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भगत सिंह की जीवनी | Bhagat Singh Biography Book Pdf in Hindi

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Free Download Bhagat Singh Biography Book Pdf in Hindi

भारत देश का एक ऐसा पुत्र जिसने अपनी पूरी जिंदगी सिर्फ इसलिए कुर्बान की क्योकि वह अपने देश के आने वाले भविष्य को एक आजाद दिन देना चाहता था| वह चाहता कि भारत में कोई भी बच्चा अग्रेजों की गुलामी में न बड़ा हो|

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Bhagat Singh Biography Book Pdf in Hindi | भगतसिंह जीवन परिचय

भगत सिंह , महान सेनानियों में बहुत ही अहम भूमिका निभाने वाले भारतीय थे| इनका जन्म 28 सितम्बर 1907 को हुआ और भारत का यह वीर पुत्र 23 मार्च 1931 को हसते-हसते वीरगति को प्राप्त हुआ| भगत सिंह ने चन्द्रशेखर आजाद के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर भारत की स्वतंत्रता के लिए साहस के साथ ब्रिटिशो का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में सैंडर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की संसद में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। भगत सिंह असेम्बली में बम फेंककर भागे नहीं और इनको अंग्रेज सरकार ने इन्हें इनके ही साथ के दो और महान सेनानियों राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया।

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भगत सिंह का इतिहास व जीवनी | Bhagat Singh Biography in Hindi

भगत सिंह (अंग्रेजी: Bhagat Singh; जन्म: 27 सितम्बर 1907, मृत्यु: 23 मार्च 1931) एक महान क्रांतिकारी नेता थे जिन्होंने सुखदेव व राजगुरु के साथ मिलकर जॉन सांडर्स नामक ब्रिटिश अधिकारी की हत्या की। उन्होंने भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करवाने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। 

भगत सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन से जुड़ गए और संगठन के एक सक्रिय सदस्य बन गए। 23 साल की उम्र में भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को ब्रिटिश सरकार ने जॉन सांडर्स व एक भारतीय-ब्रिटिश सैनिक की हत्या का दोषी ठहराते हुए 23 मार्च 1931 को फांसी की सजा दी।

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भगत सिंह का परिचय (Introduction to Bhagat Singh)

भगत सिंह एक महान क्रांतिकारी थे जिनका जन्म 27 सितम्बर 1907 को पंजाब के बंगा नामक गांव (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता किशन सिंह संधु तथा माता विद्यावती थी। वह अपने पिता की दूसरी संतान थे। भगत सिंह के 3 भाई व 3 बहिनें थी। 

सिंह के पिता व चाचा अजीत सिंह भी राष्ट्र की स्वतंत्रता में सक्रिय थे। उनके कारण सिंह भी देशभक्ति के प्रति प्रेरित हुए। 

सिंह ने अपनी शुरुआत पढ़ाई अपने गांव बंगा से ही की और उसके बाद वे लाहौर के दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल में दाखिल हुए। 1923 में उन्होंने लाला लाजपत राय के द्वारा स्थापित लाहौर के नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया। इस कॉलेज ने छात्रों को ब्रिटिश सरकार के कॉलेजों व स्कूलों को त्यागने का मौका दिया। 

मई 1927 में ब्रिटिश पुलिस ने भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया। 60,000 रुपये की गारंटी पर उन्हें छोड़ा गया। उनकी गिरफ्तारी का कारण 1926 में लाहौर की बोंब घटना बताई गई। 

यह भी पढ़ें: भगत सिंह के अनमोल वचन

जॉन सांडर्स की हत्या में भागीदारी (Contribution in the killing of John Saunders)

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख कार्यकर्ता लाला लाजपत राय को पूरे भारत में पंजाब केसरी के नाम से जाना जाता था। 

राय व उनके क्रांतिकारियों ने साइमन कमीशन गो-बैक के नारे लगाए जिसके बाद जेम्स स्कोट नाम के अंग्रेज अधिकारी ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज करने का आदेश दिया। इस लाठीचार्ज में पुलिस ने लाला लाजपत राय पर व्यक्तिगत हमले किये। पुलिस के द्वारा किए गए हमलों से 17 नवंबर 1928 को लाला लाजपत राय की हृदयाघात के कारण मृत्यु हो गई थी।

लाला लाजपत राय की मृत्यु होने से क्रांतिकारियों में रोष फैल चुका था और उन्होंने उनकी मृत्यु का बदला लेने की ठान ली। 

चंद्रशेखर आजाद ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन संगठन का नाम बदलकर के हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन कर दिया था। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन ने लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने की सौगंध ली।

भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु ने लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए, 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश सरकार के पुलिस अधिकारी जॉन सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी।

चानन सिंह की हत्या (Killing of Channan Singh)

जॉन सांडर्स की हत्या करने के बाद, क्रांतिकारियों का समूह डीएवी कॉलेज से जा रहा था। ब्रिटिश सरकार का एक भारतीय जन्मजात सैनिक क्रांतिकारियों के इस समूह का पीछा कर रहा था। उस सैनिक का नाम चानन सिंह था। चंद्रशेखर आजाद की गोली से चानन सिंह की हत्या हो गई।

पुलिस ने उन सभी क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए लाहौर के हर रास्ते पर नाकाबंदी लगा दी। क्रांतिकारी लाहौर के सुव्यवस्थित व सुरक्षित घरों में पहुंच चुके थे।

यह भी पढ़ें: चंद्रशेखर आजाद के अनमोल वचन

लाहौर से भागना (Running Away from Lahore)

लाहौर में दो दिनों तक छिपे रहने के बाद, सुखदेव ने दुर्गावती देवी से मदद मांगी। दुर्गावती देवी को दुर्गा भाभी के नाम से भी जाना जाता है जो हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन के ही एक सदस्य की पत्नी थी। उन्होंने बठिंडा जाने वाली ट्रेन के माध्यम से लाहौर से बाहर जाने की योजना बनाई। 

अगले दिन सुबह ही भगत सिंह व राजगुरु भरे हुए पिस्तौल लेकर निकल पड़े। किसी भी ब्रिटिश पुलिस अधिकारी को पता ना चल जाए इसलिए भगत सिंह ने अपने बाल कटवा लिये, अपनी दाढ़ी बनवाली और एक पश्चिमी रिवाज की टोपी भी पहन ली। 

दुर्गा भाभी व सिंह पति पत्नी बन गए और नवजात बच्चे को साथ लेकर चल दिये। राजगुरु समान उठाने वाला सेवक बन गया। तीनों वहां से कानपुर की ट्रेन में बैठ गए और कानपुर से वे लखनऊ चले गए। उसके बाद राजगुरु बनारस के लिए तथा सिंह व देवी अपने बच्चे के साथ हावड़ा की ओर चले गए। कुछ दिनों बाद सिंह को छोड़कर के सभी वापस लाहौर आ गए।

अन्य क्रांतिकारी गतिविधि (Other Revolutionary Activity)

भगत सिंह के मन में विचार आया कि वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन की प्रसिद्धि को आम जनता में बहुत तेजी से बढ़ा सकते हैं। उन्होंने संगठन को यह प्रस्ताव दिया कि उन्हें ड्रामे से भरे हुए कार्य करने चाहिए ताकि संगठन को प्रसिद्धि प्राप्त हो।

सिंह के मुताबिक, उन्हें सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली के अंदर एक आंसू बोंब डालना चाहिए। इसका उद्देश्य पब्लिक सेफ्टी बिल तथा ट्रेड डिस्प्यूट एक्ट के प्रति विरोध जताना था। इन बातों को असेंबली के द्वारा नकारा गया, परंतु वायसराय के द्वारा इन्हें कार्य में लाया गया। असेंबली से बदला लेने के लिए उन्होंने असेंबली में आंसू बम डालना चाहा। 

8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली के अंदर दो बॉम्बे फेंके। ये बम इस तरह से बनाए गए थे कि कोई जान-माल का नुकसान नहीं हो परंतु असेंबली के कुछ सदस्यों को इससे नुकसान पहुंचा। असेंबली में बोम से धुआं उत्पन्न हुआ और सिंह व उनके साथी ने वहां से इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए। 

भगत सिंह के साथी क्रांतिकारी पकड़े गए (Arrest of Fellow Revolutionary of Bhagat Singh)

1929 में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन ने लाहौर व सहारनपुर में बम फैक्ट्री की स्थापना की थी। 15 अप्रैल 1929 को लाहौर की बम फैक्ट्री के बारे में पुलिस को पता चल गया और उन्होंने इस फैक्ट्री के कुछ मुख्य सदस्य सुखदेव, किशोर लाल व जय गोपाल को गिरफ्तार कर लिया। 

कुछ समय बाद ही सहारनपुर की बम फैक्ट्री का भी पता चल गया और कई क्रांतिकारियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया। 

जॉन सांडर्स की हत्या, असेंबली पर किए गए हमले व बम निर्माण का आपस में संबंध पता करने में पुलिस कामयाब हो गई थी। जिसके बाद उन्होंने सिंह, सुखदेव, राजगुरु व 21 अन्य क्रांतिकारियों को जॉन सांडर्स की हत्या का दोषी माना। 

लाहौर जेल में भगत सिंह व उनके साथी (Bhagat Singh and his associates in Lahore Jail)

भगत सिंह व उनके साथियों को लाहौर जेल में भेजने से पहले वह मियांवाली जेल में थे जहां पर उन्होंने भूख हड़ताल की शुरुआत थी। जेल के वासियों के लिए कुछ अच्छी सुविधाएं व खाद्य पदार्थों के लिए की गई यह भूख हड़ताल भगत सिंह के नेतृत्व में थी। 

सिंह को लाहौर की बोरस्टल जेल में भेज दिया गया। भूख हड़ताल पर रहने के कारण सिंह के वास्तविक वजन (60 किलो) से 6.4 किलो घट गया। 

सिंह ने 5 अक्टूबर 1929 को 116 दिन के बाद अपने पिता की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए अपनी भूख हड़ताल खत्म की। 

7 अक्टूबर 1930 को न्यायाधिकरण कोर्ट ने 300 शब्दों का न्याय पत्र दिया जिसमें सिंह, सुखदेव व राजगुरु को जॉन सांडर्स की हत्या के मुख्य दोषी ठहराए गए। उन तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई और अन्य क्रांतिकारियों को कई वर्षों की सजा दी गई। 

भगत सिंह की मृत्यु (Death of Bhagat Singh)

सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर षड्यंत्र के केस में 24 मार्च 1931 को फांसी देने की सजा सुनाई गई थी। परंतु ब्रिटिश सरकार ने तीनों क्रांतिकारियों की सजा के समय को 11 घंटे पहले कर दिया ताकि आम जनता सरकार के खिलाफ कोई विद्रोह ना कर दे।

इसलिए, 23 मार्च 1931 को शाम 7:30 बजे भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को लाहौर जेल में फांसी दी गई। सिंह व अन्य 2 क्रांतिकारियों की मृत्यु हो जाने के बाद जेल के अधिकारियों ने उन तीनों के शवों को रात्रि के अंधेरे में ले जाकर के गंदा सिंह वाला गांव के बाहर उनका अंतिम संस्कार कर दिया। अंतिम संस्कार के बाद, उनके पुष्प चिन्हों (राख) को सतलज नदी में बहा दिया गया।

जब तीनों वीर क्रांतिकारियों की मृत्यु की सूचना प्रेस व न्यूज़ में आई तब युवाओं ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ रोष जाहिर किया। कुछ सूचनाओं के मुताबिक, महात्मा गांधी को भी इस हत्याकांड का दोषी भी ठहराया गया था।

भगत सिंह (अंग्रेजी: Bhagat Singh; जन्म: 27 सितम्बर 1907, मृत्यु: 23 मार्च 1931) एक महान क्रांतिकारी नेता थे जिन्होंने सुखदेव व राजगुरु के साथ मिलकर जॉन सांडर्स नामक ब्रिटिश अधिकारी की हत्या की। भगत सिंह का जन्म 27 सितम्बर 1907 को पंजाब के बंगा नामक गांव (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता किशन सिंह संधु तथा माता विद्यावती थी। वह अपने पिता की दूसरी संतान थे। भगत सिंह के 3 भाई व 3 बहिनें थी।  23 साल की उम्र में भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को ब्रिटिश सरकार ने जॉन सांडर्स व एक भारतीय-ब्रिटिश सैनिक की हत्या का दोषी ठहराते हुए 23 मार्च 1931 को फांसी की सजा दी।

7 अक्टूबर 1930 को न्यायाधिकरण कोर्ट ने 300 शब्दों का न्याय पत्र दिया जिसमें सिंह, सुखदेव व राजगुरु को जॉन सांडर्स की हत्या के मुख्य दोषी ठहराए गए। उन तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई और अन्य क्रांतिकारियों को कई वर्षों की सजाएं अलग-अलग तरह से दी गई। 

23 मार्च 1931 को, लाहौर जेल, पाकिस्तान।

3 मार्च 1931 को शाम 7:30 बजे भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को लाहौर जेल में फांसी दी गई। सिंह व अन्य 2 क्रांतिकारियों की मृत्यु हो जाने के बाद जेल के अधिकारियों ने उन तीनों के शवों को रात्रि के अंधेरे में ले जाकर के गंदा सिंह वाला गांव के बाहर उनका अंतिम संस्कार कर दिया। अंतिम संस्कार के बाद, उनके पुष्प चिन्हों (राख) को सतलज नदी में बहा दिया गया।

भगत सिंह एक महान क्रांतिकारी थे जिनका जन्म 27 सितम्बर 1907 को पंजाब के बंगा नामक गांव (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता किशन सिंह संधु तथा माता विद्यावती थी। वह अपने पिता की दूसरी संतान थे। भगत सिंह के 3 भाई व 3 बहिनें थी। 

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जन्म : 27 सितम्बर, 1907 निधन : 23 मार्च, 1931

उपलब्धियां : भारत के क्रन्तिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी, पंजाब में क्रांति के सन्देश को फ़ैलाने के लिए नौजवान भारत सभा का गठन किया, भारत में गणतंत्र की स्थापना के लिए चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन किया, लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या की, बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर केन्द्रीय विधान सभा में बम फेका

शहीद भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे। मात्र 24 साल की उम्र में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाला यह वीर सदा के लिए अमर हो गया। उनके लिए क्रांति का अर्थ था – अन्याय से पैदा हुए हालात को बदलना। भगत सिंह ने यूरोपियन क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में पढ़ा और समाजवाद की ओर अत्यधिक आकर्षित हुए। उनके अनुसार, ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेकने और भारतीय समाज के पुनर्निमाण के लिए राजनीतिक सत्ता हासिल करना जरुरी था।

हालाँकि अंग्रेज सरकार ने उन्हें आतंकवादी घोषित किया था पर सरदार भगत सिंह व्यक्तिगत तौर पर आतंकवाद के आलोचक थे। भगत सिंह ने भारत में क्रांतिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी। उनका तत्कालीन लक्ष्य ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश करना था। अपनी दूरदर्शिता और दृढ़ इरादे जैसी विशेषता के कारण भगत सिंह को राष्ट्रीय आंदोलन के दूसरे नेताओं से हटकर थे। ऐसे समय पर जब गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ही देश की आजादी के लिए एक मात्र विकल्प थे, भगत सिंह एक नयी सोच के साथ एक दूसरे विकल्प के रूप में उभर कर सामने आये।

प्रारंभिक जीवन भगत सिंह का जन्म पंजाब के नवांशहर जिले के खटकर कलां गावं के एक सिख परिवार में 27 सितम्बर 1907 को हुआ था। उनकी याद में अब इस जिले का नाम बदल कर शहीद भगत सिंह नगर रख दिया गया है। वह सरदार किशन सिंह और विद्यावती की तीसरी संतान थे। भगत सिंह का परिवार स्वतंत्रता संग्राम से सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ था। उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजित सिंह ग़दर पार्टी के सदस्य थे। ग़दर पार्टी की स्थापना ब्रिटिश शासन को भारत से निकालने के लिए अमेरिका में हुई थी। परिवार के माहौल का युवा भगत सिंह के मष्तिष्क पर बड़ा असर हुआ और बचपन से ही उनकी नसों में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भर गयी।

1916 में लाहौर के डी ऐ वी विद्यालय में पढ़ते समय युवा भगत सिंह जाने-पहचाने राजनेता जैसे लाला लाजपत राय और रास बिहारी बोस के संपर्क में आये। उस समय पंजाब राजनैतिक रूप से काफी उत्तेजित था। जब जलिआंवाला बाग़ हत्याकांड हुआ तब भगत सिंह सिर्फ १२ वर्ष के थे। इस हत्याकांड ने उन्हें बहुत व्याकुल कर दिया। हत्याकांड के अगले ही दिन भगत सिंह जलिआंवाला बाग़ गए और उस जगह से मिट्टी इकठ्ठा कर इसे पूरी जिंदगी एक निशानी के रूप में रखा। इस हत्याकांड ने उनके अंग्रेजो को भारत से निकाल फेंकने के संकल्प को और सुदृढ़ कर दिया।

क्रन्तिकारी जीवन 1921 में जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन का आह्वान किया तब भगत सिंह ने अपनी पढाई छोड़ आंदोलन में सक्रिय हो गए। वर्ष 1922 में जब महात्मा गांधी ने गोरखपुर के चौरी-चौरा में हुई हिंसा के बाद असहयोग आंदोलन बंद कर दिया तब भगत सिंह बहुत निराश हुए। अहिंसा में उनका विश्वास कमजोर हो गया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने का एक मात्र उपयोगी रास्ता है। अपनी पढाई जारी रखने के लिए भगत सिंह ने लाहौर में लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित राष्ट्रीय विद्यालय में प्रवेश लिया। यह विधालय क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था और यहाँ पर वह भगवती चरण वर्मा, सुखदेव और दूसरे क्रांतिकारियों के संपर्क में आये।

विवाह से बचने के लिए भगत सिंह घर से भाग कर कानपुर चले गए। यहाँ वह गणेश शंकर विद्यार्थी नामक क्रांतिकारी के संपर्क में आये और क्रांति का प्रथम पाठ सीखा। जब उन्हें अपनी दादी माँ की बीमारी की खबर मिली तो भगत सिंह घर लौट आये। उन्होंने अपने गावं से ही अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखा। वह लाहौर गए और ‘नौजवान भारत सभा’ नाम से एक क्रांतिकारी संगठन बनाया। उन्होंने पंजाब में क्रांति का सन्देश फैलाना शुरू किया। वर्ष 1928 में उन्होंने दिल्ली में क्रांतिकारियों की एक बैठक में हिस्सा लिया और चंद्रशेखर आज़ाद के संपर्क में आये। दोनों ने मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन किया। इसका प्रमुख उद्देश्य था सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारत में गणतंत्र की स्थापना करना।

फरवरी 1928 में इंग्लैंड से साइमन कमीशन नामक एक आयोग भारत दौरे पर आया। उसके भारत दौरे का मुख्य उद्देश्य था – भारत के लोगों की स्वयत्तता और राजतंत्र में भागेदारी। पर इस आयोग में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था जिसके कारण साइमन कमीशन के विरोध का फैसला किया। लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ नारेबाजी करते समय लाला लाजपत राय पर क्रूरता पूर्वक लाठी चार्ज किया गया जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गए और बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया। भगत सिंह ने लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए ब्रिटिश अधिकारी स्कॉट, जो उनकी मौत का जिम्मेदार था, को मारने का संकल्प लिया। उन्होंने गलती से सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स को स्कॉट समझकर मार गिराया। मौत की सजा से बचने के लिए भगत सिंह को लाहौर छोड़ना पड़ा।

ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को अधिकार और आजादी देने और असंतोष के मूल कारण को खोजने के बजाय अधिक दमनकारी नीतियों का प्रयोग किया। ‘डिफेन्स ऑफ़ इंडिया ऐक्ट’ के द्वारा अंग्रेजी सरकार ने पुलिस को और दमनकारी अधिकार दे दिया। इसके तहत पुलिस संदिग्ध गतिविधियों से सम्बंधित जुलूस को रोक और लोगों को गिरफ्तार कर सकती थी। केन्द्रीय विधान सभा में लाया गया यह अधिनियम एक मत से हार गया। फिर भी अँगरेज़ सरकार ने इसे ‘जनता के हित’ में कहकर एक अध्यादेश के रूप में पारित किये जाने का फैसला किया। भगत सिंह ने स्वेच्छा से केन्द्रीय विधान सभा, जहाँ अध्यादेश पारित करने के लिए बैठक का आयोजन किया जा रहा था, में बम फेंकने की योजना बनाई। यह एक सावधानी पूर्वक रची गयी साजिश थी जिसका उद्देश्य किसी को मारना या चोट पहुँचाना नहीं था बल्कि सरकार का ध्यान आकर्षित करना था और उनको यह दिखाना था कि उनके दमन के तरीकों को और अधिक सहन नहीं किया जायेगा।

8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केन्द्रीय विधान सभा सत्र के दौरान विधान सभा भवन में बम फेंका। बम से किसी को भी नुकसान नहीं पहुचा। उन्होंने घटनास्थल से भागने के वजाए जानबूझ कर गिरफ़्तारी दे दी। अपनी सुनवाई के दौरान भगत सिंह ने किसी भी बचाव पक्ष के वकील को नियुक्त करने से मना कर दिया। जेल में उन्होंने जेल अधिकारियों द्वारा साथी राजनैतिक कैदियों पर हो रहे अमानवीय व्यवहार के विरोध में भूख हड़ताल की। 7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह, सुख देव और राज गुरु को विशेष न्यायलय द्वारा मौत की सजा सुनाई गयी। भारत के तमाम राजनैतिक नेताओं द्वारा अत्यधिक दबाव और कई अपीलों के बावजूद भगत सिंह और उनके साथियों को 23 मार्च 1931 को प्रातःकाल फांसी दे दी गयी।

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Bhagat Singh Biography In Hindi - भगत सिंह की जीवनी हिंदी में

Bhagat Singh Biography In Hindi | भगत सिंह जीवन परिचय

नमस्कार मित्रो आज हम Bhagat Singh Biography In Hindi बताएँगे। अपनी मातृभूमि को स्वतंत्रता दिलाने के लिए फांसी पर चढ़ने वाले भगत सिंह का जीवन परिचय हिंदी में बताने वाले है।

भगत सिंह real photo

इसके बारेमे भी जानिए :- वीर अमरसिंह राठौड़ की जीवनी

भगत सिंह का जन्म और बचपन –

Bhagat singh ka parichay In Hindi में बतादे की भगत सिंह का जन्म कहां हुआ था ? तो लायलपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था। bhagat singh birth date 28 सितंबर 1907 है। और उन महान विभूति भगत सिंह जयंती भी उसी दिन मनाई जाती है। भगत सिंह का परिवार जहा रहता था। वह स्थान भारत पाकिस्तान के बटवारे में अब पाकिस्तान में है। लेकिन उनका मूल गांव खटकड़ कला है। वह गांव अभी भी पंजाब राज्य में है। जब भगत सिंह 5 साल के थे तब उनके बचपन में उनके खेल कूद भी अनोखे थे।

वह अपने दोस्तो के साथ साथ खेलते थे। तब वे दो टोलिया बनाते थे। और सामने सामने युद्ध करते थे ऐसे खेल वो बचपन में खेला करते थे। उनके पिता सरदार किशन सिंह एक किसान थे। और माता का नाम विद्यावती कौर था। जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड होने के पश्यात उनके जीवन में बहुत बदलाव आया उन्होंने तत्काल लाहौर से अपनी पढाई छोड़ के भारत देश की स्वतंत्रता के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना करदी। 

स्वतंत्रता की लड़ाई –

Information about bhagat singh in hindi देखे तो 1922 में चौरी-चौरा कांड में महात्मा गाँधी ने किसानो को साथ नहीं देने के कारन भगत सिंह को बहुत ही दुःख था। उसके पश्यात अहिंसा से उनका भरोसा टूट चूका था। और सशस्त्र क्रांति का रास्ता अपना लिया था। भले गाँधी एसा कहते थे। की उनके अहिंसा से आजादी मिली तो हम हम नहीं मानते उनसे आजादी नहीं मिली थी। आजादी मिलने का मुख्य कारन अंग्रेजो की खुलेआम क़त्ल मुख्य कारन था। उन्होंने तय  करलिया की सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने में कामियाब होने वाली है। 

गांघीजी से अलग होने के बाद वह चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलके उन्होंने  गदर दल के नेतृत्व में कार्य करना शुरू किया था। काकोरी कांड ( kakori kand )मे 4 क्रांतिकारियों को सजा – ये – मौत सुनाई गयी थी और अन्य 13 लोगो को कारावास की सजा हुई थी। इस को सुनते ही भगत सिंह दुखी हुए की कोई सीमाही नहीं थी उनके दुःख की। और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन से जुड़के भारत के नौजवानो को तैयार करके देश के लिए समर्पित हो जाना था।

भगत सिंह फोटो

इसके बारेमे भी जानिए :- रतन टाटा का जीवन परिचय  

सांडर्स को मारा-

राजगुरु के साथ हो करके 17 दिसम्बर 1928 के दिन लाहौर में अंग्रेज पुलिस अधीक्षक जे० पी० सांडर्स को मारडाला था। उसमे चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी बहुत मदद की थी। उनके साथी स्वतन्त्र सेनानी बटुकेश्वर दत्त से मिल के ब्रिटिश सरकार की सेण्ट्रल एसेम्बली के सभागार संसद भवन में पर्चे और बम फेंके थे। जिनसे अंग्रेज़ सरकार की नींदे हराम हो चुकी थी। वह काम उन्होंने 8 अप्रैल 1921 के दिन किया और अपनी गिरफ्तारी करवाई थी ताकि अंग्रेजो को पता चल सके।

लाला लाजपत राय की हत्या का लिया बदला –

भगत सिंह ने अपनी पार्टी से मिलके 30 अक्टूबर 1928 के दिन सइमन कमीशन का जमकर विरोध किया। उसमे लाला लाजपत राय भी मौजूद थे। वह सब “साइमन वापस जाओ” जैसे भगत सिंह के नारे लगाया करते थे। लाहौर रेलवे स्टेशन पर लाठी चार्ज किया और उसमे लाला जी बहुत घायल हुए। और म्रत्यु हो गई। उनकी मौत से उनकी पार्टी और भगत सिंह ने अंग्रेजों से मौत का बदला लेने के लिए  ज़िम्मेदार ऑफीसर स्कॉट को मारदेने का तख्ता तैयार कर लिया था।

लेकिन गलती से भगत सिंह ने असिस्टेंट पुलिस सौन्देर्स को मार गिराया था। खुदको बचाने के लिए भगत सिंह लाहौर से भाग निकले थे। फिरभी ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पकड़ ने के लिए चारोओर  जाल सा बिछा रखा था।भगत सिंह खुद को बचाने के लिए बाल व दाढ़ी कटवा दी। जोकि वह अपनी धार्मिकता केविरुद्ध था। लेकिन भगत सिंह को देश देश की आजादी के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता था। 

इसके बारेमे भी जानिए :- गुरु गोबिंद सिंह की जीवनी

शहीद भगत सिंह कविता – 

भारत माता के वीर पुत्र भगत सिंह पर कई कविताओं का निर्माण हुआ है। जो आज भी लोगो की जुबा पर अक्सर सुनाई देती है। उसमे मुख्य  इस मुताबिक है। 

(1)डरे न कुछ भी जहां की चला चली से हम। गिरा के भागे न बम भी असेंबली से हम।

(2)सख़तियों से बाज़ आ ओ आकिमे बेदादगर, दर्दे-दिल इस तरह दर्दे-ला-दवा हो जाएगा ।

(3)बम चख़ है अपनी शाहे रईयत पनाह से इतनी सी बात पर कि ‘उधर कल इधर है आज’

Bhagat Singh Biography In Hindi

भगत सिंह को फांसी की सजा हुई –

Bhagat singh rajguru sukhdev fasi केश चलाया गया था। और इनके नतीजे पर कोर्ट ने तीनो को फांसी की सजा सुनाई थी। फिरभी Bhagat Singh Slogan लगा रहे थे। की इंकलाब जिंदाबाद मौत सामने होते हुए भी उनकी वीरता में  कोई कमी नहीं दिखाई दी थी। जेल में उन्हें बहुत तकलीफो का सामना करना पड़ा था। उस वक्त भारतीय कैदियों के साथ बहुत ख़राब व्यवहार किया जाते थे। ऐसा कहा जाता था की उन्होंने जेल में रहते हुए भी आंदोलन शुरू किया था।अंग्रेज अधिकारियो के जुर्म को रोकने और अपनी मांग पूरी कराने के लिए। कई समय तक खाना तो ठीक पानी तक नही पिया करते थे। अंग्रेज अफसर अक्सर उन्हें ज्यादा मारपीट किया करते थे।

Bhagat singh photo

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Bhagat Singh Death –  भगत सिंह की मृत्यु

भगत सिंह की मृत्यु कब हुई थी ? उन्हें बहुत यातनाये दी जाती थी। फिरभी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अपने अंतिम दिनों यानि 1930 की साल मे भगत सिंह पुस्तकें लिखी उसका नाम Why I Am Atheist था। Bhagat singh fasi date 24 मार्च 1931 को फिक्स हुई थी। लेकिन B hagat singh death date 23 मार्च 1931 के मध्यरात्रि में उन्हें फांसी दी गयी थी। और उसका मुख्य कारन समग्र भारत में उनकी रिहाई के लिए हो रहे प्रदर्शन थे। उनसे ब्रिटिश सरकार इतना डरती थी। की उनके समय से पहले उन्हें फांसी दी और अंतिम संस्कार भी करवा दिये गए थे।

The Legend Of Bhagat Singh Movie –

बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्रीज़ ने शहीद वीर भगत सिंह पर बहुत फिल्मो का निर्माण किया है। उसमे शहीद (1965), शहीद-ए-आज़म (2002), शहीद (2002), 23 मार्च 1931, और The Legend of Bhagat Singh (2002) है। 

Bhagat Singh Biography In Hindi Video –

Bhagat Singh Interesting Facts –

  • जेल डायरी भगत सिंह की दस्तावेजों को संग्रह विभाग द्वारा अभी तक सरंक्षित रखा गया है।
  • भगत सिंह को फांसी दी गई थी वह स्थान भारत पाकिस्तान बटवारे में अब पाकिस्तान का हिस्सा है।
  • भगत सिंह ने 116 दिनों तक अपनी हड़ताल जारी रखी लेकिन पिता के कहने पर ख़त्म कर दी। 
  • जेल में रहते हुए अपने अंतिम समय में एक नास्तिक हो गए थे।
  • भगत सिंह के अनमोल विचार देखे तो उसका जवाब अपनी पुस्तक में नास्तिक होने के की वजह बताई है।
  • भगत सिंह केस के गवाह शादी लाल और शोभा सिंह थे।
  • वीर भगत सिंह का मुकदमा राय बहादुर सूरज नारायण ने लड़ा था।
  • लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सज़ा सुनाई गई।

Bhagat Singh Questions –

1 .bhagat sinh ka janm kahan hua tha ?

भगत सिंह का जन्म लयालपुर, बंगा, पंजाब (वर्तमान में पाकिस्तान) हुआ था। 

2 .bhagat sinh ko phaansi kyon di gai ?

लाहौर षड़यंत्र के लिए भगत सिंह को फांसी दी गई थी। 

3 .bhagat singh kaun the ?

भगत सिंह भारतीय क्रांतिकारी यानि स्वतंत्रता सेनानी थे। 

4 .Bhagat singh ko fansi kab di gai thi  ?

भगत सिंह की मृत्यु 23 मार्च 1931 के दिन मध्यरात्रि में हुई थी। 

5 .भगत सिंह जयंती कब है ? 

भगत सिंह जयंती 28 सितंबर के दिन मनाई जाती है। 

6 .Bhagat singh ka janm kahan hua tha ?

भगत सिंह का जन्म स्थान लयालपुर, बंगा, पंजाब है।

7 .भगत सिंह का जन्म कब हुआ था ?

28 सितंबर 1907 को भगत सिंह का जन्म हुआ था। 

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Conclusion –

आपको मेरा Bhagat Singh Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये Bhagat singh siblings और Bhagat Singh Quotes In Hindi से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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