतर जाने की शक्ति देते हैं।

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मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध

Essay On Rabindranath Tagore In Hindi: ऐसा कोई भी भारतीय नहीं होगा, जो रविंद्रनाथ टैगोर को नहीं जानता होगा। रविंद्रनाथ टैगोर जी को राष्ट्रीय कवि के नाम से भी जाना जाता है। ये ऐसे शख्सियत है जिन्होने कई कविताएं, उपन्यास, कहानी इत्यादि साहित्य के विभिन्न विद्याओं में अपनी उत्कृष्ट योगदान देकर संसार भर में ख्याति प्राप्त की।

अपनी साहित्य रचना के लिए इन्हें नोबेल पुरस्कार द्वारा नवाजा भी जा चुका है। रविंद्रनाथ जी ने अपनी रचना से ना केवल हिंदी साहित्य के विकास में योगदान दिया बल्कि अनेकों कवियों और साहित्यकार को प्रोत्साहित किया है। यह ऐसे प्रकाश स्तंभ थे, जिन्होंने पूरे संसार को अपनी रचनाओं के माध्यम से आलोकित किया।

रविंद्रनाथ जी के रचनाओं का यही विशेषता था कि यह अपनी रचनाओं में मानविय दुखों और निर्बलता को बहुत ही कलात्मक ढंग से लिखते थे। अपनी सभी रचनाओं को मन और आत्मा से लिखते थे। यही कारण है कि उनकी ज्यादातर रचनाएं विश्व प्रसिद्ध हो गई।

Essay-On-Rabindranath-Tagore-In-Hindi-

हम यहां पर रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध (Rabindranath Tagore Essay in Hindi) शेयर कर रहे है। इस निबंध में रवींद्रनाथ टैगोर के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध | Essay On Rabindranath Tagore In Hindi

रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध (200 word).

7 मई 1861 को रवींद्रनाथ टैगोर जी का जन्म कोलकाता में हुआ था। रवींद्रनाथ टैगोर जी के पिता जी का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर था और माताजी का नाम शारदा देवी था। रवींद्रनाथ टैगोर को बहुत छोटी उम्र से ही कविताएं लिखने में बहुत रूचि थी। उन्होंने बहुत लोकप्रिय कहानियाँ, कविता, नाटक, निबंध, गीत, देशभक्त गीत आदि लिखे है। उनको देश भक्त गीत लिखने के साथ-साथ उनको राष्ट्र गीत गाने का भी बहुत शौक था।

टैगोर को 1913 में साहित्य और गीतांजलि के लिये नोबेल पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया है। रवींद्रनाथ टैगोर ने 2 भाषा में राष्ट्रीयगान लिखा था। एक राष्ट्रगान भारत के लिये ‘जन गण मन अधिनायक जय हो’ की रचना की थी और दूसरा राष्ट्रगान बांग्लादेश के लिए आमार सोनार बांग्ला की रचना की थी। कुछ लोग ऐसे भी कहते है कि राष्ट्रगान के रचयिता रवींद्रनाथ टैगोर जी को माना जाता है।

रवींद्रनाथ टैगोर जी अपनी शुरुआत की पढ़ाई कोलकाता में की। उसके बाद उन्होंने वकील की पढ़ाई करने के लिये लन्दन गये और वकील की पढ़ाई में उनका मन नहीं लगा रहा था और वह बिना डिग्री प्राप्त किये इंडिया वापस आ गये। क्योंकि उनको बचपन से ही एक महान कलाकार कवि बनने में बहुत रूचि थी।

टैगोर जी के भाई सतेंद्र टैगोर सिविल परीक्षा पास करके एक अच्छी नौकरी करते थे और दूसरे भाई ज्योतिरेंद्रनाथ संगीतकार और नाटक के कवि थे। रवींद्रनाथ टैगोर की बहन को स्वर्णकुमारी उपन्यास लिखने में रूचि थी। रवींद्रनाथ टैगोर जी ने कुछ उपन्यास चार अध्याय, गोरा, नष्टनीड आदि उपन्यास की रचनाएँ की थी।

उन्होंने कुछ कविताओं -बनफूल, संध्या संगीत, प्रभात संगीत, भानुसिंह ठाकरेर पदावाली आदि की रचना की। रवींद्रनाथ टैगोर जी  द्वारा रचित कुछ नाटक: वाल्मीकि प्रतिभा, नालिनी, प्रतिशोध, मायार, गोड़ाय गलद, मालिनी आदि है।

Rabindranath Tagore Par Nibandh

रविंद्र नाथ टैगोर पर निबंध (400 शब्दों में)

भारत मैं साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न या साहित्यकार हुए, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से देश का नाम ऊंचा किया। उन्हीं में से एक महान और सुप्रसिद्ध रविंद्रनाथ टैगोर है, जिन्हें कवि गुरु भी कहा जाता है। इन्होंने अपने साहित्य रचनाओं के माध्यम से उन लोगों के पंक्ति में अपना स्थान बनाया, जिन्होने देश के नाम को पूरी दुनिया में अमर कर दिया। रविंद्रनाथ टैगोर जी ने ही भारत का राष्ट्रीय गान जना-गना-मना की रचना की थी।

रविंद्र नाथ टैगोर जी का जन्म भारत के पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के जोर-सांको को में 7 मई 1861 में हुआ था। इनके पिता का नाम महर्षि देवेंद्र नाथ टैगोर और माता का नाम शारदा देवी था। इनके परिवार का हर सदस्य सुशिक्षित और कलाप्रेमी था और इन्हीं से इन्हें प्रोत्साहन भी मिली। माता की मृत्यु के बाद खेलकूद में इनकी रूचि घटने लगी और ये अकेले ही समय बिताना शुरू कर दिए।

अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए कई कविताएं लिखते थे और जिसके बाद इन्होंने साहित्य में अपना कदम रखा। बचपन से ही टैगोर जी बहुत ही बुद्धिमान बालक थे, इनकी प्रारंभिक शिक्षा निजी शिक्षकों के संरक्षण में हुई। बचपन से ही इन्हें साहित्य में काफी रूचि थी। यही कारण है कि बचपन से ही इन्होंने लिखना शुरू कर दिया था।

मात्र 13 साल की उम्र में ही इनकी पहली कविता अभिलाषा एक तत्व भूमि नाम की पत्रिका में छपी थी। रवीना टैगोर जी ने अपनी स्कूली शिक्षा 1874 तक पूरी कर ली थी, जिसके बाद में वकालत की पढ़ाई के लिए अपने भाई के साथ इंग्लैंड चले गए। लंदन के यूनिवर्सिटी में इन्होंने हेनरी मार्ले नामक अध्यापक से अंग्रेजी की शिक्षा ग्रहण की।

9 दिसंबर 1883 को इनका विवाह मृणालिनी देवी के साथ हुआ। समाज की कुरीतियों का यह हमेशा ही विरोध करते थे। यही कारण था कि अपनी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद 1910 में अमेरिका से लौटने के बाद इन्होंने प्रतिमा देवी नाम की एक विधवा विवाह से शादी करके समाज में विधवा की खराब स्थितियों को खत्म करने की कोशिश की और विधवा विवाह को प्रोत्साहित करने की कोशिश की।

रविंद्र नाथ टैगोर जी ना केवल साहित्यकार बल्कि चित्रकार, अध्यापक, पत्रकार, तत्व ज्ञानी, संगीतज्ञ शिक्षा शास्त्री और दार्शनिक भी थे। इन्होंने अपने जीवन काल में कई लघु कथाएं, कविताएं, निबंध, गाने, नाटक इत्यादि लिखें, जिनमे से कई रचनाएं विश्व प्रसिद्ध हुए। इनके द्वारा लिखा गया गीतांजलि के लिए इन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

इनकी ज्यादातर रचनाएं बंगाली में लिखी गई थी हालांकि इनकी विभिन्न रचनाओं को पढ़ने में लोगों की बढ़ती रूचि के कारण विभिन्न भाषाओं में इनके कई रचनाओं का अनुवाद किया गया। बालकों को प्रकृति के बीच में रहते हुए शिक्षा प्राप्त करने के लिए शांतिनिकेतन की भी स्थापना की।

रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध (600 Word)

टैगोर एक महान भारत एक कवि थे, जिनका जन्म 7 मई 1861 में कोलकाता में हुआ था। इनके पिता जी का नाम देवेंद्र नाथ टैगोर और इनकी माता जी का नाम शारदा देवी था। इन्होंने अपने प्रारंभिक जीवन में शिक्षा निजी शिक्षकों के अधीन घर पर ली थी और कभी स्कूल नहीं गए, लेकिन उच्च अध्ययन के लिए वह इंग्लैंड चले गए थे।

रवींद्रनाथ टैगोर ने 8 साल की कम उम्र में कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। उनकी कविता छद्म नाम भानुसिंघो (सूर्य सिंह) के तहत प्रकाशित हुई। जब वह सिर्फ सोलह वर्ष के थे, वह कानून का अध्ययन करने के लिए 1814 में इंग्लैंड चले गए। लेकिन एक कवि और लेखक के रूप में अपने भविष्य को पूरा करने के लिए पहले वह भारत लौट आए।

रवींद्रनाथ टैगोर की इंग्लैंड की लंबी समुद्री यात्रा

इंग्लैंड समुद्री यात्रा के माध्यम से जाते समय उन्होंने समुद्री यात्रा के दौरान गीतांजलि का अंग्रेजी में अनुवाद किया था। उनकी गीतांजलि के प्रकाशित होने के एक साल के भीतर ही उन्हें साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। रवींद्रनाथ टैगोर ने लेखन में भारतीय संस्कृति के रहस्यवादी का उल्लेख किया है, जिसके लिए पहली बार वह गैर पश्चिमी व्यक्ति को प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

रवींद्रनाथ टैगोर एक कवि के रूप में

टैगोर भारत के प्रसिद्ध कवि होने के साथ-साथ एक प्रतिभाशाली लेखक, उपन्यासकार, दक्षित कलाकार संगीत का नाटककार और एक दार्शनिक भी थे। वह अच्छी तरह से जानते थे कि कविता या कहानी लिखते समय भाषा का कैसे प्रयोग करना है। वह अच्छे दार्शनिक थे, जिसके माध्यम से उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय लोगों की विशाल श्रंखला को प्रभावित किया था।

भारतीय साहित्य के प्रति रवींद्रनाथ टैगोर का योगदान बहुत विशाल और अविस्मरणीय था। उनके संगीत में दो गीत अधिक प्रसिद्ध है, क्योंकि वह दोनों देश के राष्ट्रगान जैसे अमर शिरोमणि बांग्ला बांग्लादेश का राष्ट्रगान और जन गण मन भारत का राष्ट्रगान है।

इन दोनों की रचना रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा की गई रवींद्रनाथ टैगोर चाहे कविता हो या कहानी के रूप में आज भी प्रकाशित है। शायद वह पहले इंसान थे, जिन्होंने अपने प्रभावी लेखन के माध्यम से पश्चिम और पूर्व के बीच खाई को बांटा है।

रवींद्रनाथ टैगोर की महत्वपूर्ण रचनाएं

वैसे तो रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा कई विभिन्न विषयों पर रचनाएं की गई है। लेकिन उनकी एक रचना मानसी बहुत मशहूर थी, जिस में उन्होंने शाम के गीतों और सुबह के गीतों का उल्लेख सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनैतिक आदि कई विषयों के तहत किया गया था।

मानसी उनके द्वारा 1890 में लिखा गया था, जिसमें उन्होंने कुछ सामाजिक और कार्य कविताओं का संग्रह किया था। उनका अधिकांश लेखन बंगाल के लोगों के जीवन पर आधारित था। इसके अलावा रवींद्रनाथ टैगोर के कई अन्य काव्य संग्रह सोनार, तारि, चित्रांगदा और मालिनी बिनोदिनी और नौका दुबई, राजा और रानी, ​​आदि जैसे हैं।

वह बहुत ही धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति थे, जिससे उन्हें बहुत मदद मिली। वह एक महान शिक्षाविद् थे। उन्होंने शांति का निवास स्थान स्थापित किया, जो शांतिनिकेतन नामक एक अद्वितीय विश्वविद्यालय था। भारत की स्वतंत्रता को देखने से पहले 1941 में 7 अगस्त को कोलकाता में उनका निधन हो गया।

देश भर रवींद्रनाथ टैगोर का नाम आज भी लोकप्रिय है। देश में रवींद्रनाथ टैगोर के फोटो सरकारी कार्यालयों में बड़े-बड़े नेताओ के साथ लगाये जाते है। महान व्यक्तियों की सूचि में रवींद्रनाथ टैगोर का नाम शामिल है।

रवींद्रनाथ टैगोर ने देश के लिए बहुत संघर्ष किया और उन्होंने मुख्य रूप से कविताएं और कहानियों के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। साथ ही रविंद्र नाथ टैगोर ने देश का राष्ट्रगान जन गण मन भी दिया था, जिसे हम प्रतिदिन बोलते हैं और यह देश की शान भी माना जाता है।

रबीन्द्रनाथ टैगोर निबंध (800 शब्दों में)

रविंद्रनाथ टैगोर एक प्रसिद्ध भारत के कवि थे, जो अपनी उत्कृष्ट रचनाओं के कारण दुनिया भर में देश का नाम ऊंचा किया। रविंद्र नाथ टैगोर जी को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। इन्होने हिंदी साहित्य के विभिन्न विद्दाओं में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इनकी ज्यादातर रचनाएं बंगाली भाषा में है। रविंद्रनाथ जी एक महान साहित्यकार के अतिरिक्त देशभक्त, मानवतावादी, चित्रकार, दर्शनशास्त्री और शिक्षक थे।

कलाओं के विभिन्न क्षेत्रो में यें प्रतिभा संपन्न थे। अपनी लेखन के माध्यम से इन्होंने लोगों के मानसिक और नैतिक भावनाओं को अच्छे से प्रदर्शित किया। इनकी कई रचनाएं अग्रणी और क्रांतिकारी साबित हुई। स्वतंत्रता की लड़ाई में भी इनकी रचनाओं ने क्रांतिकारियों को बहुत ही प्रभावित किया है।

रविंद्र नाथ टैगोर का जन्म भारत के पश्चिम बंगाल राज्य की राजधानी कोलकाता के जोर-सांको में हुआ था। रविंद्र नाथ टैगोर जी अपने पिता के 15 संतानों में से 14 नंबर के थे। इनके पिता का नाम महर्षि देवेंद्र नाथ टैगोर था और माता का नाम शारदा देवी था।

इनके परिवार भी कला प्रेमी थे और माता-पिता दोनों ही सुशिक्षित थे। इन्हें बचपन से ही लिखने की रूचि थी और माता की मृत्यु के बाद अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए ये अक्सर कविताएं लिखा करते थे, जिसके बाद साहित्य के प्रति इनकी रुचि और भी ज्यादा बढ़ते गई।

रविंद्र नाथटैगोर जी की शिक्षा

रविंद्र नाथ टैगोर की शिक्षा के लिए इन्हें ओरिएंटल सेमिनरी स्कूल में इनका भर्ती कराया गया। लेकिन इनका वहां पर मन नहीं लगा जिसके बाद फिर घर में ही विभिन्न विषयों में निजी शिक्षकों के द्वारा उनकी शिक्षा हुई।

सर 1874 तक इनकी स्कूली शिक्षा पूरी हो गई, जिसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए ये इंग्लैंड चले गए। वहां पर इन्होंने लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त की।

रविंद्र नाथ टैगोर की साहित्य में योगदान

हिंदी साहित्य में इनका योगदान बहुत ही बड़ा और अविस्मरणीय है। मात्र 13 साल की उम्र में ही रविंद्र नाथ टैगोर जी की पहली कविता अभिलाषा एक तत्व भूमि नाम की पत्रिका में छपी। इंग्लैंड से वापस आने के बाद इन्होंने बंगाली भाषा में लिखना शुरू किया, इन्होंने कई साड़ी रचनाएं की जिनमें से कुछ बहुत सुप्रसिद्ध हुआ।

1877 तक उन्होंने अनेकों रचनाएं की और कई रचनाएं अनेकों पत्रिकाओं में छपी। 1842 में रविंद्र नाथ टैगोर जी ने हिंदू मुस्लिम एकता और घरेलू उद्योगों के विषय पर एक गंभीर लेख लिखा। 1960 में इन्होंने पहला उपन्यास गोरा लिखा। रविंद्र नाथ जी एक अच्छे लेखक के साथ-साथ एक अच्छे दर्शन शास्त्री भी थे जिसके माध्यम से इन्होंने कई रचनाओं का निर्माण किया और स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान बड़ी संख्या में भारतीय लोगों को प्रभावित किया।

बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ भी रविंद्र नाथ टैगोर के द्वारा ही लिखा गया है। अपनी असरदार लेखन से पूरब और पश्चिम के बीच की भी दूरी को कम कर दिया। रविंद्र नाथ जी ज्यादातर बंगाली लोगों के जीवन पर आधारित रचनाएं लिखते थे। इन्होंने अपने कई रचनाओं में समाज के तत्कालीन कुरीतियों, गरीबी और विभिन्न अवस्थाओं का भी चित्रण किये हैं। इनकी रचना गलपगुच्छा में भारत के गरीबी, निरक्षरता और पिछड़ापन पर आधारित अनेकों कहानियों का संग्रह है।

इनकी एक रचना पूरवी में इन्होंने संस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक, नैतिक और सामाजिक जैसे बहुत सारे विषयों के तहत संध्या और सुबह के गीतों को दर्शाया है। इन्होंने ना केवल अपनी लेखन के जरिए समाज की कुरीतियों को मिटाने की कोशिश की बल्कि स्वयं भी योगदान दिया। अपनी प्रथम पत्नी के देहांत के बाद इन्होंने मृणालिनी देवी नाम की एक विधवा औरत से विवाह किया और समाज में विधवा औरतों की खराब स्थिति को दूर करके विधवा विवाह को प्रोत्साहित करने की कोशिश की।

इसके अतिरिक्त इन्होंने कल्पना, सोनार तारी, गीतांजलि, आमार सोनार बांग्ला, घेर-बेर, रबीन्द्र संगीत, चित्रांगदा, मालिनी, गोरा, राजा और रानी जैसे ना जाने कितने ही उपन्यास, कविता और लघु कथाओं की रचना की। 1913 में इनकी रचना गीतांजलि के लिए इन्हें नोबेल पुरस्कार से भी नवाजा गया।

शांतिनिकेतन की स्थापना

रविंद्र नाथ जी बड़े साहित्यकार होने के अतिरिक्त एक महान शिक्षा शास्त्री भी थे। इन्हें शिक्षा का सही अर्थ मालूम था। इनके अनुसार सर्वोत्तम शिक्षा वही है, जो संपूर्ण दुनिया के साथ-साथ हमारे जीवन का भी सामंजस्य स्थापित करती है। इनके अनुसार शिक्षा मनुष्य की शारीरिक, आर्थिक, बौद्धिक, व्यवसाय और आध्यात्मिक विकास का आधार है।

इनके अनुसार शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक के समस्त इंद्रियों को प्रशिक्षित कर जीवन की वास्तविकता से उन्हें परिचित करवाना है, पर्यावरण की जानकारी देकर अनुकूलन स्थापित कराना है। बालक में आत्मानुशासन, नैतिक और आध्यात्मिक गुणों का विकास करना हैं।

रविंद्र नाथ जी मानते थे कि बच्चों को बंद कमरे में शिक्षा देने से ज्यादा अच्छा है, उन्हें खुले वातावरण में प्रकृति के बीच में बिठाकर शिक्षा दें। उनका मानना था कि प्रकृति के शांति भरे वातावरण में बच्चे प्रकृति का अवलोकन कर सकते हैं और उसका एक हिस्सा बन सकते हैं।

ऐसे माहौल में आसानी से सब कुछ समझ में आता है। मिट्टी पर खड़े पेड़ पौधे, बदलते मौसम, पंछियों का चहचहाना, विभिन्न जीव जंतुओं से भरे प्राकृतिक परिवेश बच्चों को कला की प्रेरणा देती है। इसीलिए इन्होंने कोलकाता शहर से दूर एक मनोहर स्थान पर 1901 को शांतिनिकेतन की स्थापना की।

रविंद्र नाथ जी महान साहित्यकारों में से एक थे, जिनकी रचनाओं में प्राकृतिक दृश्य और वातावरण का मनमोहक संसार ही केवल चित्रित नहीं होता बल्कि उसमें मानवता का भी उद्घोषणा होता है। साहित्य प्रतिभा इनकी सर्वोत्तमुखी थी। इन्होंने हिंदी साहित्य के विभिन्न विधाओं जैसे की कहानी, नाटक, निबंध, उपन्यास कविता इतिहास सभी में अपना योगदान दिया।

इनकी रचना में मानवीय दुखों और तत्कालिक परिस्थितियों का भी चित्रण देखने को मिलता है, जो पाठक को इनकी रचनाओं को पढ़ने में रुचि जागृत करता है। आज भले ही रविंद्र नाथ टैगोर जी हमारे बीच नहीं है लेकिन इनकी रचनाएं हमेशा ही अमर बनी रहेगी और आने वाली नई पिडियो को साहित्य के प्रति रुचि बनाने में मदद करेगी।

आज के आर्टिकल में हमने रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध (Essay On Rabindranath Tagore In Hindi) के बारे में बात की है। मुझे पूरी उम्मीद है कि हमारे द्वारा लिखा गया यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा। यदि किसी व्यक्ति को इस आर्टिकल में कोई शंका है। तो वह हमें कमेंट में पूछ सकते है।

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Rahul Singh Tanwar

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essay on rabindranath tagore in hindi

रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध – Essay on Rabindranath Tagore in Hindi

Essay on Rabindranath Tagore

भारत के राष्ट्र-गान जन-गण-मन के रचयिता, महान कवि और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित पहले भारतीय रबीन्द्र नाथ टैगोर एक विलक्षण प्रतिभा वाले महान कवि थे, जिन्होंने अपने महान और प्रभावशाली व्यक्तित्व की अमिट छाप हर एक भारतीय पर छोड़ी है।

उनका साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में दिया गया योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता। उनके महान जीवन पर प्रकाश डालने और उनके जीवन से प्रेरणा लेने के उद्देश्य से स्कूल/कॉलेजों में आयोजित परीक्षाओं और निबंध लेखन प्रतियोगिताओं पर रबीन्द्र नाथ टैगोर जी के विषय पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता है, इसी उद्देश्य से आज हम अपने इस पोस्ट में अलग-अलग शब्द सीमा पर टैगोर जी पर निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं –

Essay on Rabindranath Tagore

प्रस्तावना-

रबीन्द्र नाथ जी की ख्याति एक महान कवि और ओजस्वी दार्शनिक के रुप में पूरे विश्व में फैली हुई है। भारत का राष्ट्रगान उन्हीं की देन है। रबीन्द्र नाथ टैगोर ने अपनी कई महान रचनाओं के माध्यम से हिन्दी साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की है।

वे एक महान कवि होने के साथ-साथ एक मशहूर संगीतकार, प्रसिद्ध नाटककार एवं अच्छे कहानीकार और चित्रकार थे। रबीन्द्र नाथ जी का जीवन उपलब्धियों से भरा पड़ा है, उन्होंने जिस तरह अपने जीवन में अपने लक्ष्यों का हासिल किया।

वो वाकई प्रेरणा स्त्रोत है,जिससे हर किसी को प्रेरणा लेने की जरूरत है।

रबीन्द्र नाथ टैगोर का शुरुआती जीवन एवं शिक्षा – Rabindranath Tagore Life History

भारत के महान कवि और मानवता के पुजारी रबीन्द्र नाथ टैगोर 7 मई 1861, को कलकत्ता के एक समृद्ध और प्रतिष्ठित परिवार में जन्में थे। रबीन्द्र नाथ जी देवेन्द्र नाथ एवं शारदादेवी की सबसे छोटी संतान के रुप में पैदा हुए थे।

उनके परिवार में बचपन से ही शिक्षा का माहौल था, इसलिए उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा घर पर ही ग्रहण की थी। वहीं बाद में पिता के कहने पर वकालत की पढा़ई के लिए वे इंग्लैंड चले गए, हालांकि वहां से रबीन्द्र जी बिना डिग्री प्राप्त किए ही भारत लौट आए।

दऱअसल, रबीन्द्र नाथ टैगोर जी का शुरु से ही पढ़ाई की तरफ रुझान नहीं था, उन्हें किताबें पढना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। उनका मन चित्रकारी करने, संगीत सुनने, प्रकृति की सुंदरता को निहारने अथवा कविता एवं कहानियां लिखने में लगता था।

वहीं इसी वजह से ही उनमें साहित्यिक प्रतिभा भी जल्द ही विकसित होने लगी थी, उन्होंने महज 8साल की उम्र में ही अपनी पहली कविता लिख डाली थी और जब रबीन्द्र नाथ टैगोर जी 16 साल के थे तब उन्होंने अपनी लघु कथा लिख दी थी। इसके बाद उनके लेखन कार्य को काफी सराहना मिलने लगी और फिर उन्होंने जल्द ही प्रसिद्धि हासिल कर ली।

रबीन्द्र नाथ टैगोर जी का महान व्यक्तित्व – Great Personality Rabindranath Tagore

रबीन्द्र नाथ टैगोर जी ने अपनी महान रचनाओं के माध्यम से समूचे विश्व पर अपनी एक अमिट छाप छोड़ी है। रबीन्द्र नाथ टैगोर जी भारत की अनमोल विरासत थे। रबीन्द्र नाथ जी को उनके महान कामों की वजह से ”गुरुदेव” भी कहा जाता था।

रबीन्द्र नाथ टैगोर जी ने शिक्षण के क्षेत्र में भी अपना अपूर्व योगदान दिया है। उनका मानना था कि शिक्षा ही सिर्फ एक ऐसा माध्यम है जिससे देश की तस्वीर बदली जा सकती है। इसलिए उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक स्कूल की स्थापना भी की थी, जिसे बाद में विश्वविद्यालय का दर्जा मिला।

यहीं नहीं रबीन्द्र नाथ टैगोर प्रकृति से प्रेम करने वाले एक ऐसे महान यशस्वी साहित्यकार थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं में प्राकृतिक वातावरण की खूबसूरती और अद्भुत छटा का बेहद शानदार तरीके से वर्णन किया है।

उन्होंने अपनी महान सोच और अद्भुत विचारों से कई कविताएं, कहानियां, नाटक, उपन्यास, निबंध आदि लिखे थे। वे विश्व कवि होने के साथ-साथ एक शिक्षाशास्त्री, पत्रकार, चित्रकार, संगीतज्ञ, दार्शनिक भी थे, जिन्होंने अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व का प्रभाव हर किसी पर डाला और वे कई युवाओं के लिए आदर्श बने।

उपसंहार –

विश्व कवि के रुप में अपनी पहचान कायम करने वाले रबीन्द्र नाथ जी ने अपनी अद्भुत रचनाओं के माध्यम से न सिर्फ प्रकृति के अद्भुत दृश्य को दर्शाया बल्कि, भारतीय संस्कृति के महत्व को पूरी दुनिया को बताया और भारतीय समाज में फैली तमाम बुराईयों को दूर करने की भी कोशिश की। टैगोर जी की रचनाएं आज भी पाठकों के दिल में एक नया जोश भरने का काम करती हैं और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।

रबीन्द्र नाथ टैगोर पर निबंध – Rabindranath Tagore Essay in Hindi

कलकत्ता में जन्मे टैगोर जी एक महान साहित्यकार, कवि और दार्शनिक थे, जिन्होंने अपने महान व्यक्तित्व का प्रभाव हर किसी पर डाला है और साहित्य में अपना महान योगदान दिया है, उनके जीवन से हर किसी को प्रेरणा लेने की जरूरत है।

एक मशहूर कवि और साहित्यकार के रुप में रबीन्द्र नाथ टैगोर – Rabindranath Tagore as a Poet

अद्भुत और विलक्षण प्रतिभा के धनी रबीन्द्र नाथ टैगोर जी ने हिन्दी व बांग्ला साहित्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर, साहित्य को एक नई दिशा दी है। बचपन से ही कविताएं-कहानियां लिखने एवं साहित्य की तरफ उनके रुझान ने उन्हें एक प्रसिद्ध कवि के रुप में ख्याति दिलवाई।

इसके साथ ही उनकी गिनती साहित्य के महानतम कवियों में होने लगी। आपको बता दें कि रवीन्द्र नाथ टैगोर जी ने अपने महान विचारों के माध्यम से करीब 2 हजार 230 गीतों की रचना की थी। रबीन्द्र नाथ जी दुनिया के एक मात्र ऐसे रचनाकार थे, जिनकी दो रचनाएं, दो देशों का राष्ट्रगान बनी।

जिनमें से “जन-गण-मन” एवं बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान “आमार सोनार बांग्ला” हैं। उनकी इन रचनाओं की वजह से उन्हें आज भी याद किया जाता है।

इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि रबीन्द्र नाथ टैगोर जी द्दारा रचित उनका सबसे मशहूर एवं सर्वप्रिय काव्य “गीतांजली” है। जिसकी रचना उन्होंने बंगाली भाषा में की थी। उनकी यह रचना पाठकों द्धारा इतनी अधिक पसंद की गई की बाद में अंग्रेजी, फ्रैंच, जर्मन, रुसी, जापानी समेत देश-दुनिया की तमाम मुख्य भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया।

इस रचना की बदौलत उनकी ख्याति पूरे विश्व में फैल गई, यही नहीं उन्हें इस रचना के लिए नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

रबीन्द्र नाथ जी द्धारा रचित कहानियों के संग्रह में उनकी पोस्टमास्टर, मास्टर साहब, काबुलीवाला आदि रचनाएं काफी प्रसिद्ध हुईं, जिसमें कहानी के पात्रों का उन्होंने बड़े ही सजीवता से वर्णन किया है, जिसे लोग आज भी उतनी ही रुचि लेकर पढ़ते हैं।

रबीन्द्र नाथ टैगोर के जीवन की उपलब्धियां एवं ख्याति –

विश्व कवि रविन्द्र नाथ टैगोर जी को उनकी महानतम कृति “गीताजंली” के लिए साल 1913 में नोबल पुरस्कार से नवाजा गया था। रबीन्द्र नाथ टैगोर जी एक यह सम्मान पाने वाले पहले भारतीय थे। इसके साथ ही उन्हें कलकत्ता यूनिवर्सिटी ने “डॉक्टर ऑफ लेटर्स” की उपाधि सम्मानित किया था। यही नहीं उन्हें “नाइट हुड” की उपाधि से भी सम्मानित किया जा चुका है।

रबीन्द्र नाथ टैगोर जी साहित्य के एक ऐसे कवि थे, जिन्होंने अपनी पहचान पूरी दुनिया के सामने बनाई और अपनी महान कृतियों के माध्यम से भावी और आधुनिक भारत का निर्माण किया। इसके अलावा उन्होनें न सिर्फ शिक्षा को विकास का आधार माना बल्कि इसे समाज की बुराइयों को दूर करने की प्रक्रिया समझते हुए इसका जमकर प्रचार-प्रसार किया।उनके अद्भुत विचारों की वजह से ही वे महान बन सके हैं, जिनसे हर किसी को प्रेरणा लेने की जरुरत है।

रबीन्द्र नाथ टैगोर पर निबंध – Rabindranath Tagore par Nibandh

प्रस्तावना –

रबीन्द्र नाथ टैगोर जी एक ऐसे कवि थे, जो कि गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध थे, जिन्होनें अपने दर्शन और चिंतन से भारतीय संस्कृति के ज्ञान को पूरी दुनिया में फैलाया और आधुनिक भारत के निर्माण के लिए शिक्षा के प्रचार-प्रसार करने में लगे रहे। इसके साथ ही उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों की मानिसक व्यथा दर्शायी और नैतिक भावनाओं को बखूबी प्रदर्शित किया।

“शांतिनिकेतन” की स्थापना – Shantiniketan

एक महान साहित्यकार के रुप में विश्व भर में ख्याति बटोरने वाले रबीन्द्र नाथ टैगोर जी एक महान शिक्षाशास्त्री भी थे, जिन्होंने शिक्षा को सवोत्तम माना और इसे विकास की प्रक्रिया बताया। उन्होंने शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए साल 1901 में पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव बोलपुर में शांतिनिकेतन में एक स्कूल की स्थापना की थी। आपको बता दें कि इस स्कूल की खास बात यह है कि यह बिना छत का स्कूल है, जहां विद्यार्थी प्रकृति की गोद में शिक्षा ग्रहण करते हैं।

रबीन्द्र नाथ जी द्धारा स्थापित स्कूल शांतिनिकेतन ने काफी प्रसिद्धि पाई और साल 1921 में यह विश्व भारती विश्व विद्यालय बन गया। इस अनूठे स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ संगीत, कला, आदि पर भी जोर दिया जाता है। वहीं आज भी इस स्कूल में कई बच्चे पढ़ रहे हैं और अपने भविष्य को संवार रहे हैं। वहीं इस अनूठी संस्था के माध्यम से इस महान शिक्षाशास्त्री का नाम हमेशा अमर रहेगा।

रबीन्द्र नाथ टैगोर जी का चित्रकारी का शौक – Rabindranath Tagore As A Painter

विश्व कवि और शिक्षाशास्त्री होने के साथ -साथ रबीन्द्र नाथ टैगोर जी एक प्रतिभावान चित्रकार भी थे, जो अपने महान और प्रेरणात्मक विचारों से अद्भुत चित्रकारी करते थे। उनकी चित्रकारी में उनकी दूरगामी सोच, एवं उनके कल्पना की शक्ति अलग दिखती थी। इसलिए उन्हें आधुनिक भारत का असाधारण और अतिसृजनशील कलाकार भी माना जाता है।

रबीन्द्र नाथ टैगोर जी का अंतिम समय – Rabindranath Tagore Death

अपने जीवन भर महान काम करने वाले महान लेखक रबीन्द्र नाथ जी, अपने जिंदगी के अंतिम समय में काफी बीमार रहने लगे, जिससे उनका स्वास्थ्य काफी बिगड़ता चला गया, और फिर 7 अगस्त साल 1941 वे इस दुनिया को अलविदा कह गए। लेकिन अपनी मृत्यु के इतने सालों बाद भी वे आज भी हमारे दिलों में जीवित हैं, उनके लिए लोगों के मन में अपार प्रेम, श्रद्धा और सम्मान है।

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित पहले भारतीय कवि रबीन्द्र नाथ टैगोर जी की साहित्य, दर्शन, कला, संगीत, लेखन आदि के क्षेत्र में अच्छी समझ होने की वजह से उनकी ख्याति पूरी दुनिया में फैल गई और आज भी उनके महान कामों के लिए उन्हें याद किया जाता है, वहीं वे लाखों लोगों के प्रेरणास्त्रोत और आदर्श हैं।

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essay on rabindranath tagore in hindi

रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध – Rabindranath Tagore Essay in Hindi

Essay on Rabindranath Tagore Hindi आज हम 500+ शब्द बाढ़ पर निबंध  हिंदी में लिखने वाले हैं। यह निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए है।

रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध – Essay on Rabindranath Tagore Hindi

रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध: रबींद्रनाथ टैगोर एक प्रसिद्ध भारतीय कवि थे। इसके अलावा, वह एक महान दार्शनिक , देशभक्त , चित्रकार और मानवतावादी भी थे। लोग अक्सर उनके संबंध में गुरुदेव शब्द का उपयोग करते थे। इस असाधारण व्यक्तित्व का जन्म 7 मई को 1861 में कलकत्ता में हुआ था।

Rabindranath Tagore Essay in Hindi

उनकी प्रारंभिक शिक्षा विभिन्न प्रकार के शिक्षकों द्वारा घर पर हुई। साथ ही, इस शिक्षा के माध्यम से, उन्होंने कई विषयों का ज्ञान प्राप्त किया। उनकी उच्च शिक्षा इंग्लैंड में हुई। इन सबसे ऊपर, रवींद्रनाथ टैगोर ने बहुत कम उम्र से कविताएं लिखना शुरू कर दिया था।

रवींद्रनाथ टैगोर की कृतियां

रबींद्रनाथ टैगोर ने सोलह साल की उम्र से नाटक लिखना शुरू कर दिया था। बीस वर्ष की आयु में, रवींद्रनाथ टैगोर ने मूल नाटकीय अंश वाल्मीकि प्रतिभा लिखी। अधिकांश उल्लेखनीय, रवींद्रनाथ टैगोर भावनाओं पर केंद्रित हैं, न कि कार्रवाई पर। 1890 में उन्होंने एक और नाटक काम विसर्जन लिखा। विसर्जन संभवतः रवींद्रनाथ टैगोर का सर्वश्रेष्ठ नाटक कार्य है।

इसी तरह, सोलह साल की उम्र से रवींद्रनाथ टैगोर ने छोटी कहानियाँ लिखना शुरू किया। उनकी पहली लघु कहानी भीकारिणी थी। सबसे उल्लेखनीय, वह बंगाली भाषा की लघु कथा शैली के संस्थापक हैं। टैगोर ने निश्चित रूप से 1891 से 1895 तक कई कहानियाँ लिखीं। इसके अलावा, इस अवधि की कहानियाँ गल्पगच्छ का संग्रह है। यह 84 कहानियों का एक बड़ा संग्रह है।

रवींद्रनाथ टैगोर निश्चित रूप से उपन्यासों के संपर्क में थे। उन्होंने आठ उल्लेखनीय उपन्यास लिखे। इसके अलावा, उन्होंने चार उपन्यास लिखे।

रवींद्रनाथ टैगोर की कविता का सर्वश्रेष्ठ संग्रह गीतांजलि है। सबसे उल्लेखनीय, रवींद्रनाथ टैगोर को गीतांजलि के लिए 1913 में नोबेल पुरस्कार मिला था। इसके अलावा, उनकी अन्य महत्वपूर्ण कविताएँ मानसी, सोनार तोरी और बलाका हैं।

रवींद्रनाथ टैगोर गीतों पर निश्चित रूप से कम नहीं थे। आदमी को एक शक्तिशाली 2230 गाने लिखने की प्रतिष्ठा प्राप्त है। उपयोग में लोकप्रिय नाम रबींद्रसंगीत है, जो टैगोर के गीतों को संदर्भित करता है। उनके गीत निश्चित रूप से भारतीय संस्कृति को दर्शाते हैं । उनका प्रसिद्ध गीत अमर शोनार बांग्ला बांग्लादेश का राष्ट्रगान है। इन सबसे ऊपर, उन्होंने भारत जन गण मन का राष्ट्रगान लिखा।

रवींद्रनाथ टैगोर के पास ड्राइंग और पेंटिंग में उत्कृष्ट कौशल भी थे। संभवतः, रवींद्रनाथ टैगोर लाल-हरे रंग के अंधे थे। इसके कारण, उनकी कलाकृतियों में अजीब रंग थीम शामिल हैं।

राजनीति में रवींद्रनाथ टैगोर का योगदान

रवींद्रनाथ टैगोर राजनीति में सक्रिय थे। वह भारतीय राष्ट्रवादियों के पूर्ण समर्थन में थे। इसके अलावा, वह ब्रिटिश शासन के विरोध में था । उनके काम मैनास्ट में उनके राजनीतिक विचार शामिल हैं। उन्होंने कई देशभक्ति गीत भी लिखे। रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए प्रेरणा बढ़ाई। उन्होंने देशभक्ति के लिए कुछ रचनाएँ लिखीं। इस तरह के कार्यों के लिए जनता के बीच बहुत प्यार था। यहां तक ​​कि महात्मा गांधी ने भी इन कार्यों के लिए अपना पक्ष दिखाया।

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सबसे उल्लेखनीय, रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने नाइटहुड का त्याग किया था। इसके अलावा, उन्होंने 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड का विरोध करने के लिए यह कदम उठाया।

अंत में, रवींद्रनाथ एक देशभक्त भारतीय थे। वह निश्चित रूप से कई प्रतिभाओं का आदमी था। साहित्य, कला, संगीत और राजनीति में उनका योगदान शानदार है।

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रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध (Rabindranath Tagore Essay In Hindi)

रबींद्रनाथ टैगोर पर निबंध (Rabindranath Tagore Essay In Hindi)

आज   हम रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध (Essay On Rabindranath Tagore In Hindi) लिखेंगे। रबीन्द्रनाथ टैगोर पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

रबीन्द्रनाथ टैगोर पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Rabindranath Tagore In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे , जिन्हे आप पढ़ सकते है।

रबीन्द्रनाथ टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी थे। उन्होंने कई प्रकार की साहित्य ओर कविताये लिखी है। उन्हें कई प्रकार के नोबेल ओर अन्य सम्मान प्राप्त हुए है। रविन्द्र नाथ टैगोर विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति थे। वह बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे, वे एक ही साथ महान साहित्यकार, समाज सुधारक, अध्यापक, कलाकार ओर कई संस्थाओ के निर्माता थे।

वो जो सपने अपने देश भारत के लिए देखते थे, उन्हें पूरा करने के लिए अनवरत कर्मयोगी की तरह काम किया करते थे। उनके इस तरह के कार्यो की बजह से हमारे देश के वासियों में एक आत्मसम्मान की भावना जाग्रत हुई।

उनके इस विशाल व्यक्तित्व को राष्ट्र कि कोई सीमाएं नही बांध पाई। उनकी शिक्षा के तहत सबका कल्याण करना है। उनका मकसद बस एक ही था और वह था देश का कल्याण।

रबीन्द्रनाथ टैगोर जी का जन्म

रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म बांग्ला परिवार में 7 मई 1861 में हुआ था। रविंद्र नाथ टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर था ओर माता जी का नाम शारदा देवी था। टैगोर के मन में बेरिष्टर बनने की चाहत थी ओर अपनी इस चाहत को पूरी करने के लिए उन्होंने 1878 में ब्रिजटोन पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया।

उन्होंने लन्दन कॉलेज विश्विद्यालय से काननू की शिक्षा ग्रहण की थी। लेकिन 1880 को वो बिना डिग्री प्राप्त किये ही वापिस आ गए थे। रविंद्र नाथ टैगोर को बचपन से ही कविता ओर कहानियां लिखने का शोक था। वह गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध थे।

भारत आकर उन्होंने अपनी लिखने की इच्छा को पूरा किया ओर फिर से लिखने का काम शुरू किया। 1901 में रबीन्द्रनाथ टैगोर जी ने पश्चिम बंगाल में ग्रामीण इलाके में स्थित शांतिनिकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना की थी।

जहां उन्होंने भारत ओर पश्चिम परम्पराओ को मिलाने का प्रयास किया। वह विद्यालय में ही रहने लगे थे। उन्होंने विद्यालय को ही अपना घर बना लिया था और सन 1921 में उनका विद्यालय विशव विश्वविद्यालय बन गया।

गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की कृतियां

गुरुदेव रबीन्द्रनाथ जी ने अपने जीवन में अनेको कृतियों का विमोचन किया है। उनकी कृतियों कुछ इस प्रकार है, कविता, उपन्यास, लघुकथा, नाटक, नृत्यनाटय, प्रबन्ध समूह, भृमणकथा, जीवनोमुलक, पत्रसाहित्य, संगीत, चित्रकला। इस प्रकार उन्होंने अपने जीवन में अनेको पुस्तकों का विमोचन किया था।

उनकी सबसे अधिक प्रसिद्ध बंगला कविता का संग्रह गीतांजलि को सन 1913 में नोबेल पुरुष्कार प्राप्त हुआ था। गीतांजलि उनकी सबसे अधिक प्रसिद्ध कविता संग्रह थी। गीतांजलि शब्द गीत ओर अंजलि से मिल कर बना हुआ है। जिसका अर्थ है गीतों का उपहार। इसमे लगभग 103 कविताये है। इनकी इस कविताओं ने बहुत ही प्रसंशा प्राप्त की थी।

रवीन्द्रनाथ टैगोर जिनको गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। ये प्रसिद्ध बंगाली लेखक, संगीतकार, चित्रकार,ओर विचारक थे। उनकी रचनाओ में उपन्यास – गोरा, घरे बाईरे, चोखेर बाली, नष्ठनीड़, योगायोग, कहानी संग्रह – गल्पगुच्छ, संस्मरण – जीवनस्मृति, छेलेबेला, रूस के पत्र, कविता – गीतांजलि, सोनारतरी, भानुसिंह ठाकुरेर पदावली, मानसी, गितिमाल्य, वलाका, नाटक – रक्तकरवी, विसर्जन, डाकघर, राजा, वाल्मीकि प्रतिभा, अचलायतन, मुक्तधारा शामिल है।

ये पहले गैर यूरोपीय थे, जिनको 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरुस्कार दिया गया। वो केवल एक मात्र ऐसे कवि थे जिनकी दो रचनाये दो देशों का राष्ट्र गान बनी। जिसमे से पहला देश भारत और दूसरा देश बंगला देश है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर के कुछ अनमोल विचार

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अनेको अनमोल विचार लिखे है। उनमे से कुछ इस प्रकार है।

(1) सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाकू की तरह है, जिसमे सिर्फ ब्लेड है। यह इसके प्रयोग करने वाले के हाथ में है।

(2) आयु सोचती है, जवानी करती है।

(3) कट्टरता सच को उन हाथों में सुरक्षित रखने की कोशिश करती है, जो उसे मारना चाहते है।

(4) पंखुड़िया तोड़ कर आप फूल की खुशबू नही इकठ्ठा करते।

(5) मौत प्रकाश को खत्म करना नही, ये सिर्फ दीपक को बुझाना है। क्योंकि सुबह हो गयी है।

(6) मित्रता की गहराई परिचय की लम्बाई पर निर्भर नहीं करती।

(7) मिट्टी के बन्धन से मुक्ति पेड़ के लिये आजादी नहीं है।

(8) तथ्य कई है पर सत्य एक है।

(9) कला में व्यक्ति खुद को उजागर करता है, कलाकृति को नही।

(10) जीवन हमे दिया गया है, हम इसे देकर कमाते है।

इस प्रकार रवीन्द्रनाथ टैगोर जी के अनेको अनमोल वचन है। जिन्हें हमें समझना ओर अपने जीवन में उतारने की कोशिश करनी चाहिए।

रवीन्द्रनाथ टैगोर का सर की उपाधि वापस करना

रवीन्द्रनाथ टैगोर भारतीय साहित्य के एक मात्र नोबेल पुरस्कार विजेता थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करते हुए “सर” की उपाधि लोटा दी थी। उन्हें बिट्रिश प्रशासन 1915 में “नाइट हुड” नाम से ये उपाधि देना चाहते थे। उनके नाम के साथ सर लगाया गया था।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जलियावाला हत्याकांड की बजह से अंग्रेजों के दिए इस सम्मान को लेने से इनकार कर दिया था। इससे पहले भी 16 अक्टूबर 1905 को रवीन्द्रनाथ टैगोर के नेतृत्व में कोलकाता में मनाये गए रक्षाबंधन उत्सव से “बंग भंग” आंदोलन की शुरुआत हुई थी।

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन

रवीन्द्रनाथ टैगोर का सारा जीवन साधना ओर तपस्यामय था। ज्यो-ज्यो उनपर साहित्य ओर कला का प्रभाव पड़ता गया, त्यों-त्यों उनके जीवन में सादगी आने लगी थी। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी मानवता के असीम पुजारी थे। उनकी दृष्टि में मनुष्य विधाता की अनुपम कृति है।

विशव में उनका स्थान संदिग्ध है। जीवन ओर मृतु की सीमा के अंतर्गत मानव कर्तव्य आत्म चिंतन, प्रेम ओर कर्तव्य निष्ठा में है। इसी में जीवन की शांति ओर वास्तविक सुख है। टैगोर की दार्शनिक विचारधाराओ के अनुसार मानव ईशवर से पृथक नहीं है।

हमारी आत्मा ब्रह्म की आत्मा से पृथक नहीं है। संसार ईशवर की कृति नही है। वरन ईशवर का स्वरूप है। अतः मानव ईशवर से अलग नहीँ हो सकता। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने विशव को मानवता का सन्देश दिया। उन्होंने मॉनव जाती की एकता पर बल दिया।

एकता वही है, जो नैसर्गिक विभिन्नता से अनुप्राणित ओर परिपूर्ण हो। टैगोर जी के दृष्टिकोण में मानवजाति के पूर्ण विकास के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विभिन्नता आवश्यक है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर राष्ट्रिय वैचारिक दर्शन

रवीन्द्रनाथ टैगोर परम् देशभक्त थे। उन्होंने बहुत सी कविताये लिखी है। राष्ट्र प्रेम उनके रग-रग में समाहित था, वे अपनी मातृभूमि को पूजते थे ओर स्वदेश प्रेम उनके ह्रदय में बसा था।उनके मन में किसी के लिए भी कोई द्वेष नहीं था।

जबकि वो विदेशियों के प्रति भी नाममात्र का भी द्वेष नही रखते थे। उन्हें संकीर्णता से घृणा थी ओर वो चाहते थे की उनके देश के लोग जाग्रत की चेतना की आवश्यकता है। वे एक अच्छे राजनीतिज्ञ भी थे ओर वो राजनीति में अच्छे चरित्र निर्माण में विश्वास करते थे।

वे अपने जीवन के अंतिम स्वास तक सामजिक एकता ओर विशव शांति की स्थापना के लिए प्रयत्नशील रहे, जो सांस्कृतिक आदान प्रदान से प्राप्त हो सकती है। टैगोर जी का विश्वास था की मानव जाति अपने को विनाश से तभी बचा सकती है, जब वह पुनः उस आध्यत्मिकता में वापस आये जो सम्पूर्ण धर्म का आधार है।

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की शैक्षिक अवधारणा

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर हमारी शिक्षा और प्रणाली से दुखी थे। उनके अनुसार हमारे यहां की पाठशालाएं शिक्षा वरदान करने वाली एक कारखाना है ओर यहां के अध्यापक लोग भी इस कारखाने के एक पुर्जा ही है।

जैसे ही कारखाना शुरू होता है, पुर्जे अपना कार्य करना प्रारम्भ कर देते है। वैसे ही जैसे एक पाठशाला प्रारम्भ होती है, शिक्षक की जुबान चलने लगती है ओर जैसे ही पाठशाला रूपी कारखाना बन्द हो जाता है शिक्षक की जुबान भी बन्द हो जाती है। गुरु ओर शिष्य के रिश्ते को हम आत्मीयता के साथ जोड़कर स्नेह, प्रेम ओर मुक्ति से ही आत्मसात कर सकते है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ओर जीवन दर्शन

रविन्द्रनाथ टैगोर मुलतः एक कवि थे। उनकी कविताओं में उनके जीवन दर्शन का स्पष्ट परिचय मिलता है। रवीन्द्रनाथ जी की कृतियों ओर उनके विचारों के अध्ययन से उनका दार्शनिक व्यक्तित्व इस प्रकार है।

ईशवर ओर ब्रह्मा

रविन्द्र नाथ जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था की हमे ईशवर को उसी प्रकार अनुभव करना चाहिए, जिस प्रकार हम प्रकाश का अनुभव करते है। संसार में क्षण- प्रतिक्षण जो प्रतिक्रियाएं होती है, उसे ईशवर की इक्छा ही समझना चाहिए।

आत्मा ओर जीव

रवीन्द्रनाथ टैगोर जीव की आत्मा को ब्रह्मा से अलग मानते है। वही यह भी मानते है की आत्मा यधपि स्वतंत्र है। परन्तु उनकी स्वतंत्रता भी ईशवर की इच्छा पर ही निर्भर है। उनका मानना है की आत्मा का ब्रह्मा में लीन होना ही नही है, परन्तु अपने को पूर्ण बनाना है। उन्होंने आत्मा को तीन रूपो में विभाजित किया है।

(1) अस्तित्व ओर रक्षा की भावना

(2) अस्तित्व का ज्ञान

(3) आत्माभिव्यक्ति

सत्य ओर ज्ञान

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है की संसार का सत्य उसके जड़ पदार्थो में नही है। प्रत्युत उसके माध्यम से अभिव्यक्त होने वाली एकता में है।

जगत ओर प्रकर्ति

रवीन्द्रनाथ टैगोर माया को सत्ता मानते है ओर नही भी मानते है। उनके अनुसार जगत की वास्तविकता को नकारा नही जा सकता। वे प्रकर्ति में जड़ ओर चेतन सभी को पाते है।

धर्म ओर नैतिकता

धर्म ओर नैतिकता को परिभाषित करते हुए टैगोर जी ने स्पष्ठ शब्दो में कहा है।

“मेरा धर्म मानव का धर्म है, जिसमे अंत की परिभाषा मानवता है। नैतिकता के प्रति अपना विचार वे इस रूप में व्यक्त करते है। पशु का जीवन नैतिकता से रहित होता है, किन्तु मनुष्य में नैतिकता की व्याप्ति अवश्य होनी चाहिए।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन को लोगो को समर्पित कर दिया था ओर वो अपनी बातों को सुस्पष्ठ अपनी कविता, कहानियों, अपने उपन्यास में व्यक्त करते थे। वो कहते थे की किसी भी चीज से गुस्सा करने की अपेक्षा अपने अंदर की भवनाओं को जाग्रत करो।

वो बिट्रिश अंग्रेजों से जरा भी घृणा नही करते थे। वो चाहते थे की हमारे यहां की शिक्षा प्रणाली में सुधार हो, समाज में सुधार हो। उनका प्रत्येक कार्य देश ओर देशवासियो को ही समर्पित था।

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तो यह था रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध , आशा करता हूं कि रबीन्द्रनाथ टैगोर पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Rabindranath Tagore) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है , तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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Essay on Rabindranath Tagore: Rabindranath Tagore was a legendary Indian poet. Furthermore, he was also a great philosopher , patriot , painter, and humanist. People often made use of the word Gurudev with regard to him. This exceptional personality was born on the 7th of May in 1861 at Calcutta. His early education took place at home by a variety of teachers. Also, through this education, he got knowledge of many subjects. His higher education took place in England. Above all, Rabindranath Tagore began writing poems from a very young age.

Rabindranath Tagore Essay

Works of Rabindranath Tagore

Rabindranath Tagore began to write drama from sixteen years of age. At the age of twenty, Rabindranath Tagore wrote original dramatic piece Valmiki Pratibha. Most noteworthy, Rabindranath Tagore works focused on feelings and not on action. In 1890 he wrote another drama work Visarjan. Visarjan is probably the best drama work of Rabindranath Tagore.

Similarly, from the age of sixteen Rabindranath Tagore began to write short stories. His first short story was Bhikarini. Most noteworthy, he is the founder of the Bengali-language short story genre. Tagore certainly wrote numerous stories from 1891 to 1895. Also, stories from this period form the collection of Galpaguchchha. It is a big collection of 84 stories.

Rabindranath Tagore was certainly in touch with novels as well. He wrote eight notable novels. Furthermore, he wrote four novellas.

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Rabindranath Tagore was certainly not short on songs. The man enjoys the reputation of writing a mighty 2230 songs. The popular name in usage is rabindrasangit, which refers to Tagore’s songs. His songs certainly reflect Indian culture . His famous song Amar Shonar Bangla is the national anthem of Bangladesh. Above all, he wrote the national anthem of India Jana Gana Mana.

Rabindranath Tagore also had excellent skills in drawing and painting. Probably, Rabindranath Tagore was red-green color blind. Due to this, his artworks contain strange color themes.

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Rabindranath Tagore’s contribution to politics

Rabindranath Tagore was active in politics. He was in total support of Indian nationalists. Furthermore, he was in opposition to British rule . His work Manast contains his political views. He also wrote a number of patriotic songs. Rabindranath Tagore increased the motivation for Indian independence. He wrote some works for patriotism. There was great love among the masses for such works. Even Mahatma Gandhi showed his favor for these works.

Most noteworthy, Rabindranath Tagore did renunciation of his knighthood. Furthermore, he took this step to protest the Jallianwala Bagh massacre in 1919.

In conclusion, Rabindranath was a patriotic Indian. He was certainly a man of many talents. His contribution to Literature, arts, music, and politics is brilliant.

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