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सत्संगति पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Slokas on Satsangati

असज्जनः सज्जनसंगि संगात् करोति दुःसाध्यमपीह साध्यम् । पुष्याश्रयात् शम्भुशिरोधिरूठा पिपीलिका चुम्बति चन्द्रबिम्बम् ॥

सज्जन के सहवास से असज्जन दुःष्कर कार्य को भी साध्य बनाता है । पुष्प का आधार लेकर शंकर के मस्तक पर की चींटी चंद्रबिंब का चुंबन करती है।

गंगेवाधविनाशिनो जनमनः सन्तोषसच्चन्द्रिका तीक्ष्णांशोरपि सत्प्रभेव जगदज्ञानान्धकारावहा । छायेवाखिलतापनाशनकारी स्वर्धेनुवत् कामदा पुण्यैरेव हि लभ्यते सुकृतिभिः सत्संगति र्दुर्लभा ॥

गंगा की तरह पाप का नाश करनेवाली, चंद्र किरण की तरह शीतल, अज्ञानरुपी अंधकारका नाश करनेवाली, ताप को दूर करनेवाली, कामधेनु की तरह इच्छित चीज देनेवाली, बहुत पुण्य से प्राप्त होनेवाली सत्संगति दुर्लभ है ।

सन्तप्तायसि संस्थितस्य पयसः नामापि न श्रूयते मुक्ताकारतया तदेव नलिनीपत्रस्थितं राजते । स्वात्यां सागरशुक्ति संपुट्गतं तन्मौक्तिकं जायते प्रायेणाधममध्यमोत्तम गुणाः संसर्गतो देहिनाम् ॥

तप्त लोहे पर पानी का नाम निशान नहीं रहता । वही पानी कमल के पुष्प पर हो तो मोती जैसा लगता है, और स्वाति नक्षत्र में छीप के अंदर अगर गिरे तो वह मोती बनता है । ज़ादा करके अधम, मध्यम और उत्तम दशा संसर्ग से होती है ।

कीर्तिनृत्यति नर्तकीव भुवने विद्योतते साधुता ज्योत्स्नेव प्रतिभा सभासु सरसा गंगेव संमीलति । चित्तं रज्जयति प्रियेव सततं संपत् प्रसादोचिता संगत्या न भवेत् सतां किल भवेत् किं किं न लोकोत्तरम् ॥

कीर्ति नर्तकी की तरह नृत्य करती है । दुनिया में साधुता प्रकाशित होती है । सभा में ज्योत्सना जैसी सुंदर प्रतिभा गंगा की तरह आ मिलती है, चित्तको प्रियाकी तरह आनंद देती है, प्रसादोचित् संपद आती है । अच्छे मानव के सहवास से कौनसा लोकोत्तर कार्य नहीं होता ?

सत्संगाद्ववति हि साधुता खलानाम् साधूनां न हि खलसंगात्खलत्वम् । आमोदं कुसुमभवं मृदेव धत्ते मृद्रंधं न हि कुसुमानि धारयन्ति ॥

सत्संग से दुष्ट लोग अच्छे बनते हैं, लेकिन दुष्ट की सोबत से अच्छे लोग बुरे (दुष्ट) नहीं बनते । फ़ूल में से पेदा हुई सुवास मिट्टी लेती है, लेकिन पुष्प मिट्टी कि सुवास (गंध) नहीं लेते ।

कल्पद्रुमः कल्पितमेव सूते सा कामधुक कामितमेव दोग्धि । चिन्तामणिश्र्चिन्तितमेव दत्ते सतां हि संगः सकलं प्रसूते ॥

कल्पवृक्ष कल्पना किया हुआ हि देता है, कामधेनु इच्छित वस्तु ही देती है, चिंतामणी जिसका चिंतन करते हैं वही देता है, लेकिन सत्संग तो सब कुछ देता है ।

संगः सर्वात्मना त्याज्यः स चेत्कर्तुं न शक्यते । स सिद्धिः सह कर्तव्यः सन्तः संगस्य भेषजम् ॥

कुसंग का त्याग पूर्णरुप से करना चाहिए वह अगर शक्य नहीं  है। सज्जन का संग करना चाहिए क्यों कि सज्जन संग का औषधि है ।

कीटोऽपि सुमनःसंगादारोहति सतां शिरः । अश्मापि याति देवत्वं महद्भिः सुप्रतिष्ठितः ॥

पुष्प के संग से कीडा भी अच्छे लोगों के मस्तक पर चढता है । बडे लोगों से प्रतिष्ठित किया गया पत्थर भी देव बनता है ।

असतां संगपंकेन यन्मनो मलिनीक्र्तम् । तन्मेऽद्य निर्मलीभूतं साधुसंबंधवारिणा ॥

कीचड जैसे दुर्जन के संग से मलिन हुआ मेरा मन आज साधुसंगरुपी पानी से निर्मल बना ।

शिरसा सुमनःसंगाध्दार्यन्ते तंतवोऽपि हि । तेऽपि पादेन मृद्यन्ते पटेऽपि मलसंगताः ॥

फ़ूलके संग से धागाभी मस्तक पर धारण होता है, और वही धागा जाल के संग से पाँव तले कुचला जाता है

दूरीकरोति कुमतिं विमलीकरोति चेतश्र्चिरंतनमधं चुलुकीकरोति । भूतेषु किं च करुणां बहुलीकरोति संगः सतां किमु न मंगलमातनोति ॥

कुमति को दूर करता है, चित्त को निर्मल बनाता है । लंबे समय के पाप को अंजलि में समा जाय एसा बनाता है, करुणा का विस्तार करता है; सत्संग मानव को कौन सा मंगल नहीं देता ?

पश्य सत्संगमाहात्म्यं स्पर्शपाषाणयोदतः । लोहं च जायते स्वर्णं योगात् काचो मणीयते ॥

सत्संग का महत्व देखो, पाषाण के स्पर्श से लोहा सोना बनता है और सोनेके योग से काच मणी बनता है ।

हरति ह्रदयबन्धं कर्मपाशार्दितानाम् वितरति पदमुच्चैरल्प जल्पैकभाजाम् । जनमनरणकर्मभ्रान्त विधान्तिहेतुः त्रिजगति मनुजानां दुर्लभः साधुसंगः ॥

कर्मपाश से पीडित मानव के ह्रदयबंधको हर लेता है, छोटे मानवको उँचा स्थान देता है, जन्म-मरण की भ्रांति में से विश्रांति देता है; तीनों लोक में साधुसंग अत्यंत दुर्लभ है ।

नलिनीदलगतजलवत्तरलं तद्वज्जीवनमतिशयचपलम् । क्षणमपि सज्जनसंगतिरेका भवति भवार्णवतरणे नौका ॥

कमलपत्र पर पानी जैसा चंचल यह जीवन अतिशय चपल है । इसलिए एक क्षण भी की हुई सज्जनसंगति भवसागर को पार करनेवाली नौका है ।

तत्त्वं चिन्तय सततंचित्ते परिहर चिन्तां नश्र्वरचित्ते । क्षणमिह सज्जनसंगतिरेका भवति भवार्णतरणे नौका ॥

सतत चित्त में तत्व का विचार कर, नश्वर चित्तकी चिंता छोड दे । एक क्षण सज्जन संगति कर, भव को तैरनेमें वह नौका बनेगी ।

मोक्षद्वारप्रतीहाराश्र्चत्वारः परिकीर्तिताः शमो विवेकः सन्तोषः चतुर्थः साधुसंगमः ॥

शम, विवेक, संतोष और साधुसमागम – ये चार मोक्षद्वार के पहेरेदार हैं ।

सन्तोषः साधुसंगश्र्च विचारोध शमस्तथा । एत एव भवाम्भोधावुपायास्तरणे नृणाम् ॥

संतोष, साधुसंग, विचार, और शम इतने हि उपाय भवसागर पार करनेके लिए मानवके पास है ।

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5 thoughts on “ सत्संगति पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Slokas on Satsangati ”

Nice sloka of Sanskrit

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हरि 🕉 नारायण नारायण

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सत्संगति पर संस्कृत में निबंध /satsangti par sanskrit me nibandh

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सत्संङ्गतिः

सज्जनानां संङ्गतिः एव सत्संङ्गतिः मनुष्य जीवने यत् किचिदपि शिक्षते तस्मिन् संङ्गतः महान् प्रभावः भवति । मनुष्य यादृशे स तिष्ठति प्रायः तादृशः एव भवति । सदाचारपरायणः विद्वद्भिः सह वसन् जन श्रेष्ठः गुणायुक्तः भवति पापैः चौरैश्च सह वसन् जघन्यः एव भवति ।

न केवलं मनुष्येषु अपितु जडवस्तुषु अपि सङ्गतेः स्पष्ट प्रभाव दृश्यते । चन्दनवृक्षाणां मध्ये स्थिताः अन्येऽपि वृक्षाः चन्दनानि एव भवन्ति । धूपेन सह धूमः अपि सुगन्धितः भवति । अतः संङ्गतेः प्रभावः निर्विवादः एव।

अतः अस्माभिः सदा सत्सङ्गः कार्यः, कुसंङ्गः च सर्वथा परित्याज्यः ।

सत्संगति पर संस्कृत में 15 लाइनों का निबंध  

1- सतां जनानां संगतिः एव सत्संगतिः भवति

2- यादृशी संगतिः भवति तादृशी एव तस्य प्रकृतिः भवति ।

3- जन्मना तु कोऽपि सज्जनः दुर्जनो वा न भवति ।

4- संगत्या एव जनः उन्नतिम् अवनति वा लभते

5- संगतिः द्विविधा भवति सत्संगतिः कुसंगतिः च।

6- जनः सज्जनैः सह संगमे सज्जनो भवति ।

7- जनः दुर्जनैः सह संगमे दुर्जनो भवति ।

8- सत्संगत्याः प्रभावः बालकेषु शीघ्रमेव भवति

9- कुसंगत्या एव बालः दुराचारी, चोरः, दुष्टः च भवति ।

10- शैशवादेव बालः कुसंगतिं त्यक्त्वा सत्संगतिः कुर्यात् ।

11- सत्संगतिः मानवस्य बुद्धे जाड्यं हरति

12- सत्संगतिः कल्याणकारी भवति ।

13- यः सत्संगति प्राप्नोति सः महत्सौभाग्यम् प्राप्नोति

14- यः सत्संगतिम् करोति तस्य जीवनं सफलं भवति ।

15- सज्जनानां सर्वत्र सम्मानं भवति ।

2.   सत्सङ्गति पर निबंध संस्कृत भाषा में 

ये मनसा सद् विचारयन्ति, वचसा सद् वदन्ति वपुषा च सद् आचरन्ति ते सज्जनाः कथ्यन्ते । सतां सज्जनानां सङ्गतिः 'सत्सङ्गतिः कथ्यते । ये सज्जनाः साधवः पवित्र आत्मानाः सन्ति तेषां संगत्या मनुष्यः, सज्जनः साधुः शिष्टश्व भवति । ये दुर्जनाः सन्ति तेषां संगत्या मनुष्यो दुर्जनो भवति, पतनं विनाशं च प्राप्नोति । मनुष्यस्योपरि सङ्गतेः महान् प्रभावो भवति । यादृशैः पुरुषः सह सः निवसति, तादृशः एव स भवति । तथा चोक्तम्

"संसर्गजा दोषगुणा भवन्ति

सज्जानानां संगत्या मनुष्य उन्नतिं प्राप्नोति । तस्य विद्या कीर्तिश्च वर्धते । सङ्गत्याः प्रबलः प्रभावो वर्तते। बालकस्य कोमलं शरीरम् अपरिपक्वं च मस्तिष्कं भवति सः यादृशेः बालकः सह पठति, क्रीडति गच्छति तादृशः एव जायते। अत एव विद्यायशोबलसुखवृद्धये सत्सङ्गः करणीयः

हिंदी अनुवाद

धर्मी की संगति ही सच्ची संगति है, और जो कुछ भी व्यक्ति जीवन में सीखता है उस पर संगति का बहुत प्रभाव पड़ता है।  एक आदमी लगभग वैसा ही होता है जैसा वह खड़ा होता है।  जो सदाचारी है और जो विद्वान पुरुषों के साथ रहता है वह श्रेष्ठ है और गुणों से संपन्न है लेकिन जो पापियों और चोरों के साथ रहता है वह निम्न है

 न केवल मनुष्य पर बल्कि जड़ वस्तुओं पर भी संगति का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है।  चन्दन के वृक्षों में अन्य वृक्ष भी चन्दन के वृक्ष हैं।  धूप के साथ-साथ धुंआ भी सुगंधित होता है।  तो संघ का प्रभाव निर्विवाद है।

इसलिए हमें सदा धर्मी के साथ संगति करनी चाहिए और गलत के साथ संगति को पूरी तरह से त्याग देना चाहिए।

सत्संगति पर हिन्दी में 10 लाइनों का निबंध

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1- अच्छे लोगों की संगति ही नेक संगति है

2- एसोसिएशन की प्रकृति एसोसिएशन की तरह ही है।

3- लेकिन कोई भी व्यक्ति जन्म से अच्छा या बुरा नहीं होता है।

4- यह संगति से है कि कोई व्यक्ति आगे बढ़ता है या अस्वीकार करता है

5- संगति दो प्रकार की होती है, अच्छी संगति और बुरी संगति।

6- अच्छे लोगों का संग करने से व्यक्ति अच्छा बनता है।

7- बुरे लोगों का साथ मिलने पर व्यक्ति बुरा बन जाता है।

8- अच्छी संगति का प्रभाव बच्चों में जल्दी महसूस होता है

9- बुरी संगति से ही बच्चा शरारती, चोर और दुष्ट बनता है।

10- बचपन से ही बच्चे को बुरी संगति छोड़कर अच्छे लोगों से जुड़ना चाहिए।

10 lines essay in sanskrit on satsangti

1- The association of righteous people is the righteous association

2- The nature of the association is the same as that of the association.

3- But no one is born good or bad.

4- It is by association that a person advances or declines

5- There are two types of association, good association and bad association.

6- A person becomes good when he associates with good people.

7- A person becomes a bad person when he associates with bad people.

8- The effect of good association is quickly felt in children

9- It is through bad association that a child becomes mischievous, thieving and evil.

10- From infancy, the child should leave bad association and associate with good.

सत्संगती पर हिन्दी में निबंध 

जो अपने मन से अच्छा सोचते हैं, अपने शब्दों से अच्छा बोलते हैं और अपने शरीर के साथ अच्छा कार्य करते हैं, वे सदाचारी कहलाते हैं। सदाचारियों का सद्गुणों से संबंध 'धर्मियों का मेल' कहलाता है। सदाचारी, साधु और पवित्र आत्माओं की संगति से मनुष्य सदाचारी, साधु और विनम्र बनता है। दुष्टों का संग करना मनुष्य को दुष्ट बनाता है और पतन और विनाश की ओर ले जाता है। व्यक्ति पर संघ का बहुत प्रभाव होता है। एक आदमी उस तरह के लोग बन जाता है, जिसके साथ वह रहता है। और इसलिए कहा जाता है

"संक्रामक दोष हैं

सद्गुणों से जुड़कर व्यक्ति उन्नति को प्राप्त करता है। उनके ज्ञान और प्रसिद्धि में वृद्धि होती है। संघ का गहरा प्रभाव है। बच्चे का कोमल शरीर और अपरिपक्व मस्तिष्क होता है। वह उसी तरह पैदा होता है जिस तरह के बच्चे के साथ वह पढ़ता और खेलता है। इसलिए ज्ञान, यश, बल और सुख की वृद्धि के लिए सत्य से जुड़ना चाहिए।

Satsangati par nibandh English mein

Those who think good with their minds, speak good with their words and act good with their bodies are called virtuous. The association of the virtuous with the virtuous is called 'the association of the righteous. By association with those who are virtuous, saintly and holy spirits, a man becomes virtuous, saintly and polite. Associating with those who are evil makes a person evil and leads to fall and destruction. Association has a great influence on a person. A man becomes the kind of people he lives with. and so it is said

"There are infectious defects

सज्जन: ,सङ्गतिः, सत्संगति: पर संस्कृत में निबंध  

1.सज्जनानां संगतिः एव सत्संगतिः ।

2.मनुष्यः जीवने यत् किंचिदपि शिक्षते तस्मिन् संगतेः महान् प्रभावः भवति।

3. मनुष्यः यादृशे संगे तिष्ठति प्रायः तादृशः एव भवति।

4.सदाचारपरायणः विद्वद्भिः सह वसन् जनः श्रेष्ठ गुणयुक्तः भवति । 

5.पापैः चौरैश्च सह वसन् जघन्यः एव भवति ।

6.न केवलं मनुष्येषु अपितु जडवस्तुषु अपि संगतेः स्पष्टः प्रभावः दृश्यते ।

7.काञ्चन संसर्गात् काचोऽपि मारकतिं द्युतिं प्राप्नोति। 

8.पुष्पसंगत्या कीटोऽपि महतां शिर: आरोहति।

9.धूपेन सह धूमः अपि सुगन्धितः भवति। 

10.अतः संगतेः प्रभावः निर्विवादः एव।

11.सत्सङ्गतिः एवं जनानां सर्वकार्य साधिका भवति।

12.अतः अस्माभिः सदा सत्संग: कार्यः कुसंग: च सर्वथा परित्याज्यः।

सत्संगति पर उर्दू में निबंध

1- نیک لوگوں کی انجمن صالحین کی انجمن ہے۔

2- انجمن کی نوعیت وہی ہے جو انجمن کی ہے۔

3- لیکن کوئی بھی اچھا یا برا پیدا نہیں ہوتا۔

4- وابستگی سے ہی انسان ترقی کرتا ہے یا زوال پذیر ہوتا ہے۔

5- صحبت کی دو قسمیں ہیں، اچھی صحبت اور بری صحبت۔

6- انسان اس وقت اچھا بنتا ہے جب وہ اچھے لوگوں کی صحبت اختیار کرتا ہے۔

7- برے لوگوں سے صحبت کرنے سے انسان برا بن جاتا ہے۔

8- اچھی صحبت کا اثر بچوں میں جلد محسوس ہوتا ہے۔

9- بُری صحبت سے ہی بچہ شرارتی، چور اور بدکار بن جاتا ہے۔

10- بچپن ہی سے بچے کو چاہیے کہ بری صحبت چھوڑ کر نیکی کی صحبت اختیار کرے۔

सत्संगति पर गुजराती भाषा में निबंध

સત્સંગતિ

જેઓ મનથી સારું વિચારે છે, વાણીથી સારું બોલે છે અને દેહથી સારું કામ કરે છે તે સદાચારી કહેવાય છે. સદાચારીઓનો સદાચારી સાથેનો સંગ 'સદાચારીઓનો સંગ' કહેવાય છે. જેઓ સદાચારી, પુણ્યશાળી અને પવિત્ર આત્માઓ છે તેમના સંગથી માણસ સદાચારી, સંત અને નમ્ર બને છે. દુષ્ટ લોકો સાથે સંગત રાખવાથી વ્યક્તિ દુષ્ટ બને છે અને પતન અને વિનાશ તરફ દોરી જાય છે. વ્યક્તિ પર સંગઠનનો ઘણો પ્રભાવ છે. એક માણસ તે પ્રકારના લોકો બની જાય છે જેની સાથે તે રહે છે. અને તેથી તે કહેવામાં આવે છે

"ત્યાં ચેપી ખામીઓ છે

સદ્ગુણોનો સંગ કરવાથી વ્યક્તિ ઉન્નતિ પ્રાપ્ત કરે છે. તેના જ્ઞાન અને કીર્તિમાં વધારો થાય છે. સંગતનો મજબૂત પ્રભાવ છે. બાળક કોમળ શરીર અને અપરિપક્વ મગજ ધરાવે છે. તે જે પ્રકારનું બાળક વાંચે છે અને તેની સાથે રમે છે તે પ્રકારનો તે જન્મે છે. એટલે જ્ઞાન, કીર્તિ, બળ અને સુખ વધારવા માટે સાચાનો સંગ કરવો જોઈએ.

सत्संगति पर 10 लाइन गुजराती भाषा में 

સત્સંગતિ પર સંસ્કૃતમાં 15 લીટીનો નિબંધ

1- સદાચારી લોકોનો સંગ એ ન્યાયી સંગત છે

2- એસોસિએશનની પ્રકૃતિ એસોસિએશનની જેમ જ છે.

3- પરંતુ કોઈ પણ જન્મે સારો કે ખરાબ નથી હોતો.

4- જોડાણ દ્વારા જ વ્યક્તિ આગળ વધે છે અથવા ઘટે છે

5- સંગ બે પ્રકારના હોય છે, સારો સંગ અને ખરાબ સંગ.

6- વ્યક્તિ ત્યારે સારો બને છે જ્યારે તે સારા લોકોનો સંગ કરે છે.

7- વ્યક્તિ ખરાબ વ્યક્તિ બની જાય છે જ્યારે તે ખરાબ લોકો સાથે સંગત કરે છે.

8- સારા સંગતની અસર બાળકોમાં ઝડપથી અનુભવાય છે

9- ખરાબ સંગતથી જ બાળક તોફાની, ચોર અને દુષ્ટ બને છે.

10- બાળપણથી જ બાળકે ખરાબ સંગત છોડીને સારાની સંગત કરવી જોઈએ

essay on satsangti in Telugu

సత్సంగతి

మనసుతో మంచిగా ఆలోచించి, మాటలతో మంచిగా మాట్లాడే, శరీరంతో మంచిగా ప్రవర్తించేవారిని సత్పురుషులు అంటారు. సత్పురుషులతో సత్పురుషుల అనుబంధాన్ని 'సత్పురుషుల సహవాసం' అంటారు. సత్పురుషులు, సాధువులు మరియు పవిత్రాత్మలతో సహవాసం చేయడం ద్వారా, మనిషి సద్గుణవంతుడు, సాధువు మరియు మర్యాదగలవాడు అవుతాడు. చెడ్డవారితో సహవాసం మనిషిని చెడుగా మారుస్తుంది మరియు పతనానికి మరియు నాశనానికి దారితీస్తుంది. అనుబంధం ఒక వ్యక్తిపై గొప్ప ప్రభావాన్ని చూపుతుంది. ఒక మనిషి అతను నివసించే రకమైన వ్యక్తులు అవుతాడు. మరియు అలా చెప్పబడింది

"అంటువ్యాధులు ఉన్నాయి

సత్పురుషులతో సహవాసం చేయడం ద్వారా, ఒక వ్యక్తి పురోగతిని పొందుతాడు. అతని జ్ఞానం మరియు కీర్తి పెరుగుతుంది. సంఘం యొక్క బలమైన ప్రభావం ఉంది. పిల్లవాడు సున్నితమైన శరీరం మరియు అపరిపక్వ మెదడు కలిగి ఉంటాడు. అతను చదివే మరియు ఆడుకునే పిల్లవాడిగా జన్మించాడు. అందుకే జ్ఞానాన్ని, కీర్తిని, బలాన్ని, ఆనందాన్ని పెంపొందించడానికి సత్యంతో సహవాసం చేయాలి.

10 lines essay on satsangti in Telugu

సత్సంగతిపై సంస్కృతంలో 10లైన్ల వ్యాసం

1- నీతిమంతుల సహవాసమే నీతిమంతుల సహవాసము

2- సంఘం యొక్క స్వభావం దాని స్వభావం.

3- కానీ ఎవ్వరూ మంచిగా లేదా చెడుగా పుట్టరు.

4- సహవాసం ద్వారానే వ్యక్తి పురోగమించడం లేదా తిరస్కరించడం

5- సహవాసం రెండు రకాలు, మంచి సహవాసం మరియు చెడు సహవాసం.

6- మంచి వ్యక్తులతో సహవాసం చేస్తే మంచివాడు అవుతాడు.

7- చెడ్డవారితో సహవాసం చేస్తే ఒక వ్యక్తి చెడ్డవాడు అవుతాడు.

8- మంచి సహవాసం యొక్క ప్రభావం పిల్లలలో త్వరగా కనిపిస్తుంది

9- చెడు సహవాసం ద్వారానే పిల్లవాడు కొంటెగా, దొంగగా మరియు చెడుగా మారతాడు.

10- బాల్యం నుండి, పిల్లవాడు చెడు సహవాసం వదిలి మంచితో సహవాసం చేయాలి

essay on satsangti in Bengali

সৎসঙ্গতি

যারা মন দিয়ে ভালো চিন্তা করে, কথায় ভালো কথা বলে এবং শরীর দিয়ে ভালো কাজ করে তাদের বলা হয় পুণ্যবান। পুণ্যবানের সাথে সৎকর্মশীলদের মেলামেশাকে বলা হয় 'ধার্মিকদের সংসর্গ। যারা পুণ্যবান, সাধু ও পবিত্র আত্মা তাদের সাথে মেলামেশা করলে একজন মানুষ সদাচারী, সাধু ও ভদ্র হয়ে ওঠে। যারা মন্দ তাদের সাথে মেলামেশা একজন মানুষকে মন্দ করে এবং পতন ও ধ্বংসের দিকে নিয়ে যায়। অ্যাসোসিয়েশন একটি ব্যক্তির উপর একটি মহান প্রভাব আছে. একজন মানুষ সে ধরনের লোকে পরিণত হয় যার সাথে সে থাকে। এবং তাই এটা বলা হয়

“সংক্রামক ত্রুটি আছে

পুণ্যবানদের সাথে মেলামেশা করলে মানুষ উন্নতি লাভ করে। তার জ্ঞান ও খ্যাতি বৃদ্ধি পায়। সমিতির একটি শক্তিশালী প্রভাব আছে। শিশুটির কোমল শরীর এবং অপরিণত মস্তিষ্ক রয়েছে। তিনি যে ধরনের শিশু পড়েন এবং খেলেন সেই ধরনের শিশুর জন্ম হয়। তাই জ্ঞান, খ্যাতি, শক্তি ও সুখ বৃদ্ধির জন্য সত্যের সাথে মেলামেশা করা উচিত।

10 liens on satsangti in Bengali 

সৎসঙ্গতিতে সংস্কৃতে 15 লাইনের প্রবন্ধ

1- ধার্মিক লোকদের সংঘ হল ধার্মিক সংঘ

2- সমিতির প্রকৃতি সমিতির মতোই।

3- কিন্তু কেউ ভালো বা খারাপ জন্মায় না।

4- মেলামেশার মাধ্যমেই একজন ব্যক্তি অগ্রসর হয় বা অবনমিত হয়

5- সঙ্গ দুই প্রকার, ভালো সঙ্গ এবং খারাপ সঙ্গ।

৬- ভালো মানুষের সাথে মেলামেশা করলে মানুষ ভালো হয়।

7- একজন মানুষ খারাপ লোকে পরিণত হয় যখন সে খারাপ মানুষের সাথে মেলামেশা করে।

8- ভালো মেলামেশার প্রভাব শিশুদের মধ্যে দ্রুত অনুভূত হয়

9- খারাপ মেলামেশার মাধ্যমেই একটি শিশু দুষ্টু, চোর ও দুষ্ট হয়ে ওঠে।

10- শৈশব থেকেই শিশুকে খারাপ সঙ্গ ত্যাগ করে ভালোর সাথে মেলামেশা করতে হবে

essay on satsangti in Marathi

सत्संगती

जे मनाने चांगले विचार करतात, शब्दाने चांगले बोलतात आणि शरीराने चांगले वागतात त्यांना सद्गुणी म्हणतात. सद्‍गुरुंचा सहवास सद्‍गुरुंचा सहवास असे म्हणतात. जे पुण्यवान, संत आणि पवित्र आत्मा आहेत त्यांच्या सहवासाने, माणूस सद्गुणी, संत आणि सभ्य बनतो. वाईट लोकांशी संगती केल्याने माणूस दुष्ट बनतो आणि पतन आणि विनाशाकडे नेतो. असोसिएशनचा माणसावर मोठा प्रभाव असतो. माणूस ज्या प्रकारच्या लोकांसोबत राहतो तसाच बनतो. आणि असे म्हटले आहे

"संसर्गजन्य दोष आहेत

सत्पुरुषांच्या संगतीने मनुष्य उन्नती साधतो. त्याचे ज्ञान आणि कीर्ती वाढते. सहवासाचा मोठा प्रभाव आहे. मुलाचे शरीर कोमल आणि अपरिपक्व मेंदू आहे. तो ज्या प्रकारचा मुलगा वाचतो आणि खेळतो त्याच प्रकारचा तो जन्माला येतो. म्हणूनच ज्ञान, कीर्ती, सामर्थ्य आणि आनंद वाढवण्यासाठी सत्याचा सहवास करावा।

10 liens on satsangti in Marathi

सत्संगतीवर संस्कृतमध्ये १५ ओळींचा निबंध

1- सत्पुरुषांचा सहवास म्हणजे सत्संग

2- सहवासाचे स्वरूप असोसिएशनसारखेच असते.

3- पण कोणीही चांगला किंवा वाईट जन्माला येत नाही.

4- सहवासामुळेच एखादी व्यक्ती प्रगती करते किंवा घटते

5- संगतीचे दोन प्रकार असतात, चांगली संगती आणि वाईट संगती.

6- चांगल्या माणसांचा सहवास लाभला की माणूस चांगला बनतो.

7- वाईट लोकांशी संगती केल्याने माणूस वाईट बनतो.

८- चांगल्या सहवासाचा परिणाम मुलांवर लवकर जाणवतो

९- वाईट संगतीनेच मूल खोडकर, चोर आणि दुष्ट बनते.

10- लहानपणापासूनच मुलाने वाईट संगत सोडून चांगल्याची संगत करावी

essay on satsangti in Tamil

சத்சங்கதி

மனத்தால் நல்லதை எண்ணி, வார்த்தையால் நல்லதை பேசுபவர், உடலால் நல்லதைச் செய்பவர்கள் நல்லொழுக்கமுள்ளவர்கள் எனப்படுவர். நல்லொழுக்கமுள்ளவர்களுடன் நல்லொழுக்கமுள்ளவர்களுடன் தொடர்புகொள்வது 'நீதிமான்களின் சங்கம்' என்று அழைக்கப்படுகிறது. நல்லொழுக்கமுள்ளவர், துறவிகள் மற்றும் புனித ஆவிகள் உள்ளவர்களுடன் தொடர்பு கொள்வதன் மூலம், ஒரு மனிதன் நல்லொழுக்கமுள்ளவனாகவும், புனிதமானவனாகவும், பணிவானவனாகவும் மாறுகிறான். தீயவர்களுடன் பழகுவது ஒருவனைக் கெட்டவனாக்கி, வீழ்ச்சிக்கும் அழிவுக்கும் வழிவகுக்கும். சங்கம் ஒரு நபரின் மீது பெரும் தாக்கத்தை ஏற்படுத்துகிறது. ஒரு மனிதன் தான் வாழும் மக்களாக மாறுகிறான். என்றும் கூறப்பட்டுள்ளது

"தொற்று குறைபாடுகள் உள்ளன

நல்லொழுக்கமுள்ளவர்களுடன் பழகுவதன் மூலம், ஒரு மனிதன் முன்னேற்றம் அடைகிறான். அவருடைய அறிவும் புகழும் பெருகும். சங்கத்தின் வலுவான செல்வாக்கு உள்ளது. குழந்தைக்கு மென்மையான உடல் மற்றும் முதிர்ச்சியடையாத மூளை உள்ளது. அவர் படிக்கும் மற்றும் விளையாடும் குழந்தையாகப் பிறந்தார். அதனால்தான் அறிவையும், புகழையும், வலிமையையும், மகிழ்ச்சியையும் பெருக்க உண்மையுடன் பழக வேண்டும்.

10 liens on satsangti in Tamil  

சத்சங்கதியில் சமஸ்கிருதத்தில் 10 வரிகள் கொண்ட கட்டுரை

1- நீதிமான்களின் சங்கம் நீதிமான்களின் சங்கம்

2- சங்கத்தின் இயல்பு அதன் இயல்பு.

3- ஆனால் யாரும் நல்லவர்களாகவோ கெட்டவர்களாகவோ பிறப்பதில்லை.

4- ஒரு நபர் முன்னேறுவது அல்லது குறைப்பது சங்கத்தின் மூலம் தான்

5- நல்ல சகவாசம், கெட்ட சகவாசம் என இரு வகை உண்டு.

6- நல்லவர்களுடன் பழகும்போது ஒருவன் நல்லவனாகிறான்.

7- ஒருவன் கெட்டவர்களுடன் பழகும்போது கெட்டவனாக மாறுகிறான்.

8- நல்ல சகவாசத்தின் விளைவு குழந்தைகளிடம் விரைவாக உணரப்படுகிறது

9- கெட்ட சகவாசத்தினால்தான் ஒரு குழந்தை குறும்புக்காரனாகவும், திருடனாகவும், தீயவனாகவும் மாறுகிறது.

10- குழந்தை பருவத்திலிருந்தே, குழந்தை கெட்ட சகவாசத்தை விட்டுவிட்டு நல்லவர்களுடன் பழக வேண்டும்

👉 व्यायाम और स्वास्थ पर निबंध

👉 वन महोत्सव पर निबंध

👉 जनसंख्या वृद्धि पर निबंध

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सत्संगति पर संस्कृत निबंध || Essay on Satsangati in Sanskrit

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सत्संगति पर संस्कृत निबंध || Essay on Satsangati in Sanskrit 

Essay on satsangati in sanskrit.

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट   www.Bandana classes.com   पर । आज की पोस्ट में हम आपको " सत्संगति पर संस्कृत निबंध || Essay on Satsangati in Sanskrit " के बारे में बताएंगे तो इस पोस्ट को आप लोग पूरा पढ़िए।

सत्संङ्गतिः

सज्जनानां संङ्गतिः एव सत्संङ्गतिः मनुष्य जीवने यत् किचिदपि शिक्षते तस्मिन् संङ्गतः महान् प्रभावः भवति । मनुष्य यादृशे स तिष्ठति प्रायः तादृशः एव भवति । सदाचारपरायणः विद्वद्भिः सह वसन् जन श्रेष्ठः गुणायुक्तः भवति पापैः चौरैश्च सह वसन् जघन्यः एव भवति ।

न केवलं मनुष्येषु अपितु जडवस्तुषु अपि सङ्गतेः स्पष्ट प्रभाव दृश्यते । चन्दनवृक्षाणां मध्ये स्थिताः अन्येऽपि वृक्षाः चन्दनानि एव भवन्ति । धूपेन सह धूमः अपि सुगन्धितः भवति । अतः संङ्गतेः प्रभावः निर्विवादः एव।

अतः अस्माभिः सदा सत्सङ्गः कार्यः, कुसंङ्गः च सर्वथा परित्याज्यः ।

हिंदी अनुवाद

धर्मी की संगति ही सच्ची संगति है, और जो कुछ भी व्यक्ति जीवन में सीखता है उस पर संगति का बहुत प्रभाव पड़ता है।  एक आदमी लगभग वैसा ही होता है जैसा वह खड़ा होता है।  जो सदाचारी है और जो विद्वान पुरुषों के साथ रहता है वह श्रेष्ठ है और गुणों से संपन्न है लेकिन जो पापियों और चोरों के साथ रहता है वह निम्न है।

 न केवल मनुष्य पर बल्कि जड़ वस्तुओं पर भी संगति का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है।  चन्दन के वृक्षों में अन्य वृक्ष भी चन्दन के वृक्ष हैं।  धूप के साथ-साथ धुंआ भी सुगंधित होता है।  तो संघ का प्रभाव निर्विवाद है।

इसलिए हमें सदा धर्मी के साथ संगति करनी चाहिए और गलत के साथ संगति को पूरी तरह से त्याग देना चाहिए।

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सत्संगति का महत्व पर निबंध || satsangati ka mahatva per nibandh

सत्संगति का महत्व पर निबंध || satsangati ka mahatva per nibandh      

प्रस्तावना – " संसर्ग से ही मनुष्य में गुण-दोष आते हैं। " मनुष्य का जीवन अपने आस-पास के वातावरण से प्रभावित होता है। मूल रूप से मानव के विचारों और कार्यों को उसके संस्कार व वंश- परंपराएं ही दिशा दे सकती हैं। यदि उसे स्वच्छ वातावरण मिलता है तो वह कल्याण के मार्ग पर चलता है और यदि वह दूषित वातावरण में रहता है तो उसके कार्य भी उससे प्रभावित हो जाते हैं।

सत्संगति से ही मनुष्य में मानवीय गुण उत्पन्न होते हैं और उसका जीवन सार्थक बनता है। सत्संगति में ज्ञानहीन मनुष्य को भी विद्वान बनाने की सामर्थ होती है। सत्संगति वास्तव में मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारने का कार्य करती है और उसमें सद्गुणों का संचार करती है। इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाला प्रत्येक बालक अबोध होता है।

संगति का प्रभाव – मनुष्य जिस वातावरण एवं संगति में अपना अधिक समय व्यतीत करता है, उसका प्रभाव उस पर अनिवार्य रूप से पड़ता है। मनुष्य ही नहीं, वरन् पशुओं एवं वनस्पतियों पर भी इसका असर होता है। मांसाहारी पशु को यदि शाकाहारी प्राणी के साथ रखा जाए तो उसकी आदतों में स्वयं ही परिवर्तन हो जाएगा। यही नहीं, मनुष्य को भी यदि अधिक समय तक मानव से दूर पशु संगति में रखा जाए तो वह भी धीरे-धीरे मनुष्य स्वभाव छोड़कर पशु प्रवृत्ति को ही अपना लेगा।

सत्संगति का अर्थ – सत्संगति का अर्थ है– 'अच्छी संगति'। वास्तव में 'सत्संगति' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है– 'सत्' और 'संगति' अर्थात् ' अच्छी संगति'। अच्छी संगति का अर्थ है–ऐसे सत्पुरुषों के साथ निवास, जिनके विचार अच्छी दिशा की ओर ले जाएं।

सत्संगति का अर्थ है अच्छे आदमियों की संगति, गुणी जनों का साथ। अच्छे मनुष्य का अर्थ है वे व्यक्ति जिनका आचरण अच्छा है, जो सदा श्रेष्ठ गुणों को धारण करते और अपने संपर्क में आने वाले व्यक्तियों के प्रति अच्छा बर्ताव करते हैं। जो सत्य का पालन करते हैं, परोपकारी हैं, अच्छे चरित्र के सारे गुण जिनमें विद्यमान है, जो निष्कपट एवं दयावान हैं, जिनका व्यवहार सदा सभी के साथ अच्छा रहता है–ऐसे अच्छे व्यक्तियों के साथ रहना, उनकी बातें सुनना, उनकी पुस्तकों को पढ़ना, ऐसे सच्चरित्र व्यक्तियों की जीवनी पढ़ना और उनकी अच्छाइयों की चर्चा करना सत्संगति के ही अंतर्गत आते हैं।

सत्संगति से लाभ – सत्संगति के अनेक लाभ हैं। सत्संगति मनुष्य को सन्मार्ग की ओर अग्रसर करती है। सत्संगति व्यक्ति को उच्च सामाजिक स्तर प्रदान करती हैं, विकास के लिए सुमार्ग की ओर प्रेरित करती है, बड़ी से बड़ी कठिनाइयों का सफलतापूर्वक सामना करने की शक्ति प्रदान करती है और सबसे बढ़कर व्यक्ति को स्वाभिमान प्रदान करती है। सत्संगति के प्रभाव से पापी पुण्यात्मा और दुराचारी सदाचारी हो जाते हैं। ऋषियों की संगति के प्रभाव से ही, वाल्मीकि जैसे भयानक डाकू महान कवि बन गए तथा अंगुलिमाल ने महात्मा बुद्ध की संगति में आने से हत्या, लूटपाट के कार्य छोड़कर सदाचार के मार्ग को अपनाया। संतो के प्रभाव से आत्मा के मलिन भाव दूर हो जाते हैं तथा वह निर्मल बन जाती है।

सत्संगति एक प्राण वायु है, जिसके संसर्ग मात्र से मनुष्य सदाचरण का पालक बन जाता है; दयावान, विनम्र, परोपकारी एवं ज्ञानवान बन जाता है। इसलिए तुलसीदास ने लिखा है कि—

"सठ सुधरहिं सत्संगति पाई,

पारस परस कुधातु सुहाई।"

एक साधारण मनुष्य भी महापुरुषों, ज्ञानियों, विचारवानों एवं महात्माओं की संगत से बहुत ऊंचे स्तर को प्राप्त करता है। वानरों-भालुओं को कौन याद रखता है, लेकिन हनुमान, सुग्रीव, अंगद, जामवंत आदि श्रीराम की संगति पाने के कारण अविस्मरणीय बन गए।

सत्संगति ज्ञान प्राप्त की भी सबसे बड़ी साधिका है। इसके बिना तो ज्ञान की कल्पना तक नहीं की जा सकती–

'बिनु सत्संग विवेक न होई'।

जो विद्यार्थी अच्छे संस्कार वाले छात्रों की संगति में रहते हैं, उनका चरित्र श्रेष्ठ होता है एवं उनके सभी कार्य उत्तम होते हैं। उनसे समाज एवं राष्ट्र की प्रतिष्ठा बढ़ती है।

सत्संगति के परिणाम स्वरुप मनुष्य का मन सदा प्रसन्न रहता है। मन में आनंद और सदव्रतियों की लहरें उठती रहती हैं। जिस प्रकार किसी वाटिका में खिला हुआ सुगंधित पुष्प सारे वातावरण को महका देता है, उसके अस्तित्व से अनजान व्यक्ति भी उसके पास से निकलते हुए उसकी गंध से प्रसन्न हो उठता है, उसी प्रकार अच्छी संगति में रहकर मनुष्य सदा प्रफुल्लित रहता है। संभवत इसीलिए महात्मा कबीर दास ने लिखा है–

"कबिरा संगति साधु की, हरै और की व्याधि।

संगत बुरी असाधु की, आठों पहर उपाधि।।"

सत्संगति का महत्व विभिन्न देशों और भाषाओं के विचारकों ने अपने-अपने ढंग से बतलाया है। सत्संगति से पापी और दुष्ट स्वभाव का व्यक्ति भी धीरे-धीरे धार्मिक और सज्जन प्रवृत्ति का बन जाता है। लाखों उपदेशों और हजारों पुस्तकों का अध्ययन करने पर भी मनुष्य का दुष्ट स्वभाव इतनी सरलता से नहीं बदल सकता जितना किसी अच्छे मनुष्य की संगति से बदल सकता है।

कुसंगति से हानि – कुसंगति से लाभ की आशा करना व्यर्थ है। कुसंगति से पुरुष का विनाश निश्चित है। कुसंगति के प्रभाव के मनस्वी पुरुष भी अच्छे कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं। कुसंगति में बने रहने के कारण वे चाहकर भी अच्छा कार्य नहीं कर पाते। कुसंगति के कारण ही दानवीर कर्ण अपना उचित सम्मान खो बैठा। जो छात्र कुसंगति में पड़ जाते हैं वे अनेक व्यसन सीख जाते हैं, जिनका प्रभाव उनके जीवन पर बहुत बुरा पड़ता है। उनके लिए प्रगति के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। उनका मस्तिष्क अच्छे-बुरे का भेद करने में असमर्थ हो जाता है। उनमें अनुशासनहीनता आ जाती है। गलत दृष्टिकोण रखने के कारण ऐसे छात्र पतन के गर्त में गिर जाते हैं। वे देश के प्रति अपने उत्तरदायित्व भी भूल जाते हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ठीक ही लिखा है– " कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। किसी युवा पुरुष की संगति बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बंधि चक्की के समान होगी, जो उसे दिन-पर-दिन अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी, जो उसे निरंतर उन्नति की ओर उठाती जाएगी। "

कुसंगति सत्संगति का विलोम है। दुष्ट स्वभाव के मनुष्यों के साथ रहना कुसंगति हैं। कुसंगति छूत की एक भयंकर बीमारी के समान है। कुसंगति का विष धीरे-धीरे मनुष्य के संपूर्ण गुणों को मार डालता है। कुसंगति काजल से भरी कोठरी के समान है। इसके चक्कर में यदि कोई चतुर से चतुर व्यक्ति भी फंस जाता है तो उससे बचकर साफ निकल जाना उसके लिए भी संभव नहीं होता। इसीलिए किसी ने ठीक ही कहा है–

"काजल की कोठरी में कैसो है सयानो जाय,

एक लीक काजल की, लागि है पै लागि है।"

इस प्रकार की कुसंगति से बचना हमारा परम कर्तव्य है। बाल्यावस्था और किशोरावस्था में तो कुसंगति से बचने और बचाने का प्रयास विशेष रूप से किया जाना चाहिए क्योंकि इन अवस्थाओं में व्यक्ति पर संगति चाहे (अच्छी हो या बुरी) का प्रभाव तुरंत और गहरा पड़ता है। इस अवस्था में अच्छे और बुरे का बोध भी प्रायः नहीं होता। इसलिए इस समय परिवार के बुजुर्गों और गुरुओं को विशेष रुप से ध्यान रखकर बच्चों को कुसंगति से बचाने का प्रयास करना चाहिए।

उपसंहार – सत्संगति का अद्वितीय महत्व है जो सचमुच हमारे जीवन को दिशा प्रदान करती है। 

हिंदी में एक कहावत है कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। इस कहावत में मनुष्य की संगति के प्रभाव का उल्लेख किया गया है। विश्व की सभी जातियों में ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाते हैं जिनसे सिद्ध होता है कि संत महात्माओं और सज्जनों की संगति से एक नहीं अनेक दुष्ट जन अपनी दुष्टता छोड़कर सज्जन बन गए। पवित्र आचरण वाले व्यक्ति विश्व में सराहना के योग्य हैं। उन संगति से ही विश्व में अच्छाइयां सुरक्षित एवं संचालित रहती हैं।

सत्संगति का पारस है, जो जीवन रूपी लोहे को कंचन बना देती है। मानव-जीवन की सर्वांगीण उन्नति के लिए सत्संगति आवश्यक है। इसके माध्यम से हम अपने लाभ के साथ-साथ अपने देश के लिए भी एक उत्तरदायी तथा निष्ठावान नागरिक बन सकेंगे।

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संस्कृत में वेद व्यास पर निबंध। Essay on Vedvyas in Sanskrit

संस्कृत में वेद व्यास पर निबंध.

हिन्दुपरम्परायां कश्रन प्रमुखः । महाभारतस्य रचनाकारः भगवान् व्यासः । वेदानां विभागः अनेन कृतः इत्यतः वेदव्यासः इति एतस्य नाम । द्वीपे अस्य जन्म अभवत् इत्यतः ‘कृष्णद्वैपायनः’ इत्यपि एतस्य नाग। एतस्य पिता पराशरमुनिः माता च सत्यवती । व्यासस्य शैली अपि वाल्मीकः इव सरला एवं महाभारतम् अपि आधिक्येन अनुष्टुप्छन्दसा एव उपनिबद्धम् अस्ति। भगवान् वेदव्यासः महर्षेः पराशरस्य पुत्रः। एषः कैवर्तराजस्य पालितपुत्र्याः सत्यवत्याः गर्भ जन्म प्राप्तवान् । एषः कश्रन अलौकिक शक्तिसम्पन्नः महापुरूषः अपि च महानाकारक पुरूषः आसीत्। एषः  अपि च महानाकारक पूरूषः आसीत्। एषः जनानां स्मरणशक्तेः क्षीणां दृष्ट्वा वेदानाम् ऋग्वेदः, यजुर्वेदः, सामवेदः, अथर्वणवेदः च इति विभजनम् अकरोत् । प्रत्येक संहिताम् अपि प्रत्येक शिष्य बोधितवान् ।  एकै कस्याः संहितायाः अपि अन्यायाः शाखाः उपशाखाः च अभवन्। एवम् एतस्य यत्नेन  वैदिकसाहित्यस्य बहुविस्तारः आसादितः । विस्तारं व्यासः इति वदन्ति। वेदस्य विस्तार  एतेन सम्पादितः इति कारणेन एषः वेदव्यासः इति नाम्ना प्रसिद्धः जातः । एतस्य जन्म कमिश्रित द्वीपे अभवत्। श्यामलवर्णस्य एवं जनाः कृष्णद्वैपायन इत्यति आसीत्।  अष्टादशपुराणाति, महाभारतस्य रचनाम् एषः  एव अकरोत् । संक्षेपण उपनिषदः तत्वान्। बोधयितुं ब्रह्यसूत्राणां निर्माणम् अकरोत्। तेषां । विषये अन्यान्याः आचार्यः भाष्याणि रचयित्वा  स्वेषां विभिन्नान् अभिप्रायान् प्रकटितवन्तः । ‘व्यासस्मृतिः’ एतेन रचितः कश्रच्न स्मृतिग्रन्थः एवं भारतीयसाहित्यस्य, हिन्दूसंस्कृतेः, विषये  व्यासस्य महत् योगदानम् अस्ति। श्रुति-स्मृति  -पुराणोत्तस्य सनातनधर्मस्य कश्रच्न  प्रधानः व्याख्यानकारः व्यासः इति उच्यते । हिन्दवः भारतीयसंस्कृतिः च यावत् पर्यन्तं तिष्ठति तावत् पर्यन्तम् एतस्य नाग अगर एवं जगति एव एषः महान् श्रेष्ठः पथप्रदर्शकः,  शिक्षकः च इति उच्चते।

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सत्संगति पर निबंध

Satsangati Essay in Hindi : हम यहां पर सत्संगति पर निबंध शेयर कर रहे है। इस निबंध में सत्संगति के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

Satsangati Essay in Hindi

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सत्संगति पर निबंध | Satsangati Essay in Hindi

सत्संगति पर निबंध (200 शब्द).

मानव जीवन में संगति का बहुत महत्त्व है क्योंकि मानव एक सामाजिक प्राणी है। ‘सत्’ और ‘संगति’ इन दो शब्द को मिलाकर ‘सत्संगति’ शब्द बनता है। ‘सत्संगति’ का अर्थ होता है अच्छी संगती के साथ रहना। अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए हमें अच्छी संगती का साथ बेहद जरुरी है, फिर वो चाहे कोई इंसान हो या कोई किताब। सुसंगति से हमारा आत्म विश्वास बढ़ता है साथ साथ हमारी वाणी और मन भी निर्मल बनता है।

अगर कोई भी सुचरित्र वाले व्यक्ति कुसंगति के चक्कर में पड़ जाये तो उनकी पूरी ज़िंदगी तहसनहस हो सकती है। महाभारत में कर्ण को कौन नहीं जानता?  कर्ण एक दानवीर और सर्वश्रेष्ठ योद्धा था। लेकिन उसने  मलिन विचारवाले दुर्योधन से दोस्ती कर ली। अंत में वो अधर्म के रास्ते पर चला गया और उनका सर्वनाश हो गया।

सत्संगति की वजह से आत्मा पवित्र हो जाती है। जीवन में स्वाभिमान, सदभावना और सकारात्मक सोच जैसे गुणों का उदय होता है। सत्संगति का साथ हमें तूफ़ानों से लड़कर भी हमारे लक्ष्य तक पहुँचता है। हम जैसे लोगों के साथ समय बिताते है धीरे धीरे वही लगों के गुण हमारे अन्दर आ जाते है। इसलिए हमें सदा यही कोशिश करनी चाहिए की हम सत्संगी के साथ अपना समय व्यतीत करे क्योंकि अगर हवा का झोंका बगीचे से आता है, तो वो अपने साथ हमेशा खुशबू ही लाता है।

सत्संगति पर निबंध (600 शब्द)

सुचरित्र के निर्माण लिए अच्छी ‘सत्संगति’ और ‘सुसंस्कार’ होना जरुरी है। सुसंस्कार हमारे पूर्वजन्म की देन है लेकिन सत्संगति वर्तमान जीवन की दुर्लभ विभूति है। ‘सत्संगति’ शब्द दो शब्दों का मिलन है, ‘सत्’ और ‘संगति’। जिसका मतलब होता है अच्छी संगती, सज्जनों की संगति। सत्संगति का हमारे व्यक्तित्व पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

सत्संगति की वजह से ही व्यक्ति में धर्मनिष्ठा, कर्त्तव्यनिष्ठा और सदभावना जैसे गुणों का उदय होता है। जीवन को परम सत्य के मार्ग पर ले जाने के लिए सत्संगति का साथ हमारी जिंदगी में होना बेहद जरुरी है।

सत्संगति का प्रभाव

मानवी एक सामाजिक प्राणी  होने के कारण कई आपसी रिश्तों से जुड़ा हुआ है। अगर एक बुद्धिमान और सर्तक व्यक्ति भी कुसंगति के संपर्क में आता है, तो उस पर उसका बुरा प्रभाव जरूर पड़ता है। हमारे जीवन को सार्थक बनाने के लिए सत्संगति का बड़ा योगदान रहता है। इसका प्रभाव एक सामान्य इंसान को भी महान बना देता है।

सत्संगति से हमें आदर और सत्कार मिलते है और हमारी कीर्ति विस्थापित होती है। जैसे पारस के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है, वैसे ही सत्संगति के प्रभाव से  व्यक्ति सत्मार्ग की ओर चलने लगता है। भारत में प्राचीन काल में बच्चों को शिक्षा लिये गुरुकुल भेजा जाता था क्योंकि वे बचपन से ही सत्संगति के प्रभाव में रहे और भविष्य में वे सदा सही मार्ग का चुनाव करे।

सत्संगति के उदाहरण

मनुष्य के दिमाग पर सत्संगति का प्रभाव जरूर पड़ता है। सत्संगति का असर ना सिर्फ मनुष्य पर बल्कि प्राणी और वनस्पति पर भी होता है।अगर आम की टोकरी में एक आम बिगड़ा हुआ होता है, तो वो सारे आम को बिगाड़ देता है। सत्संगति की वजह से ही हनुमान और सुग्रीव जैसे सामान्य वानर भी आज अविस्मरणीय बन गए है। एक कुसंगति हमारे सारे जीवन को नष्ट कर देती है और एक सत्संगति हमारे जीवन को उन्नति की राह दिखाती है।

इसके कई उदाहरण आपको पुराणिक कथा वार्ता में और हमारी आसपास भी नजर आएंगे। महाकाव्य रामायण के सर्जक वाल्मीकि पहले एक डाकू थे। नारद जी के सत्संगति की वजह से आज उनका नाम भारत के अग्रीम ऋषि मुनिओं में शामिल है। गौतम बुद्ध की सत्संगति ने खूंखार डाकू अंगुलिमाल का जीवन ही बदल गया और उन्होंने बौद्ध धर्म की राह पकड़ ली। 

सत्संगति का लाभ

वैसे तो सत्संगति के अनगिनत लाभ है। सत्संगति से ही हमारे विचारों को सही दिशा मिलती है। सत्संगति हमारे जीवन की नाव को कभी तूफान में डूबने नहीं देती। सत्संगति में रहकर हम चरित्रवान बन सकेंगे और ज़िंदगी में कभी गलत रास्ता नही चुनेंगे। कुसंगति एक विष का काम करती है जबकि सत्संगति एक औषध का काम करती है।  सत्संगति के कारण ही व्यक्ति में एक आत्मविश्वास पैदा होता है।

इस से जीवन की बड़ी बड़ी कठिनाइयों का सामना  हम दृढ़तापूर्वक कर सकते है। सत्संगति व्यक्ति को स्वाभिमान प्रदान करती है। व्यक्ति के वाणी और आचरण में सत्य का प्रभाव दिखता है। कुसंगति हमें अँधेरे की खाई की ओर ले जाएगी और सत्संगति का साथ हमें प्रकाश के शिखर पर पहुंचाएगी। सत्संगति  के कारन हम सकारात्मक सोच सकते है और यही सोच धीरे धीरे अच्छे कार्य में परावर्तित होती है। जो हमें हमारे लक्ष्य तक पहुंचाती है।

सत्संगति हमारे संपूर्ण जीवन की आधार शिला है। कुसंगति हमारे जीवन को तहसनहस कर सकती है। सत्संगति  की छाया में मन शांत, स्वच्छ और निर्मल बनता है। हमारे जीवन की उन्नति और एक बेहतर व्यक्त्वि के लिए हमें सदैव बुद्धिमान एवं सज्जन व्यक्तियों की छत्रछाया में रहना चाहिए।

आखिर यह हम पर है की हमें किस प्रकार संगती का चुनाव करना चाहिए। सोचिये अगर रानी कैकई अपनी दासी मंथरा की कुसंगति  आकर भगवान राम को वनवास दिला सकती है, तो आखिर तो हम एक सामान्य इंसान है।

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Rahul Singh Tanwar

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Comments (7).

Awesome nice vocabulary..

It’s very nice

It is very good .

It is very good

Thanks for its easy essay and it’s very helpful in my exam

awesome and very helpful for my exam

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Dil Se Deshi

सत्संगति पर निबंध | Satsangati Essay in Hindi

Satsangati Essay in Hindi

सत्संगति पर निबंध (अर्थ, लाभ, प्रभाव और उपसंहार) | Satsangati Essay (Meaning, Impact, Benefits & Conclusion) in Hindi | Satsangati Par Nibandh

मानव जीवन अपने आसपास के वातावरण से प्रभावित होता है. मूल तो मानव के विचारों और कार्यों के उसके संस्कार, वंश- परंपराएं ही दिशा दे सकती हैं. यदि उससे अच्छा वातावरण मिला है, तो वह कल्याण के मार्ग पर चलता है, यदि वह दूषित वातावरण में रहता है, तो उसके कार्य भी उससे प्रभावित हो जाते हैं.

सत्संगति का अर्थ

सत्संगति का अर्थ है- “अच्छी संगति”. वास्तव में सत्संगति शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- ‘सत्’ और ‘संगति’ अर्थात अच्छी संगति. अच्छी संगति का अर्थ है- ऐसे सत्पुरुषों के साथ निवास, जिनके विचार अच्छी दिशा की ओर ले जाए.

कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन. जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन.

उत्तम प्रकृति के मनुष्य के साथ उठना बैठना ही सत्संगति है. मानव को समाज में जीवित रहने तथा महान बनने के लिए सत्संगति परमावश्यक है.

सत्संगति का प्रभाव

मनुष्य पर उसके वातावरण का प्रभाव अवश्य पड़ता है. मनुष्य के साथ साथ पशु तथा वनस्पतियों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है. मनुष्य को जिस संगति में रखा जाएगा उसका प्रभाव मानव पर अवश्य पड़ता है. स्वाति की एक बूंद विसंगति पाकर उन्हीं के अनुरूप परिवर्तित हो जाती है. सीप के संपर्क में आने पर मोती. भाव यह है कि सत्संगति अपना प्रभाव अवश्य दिखाती है. जिस प्रकार पारस के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है, उसी प्रकार सत्संगति के प्रभाव से व्यक्ति कहीं से कहीं पहुंच जाता है महानता के उच्चतम पर आसीन हो जाता है किंतु यदि कोई काजल की कोठरी में जाता है तो उस पर काजल का कोई ना कोई चिन्ह अंकित होना स्वाभाविक है. सत्संगति से व्यक्ति महान बनता है तथाकुसंगति उसे क्षुद्र बनाती है. कुसंगति के कारण मानव को पग पग पर मानहानि उठानी पड़ती है. लोहे के साथ पवित्र अग्नि भी लौहार के हथौड़े द्वारा पीटी जाती है. प्रख्यात आलोचक पंडित रामचंद्र शुक्ल के अनुसार कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है.

सत्संगति के लाभ

सत्संगति के अनेक लाभ है. सत्संगति मनुष्य को सन्मार्ग की ओर ले जाती है. इससे दुष्ट प्रवृति के व्यक्ति भी श्रेष्ठ बन जाते हैं. पापी पुण्यात्मा और दुराचारी सदाचारी हो जाते हैं. संतों के प्रभाव से आत्मा के मलिन भाव दूर हो जाते हैं तथा वह निर्मल बन जाती है. सज्जनों के पास शुद्ध मन तथा ज्ञान का विशाल भंडार होता है. उनके अनुभवों से मूर्ख व्यक्ति भी सुधर जाते हैं. सदपुरुषों की संगति से मनुष्य के दुर्गुण दूर होकर उसमें सद्गुणों का विकास होता है. उनके में भी आशा और धैर्य का संचार होता है. सज्जनों के कारण उनका भी गाया जाता है. कबीर का कथन है-

कबीरा संगत साधु की हरै और की व्याधि. संगत बुरी असाधु की आठो पहर उपाधि.

सत्संगति के प्रभाव से मनुष्य में ऐसे चरित्र का विकास होता है कि वह अपना और संसार का कल्याण कर सकता है सत्संगति कुछ ही समय में व्यक्ति की जीवन दिशा को बदल देती है. गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है-

एक घड़ी आधी घड़ी, आधी की पुनि आध, तुलसी संगत साधु की, काटे कोटि अपराध

सत्संगति आत्म संस्कार का महत्वपूर्ण साधन है. बुद्धि की जड़ता को दूर करके वाणी में सत्यता लाती है, सम्मान तथा उन्नति का विस्तार करती है तथा कीर्ति का दिशाओं में विस्तार करती है. कांच भी सोने के आभूषण में जोड़कर मणि की शोभा प्राप्त कर लेता है. महान पुरुषों का साथ सदैव लाभकारी होता है. कमल के पत्ते पर पड़ी पानी की बूंद भी मोती जैसी दिखाई देती है. संत कवि तुलसीदास जी ने ठीक ही कहा है- “ बिनु सत्संग विवेक ना होई”. सत्संगति व्यक्ति को अज्ञान से ज्ञान की ओर, असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, जड़ता से चेतन ने की ओर, घृणा से प्रेम की ओर, ईर्ष्या से सौहार्द की ओर तथा अविद्या से विद्या की ओर ले जाती है. जो विद्यार्थी अच्छे संस्कार वाले छात्रों की संगति में रहते हैं, उनका चरित्र श्रेष्ठ होता है एवं उनके सभी कार्य उत्तम होते हैं. उनसे समाज एवं राष्ट्र की प्रतिष्ठा बढ़ती है.

कुसंगति से हानियां

कुसंगति से लाभ की आशा करना व्यर्थ है. कुसंगति से मानव का विनाश निश्चित है. कुसंगति के प्रभाव से मनस्वी पुरुष भी अच्छे कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं. कुसंगति के कारण चाह कर भी अच्छा कार्य नहीं कर पाते. कुसंगति में पड़कर अनेक व्यसन सीख जाते हैं. इससे उनके जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है. उनकी प्रगति के मार्ग रुक जाते हैं. मस्तिष्क विवेकहीन हो जाता है. वे अनुशासन हीन हो जाते हैं. गलत दृष्टिकोण के कारण ऐसे विद्यार्थी पतन के गर्त में गिर जाते हैं. देश के प्रति अपने उत्तरदायित्व तथा कर्तव्य को भूल जाते हैं. मंथरा की संगति के कारण कैकई ने राम को वन में भेजने का कलंक अपने माथे पर लिया. महाबली भीष्म, द्रोण, दानवीर कर्ण जैसे महान पुरुष दुर्योधन, दुशासन आदि की संगति के कारण पथभ्रष्ट हो गए थे. गंगा सागर में मिलती है तो वह अपनी पवित्रता खो बैठते हैं.

महाकवि तुलसीदास के अनुसार- “शठ सुधरहि सत्संगति पाए”. सज्जनों के साथ रहकर दुराचारी भी अपने दुश्मनों को त्याग देता है. विद्यार्थी जीवन में सत्संगति का अत्यंत महत्व है. विद्यार्थी जीवन ही संपूर्ण जीवन की आधार शिला है. इस समय विद्यार्थी पर जो अच्छे बुरे संस्कार पड़ जाते हैं, वे जीवन भर छूटते नहीं हैं. अतः युवकों को अपनी सत्संगति की ओर विशेष सावधान रहना चाहिए. विद्यार्थियों की निर्दोष तथा निर्मल बुद्धि पर कुसंगति का वज्रपात ना हो पाए, यह देखना अभिभावकों का भी कर्तव्य है. वास्तव में सत्संगति वह पारस है, जो जीवन रूपी लोहे को कंचन बना देती है. मानव जीवन की सर्वांगीण उन्नति के लिए सत्संग अति आवश्यक है. इसके माध्यम से हम अपने लाभ के साथ साथ अपने देश के लिए उत्तरदायी तथा निष्ठावान नागरिक बन सकेगे.

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2 thoughts on “सत्संगति पर निबंध | Satsangati Essay in Hindi”

Its nice… It helps me to write the essay on my notebook… Mam told me that my essay is very good. So, please upload more essays also….. Bye… Bye…. Ok…….

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सत्संगति का प्रभाव पर निबंध Satsangati ka Prabhav

Satsangati ka prabhav par nibandh.

दोस्तों कैसे हैं आप सभी, आज हम आपके लिए लाए हैं सत्संगति का प्रभाव पर हमारे द्वारा लिखित इस निबंध को तो चलिए पड़ते हैं आज के इस निबंध को। हम सब के जीवन में संगति का बहुत ही ज्यादा प्रभाव पड़ता है हम जीवन में जैसी भी संगति करते हैं हम जीवन में वैसे ही बन जाते हैं अगर हम सत्संगति यानी अच्छी संगति करते हैं तो उसका एक अलग प्रभाव होता है और अगर बुरी संगति करते हैं तो उसका एक अलग प्रभाव होता है. सत्संगति का प्रभाव एैसा प्रभाव होता है जिससे हमारा पूरा जीवन परिवर्तित हो जाता है .

अगर आप अच्छे लोगों की सत्संगति करते हैं तो जीवन में आप भी अच्छे इंसान बन जाते हो और जीवन में लगातार आगे बढ़ते जाते हो और विकास के पथ पर चलते जाते हो वास्तव में हम जीवन में अगर सत्संगति करते हैं तो हमारा जीवन धन्य हो जाता है हमारे जीवन में बदलाव देखने को मिलता है यह सब सत्संगति की वजह से होता है।

satsangati ka prabhav par nibandh

आप जैसे लोगों की संगति करते हो आप वैसे ही बनते हो अगर आप ऐसे लोगों की संगति करते हो जो सत्य के मार्ग पर चलते हैं, ईमानदार होते हैं, जीवन में आगे बढ़ने का उनका सपना होता है, जो अपने परिवार वालों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, अपने दोस्तों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, जो दूसरों की मदद करते हैं, जो अच्छे कर्म करते हैं तो वास्तव में आप भी ऐसे ही बनते जाते हो।

हर एक मां बाप को चाहिए कि वह अपने बच्चे की संगति पर विशेष ध्यान दें अगर एक बच्चा अच्छे बच्चों की सत्संगति करता है तो वह भी वैसा ही बनता जाता है उसका पूरा जीवन परिवर्तित होता जाता है क्योंकि ज्यादातर बच्चे तो यह नहीं समझते कि हमें किस तरह की संगति करनी चाहिए उन्हें तो जैसे लोग मिलते हैं वैसे ही वह संगति करते हैं लेकिन मां-बाप अगर अपने बच्चों को अच्छे बच्चों की संगति करने के प्रति जागरूक करें और उन्हें समझाएं तो वास्तव में उस बच्चे का भी भविष्य सत्संगति करने की वजह से जरूर परिवर्तित होता जाता है।

हम सभी जानते हैं कि हमारे जीवन में हमें खुश रहने के लिए कुछ लोगों का सहयोग जरूर होना चाहिए, हमारे मित्र भी होते हैं और होनी भी चाहिए क्योंकि जीवन सिर्फ अकेले नहीं गुजारा जा सकता लेकिन अगर सत्संगति होती है यानी अच्छे मित्र हमारे होते हैं तो वास्तव में हमारा जीवन, हमारा भविष्य उज्जवल होता है इसमें कोई संदेह नहीं है कि सत्संगति एक इंसान के चरित्र का विकास करता है और उसकी सोच समझ को विकसित करता है।

अगर एक बच्चा अच्छी तरह से पढ़ने वाले बच्चों की संगति में रहता है तो बहुत अधिक संभावना है कि वह भी वैसा ही बनेगा। अगर एक बच्चा धार्मिक स्थल, विचारों के मार्ग पर चलने वाले अच्छे बच्चों के साथ रहता है तो उनकी संगति करने से वह उन जैसा ही बनता है क्योंकि हम हमारे चारों ओर जैसा देखते हैं हमारी सोच हमारे, विचार वैसे ही बनते जाते हैं। वास्तव में जीवन में सत्संगति का बहुत ही ज्यादा महत्व है हमें अपनी और अपने परिवार वालों की सत्संगति का विशेष ध्यान रखना चाहिए अपने बच्चों की सत्संगति का विशेष ध्यान रखना चाहिए तो वास्तव में हम हमारे भविष्य को, हमारे देश के भविष्य को उज्जवल बना सकते हैं।

  • सत्संगति पर निबंध Satsangati essay in hindi
  • कुसंगति पर निबंध Kusangati essay in hindi

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सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पर निबंध | सठ सुधरहिं सतसंगति पाई Satsangati Ka Mahatva Nibandh

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पर निबंध | सठ सुधरहिं सतसंगति पाई Satsangati Ka Mahatva Nibandh: आज का हिंदी Essay एक कहावत पर आधारित है सठ सुधरहिं सतसंगति पाई अच्छी संगत पर निबंध पेश कर रहे हैं.

रहिमन नीचन संग बसि, लगत कलंक न काहि, दूध कलारिन हाथ लखि, मद समुझहि सब ताहि. अर्थात यदि मनुष्य कुसंगति में पड़ जाए तो उसका सर्वनाश सुनिश्चित है.

दूध जैसा पवित्र पदार्थ भी कलारिन के हाथ में मदिरा ही समझी जाती है. अतः बुरे मनुष्यों को संगति कभी नहीं करनी चाहिए, एक लैटिन लोकोक्ति है कि यदि तुम सभी लंगड़ों के साथ रहोगे तो तुम स्वयं भी लंगडाना सीख जाओगे.

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पर निबंध

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पर निबंध | सठ सुधरहिं सतसंगति पाई Satsangati Ka Mahatva Nibandh

वास्तव में संसगर्जा दोष गुणा भवन्ति अर्थात संसर्ग से ही दोष गुण आते है. संगति का प्रभाव इतना अधिक होता है कि सुसंगति में अधम व्यक्ति भी सुधर जाता है.

सत्संगति व्यक्ति को उच्च सामाजिक स्तर प्रदान करती है, विकास के लिए सुमार्ग की ओर प्रेरित करती है. बड़ी से बड़ी कठिनाइयों का सफलतापूर्वक सामना करने की शक्ति प्रदान करती है और सबसे बढ़कर व्यक्ति को स्वाभिमान प्रदान करती है.

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पर कहानी

सत्संगति के प्रभाव से बुरे लोगों के अच्छे बनने और कुसंगति के प्रभाव से अच्छे लोगों के बुरे बन जाने के अनेक उदाहरण हमारे बीच मौजूद है.

पूर्व में डाकू रहे महर्षि वाल्मीकि ने सत्संगति में आने के बाद में ही महर्षि की उपाधि प्राप्त की एवं प्रसिद्ध अमर ग्रंथ रामायण की रचना की.

इसी प्रकार अंगुलीमाल ने महात्मा बुद्ध के सम्पर्क में आने के बाद हत्या, लूटपाट के कार्य को छोड़कर सदाचरण के मार्ग को अपना लिया. जबकि ठीक इसके विपरीत कुसंगति के कारण ही दानवीर कर्ण अपना उचित सम्मान खो बैठा है.

सत्संगति एक प्राणवायु है, जिसके संसर्ग मात्र से मनुष्य सदाचरण का पालक बन जाता है, दयावान, विनम्र, परोपकारी एवं ज्ञानवान बन जाता है, इसलिए तुलसीदास जी ने लिखा है कि.

सठ सुधरहि सत्संगति पाई पारस परस कुधातु सुहाई

सत्संगति से मनुष्य में धैर्य, साहस और सांत्वना का संचार होता है. मनुष्य इतना विवेकी बन जाता है कि वह बड़ी से बड़ी विपत्ति में भी संघर्ष करने का साहस नहीं छोड़ता.

सुसंगति मनुष्य को आशा एवं विश्वास का ऐसा मजबूत संबल प्रदान करती है, जिसके सहारे वह घनघौर अंधकार में भी प्रकाश ढूढ़ लेता है.

उत्तम मनुष्यों की संगति से जीवन में स्म्रद्धि एवं सम्मान के सारे दरवाजे खुल जाते है. कुधातु लोहा जिस प्रकार पारस की संगति से मूल्यवान सोना बन जाता है,

उसी प्रकार एक साधारण मनुष्य भी महापुरुषों, ज्ञानियों विचारवानो एवं महात्माओं की संगत से बहुत ऊँचे स्तर को प्राप्त करता है.

वानरों भालुओं को कौन याद रखता हैं, लेकिन हनुमान, सुग्रीव, अंगद, जामवंत आदि श्रीराम की संगति पाने की कारण विस्मरणीय बन गये.

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात- satsangati ka mahatva essay in hindi

सत्संगति ज्ञान प्राप्ति की भी सबसे बड़ी साधिका है, इसके बिना तो ज्ञान की कल्पना तक नहीं की जा सकती है. बिनु सत्संग  विवेक न होई.

सत्संगति से ही मनुष्य की वाणी अत्यधिक प्रभावित होती है. विधाता की ओर से मनुष्य को प्रदान की गई सबसे अनमोल निधि है उसकी वाणी.

वाणी के कारण ही पंडित और मूर्ख, साधु और दुष्ट, सज्जन और दुर्जन की पहचान होती है. वाणी द्वारा हम न केवल अपने मन की अतल गहराइयों के विभिन्न भावों को व्यक्त करते हैं

बल्कि अपने परिवेश को संबोधित करके अपनी इच्छाओं को क्रियान्वित भी करते है, इसलिए कबीर जैसे संतों ने परामर्श दिया कि-

ऐसी वाणी बोलिए, मन की आपा खोय औरन को शीतल करें आपहि शीतल होय.

वाणी के अंदर यह शीतलता सिर्फ वैयक्तिक स्तर की विशेषता नहीं होती बल्कि सत्संगति का प्रभाव होता हैं, व्यक्ति सत्संगति से ही अपनी वाणी में मिठास एवं गंभीरता तथा अर्थपूर्णता ला पाता हैं.

वाणी के अंदर मिठास एवं शीतलता मन को अहंकार को भूलने से ही आती है और मन का अहंकार सुसंगति के कारण ही नष्ट होता हैं.

Essay on Satsangati in Hindi : सत्संगति पर निबंध

संगति का प्रभाव व्यक्ति के मस्तिष्क एवं व्यवहार पर अधिक इसलिए पड़ता है क्योंकि व्यक्ति की यह स्वाभाविक प्रवृति है कि वह समाजीकरण की प्रक्रिया में सीखे गये व्यवहारों को ही संपादित करता है.

अपने परिवेश एवं वातावरण से व्यक्ति की भावनाएं, चिन्तन, भाषा आदि इतनी अधिक प्रभावित होती है कि उसे सामाजिक प्राणी कहा जाता हैं.

समाजीकृत होकर ही वह विवेकशील एवं चिन्तनशील बन पाता है. इस तरह यदि समाजीकरण का व्यक्ति के लिए इतना अधिक महत्व है तो स्वाभाविक है कि उसके लिए वह परिवेश जिससे वह लोगों के साथ अन्तः क्रिया करता है,

भी महत्वपूर्ण होगा अर्थात वह किन लोगों के बीच विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ को क्रियान्वित करता है, इसका व्यक्ति पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता हैं.

सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य जीवन के पथ पर एकाकी चलने में कठिनाई का अनुभव करता है, उसे ऐसे व्यक्ति की खोज रहती है,

जो उसका हर्ष एवं विषाद में साथ देने वाला हो, जिसके समक्ष वह अपने ह्रदय की कोई भी लिपि गुप्त न रहने दे, जिस पर वह पूरी तरह विश्वास कर सके.

मित्रों की ऐसी टोली किसी भी व्यक्ति के लिए एक बहुत बड़ा वरदान है. सच्चे मित्र व्यक्ति को बुरे मार्गों पर जाने से रोकते हैं, सच्चे मित्रों की पहचान करना अत्यंत कठिन है.

इसलिए बहुत सोच समझकर, जांच परखकर ही किसी को मित्र बनाना चाहिए. अच्छे व्यक्तियों की संगति किसी व्यक्ति को न सिर्फ कुमार्ग पर जाने से रोकती है बल्कि उसे सुमार्ग पर जाने के लिए प्रेरित भी करती है.

सुसंगति सचमुच हमारे जीवन को अर्थपूर्ण दिशा प्रदान करते हैं, सौ वर्ष की कुसंगति से अल्प समय की सुसंगति लाख गुना अच्छी हैं.

एक घड़ी आधी घड़ी, आधौ ,में पुनि आध तुलसी संगति साधु की, हरै कोटि अपराध

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Really nice

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Satsangati Essay In Sanskrit सत्संगतिः निबंध संस्कृत में

Satsangati Essay In Sanskrit सत्संगतिः  निबंध संस्कृत में

सज्जनानां संगतिः सत्सङ्गतिः कथ्यते । मानवः एकः सामाजिक प्राणी अस्ति, अनेनैव सः एकलः स्थातुं न शक्यते । सत्यं तु एतत् संसारे नैव कोऽपि प्राणी संसर्गेण विना भवितुं स्थातुं वा न शक्यते । न केवलं एतावत् वनस्पतयोऽपि संसर्गेण एव सुखिनः भवन्ति । एका लता वृक्षेण विना स्व जीवनं सम्यक् रूपेण जीवितुं न शक्यते, सा वृक्षस्य अवलम्बं गृह्णाति एव पशुपक्षिणश्च स्व मित्रैः सह उषित्वा एव प्रसन्नाः भवन्ति । वनवासी मृगः मृगीं विना व्याकुलो भवति । एवमेव चक्रवाकोऽपि चक्रवाकीं विना स्थातुं न शक्नोति ।

Satyam essay in sanskrit सत्यम् पर निबंध संस्कृत में

कथनस्य तात्पर्यमिदं यत् संसारेऽस्मिन् नैव कोऽपि जीवः एकलः स्व जीवनं धारयितुं शक्यते । सः यत्र कुत्रापि तिष्ठति, उत्तिष्ठति, खादति, पिबति, स्वपिति आनन्दञ्च अनुभवति तस्य वातावरणस्य प्रभावः तस्योपरि भवति एव, नैव अत्र काऽपि विप्रतिपत्तिः दृश्यते ।

जनः यादृश्यां संगतौ वसति तादृश एव प्रभावः तस्मिन् दरीदृश्यते । यदि सः दुष्टैः जनैः सह वसति, तर्हि दुष्टो भवति, यदि वा सज्जनानां सङ्गतौ वसति, तर्हि सज्जनो भवति । अनेनैव कथ्यते –

“संसर्गजाः दोषगुणाः भवन्ति”

प्राचीनकाले वाल्मीकिः नाम ऋषिः स्वस्थ जीवनस्य प्रारम्भिके काले दस्युः आसीत्, सत्सङ्गत्या एव मुनिः सञ्जतः तदनन्तरञ्च महाकविः रामायणं नाम महाकाव्यं विरचितं तेन । vidhya Essay In Sanskrit विद्या महत्‍वम् निबंध

सत्सङ्गत्या एव ‘कबीर’ नामकः जनः निरक्षरोऽपि सन्तसमाजे प्रतिष्ठासम्पन्नः सञ्जतः अनेकशः जनः विद्वान् भवति, किन्तु तस्य कार्यकलापानि दुष्टानि भवन्ति । ईदृशानां जनानां संगतिः कदापि न विधेया । कथितञ्च

-दुर्जनः परिहर्तव्यः विद्ययाऽलंकृतोऽपि सन् ।

मणिना भूषितः सर्पः किमसौ न भयंकरः । ।

संसारेऽस्मिन् यदि जनः सुखी भवितुं वाञ्छति, तर्हि तेन सदैव सज्जनानां सङ्गतिः विधेया । दुष्टेभ्यः सदैव दूरीभूयात् दुष्टानां सङ्गतिः कज्जलवत् भवति, यत्र गमने मलिनता अवश्यमेव भवति एवमेव दुष्टानां संगत्या जनस्य चरित्रमपि मलिनं भवत्येव ।

सुसंस्कारैः जनः विलम्बात् प्रभावितो भवति, दुःसंस्कारैश्च सः शीघ्रमेव प्रभवति । अतः अस्माभिः सदैव सत्सङ्गतिः विधेया स्व मित्राणि पारिवारिकान् सदस्यान् च सदैव दुष्टसंगात् अवरोद्धव्यम् ।

सत्सङ्गतिस्तु वस्तुतः गुणनिधाना वर्तते । यदि जनः श्रेष्ठजनसंसर्गे वसति नैव तं जनं कस्यापि शिक्षकस्य कदापि आवश्यकता भवति । कुत्रापि च विद्याध्ययनस्य अनिवार्यता न कुतः तस्मिन् स्वयमेव ते सर्वे गुणाः प्रविशन्ति येन सह सः वसति । अतएव केनापि कविना कथितम्

जाड्यं धियो हरति, सिञ्चति वाचि सत्यं, मानोन्नतिं दिशति, पापमपाकरोति । चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्ति, सत्सङ्गतिः कथय किं न करोति पुंसाम्॥ अपि च-

सद्भिरेव सहासीत्, सद्भिः कुर्वीत सङ्गतिम् । सद्भिर्विवाद मैत्रींच, नासद्भिः किञ्चिदाचरेत् ॥

अतः अस्माभिः सदैव सत्सङ्गतिः विधेया ।

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Satsangati Sanskrit Essay(सत्संगति संस्कृत निबंध)

सतां सज्जनानां संगतिः । सज्जनानां संगत्या ह्रदयं विचारं च पवित्रम् भवति । अनया जनः स्वार्थभावं परित्यज्य लोककल्याणकामः भवति । दुर्जनानां संगत्या दुर्बुद्धिः आगच्छति । दुर्बुद्धिः दुःखजननी अस्ति । सज्जनानां संगत्या दुर्जनः अपि सज्जनः भवति । दुष्टदुर्योधनसंगत्या भीष्मोऽपि गोहरणे गतः । ऋषीणाम् संगत्या व्याधः वाल्मीकिः अपि कवि वाल्मीकिः अभवत् । रावणसंगत्या समुद्रः अपि क्षुद्र नदीव बन्धनं प्राप्तः । अतः साध्विदमुच्यते-सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम् । दूरीकरोति कुमतिं विमलीकरोति चेतश्र्चिरंतनमधं चुलुकीकरोति । भूतेषु किं च करुणां बहुलीकरोति संगः सतां किमु न मंगलमातनोति ॥ हिन्दी अनुवाद : सज्जनों का संगति (साथ) सत्संगति कहा जाता है । सज्जनों के संगति से ह्रदय का विचार पवित्र होता है । इससे लोग स्वार्थ भाव त्यागकर जनकल्याणकारी कार्य करता है । दर्जनों के संगति से दुर्बुद्धि आती है । दुर्बुद्धि दुःख देनेवाली होती है । सज्जनों के संगति से दुर्जन भी सज्जन हो जाता है । दुष्टदुर्योधन के साथ रहने से भीष्म भी गाय के हरण में गए थे । ऋषियों के संगति से व्याधा वाल्मीकि भी कवि वाल्मीकि हो गए । रावण के संगति से समुद्र भी क्षुद्र नदी को बाँन्धने लगे । अतः साधुओं के द्वारा कहा गया है कि सत्संगति से क्या संभव नहीं है । कुमति को दूर करता है, चित्त को निर्मल बनाता है । लंबे समय के पाप को अंजलि में समा जाय एसा बनाता है, करुणा का विस्तार करता है; सत्संग मानव को कौन सा मंगल नहीं देता ?

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Hindi Essay on “Satsangati ka Mahatva”, “सत्संगति का महत्त्व” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.

सत्संगति का महत्त्व

Satsangati ka Mahatva

संकेत – बिंदु – संगति का अर्थ। सत्संग व कसंगत का प्रभाव। विदयार्थी जीवन में महत्त्व।  

संगति का अर्थ है ऐसे लोगों के साथ उठना-बैठना जो हमारे जीवन को निरंतर और स्थायी तौर पर प्रभावित करते हैं। संगति अर्थात् ‘सम् + गति’ तो वह है जो दिन-रात समान रूप से हमारे साथ चल रही है क्रिया में, विचार और व्यवहार में। इसलिए जीवन के उत्थान व पतन का कारण संगति ही होती है।

कबिरा संगत साधु की , हरे और की व्याधि। संगत बुरी असाधु की , आठों पहर उपाधि।

इस संगति के दो रूप स्पष्ट हैं ‘सत्संग’ और ‘कुसंग’ । हमें नित्य उच्च आदर्शों की ओर प्रेरित करने वाले, स्वयं पर आस्था व विश्वास जगाने वाले, दया, प्रेम, करुणा आदि का भाव जगाने वाले लोगों का साथ सत्संग है और इसके विपरीत मन को निम्न कत्यों के लिए प्रेरित करने वाले, हमें परावलंबी व नास्तिक बनाने वाले, कठोरता, क्रूरता. कदाचार और अमानवीय व्यवहार का औचित्य सिद्ध करने वाले लोगों का साथ ‘कुसंग’ है। सत्संग उस पारस पत्थर के समान है जो लोहे को भी पारस बना देता है। सज्जन सदैव सद्गुणों की ओर प्रेरित करता है। शुभ संकल्पनों को दृढ़ता प्रदान करता है। हृदय में प्रेम, करुणा और सहिष्णुता जैसे दैवीय गुणों का विकास करने का अवसर मिलता है। विद्यार्थी जीवन में तो सत्संगति का और भी अधिक महत्त्व है क्योंकि यह जीवन ही संपूर्ण भावी जीवन की आधारशिला है। इस समय सांसारिकता से दूर कोमल व निर्मल पर जो संस्कार पड़ते हैं वे अस्थायी होते हैं। अतः इस समय मित्र बनाते समय विशेष सावधान रहना चाहिए। जीवन में अनुशासन, संयम और उदारता ‘सत्संगति’ से ही प्राप्त होते हैं।

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संगति का प्रभाव पर निबंध। Satsangati ka Prabhav

संगति का प्रभाव पर निबंध। Satsangati ka Prabhav : सत्संगति शब्द से अभिप्राय है अच्छे लोगों की संगति में रहना। उनके अच्छे विचारों को अपने जीवन में उतारना तथा उनकी अच्छी आदतों को अपनाना। प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन को सुखी बनाने के लिए अन्य मनुष्यों का संग ढूंढता है। यह संगति जो उसे मिलती है, वह अच्छी भी हो सकती है तथा बुरी भी। यदि उसे अच्छी संगति मिल गई तो उसका जीवन सुखपूर्वक बीतता है। यदि संगति बुरी हुई तो जीवन दुखदाई हो जाता है। अतः मनुष्य जैसी संगति में रहता है, उस पर वैसा ही प्रभाव पड़ता है।

संगति का प्रभाव पर निबंध। Satsangati ka Prabhav par Nibandh

संगति का प्रभाव

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    Satsangati Essay in Sanskrit सत्संगति पर संस्कृत निबंध : सतां-सज्जनानां सम्पर्क: संङ्गतिः वा सत्संगति कथ्यते। संङ्गतिः द्विविध भवति। सत्संगतिः कुसंगतिश्च ...

  23. संगति का प्रभाव पर निबंध। Satsangati ka Prabhav

    संगति का प्रभाव पर निबंध। Satsangati ka Prabhav : सत्संगति शब्द से अभिप्राय है अच्छे लोगों की संगति में रहना। उनके अच्छे विचारों को अपने जीवन में उतारना तथा उनकी ...