बढ़ती हुई जनसंख्या पर निबंध Essay on Increasing Population in Hindi
इस लेख में हमने बढ़ती हुई जनसंख्या पर निबंध हिंदी में (Essay on Increasing Population in Hindi) लिखा है। जिसमें जनसंख्या वृद्धि का अर्थ, प्रकार, कारण. दुष्परिणाम. कानून और नियंत्रण के उपाय को आकर्षक रूप से शामिल किया गया है।
Table of Contents
प्रस्तावना (बढ़ती हुई जनसंख्या पर निबंध Essay on Increasing Population in Hindi)
किसी भी परिवार को एक आदर्श परिवार तब कहा जा सकता है जब वह सभी प्रकार से संतुलित हो। परिवार में संतुलन अर्थात संख्या संतुलन, आर्थिक संतुलन और व्यवहारिक संतुलन होता है।
लेकिन जब संख्या में लगातार बढ़ोतरी होना शुरू हो जाता है तो परिवार आर्थिक, सामाजिक तथा व्यावहारिक रूप से कमजोर हो जाता है। ठीक इसी प्रकार किसी भी देश की बढ़ती जनसंख्या उसके अविकसित रहने का कारण बनती है।
जनसंख्या वृद्धि यह एक प्राकृतिक परिस्थिति है। लेकिन इसका संतुलन मनुष्य के विवेक के ऊपर निर्भर होता है। अर्थात मनुष्य चाहे तो अपने परिवार को संतुलित रख राष्ट्र को संतुलित रख सकता है।
आबादी की दृष्टि से दुनिया का सबसे बड़ा देश चीन है। भारत जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे स्थान पर मौजूद है। लेकिन जिस गति से भारत में जनसंख्या वृद्धि हो रही है वह दिन दूर नहीं जब भारत पूरी दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश होगा।
संख्या में ज्यादा होने के कारण इंसानों को रहने तथा गुजर-बसर करने के लिए अधिक स्थान की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए जिस देश में जनसंख्या असंतुलन होती है वहां गरीबी, भुखमरी, महंगाई तथा बेरोजगारी अधिक मात्रा में देखने को मिलती है।
इस विषय की गहराई के बारे में हर भारतवासी को सोचना होगा। साथ ही ऐसे कड़े कानून की व्यवस्था करनी पड़ेगी जिसके माध्यम से लापरवाह और असंतुलित लोगों पर शिकंजा कसा जा सके।
जनसंख्या वृद्धि की परिभाषा Definition of population growth in Hindi
एक निश्चित आंकड़े के बाद बढ़ी हुई आबादी को जनसंख्या वृद्धि कहा जाता है। सरल शब्दों में कहे तो किसी भी देश की भौगोलिक परिस्थिति, विकास के अवसर तथा धन के आधार पर तय किए गए जनसंख्या मानक से अधिक संख्या को बढ़ती हुई जनसंख्या का नाम दिया जाता है।
जनसंख्या वृद्धि में किसी भी व्यक्ति, समूह को शामिल नहीं किया जाता है। जिसके कारण लोग बिना सोचे समझे जनसंख्या बढ़ा रहे हैं।
कुछ विशेष नियमों के अंतर्गत जनसंख्या वृद्धि की परिभाषा में बदलाव हो सकता है। क्योंकि पिछली परिभाषा के अनुसार जाहिल और पिछड़ी मानसिकता वाले लोगों की पहचान कर पाना नामुमकिन होता था।
वर्तमान समय में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोई कठोर कानून नहीं है, इसलिए ऐसे लोगों पर लगाम कस पाना बेहद मुश्किल कार्यों में से एक है।
जनसंख्या घनत्व वृद्धि के प्रकार Types of Population Density Growth in Hindi
भारत में राज्य स्तर पर उपलब्ध जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर जनसंख्या घनत्व को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता हैः अधिक घनत्व वाले क्षेत्र, मध्य घनत्व वाले क्षेत्र तथा कम घनत्व वाले क्षेत्र।
जहां जनसंख्या का घनत्व चार सौ व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से अधिक होता है ऐसे जगह को ज्यादा घनत्व वाले जनसंख्या क्षेत्र कहते हैं। ऐसे क्षेत्र तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल राज्य में आते हैं।
जिन क्षेत्रों का जनसंख्या घनत्व 100 से 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर के बीच होता है उन्हें मध्यम घनत्व वाले क्षेत्र कहते हैं। उदाहरण के तौर पर आंध्र प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, उड़ीसा, जैसे राज्य मध्यम जनसंख्या घनत्व वाले राज्य हैं।
जिन क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व 100 व्यक्ति या उससे कम प्रति वर्ग किलोमीटर होता है ऐसे क्षेत्रों को निम्न जनसंख्या घनत्व वाला स्थान कहते हैं। जैसे अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, सिक्किम तथा अंडमान निकोबार दीप समूह।
बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण Reason of Population increasing in Hindi
बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण देश में आर्थिक असंतुलन पैदा होता है। जिसके कारण देश का आर्थिक विकास दर बाधित होता है।
जनसंख्या वृद्धि का सबसे बड़ा कारण अशिक्षा का होना है। क्योंकि ज्ञान के अभाव में ही लोग अपनी तथा देश के भले बुरे के बारे में दूरदर्शिता नहीं रख पाते।
अशिक्षा के कारण लोग जनसंख्या वृद्धि को रोकने का विकल्प नहीं खोज पाते। जिसके कारण उनका पारिवारिक, सामाजिक जीवन असंतुलित हो जाता है।
कम पढ़े लिखे होने के कारण कम आयु में विवाह करने का प्रचलन भी बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप परिवार संयोजन जैसे गंभीर विषयों पर सोचने लायक बुद्धि का विकास ही नहीं हो पाता। जिसके कारण जनसंख्या असंतुलन जैसे मुद्दे सामने आते हैं।
कम आयु अथवा कम समझ में विवाह हो जाने के कारण परिवार नियोजन के प्रति उदासीन भाव रखते हैं तथा विकल्पों को व्यर्थ की बात समझने लगते हैं।
बढ़ती हुई जनसंख्या के कारणों में सबसे मुख्य कारण चिकित्सा का अभाव भी होता है। जिसके माध्यम से लोगों को उनकी शारीरिक संरचना के प्रति आगाह किया जाता है। चिकित्सा के अभाव में जनसंख्या वृद्धि होना आज एक आम बात रह गई है।
इसके अलावा गरीबी और जनसंख्या विरोधाभास आदि ने जनसंख्या बढ़ाने में योगदान किया है। इसके कारण कुछ धर्म विशेष के लोग इन मुद्दों की गंभीरता को बिल्कुल भी नहीं समझते हैं तथा अंधविश्वास के कारण जनसंख्या वृद्धि को उनके ईश्वर की मर्जी मानते हैं।
आज अगर बढ़ती हुई आबादी को संतुलित करने के रास्ते न निकाले गए तो इसके दूरगामी परिणाम बहुत ही नकारात्मक देखने को मिल सकते हैं।
बढ़ती जनसंख्या के दुष्परिणाम Bad Effects of Population Increasing in Hindi
बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण किसी भी देश में तकलीफों का बढ़ना आम बात है। जिसमें उस देश के सभी नागरिकों की हानि होती है साथ में देश आर्थिक रूप से कमजोर होता है।
जब किसी देश में लोगों की संख्या बेलगाम बढ़ने लगती है तो वहां के संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ने लगता है। जो वहां के लोगों की प्रति ही खर्च हो जाता है और व्यवसाय के लिए नाम मात्र ही बचता है।
उदाहरण के तौर पर चीन में अधिक जनसंख्या होने के कारण वह अपने देश में उगाए हुए चावल स्वयं ही उपयोग में लेता है।
मामूली सी बात है, कि जिस घर में खाने वाले अधिक तथा कमाने वाले कम होंगे वहां के लोगों का जीवन स्तर बहुत ही मामूली रह जाएगा। वर्तमान भारत के कई गांवों में आज निम्न स्तर के जीवन जीने वाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
कहते हैं कि पैसा पैसे को खींचता है और गरीबी को। गरीबी का कुचक्र एक ऐसा चक्र है जिसमें लोग आजीवन फंसे रह जाते हैं तथा अपने हित व समाज के हित की बात सोच ही नहीं पाते।
जब लोगों के जीवन का स्तर निम्न होगा जाहिर सी बात है कि देश का स्तर भी गिरेगा। इसलिए जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम को कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि समस्त राष्ट्र भुगतता है।
जनसंख्या वृद्धि के सबसे बड़े दुष्परिणाम के रूप में पर्यावरण तथा प्राकृतिक संसाधनों की हानि के रूप में सामने आता है। जहां लोगों की वृद्धि होती है वहां उन्हें रहने के लिए अतिरिक्त जगह की आवश्यकता पड़ती है। जिसके कारण जंगलों तथा प्राकृतिक स्थानों का नाश किया जाता है।
इसके अन्य बहुत सारे दूरगामी दुष्परिणाम सामने आते हैं जैसे कि- बेरोजगार स्त्री पुरुषों की संख्या में बढ़ोतरी होना, प्रदूषण का बढ़ना , श्रम बाजार में प्रतिस्पर्धा का बढ़ना तथा आपराधिक प्रवृत्तियों में बढ़ोतरी होना इत्यादि।
जनसंख्या नियंत्रण कानून Population Regulation Bill in Hindi
जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने जबरदस्ती आपातकालीन लागू कर दिया था तब उन्होंने 60 लाख लोगों की जबरदस्ती नसबंदी कराई थी। जिसके बाद लगभग दो हजार लोगों की मृत्यु हो गई थी।
विगत सरकारों ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए बहुत से कानून बनाने के प्रयास किए। लेकिन वे सभी फाइलों में धूल खाती रह गई।
सन 2000 में जनसंख्या नियंत्रण के लिए स्वर्गीय अटल बिहारी सरकार में गठित वेंकटचलैया आयोग ने कानून बनाने की सिफारिश की थी। वेंकटचलैया आयोग ने 31 मार्च 2002 को अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी थी।
इसके बाद सभी सरकारों ने जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर अपने स्वार्थ साधना ही पूरी की। वर्तमान नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान लाल किले से जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे को उठाया था।
2015 से 2018 तक विभिन्न लोगों ने अपने अपने रिसर्च और रिपोर्ट को उजागर किया था जिसमें गैर कानूनी तरीके से भारत में रह रहे लोगों का उल्लेख खुलकर किया गया था।
समय-समय पर अनेक राजनेताओं ने जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने के विषय को उठाया। लेकिन जनसंख्या नियंत्रण यह परिवार का व्यक्तिगत मामला होता है इसलिए वर्तमान सरकार ने जागरूकता पर अधिक जोर दिया है।
लेकिन जो मुद्दे राष्ट्र की अखंडता और संप्रभुता के लिए जरूरी होते हैं उन मुद्दों के लिए जबरजस्ती कानून बनाने की आवश्यकता हो तो ही बनाने चाहिए। क्योंकि एक बार परिस्थिति हाथ से निकल जाती है तो पछताने के अलावा कुछ नहीं बचता।
जनसंख्या वृद्धि के नियंत्रण के उपाय Measures to Control Population Growth in Hindi
जनसंख्या वृद्धि के नियंत्रण के लिए सबसे पहले लोगों में जागरूकता को फैलाना चाहिए। इसके लिए गांव देहातों में विभिन्न सभाओं व परिवार नियोजन संस्थाओं का निर्माण करना चाहिए।
शिक्षा के अभाव में लोग जनसंख्या वृद्धि को नजरअंदाज करते हैं। जिसके लिए लोगों को शिक्षित तथा अनुशासित करने का ताना-बाना बुनना चाहिए।
गैरकानूनी रूप से दाखिल हुए लोगों को बलपूर्वक देश के प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल करना चाहिए तथा गैर कानूनी रूप से दाखिल हुए लोगों के लिए विशेष कानून बनाना चाहिए।
जनसंख्या विस्फोट को रोकने के लिए कड़े कानून बनाना ही एकमात्र उपाय है। जिसके माध्यम से लोगों में संतुलन बनाए रखने की जागरूकता में वृद्धि होगी।
बढ़ती हुई जनसंख्या पर 10 लाइन Best 10 lines on Population growth in Hindi
- किसी भी देश के आर्थिक संपत्ति के मुकाबले अतिरिक्त जनसंख्या को बढ़ती हुई जनसंख्या कहते हैं।
- जनसंख्या की दृष्टि से चीन दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है।
- भारत यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आबादी वाला देश है।
- एक रिसर्च के अनुसार 2048 तक भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा।
- रिपोर्ट के अनुसार, विश्व की जनसंख्या वर्ष 2064 में लगभग 9.7 बिलियन होने का अनुमान लगाया गया है।
- समय के साथ किसी देश की बढ़ती आबादी को वृद्धि वक्र के द्वारा दर्शाया जाता है।
- बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण देश का आर्थिक विकास भी अवरुद्ध होता है।
- जनसंख्या वृद्धि के मुख्य सबसे बड़ा कारण अशिक्षा का होना है।
- तेजी से जनसंख्या वृद्धि से पर्यावरण में परिवर्तन उत्पन्न होता है।
- भारत में जनसंख्या नियंत्रण कानून की आवश्यकता बेहद ही अधिक है।
निष्कर्ष Conclusion
इस लेख में आपने बढ़ती हुई जनसंख्या पर निबंध हिंदी में (Essay on Increasing Population in Hindi) पढ़ा। आशा है यह निबंध आपको जानकारी से भरपूर लगा होगा। अगर यह लेख आपको अच्छा लगा हो तो शेयर जरूर करें।
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जनसँख्या पर निबंध (Population Essay in Hindi)
जनसंख्या एक विशेष क्षेत्र में रहने वाले जीवों की कुल संख्या को दर्शाती है। हमारे ग्रह के कुछ हिस्सों में आबादी का तेजी से विकास चिंता का कारण बन गया है। जनसंख्या को आमतौर पर किसी क्षेत्र में रहने वाले लोगों की कुल संख्या के रूप में जाना जाता है। हालांकि यह उन जीवों की संख्या को भी परिभाषित करता है जो इंटरब्रिड कर सकते हैं। कुछ देशों में मानव जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। इन देशों को मानव नियंत्रण उपायों को नियंत्रित करने की सलाह दी जा रही है।
जनसँख्या पर छोटे तथा लंबे निबंध (Short and Long Essay on Population in Hindi, Jansankhya par Nibandh Hindi mein)
निबंध 1 (300 शब्द): जनसंख्या वृद्धि के कारण.
जनसंख्या एक जगह पर रहने वाले लोगों की संख्या को दर्शाने के लिए आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आबादी का घनत्व भिन्न-भिन्न कारणों से अलग-अलग होता है।
जनसंख्या का असमान वितरण
धरती पर जनसंख्या असमान रूप से वितरित है। जहाँ कुछ देश ऐसे हैं जो आबादी विस्फोट की समस्या का सामना कर रहे हैं वही कई देश कम आबादी वाले भी हैं। ऐसा सिर्फ मानव आबादी के मामले में नहीं है। यही बात जानवरों और अन्य जीवों के मामलों में भी देखी जाती है। कुछ जगहों पर आपको अधिक संख्या में जानवर दिखाई देंगे जबकि कुछ जगहों पर आपको शायद ही कोई जानवर देखने को मिलेगा।
चीजें जो जनसंख्या घनत्व प्रभावित करती हैं
किसी भी क्षेत्र में आबादी के घनत्व की गणना उस क्षेत्र की कुल संख्या को लोगों द्वारा विभाजित करके की जाती है। कई कारणों से जनसंख्या का घनत्व अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग होता है। कुछ कारक जो किसी क्षेत्र में आबादी की घनत्व को प्रभावित करते हैं वे इस प्रकार हैं:
अत्यंत गर्म या ठंडे मौसम वाले स्थान बहुत कम आबादी के हैं। दूसरी ओर जिन स्थानों पर लोग मध्यम जलवायु का आनंद लेते हैं वे घनी आबादी वाले हैं।
तेल, लकड़ी, कोयले जैसे संसाधनों की अच्छी उपलब्धता वाले क्षेत्रों में आबादी घनी होती है जहाँ इन बुनियादी संसाधनों की कमी होती है वे क्षेत्र कम आबादी वाले हैं।
- राजनीतिक माहौल
जिन देशों में एक स्थिर सरकार और एक स्वस्थ राजनीतिक वातावरण है वे क्षेत्र घनी आबादी वाले हैं। ये देश दूसरे इलाकों से आबादी को आकर्षित करते हैं जिससे उस क्षेत्र की आबादी में बढ़ोतरी होती है। दूसरी ओर गरीब या अस्थिर सरकार वाले देश के कई लोग किसी अच्छे अवसर की उपलब्धता को देखकर उस जगह को छोड़कर चले जाते हैं।
विकसित देशों जैसे यू.एस.ए. बहुत सारे आप्रवासियों को आकर्षित करते हैं क्योंकि वे लोगों को बहुत बेहतर पैकेज और एक अच्छा मानक जीवन प्रदान करते हैं। दुनिया के विभिन्न हिस्सों के लोग ऐसे देशों में आकर बसते हैं। यही कारण है कि ऐसे देशों में आबादी का घनत्व बढ़ रहा है।
भले ही दुनिया भर में कुछ जगहों में जनसंख्या का घनत्व कम हो फिर भी पिछले कुछ दशकों में देश की कुल जनसंख्या में वृद्धि हुई है और आने वाले समय में कई गुना बढ़ने की संभावना है।
निबंध 2 (400 शब्द) – भारत में बढ़ती जनसंख्या व जनसंख्या नियंत्रण
जनसंख्या का मतलब एक विशेष स्थान पर रहने वाले कुल जीवों की संख्या है। दुनिया के कई हिस्सों में मुख्य रूप से गरीब देशों में मानव आबादी का विकास चिंता का विषय बन गया है। दूसरी ओर ऐसे भी स्थान हैं जहां जनसंख्या की दर बहुत कम है।
बढ़ती जनसंख्या – भारत में एक बड़ी समस्या
भारत को बढ़ती आबादी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। दुनिया की करीब 17% आबादी भारत में रहती है जिससे यह दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देशों में से एक है। लगभग हर विकासशील देश की तरह भारत में जनसंख्या की वृद्धि के लिए कई कारण हैं। भारत में आबादी के विकास के मुख्य कारणों में से एक निरक्षरता है। अशिक्षित और गरीब वर्ग के लोग अधिक संख्या में बच्चों को जन्म देते हैं। इसके लिए दो कारण हैं।
सबसे पहले उनके लिए अधिक बच्चे काम करने और परिवार के लिए पैसे कमाने में मदद करते हैं। दूसरा उनमें से ज्यादातर जन्म नियंत्रण विधियों के बारे में नहीं जानते हैं। प्रारंभिक विवाह के परिणामस्वरूप बच्चों की संख्या अधिक होती है। आबादी में वृद्धि की वजह से मृत्यु दर कम हो सकती है। विभिन्न बीमारियों के लिए इलाज़ और उपचार विकसित किए गए हैं और इस तरह मृत्यु दर में कमी आई है।
भारत में जनसंख्या नियंत्रण के लिए उठाए गए कदम
भारतीय जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- न्यूनतम विवाहयोग्य आयु
सरकार ने पुरुषों के लिए न्यूनतम विवाह योग्य आयु 21 वर्ष और महिलाओं के लिए 18 साल तय की है। हालांकि इस पर कोई कड़ी जांच नहीं है। देश के ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में लोग अभी भी कम उम्र में अपने बच्चों की शादी करते हैं। सरकार को शादी की न्यूनतम उम्र में वृद्धि करना चाहिए और इसके लिए जांच भी कड़ी करनी चाहिए।
- मुफ्त शिक्षा
भारत सरकार ने बच्चों को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा कानून के अधिकार के जरिए देश के बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा उपलब्ध कराई है। जनसंख्या को नियंत्रित करने का एक और तरीका है निरक्षरता को समाप्त करना।
- दत्तक ग्रहण को बढ़ावा देना
भारत सरकार बच्चों को गोद लेने को भी बढ़ावा दे रही है। ऐसे कई लोग हैं जो विभिन्न कारणों की वजह से अपने बच्चों को जन्म देते हैं। अपने स्वयं के बच्चे करने की बजाए बच्चों को अपनाना जनसंख्या को नियंत्रित करने का एक अच्छा तरीका है।
भारत में बढ़ती आबादी गंभीर चिंता का विषय है। हालांकि सरकार ने इस पर नियंत्रण रखने के लिए कुछ कदम उठाए हैं लेकिन ये नियंत्रण पर्याप्त प्रभावी नहीं हैं। इस मुद्दे को रोकने के लिए कई अन्य उपाय किए जाने की आवश्यकता है।
निबंध 3 (500 शब्द) – मानव विज्ञान, प्रौद्योगिकी व जनसंख्या विस्फोट
जनसंख्या सामान्यतः एक विशेष क्षेत्र में रहने वाले लोगों की कुल संख्या को दर्शाती है। हालांकि आबादी शब्द का मतलब केवल मानव आबादी ही नहीं है बल्कि वन्यजीव आबादी और जानवरों तथा अन्य जीवित जीवों की कुल आबादी की पुनरुत्पादन करने की क्षमता है। विडंबना यह है कि जहाँ मानव आबादी तेजी से बढ़ रही है तो जानवरों की आबादी कम हो रही है।
कैसे मानव विज्ञान और प्रौद्योगिकी मानव जनसंख्या विस्फोट को बढ़ावा दिया है ?
कई कारक हैं जो पिछले कुछ दशकों से दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जनसंख्या विस्फोट को बढ़ावा दे रहे हैं। प्रमुख कारकों में से एक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति है। जहाँ पहले जन्म दर और मनुष्य की मृत्यु दर के बीच एक संतुलन था चिकित्सा विज्ञान में प्रगति ने उसमें असंतुलन पैदा कर दिया है। कई बीमारियों का इलाज करने के लिए दवाएं और आधुनिक चिकित्सा उपकरणों को विकसित किया गया है। इन की मदद से मनुष्य मृत्यु दर कम हो गई है और इससे जनसंख्या में वृद्धि हो गई है।
इसके अलावा तकनीकी विकास ने भी औद्योगीकरण को रास्ता दिखाया है। हालांकि पहले ज्यादातर लोग कृषि गतिविधियों में शामिल थे और उसी के माध्यम से अपनी आजीविका अर्जित करते थे पर अब कई अलग-अलग कारखानों में नौकरी करने की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे क्षेत्रों की आबादी, जहां इन उद्योगों की स्थापना की जाती है, दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
वन्यजीव जनसंख्या पर मानव जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव
जहाँ मानव आबादी विस्फोट के कगार पर है वहीं वन्यजीव आबादी समय गुज़रने के साथ कम हो रही है। पक्षियों और जानवरों की कई प्रजातियों की आबादी काफी कम हो गई है जिसका केवल मनुष्य को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इनमें से कुछ विवरण नीचे दिए गए हैं:
- वनों की कटाई
वन्यजीव जानवर जंगलों में रहते हैं। वनों की कटाई का अर्थ है उनके आवास को नष्ट करना। फिर भी मनुष्य निर्दयता से अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगलों को काट और नष्ट कर रहा है। जानवरों की कई प्रजातियों में भी कमी आई है और कई लोग अन्य अपने निवास की गिरती गुणवत्ता या नुकसान के कारण विलुप्त हो गए हैं।
- बढ़ता प्रदूषण
बढ़ता हवा, पानी और भूमि प्रदूषण एक और प्रमुख कारण है कि कई जानवरों की कम उम्र में मृत्यु हो जाती है। पशुओं की कई प्रजातियां बढ़ते प्रदूषण का सामना करने में सक्षम नहीं हैं। उन्हें इसके कारण कई बीमारियों का सामना करना पड़ता है और उसके घातक परिणामों का सामना करना पड़ता है।
- जलवायु में परिवर्तन
दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जलवायु काफी तेजी से बदल गई है। कई क्षेत्र जिनमें पहले मध्यम बारिश होती थी वहां अब हालात बाढ़ की तरह दिखाई देने लगे हैं। इसी तरह गर्मी के मौसम में हल्के गर्म रहने वाले क्षेत्र अब बेहद गर्म मौसम का अनुभव करते हैं। जहाँ मनुष्य ऐसी स्थितियों के अनुकूल होने के लिए तैयार होते हैं वहीं जानवर इसका सामना नहीं कर सकते।
मनुष्य ने हमेशा अपने पौधों, जानवरों और उनके आसपास के समग्र वातावरण पर प्रभाव की अनदेखी करते हुए अपने आराम और सुख के बारे में सोचा है। अगर मनुष्य इस तरह से व्यवहार करते रहे तो पृथ्वी मनुष्य के अस्तित्व के लिए अब फिट नहीं रहेगी। यह सही समय है कि हमें मानव आबादी को नियंत्रित करने और साथ ही हमारे ग्रह को बर्बाद कर रही प्रथाओं को नियंत्रित करने के महत्व को स्वीकार करना चाहिए।
निबंध 4 (600 शब्द) – जनसंख्या नियंत्रण क्यों आवश्यक है व इसके उपाय क्या हैं
जनसंख्या एक क्षेत्र में रहने वाले लोगों की कुल संख्या को दर्शाती है। यह न केवल मनुष्यों को संदर्भित करती है बल्कि जीवित जीवों के अन्य रूपों को भी संदर्भित करती है जिनमें पैदा करने और गुणा करने की क्षमता होती है। पृथ्वी के कई हिस्सों में जनसंख्या बढ़ रही है। हालांकि विभिन्न देशों की सरकार विभिन्न तरीकों से इस मुद्दे को रोकने की कोशिश कर रही है लेकिन इसे नियंत्रित करने के लिए अभी भी बहुत कुछ करना होगा।
जनसंख्या को नियंत्रित करना क्यों आवश्यक है ?
आबादी की बढ़ती दर कई समस्याओं का कारण है। विकासशील देश विकसित देशों के स्तर तक पहुंचने में कड़ी मेहनत कर रहे हैं और इन देशों में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि इस दिशा में मुख्य बाधाओं में से एक है। बढ़ती आबादी के कारण बेरोजगारी की समस्या उच्चतम स्तर पर है। नौकरियों की तलाश में कई लोग हैं लेकिन रिक्तियां सीमित हैं। बेरोजगारी गरीबी का कारण है जो एक और समस्या है। यह लोगों के बीच असंतोष पैदा करती है और अपराध को जन्म देती है। जो लोग अपनी वांछित नौकरियां प्राप्त नहीं कर पाते वे अक्सर पैसे कमाने के लिए अवांछित तरीके अपनाते हैं।
यह भी समझना चाहिए कि संसाधन सीमित हैं लेकिन लोगों की बढ़ती संख्या के कारण मांग बढ़ रही है। वनों को काटा जा रहा है और उनकी जगह विशाल कार्यालय और आवासीय भवन बनाए जा रहे हैं। क्यां करे? यह बढ़ती आबादी को समायोजित करने के लिए किया जा रहा है। प्राकृतिक संसाधन तेजी से कम हो रहे हैं क्योंकि अधिक संख्या में लोग उनका उपयोग कर रहे हैं। यह पर्यावरण में असंतुलन पैदा कर रहा है। लोगों की मांगों को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे पर्यावरण का क्षरण ही नहीं बल्कि जीवन की लागत भी बढ़ जाती है। इस प्रकार आबादी को नियंत्रित करना आज के समय की आवश्यकता बन गया है। पर्यावरण में संतुलन और सामंजस्य स्थापित करने के लिए यह आवश्यक है। इससे लोगों के लिए बेहतर जीवन स्तर सुनिश्चित होगा।
मानव जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए संभावित कदम
मानव आबादी को नियंत्रित करने के लिए यहां कुछ संभावित कदम दिए गए हैं:
गरीब और अशिक्षित वर्गों के लोग अधिकतर परिवार नियोजन योजना नहीं बनाते हैं। वे महिलाओं को एक के बाद एक बच्चे पैदा करने की मशीन के रूप में देखते हैं। लोगों को शिक्षित करना आवश्यक है। सरकार को सभी के लिए शिक्षा आवश्यक बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए।
- परिवार नियोजन
परिवार के नियोजन के महत्व के बारे में लोगों को संवेदनशील बनाना सरकार के लिए आवश्यक है। यह रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट और संचार के अन्य रूपों के माध्यम से बार-बार किया जाना चाहिए।
- मौद्रिक लाभ
सरकार को करों से छूट या उन परिवारों को अन्य मौद्रिक लाभ प्रदान करना चाहिए जिनके पास एक बच्चा है। चूंकि आज लोग पैसे के पीछे भाग रहे हैं इसलिए आबादी को नियंत्रित करने की दिशा में यह एक प्रभावी कदम होगा। कुछ देशों की सरकारें पहले ही ऐसी नीतियों को लागू कर चुकी हैं।
- जुर्माना या दंड
जैसे सरकार उन लोगों को मौद्रिक लाभ प्रदान कर सकती है जो समुचित परिवार नियोजन करते हैं उसी तरह उन पर पैसों के रूप में जुर्माना भी लगा सकती है जो ऐसा नहीं करती है। दो से अधिक बच्चों वाले परिवारों पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए।
- सख्त मॉनिटरिंग
सरकार को केवल उपर्युक्त बिंदुओं को लागू नहीं करना चाहिए बल्कि इनकी एकदम सही जांच भी करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोग उनका पालन करें।
लोगों को आबादी नियंत्रित करने के महत्व को समझना चाहिए। यह न केवल उन्हें स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण तथा बेहतर जीवन स्तर प्रदान करेगा बल्कि अपने देश के समग्र विकास में भी मदद करेगा। सरकार को भी इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और जनसंख्या नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए उचित नियम और नीतियां बनानी चाहिए। इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए दोनों सार्वजनिक और सरकार को एक साथ काम करने की आवश्यकता है।
FAQs: Frequently Asked Questions on Population (जनसँख्या पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
उत्तर- वेटिकन सिटी
उत्तर- उत्तर प्रदेश की
उत्तर- शिक्षा एवं परिवार नियोजन के प्रति जागरुकता।
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जनसंख्या वृद्धि पर निबंध
By विकास सिंह
आज 21वीं सदी में विश्व अत्यधिक जनसँख्या (population) की एक बड़ी समस्या का सामना कर रहा है जो अब वैश्विक संकट के बराबर हो गया है।
विषय-सूचि
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आज के समय में जनसंख्या दुनिया की अग्रणी समस्याओं में से एक बन गई है। इसके लिए हम सभी को त्वरित और गंभीर ध्यान देने की आवश्यकता है। बढ़ती जनसंख्या के कारण सबसे खराब स्थिति अब कई देशों में देखी जा सकती है जहां लोग भोजन, आश्रय, शुद्ध पानी की कमी से जूझ रहे हैं और प्रदूषित हवा से सांस लेना पड़ रहा है।
बढ़ी हुई जनसंख्या प्राकृतिक संसाधनों को प्रभावित करती है:
यह संकट दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है और हमारे प्राकृतिक संसाधनों को पूरी तरह से प्रभावित कर रहा है क्योंकि अधिक लोग पानी, भोजन, भूमि, पेड़ और अधिक जीवाश्म ईंधन के अधिक उपभोग के परिणामस्वरूप पर्यावरण को बुरी तरह से प्रभावित कर रहे हैं। वर्तमान समय में, अधिक जनसंख्या प्राकृतिक सौंदर्य के अस्तित्व के लिए अभिशाप बन गई है। पर्यावरण में प्रदूषित हवा के कारण लोग विभिन्न बीमारियों से पीड़ित हैं।
जनसंख्या बेरोजगारी का कारण बन सकती है और किसी भी देश के आर्थिक विकास को भी प्रभावित कर सकती है। जनसंख्या के लगातार बढ़ते स्तर के कारण कई देशों में गरीबी भी बढ़ रही है। लोग सीमित संसाधनों और पूरक आहार के तहत जीने के लिए बाध्य हैं।
भारत सहित कई देशों में, जनसंख्या ने अपनी सभी सीमाओं को पार कर लिया है और इसके परिणामस्वरूप हम उच्च अशिक्षा स्तर, खराब स्वास्थ्य सेवाओं और ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों की कमी पाते हैं।
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प्रस्तावना:
विश्व की जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और यह दुनिया के लिए एक बड़ी चिंता बनती जा रही है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, दुनिया में जनसंख्या पहले ही 7.6 बिलियन को पार कर गई है। जनसंख्या में वृद्धि दुनिया के आर्थिक, पर्यावरण और सामाजिक विकास को प्रभावित करती है।
विभिन्न जनसंख्या वाले विभिन्न देश:
दुनिया के सभी देशों में जनसंख्या वृद्धि एक समान नहीं है। कुछ देशों में उच्च विकास होता है जबकि कुछ मध्यम या उनकी जनसंख्या में बहुत कम वृद्धि होती है। यह बहुत सी चुनौतियां पैदा करता है क्योंकि उच्च विकास वाले देश गरीबी, अधिक खर्च, बेरोजगारी, ताजे पानी की कमी, भोजन, शिक्षा, संसाधनों की कमी आदि के कारण जनसंख्या विस्फोट के परिणामस्वरूप होते हैं, जबकि कम जनसंख्या वृद्धि वाले देशों में श्रमशक्ति की कमी होती है।
जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव:
आइए देखें कि जनसंख्या विभिन्न तरीकों से किसी देश को कैसे प्रभावित करती है:
- जनसंख्या बढ़ने से प्राकृतिक संसाधनों की अधिक खपत होती है।
- आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन जनसंख्या वृद्धि के रूप में नहीं है, जबकि सब कुछ के लिए मांग में वृद्धि हुई है।
- बेरोजगारी में वृद्धि, कभी-कभी कमाई के अन्य नाजायज तरीकों के प्रति युवाओं की गलतफहमी के कारण।
- सरकार को बुनियादी आवश्यकताओं जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, बुनियादी ढाँचा, सिंचाई, पानी आदि पर अधिक खर्च करना पड़ता है जबकि राजस्व में जनसंख्या वृद्धि के अनुसार वृद्धि नहीं हो रही है, इसलिए माँग और आपूर्ति में अंतर लगातार बढ़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है।
- बेरोजगारी व्यय की क्षमता को कम कर देती है और परिवारों ने इसकी बचत को मूलभूत आवश्यकता पर खर्च किया है और अपने बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकते हैं।
- कम योग्यता और बच्चों के लिए रोजगार की कम संभावना है जब वे अपनी कामकाजी उम्र तक पहुंचते हैं। यह अर्थव्यवस्था और औद्योगिक विस्तार में वृद्धि को प्रभावित करता है।
निष्कर्ष:
विश्व में विशेष रूप से तेज विकास दर वाले देशों को बचाने के लिए जनसंख्या वृद्धि दर को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। यह प्रणाली को संतुलित करेगा क्योंकि देश की वृद्धि के लिए मानव शक्ति की आवश्यकता होती है।
जनसंख्या विस्फोट पर निबंध, population explosion essay in hindi (400 शब्द)
हालाँकि जनसंख्या पर एक विश्वव्यापी समस्या है लेकिन अभी भी कुछ देशों में जनसंख्या आवश्यक दर से कम है जो एक गंभीर मुद्दा भी है क्योंकि उन देशों में कम लोगों का मतलब उस देश के विकास के लिए समर्थन और काम करने के लिए कम श्रमशक्ति है।
ओवर पॉपुलेशन निश्चित रूप से किसी भी देश के लिए कई मायनों में हानिकारक है लेकिन इसका कुछ सकारात्मक पक्ष भी है। आबादी बढ़ने से एक ऐसे देश के लिए जनशक्ति में वृद्धि होती है जहां अधिक लोग आसानी से विभिन्न क्षेत्रों के विकास में मदद करते पाए जाते हैं।
कैसे जनसंख्या वृद्धि एक देश के लिए अच्छी है?
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के विकास के लिए नियंत्रित जनसंख्या वृद्धि भी आवश्यक है। आइए देखें कैसे:
यदि किसी देश की जनसंख्या निरंतर है या नहीं बढ़ रही है, तो यह युवा लोगों की तुलना में अधिक वृद्ध लोगों का निर्माण करेगा। उस देश के पास काम करने के लिए पर्याप्त श्रमशक्ति नहीं होगी। जापान सबसे अच्छा उदाहरण है क्योंकि वहां सरकार उम्र के अंतर को कम करने के प्रयास में जन्म दर बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही है।
दूसरा सबसे अच्छा उदाहरण चीन से लिया जा सकता है क्योंकि 25 साल पहले यहां सरकार ने एक परिवार में एक बच्चे के शासन को लागू किया था। कुछ वर्षों के बाद जब चीन की विकास दर कम होने लगी और युवा श्रमशक्ति कम हो रही थी, तब हाल ही में उन्होंने इस प्रतिबंध को हटा दिया और माता-पिता को एक के बजाय दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दी।
जनसंख्या वृद्धि से अधिक जनशक्ति और बुनियादी / विलासिता के लिए आवश्यक वस्तुओं की अधिक खपत पैदा होगी। अधिक खपत का मतलब है कि खपत को पूरा करने के लिए अधिक उद्योग वृद्धि। अधिक उद्योग को अधिक जनशक्ति की आवश्यकता होती है।
मनी सर्कुलेशन में सुधार होगा और देश के रहने की लागत में सुधार होगा। देश में लोग पैसा कमाएंगे और अपने बच्चों को शिक्षित करेंगे ताकि वे देश की तरक्की के लिए काम कर सकें। मूल रूप से यह सब जनसंख्या की नियंत्रित वृद्धि पर निर्भर करता है। यदि जनसंख्या वृद्धि आवश्यकता से अधिक है, तो यह बेरोजगारी, गरीबी आदि की समस्या पैदा करेगी।
जनसंख्या पर हमेशा किसी देश की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है लेकिन किसी देश को कई तरीकों से सफलता प्राप्त करने के लिए नियंत्रित जनसख्या वृद्धि की भी आवश्यकता होती है। क्या संसाधन अधिक आबादी वाले देशों के लिए सीमित हो सकते हैं, लेकिन अतिरिक्त संसाधन पैदा करने और नए आविष्कार करने के लिए अतिरिक्त श्रमशक्ति की आवश्यकता है।
बढ़ती हुई जनसंख्या पर निबंध, essay on increasing population in hindi (500 शब्द)
जनसंख्या किसी विशेष क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की संख्या की गिनती है। यह कुछ देशों में खतरनाक दर तक पहुँच गया है। अधिक जनसंख्या अशिक्षा, परिवार नियोजन के अनुचित ज्ञान, विभिन्न स्थानों से प्रवास जैसे कई कारणों के कारण हो सकती है।
भारत विश्व में दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है
सर्वेक्षण के अनुसार इस पूरी दुनिया में लगभग 7.6 बिलियन मनुष्यों का निवास है, जिसके बीच दुनिया की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा भारत में रहता है, यानी 125 करोड़ से अधिक लोग। अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरूप लगभग 21% भारतीय गरीबी रेखा से नीचे हैं। इससे भविष्य में विनाशकारी प्रभाव हो सकते हैं और इस प्रकार एक सुरक्षित और स्वस्थ जीवन जीने के लिए इसे नियंत्रित करना आवश्यक है।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की जनसंख्या 121 करोड़ को पार कर गई है और यह दुनिया में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। वर्तमान में यह आंकड़ा 130 करोड़ को पार कर सकता है और निकट भविष्य में यह चीन चीन से आगे निकल जाएगा। जनसंख्या वृद्धि के रूप में भारत एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है। यह भारत की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है और गरीबी और लोगों के निम्न जीवन स्तर के लिए भी जिम्मेदार है।
गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) उपभोक्ताओं की भारी आबादी को पूरा करने के लिए सरकार को रियायती दर पर बुनियादी चीजें प्रदान करने के लिए अधिक खर्च करना पड़ता है। जैसा कि सरकार बुनियादी वस्तुओं पर सब्सिडी प्रदान कर रही है, इसे अर्थव्यवस्था में वृद्धि के लिए विकास परियोजनाओं के लिए उपयोग की जाने वाली न्यूनतम राशि के साथ छोड़ दिया गया है।
सरकार के पास सामाजिक सेवाओं जैसे कि शिक्षा, अस्पताल, आवास, बुनियादी ढांचे आदि पर खर्च करने के लिए कम मात्रा है जो अनिवार्य रूप से एक प्रगतिशील देश के लिए आवश्यक हैं। इसलिए, हमारी अर्थव्यवस्था की नियोजित वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट पर कुछ प्रभावी जांच की आवश्यकता है।
निरक्षरता अधिक जनसंख्या का प्रमुख कारण है:
भारत में जनसंख्या वृद्धि के लिए निरक्षरता मुख्य कारण है। गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) रहने वाले लोगों को इस जनसंख्या वृद्धि के परिणाम के बारे में पता नहीं है जो उनकी निरक्षरता के कारण हैं। लोग सोचते हैं कि अधिक बच्चों का मतलब है कि वे इसके प्रभाव को महसूस किए बिना परिवार के लिए अधिक पैसा कमाएंगे।
कभी-कभी माता-पिता लड़के की इच्छा करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वह अपना नाम और परिवार का नाम लोकप्रिय होगा। कभी-कभी वे एकल लड़के की इच्छा में 3-4 लड़कियों को जन्म देते हैं।
कैसे ओवरपॉपुलेशन बेरोजगारी का कारण बनता है:
ओवरपॉपुलेशन भारत में बेरोजगारी का मुख्य कारण है। हम देख सकते हैं कि किसी भी परीक्षा या रिक्ति के लिए, लाखों आवेदन प्राप्त होते हैं। यह प्रतिस्पर्धा को बढ़ाता है और कभी-कभी लोग नौकरी पाने के लिए रिश्वत का उपयोग करते हैं। यह उस प्रणाली के भ्रष्टाचार को भी बढ़ाता है जो भारत की बढ़ती चिंता है।
भारत में जनसंख्या नियंत्रण के लिए सरकार की भूमिका:
सरकार ने परिवार नियोजन के लाभों के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए कई पहल की हैं। कुछ प्रमुख कदम यहां दिए गए हैं:
- सरकार ने कानून में संशोधन किया है और लड़के और लड़की की शादी के लिए न्यूनतम आयु निर्धारित की है। सरकार लोगों में परिवार नियोजन के महत्व, लड़कों और लड़कियों की समानता, टीवी पर विभिन्न विज्ञापनों, गाँव में पोस्टर आदि के बारे में जागरूकता पैदा कर रही है।
- सरकार न्यूनतम फीस लेकर, मध्यान्ह भोजन, मुफ्त वर्दी, किताबें आदि प्रदान करके बच्चों की शिक्षा को बढ़ावा दे रही है।
किसी देश को विकसित और शक्तिशाली बनाने के लिए उस देश के प्रत्येक नागरिक को दूसरों पर दोष लगाने के अलावा अपने स्वयं के अंत पर कदम उठाने की जरूरत है। एक राष्ट्र के विनाश के लिए जनसंख्या का सबसे बड़ा कारण हो सकता है। हमें राष्ट्र के रूप में सफलता प्राप्त करने के लिए समस्या के प्रभावी समाधान का पता लगाना चाहिए।
जनसंख्या वृद्धि पर निबंध, essay on population growth in hindi (essay 600 शब्द)
वर्तमान स्थिति में अतिवृष्टि की समस्या वैश्विक संकट की श्रेणी में आती है जो दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। यह निबंध विशेष रूप से इसके कारणों, इसके प्रभावों और सबसे महत्वपूर्ण समाधान के मुद्दों को समझने के लिए लिखा गया है।
अत्यधिक जनसंख्या: कारण, प्रभाव और समाधान
अत्यधिक जनसँख्या का अर्थ है संख्या की तुलना में किसी क्षेत्र में लोगों की संख्या में वृद्धि, उस क्षेत्र विशेष के संसाधन टिक सकते हैं। इस समस्या के पीछे कई कारण हैं:
जनसंख्या वृद्धि के कारण:
विकासशील देशों में जनसंख्या की वृद्धि दर अधिक है। इस वृद्धि का कारण मुख्य रूप से परिवार नियोजन के ज्ञान की कमी है। ज्यादातर लोग जो जनसंख्या वृद्धि में योगदान कर रहे हैं, वे निरक्षर हैं और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। वे इसके निहितार्थ को समझे बिना कम उम्र में अपने बाल विवाह कर रहे हैं।
ज्यादातर लोग नौकरी के अवसरों या रोजगार और जीवन शैली में सुधार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों / शहर में आते हैं। यह शहर में असंतुलन और संसाधनों की कमी पैदा करता है। चिकित्सा प्रौद्योगिकी / उपचार में सुधार कई गंभीर बीमारियों के लिए मृत्यु दर को कम करता है। बहुत से पुराने रोग या घातक वायरस जैसे खसरा, छोटी चेचक का इलाज चिकित्सा सेवाओं में सुधार के साथ किया जा रहा है।
चिकित्सा विज्ञान में सुधार के साथ, यह उन दंपतियों के लिए संभव हो गया है जो गर्भधारण करने में असमर्थ हैं, प्रजनन उपचार विधियों से गुजरना चाहते हैं और उनके अपने बच्चे हैं। इसके अलावा, जागरूकता के कारण, लोग नियमित जांच और प्रसव के लिए अस्पताल जाते हैं, जो माँ और बच्चे के लिए सुरक्षित होते हैं।
जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव
जैसे-जैसे आबादी बढ़ेगी, भोजन और पानी जैसी बुनियादी जरूरतों की खपत भी बढ़ेगी। हालांकि पृथ्वी सीमित मात्रा में पानी और भोजन का उत्पादन कर सकती है, जो खपत की तुलना में कम है, जिससे कीमतों में वृद्धि होती है।
जंगल में जानवरों को प्रभावित करने वाले शहरीकरण के विकास को पूरा करने के लिए वन कम हो रहे हैं, जिससे प्रदूषण और पारिस्थितिकी में असंतुलन हो रहा है। कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस आदि के अति प्रयोग के कारण प्राकृतिक संसाधन बहुत तेजी से घट रहे हैं। यह हमारे पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पैदा कर रहा है।
जनसंख्या में वृद्धि के साथ, वाहनों और उद्योगों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है; वायु की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करना। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्रीनहाउस गैसों की रिहाई की मात्रा में वृद्धि, जिसके कारण हिमशैल और ग्लेशियरों से बर्फ पिघलने लगती है। जलवायु के पैटर्न में परिवर्तन, समुद्र के स्तर में वृद्धि कुछ ऐसे परिणाम हैं जिनका हमें पर्यावरण प्रदूषण के कारण सामना करना पड़ सकता है।
ओवरपॉपुलेशन ने हिंसा और आक्रामकता के कार्यों को बढ़ा दिया है क्योंकि लोग संसाधनों को प्राप्त करने और अच्छी जीवन शैली प्राप्त करने के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। जनसंख्या वृद्धि से बचाव के उपाय
विकसित देशों को अधिक जनसंख्या की समस्या का सामना नहीं करना पड़ रहा है क्योंकि विकसित देशों में लोग शिक्षित हैं और वे अधिक बच्चे पैदा करने के परिणामों से अवगत हैं। जबकि विकासशील देशों में, लोग अच्छी तरह से शिक्षित नहीं हैं और परिवार नियोजन के बारे में कोई उचित विचार नहीं रखते हैं। अगर शिक्षा में सुधार होता है तो वे एक या दो से अधिक बच्चे होने के नुकसान को समझेंगे।
बेहतर जीवन जीने के लिए हर परिवार को अपने बच्चों को संपूर्ण पौष्टिक भोजन, उचित आश्रय, सर्वोत्तम शिक्षा और अन्य महत्वपूर्ण संसाधन उपलब्ध कराने के लिए उचित ढंग से परिवार नियोजन की आवश्यकता होती है। एक देश तभी सफलता प्राप्त कर सकता है जब उसके नागरिक स्वस्थ हों और खुशहाल और संतुष्ट जीवन जी सकें। इस प्रकार नियंत्रित जनसंख्या विश्व के प्रत्येक देश के लिए सफलता की कुंजी है।
इस लेख से सम्बंधित सवाल और विचार आप नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।
विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.
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Itni acchi jankari ke liye aapka bahut bahut dhanyvad
lol xd mai kaise maan lu.
nice work.very bad job
ni acchi jankari ke liye aapka bahut bahut dhanyvad
Leave a Replyविकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं. https://hindi.theindianwire.com/author/vikas/ 1 Comment
Ram, March 3, 2020 @ 11:23Reply Itni acchi jankari ke liye aapka bahut bahut dhanyvad Your email address will not be published. Required fields are markसबुक पर दा इंडियन वायर से जुड़िये!ed * Ram, March 3, 2020 @ 11:23Reply Itni acchi jankari ke liye aapka bahut bah
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बढ़ती जनसंख्या की समस्या पर निबंध
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रूपरेखा : प्रस्तावना - विकास गति अवरुद्ध - जनसंख्या वृद्धि के कारण - वोट बैंक, जनसंख्या-नियंत्रण में बाधा - पाकिस्तानी तथा बंगला देशी नागरिकों का अवैध रूप से रहना - उपसंहार।
बढ़ती जनसंख्या भी भारत की गहन समस्या है । इसने देश के विकास कार्यो को बौना, जीवनयापन को अत्यन्त दुरूह तथा जीवन-शैली को उच्छुंखल और कुरूप बना दिया है। इसका परिणाम है, आज भारत की 60 प्रतिशत जनता गरीबी की सीमा-रेखा से नीचे जीवनयाएन करने को विवश हो चुके है। वह भूखे पेट को शांत करने के लिए असामाजिक कार्य करने लगे है। भारत के उद्योगों को आत्मनिर्भर बनाने, अपने पैरों पर खड़ा करने की भी समस्या है। कारण, विदेशी पूँजी और टेक्नीक भारतीय उद्योग को परतन्त्रता के लौह-पाश में जकड़ती जा रही हैं । आज विदेशी पूँजी और तकनीकी ने भारत में विदेशी बहुउद्देशीय कंपनियों का साम्राज्य स्थापित कर दिया है। भारत का कुटीर-उद्योग और लघु-उद्योग मर रहे हैं और औद्योगिक समूहों की आर्थिक स्थिति डगमगा रही है।
विकासशील भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या उसकी विकास-गति को अवरुद्ध करेगी। जीवन-जीने के लिए अत्यावश्यक पदार्थों से वंचित करेगी । जीवन-मृल्यों पर प्रश्न-चिह्द लगाएगी। आनंद का हरण कर विश्व-प्रांगण में भारत के सम्मान को ठेस पहुँचाएगी।
जनसंख्या किसी भी राष्ट्र की शक्ति होती है, शोभा होती है। जनसंख्या के बल पर ही राष्ट्र सुख, समृद्धि और वैभव प्राप्त कर सकता है । विकसित राष्ट्र भी अपनी आंतरिक जन-शक्ति के बल पर विश्व में गर्व से अपना भाल ऊँचा कर सकते हैं। किन्तु जनसंख्या का अत्यधिक बढ़ जाना राष्ट्र के लिए अनेक समस्याएँ उत्पन्न कर देता है। यदि जनसंख्या वृद्धि कौ यही गति रही तो दो दशक बाद भारत चीन से भी अधिक जनसंख्या वाला हो जायेगा।
भारत में जनसंख्या वृद्धि के मुख्यत: तीन कारण हैं-
- काम में विवेक को कमी ।
- सत्ताधारियों में इच्छा-शक्ति का अभाव और
- वोट-बैंक का मोह।
भारत की लगभग 35 प्रतिशत जनसंख्या अशिक्षित है । लगभग इतनी ही जनता जीवन स्तर से नीचे का जीवन जीती है। अशिक्षा और गरीबी के मध्य विवेक का स्वर अब रुद्ध हो जाता है। काम ही उनके आनंद का एक मात्र स्रोत है, अत: निर्बाध (बिना किसी संकोज) रूप में वे बच्चे पैदा करते हैं । ये बच्चे गरीबी में जन्म लेते हैं, पलते हैं और युवा होकर समाज-द्रोही बनत हैं। वीर्यविहीत काम का आनंद उनकी समझ के बाहर है। ऐसे नर-नारियों का जबरदस्ती वंध्यकरण करके उन्हें प्रजनन अधिकार से वंचित कर देना चाहिए।
जनसंख्या-नियंत्रण में सबसे बड़ी बाधा हैं, वोट बैंक। बीसवीं सदी का सुशिक्षित नागरिक दो संतानों से अधिक की न तो कामना करता है, न उत्पन्न करता है, किंतु जहाँ सम्प्रदाय विशेष का धर्म-शास्त्र ही चार विवाह और अनेक संतान उत्पन्न कर जनसंख्या बढ़ाने की आज्ञा देता हो, वहाँ सरकार घुटने टेक देती है। इस भिड़ के छत्ते को हाथ लगाकर अपना वोट-बैंक कौन खराब करना चाहेगा ?
पाकिस्तानी तथा बंगला देशी नागरिकों का अवैध रूप से रहना दूसरी ओर, भारत में लगभग एक करोड़ पाकिस्तानी तथा बंगला देशी नागरिक अवैध रूप से रहते हैं। वोट के लोभी राजनीतिक दलों की कृपा से येन-केन-प्रकारेण ये वोटर भी हैं। इनमें से अधिकांश मुसलमान हैं। अल्पसंख्यक और वोटर, ऐसे जनों को देश से बाहर कौन निकाल कर जनसंख्या पर नियंत्रण करना चाहेगा ?
बंगलादेशी नागरिकों को भारत से निकालने पर तथाकथित धर्म-निरपेक्ष पार्टियों ने 1999 की लोकसभा में जो शक्ति प्रदर्शन किया, उसके पीछे वोट-बैंक नीति काम कर रही थी । ऊपर से निर्भय होकर ये अधिक संतान उत्पन्न करेंगे तो भारत की जनंसख्या बढ़ेगी ही। बढ़ती जनसंख्या का सर्वाधिक हानिकर पक्ष है, विकास कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव। सरकार वर्तमान जनगणना के आधार पर जो भी विकास कार्य करती है, वह अपनी सम्पन्नता तक बढ़ती आबादी में खो जाती है । उदाहरणत: दिल्ली में हर साल 10-12 नए वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय खुलते हैं, फिर भी दिल्ली के स्कूल सम्पूर्ण शिक्षार्थियों को प्रवेश नहीं दे पाते। कमोवेंश यही हाल रोजगार उपलब्ध कराने के लिए रोजगार के नए साधन निर्माण का है, चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करने का है, यातायात एवं संचार साधनों का है। सरकार कितना भी विकास-योजनाओं को सम्पन्न करे, वे सब ऊँट के मुँह में जीरा साबित हो रही हैं। देश की खुशहाली, प्रगति, औद्योगिक विकास, आर्थिक उन्नति को बढ़ती हुई जनसंख्या रूपी सुरसा का मुख निगल जाता है।
जब तक केन्द्रीय तथा प्रांतीय सरकारें प्रबल इच्छा शक्ति से जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम को नहीं अपनाएँगी, अल्पसंख्यक-जन की पक्षधरता को नहीं त्यागेंगी तथा अवैध नागरिकों को बलपूर्वक उनके राष्ट्रों में जहाँ के वे नागरिक हैं, नहीं भेजेंगे, भारत में जनसंख्या पर नियंत्रण आकाश से तारे तोड़ लाना ही सिद्ध होगा अर्थात भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या कभी अंत नहीं होगा।
Nibandh Category
जनसंख्या वृद्धि पर निबंध (Population Growth Essay in Hindi)
हमारे भारत देश में जनसंख्या ज्यादा से ज्यादा बढ़ चुकी है। अगर जनसंख्या ऐसे ही बढ़ती जाएगी तो हमें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा ,बल्कि पहले से ही ज्यादा तोर पर समस्याएं हैं। जनसंख्या ज्यादा बढ़ने के कारण रोजगारी बढ़ रही है। उच्च शिक्षा नहीं मिल सकती। पेट को पालना तक कुछ लोगों को संभव नहीं हो रहा, तो नहीं नहीं और अनेक सुविधाएं क्या मिलेगी?
जनसंख्या वृद्धि पर लघु और दीर्घ निबंध (Short and Long Essay on Population Growth in Population Growth par Nibandh Hindi mein)
हमें जनसंख्या वृद्धि में नियंत्रण करना चाहिए। सरकार ने बाल विवाह पर कार्रवाई करते हैं। हमें भी उनको सहयोग करना चाहिए। अगर जन्म दर कम करें तो जनसंख्या में कम मात्रा में हो सकती है।उसके लिए सरकार ने कार्रवाई की है, कि ” हम दो हमारे दो” ये कायदा हमें भी लागू करवाना है। हमारे घर से ही हमें शुरुआत करनी चाहिए। बढ़ती जनसंख्या को कम करने के लिए परिवार नियोजन के उपाय हमें करनी चाहिए। कुटुंब नियोजन शस्त्रक्रिया, इंजेक्शन, गोलियां भी मिलती है।सरकार ने हमारी लिएं अस्पताल में उसका आयोजन कर लिया है। वह भी मुक्त बिना मुल्य ही।उससे हम कुछ दिन के लिए गर्भधारणा रुकवा कर जनसंख्या बढ़ने से रोक सकते हैं।
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जनसंख्या वृद्धि पर निबंध (समस्या, समाधान) सहित Essay on Population problem in Hindi
इस अनुच्छेद में हमने जनसंख्या वृद्धि पर निबंध समस्या और समाधान (Essay on Population problem in Hindi) लिखा है। साथ ही हमने जनसंख्या की परिभाषा और भारत की बढती जनसंख्या के विषय में भी हमने इसमें जानकारी दी है। इसमें हमने जनसंख्या विस्फोट का कारण, प्रभाव और उपाय की पूरी जानकारी दी है।
Table of Content
जनसंख्या की परिभाषा? Definition of Population in Hindi
किसी देश, शहर या किसी जिले या क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की कुल संख्या को जनसंख्या कहते हैं। जनसंख्या के ज़रूरत से ज्यादा बढ़ने से देश और दुनिया के ऊपर कई प्रकार से प्रभाव पड़ता है। नीचे हमने जनसंख्या वृद्धि और विस्फोट के बारे मे विस्तार से जानकारी दी है।
जनसंख्या वृद्धि क्या है? What is Population Problem in Hindi?
इसके परिणामस्वरूप आबादी की दर में गिरावट आई है, लेकिन इष्टतम जनसंख्या वृद्धि और स्वस्थ राष्ट्र के बीच संतुलन हासिल करना काफी दूर है अज्ञानता, निरक्षरता, अस्वच्छ जीवन और उचित मनोरंजन की कमी भारत में आबादी की समस्या के कारण बनी हुई है।
दोनों पुरुषों और महिलाओं को अधिक जनसंख्या के खतरों का एहसास होना चाहिए। अगर हम एक यादृच्छिक सर्वेक्षण करते हैं, तो हमें पता चलता कि अभी भी पुरुष और महिलाएं यह नहीं समझ पा रहे हैं कि उनके कम बच्चे होना चाहिए।
हमारे भारतीय समाज के एक बड़े अनुभाग में एक लोहार, एक बढ़ई, एक मेसन या एक दर्जी तुरंत अपने बच्चों को अपने पिता के व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए प्रशिक्षित करता है। सामान्यतः वे एक मनोवैज्ञानिक सोच रखते है कि ज़यादा बेटों के साथ वह बड़ा रोज़गार कर सकते है। जिस प्रकार एक मज़दूर अधिक पैदावार करता है तो इससे अधिक आय होती है
किसी भी जनादेश या वैधानिक विधि के अनुसार जनसंख्या ब्रद्धि में रोक लगाना गलत नहीं है। भारत धर्म निरपेक्ष राज्य है, वह धार्मिक आधार पर किसी भी जांच या संयम का प्रयोग नहीं करता है।
प्रारंभिक विवाह- शीघ्र विवाह न केवल उच्च जनसंख्या की ओर जाता है बल्कि हमारी युवा जनसंख्या की प्रगति को विफल भी बनाता है, वे युवाओं के लिए बड़ी मुश्किलें पैदा करते हैं। ज्यादातर युवा लड़कियां, इस उम्र में प्रसव के बोझ को सहन करने के लिए सक्षम नहीं होती हैं।
मूलरूप से प्राकृतिक संपदा का अधिक न्यायसंगत वितरण ना हो पाना, धार्मिक कट्टरपंथियों पर प्रतिबंध लगाया जाये जो अनावश्यक जन्म से देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे है शिक्षा की विधि द्वारा – ये अकेले आबादी समस्या पर एक प्रभावी नियंत्रण ला सकते हैं।
जनसंख्या विस्फोट क्या है? What is Population Explosion in Hindi?
जनसंख्या वृद्धि का कारण causes of population explosion in hindi, 1. बढ़ती जन्म दरें (rising birth rates).
जन्म नियंत्रण पद्धति का उपयोग ना करने और इसके सकारात्मक प्रभाव के बारे में जागरूकता की कमी के कारण जन्म दर में लगातार वृद्धि हुई है। यह बढती हुई जनसंख्या का एक मुख्य कारण है।
2. शिशु मृत्यु दर में कमी (Infant mortality rate)
3. जीवन प्रत्याशा में वृद्धि (increase in life expectancy).
बेहतर रहने की स्थिति, बेहतर स्वच्छता और स्वच्छता की आदतों, बेहतर पोषण, स्वास्थ्य शिक्षा आदि के कारण मानव आबादी की औसत जीवन प्रत्याशा में काफी सुधार हुआ है। अच्छी गुणवत्ता वाले भोजन की स्थिर आपूर्ति यह सुनिश्चित करती है कि जनसंख्या अच्छी तरह से पोषित होती है जनसंख्या बढ़ती है जब वे पर्याप्त रूप से पोषित होते हैं।
4. वृद्धि हुई आप्रवासन (Increased immigration)
आप्रवासन में वृद्धि अक्सर जनसंख्या विस्फोट में योगदान देती है। विशेष रूप से विकसित देशों में ऐसा तब होता है जब बड़ी संख्या में पहले से ही आबादी वाले स्थान पर स्थायी रूप से निवास करने के इरादे से दुसरे देशों से लोग आ जाते हैं और रहने लगते हैं। परन्तु अब इसके लिए भारत में CAA जैसे नए नियम आ चुके हैं।
5. आवश्यक से कम जगह (Less space than necessary)
कई देशों में जनसंख्या बहुत बढ़ जाती है परन्तु उन देशों में उतने लोगों के रहने की जगह नहीं होती है। ऐसे में उस देश और क्षेत्र के लोगों को कई प्रकार की परेशानियों को सामना करना पड़ सकते है। उदाहरण के लिए – खाना, पीने का पानी, बिजली आदि की कमी।
जनसंख्या बढ़ने के कारण Effect of Population Growth in Hindi
असामान्य जनसंख्या वृद्धि सामान्यतः भारत की गरीबी के मुख्य कारणों में से एक माना जाता है। इस कारण लोग बहुत दयनीय स्थिति में रहते है। लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए भारत में प्रयास किए जा रहे हैं, अगर आबादी को नियंत्रित करने की अनुमति दी जाती है तो इससे कोई फलदायी परिणाम उठा सकता है।
इस प्रयोजन के लिए अपनाई गई योजनाओं को तब तक अमल नहीं किया जा सकता जब तक कि आबादी की समस्या को संतोषजनक ढंग से सामना नहीं किया जाएगा। हालांकि, यह भी एक तथ्य है कि हम जनसंख्या पर कोई प्रभावी जांच नहीं कर सकते, जब तक कि सामान्य लोगों के लिए जीवन स्तर के स्तर में कोई बढ़ोतरी न हो।
अधिक जनसंख्या, अर्थव्यवस्था को कई मामलों में कमजोर बनाती है। प्राकृतिक संसाधनों पर आबादी का बढ़ता दबाव आर्थिक प्रगति को रोक देगा और शिक्षा, धन, आवास, आदि के रूप में सामाजिक सेवाओं के लिए दायरे को कम से कम करना, इसलिए एक प्रगतिशील राज्य के लिए अनिवार्य रूप से आवश्यक है कि हमारी अर्थव्यवस्था की योजना बद्ध वृद्धि को आबादी पर कुछ प्रभावी जांच की आवश्यकता है।
जनसंख्या वृद्धि के समाधान Solutions for Population Control in Hindi
पारिवारिक नियोजन के तरीकों में आम जनता को शिक्षित करने के लिए हमें एक चहुँमुखी शिक्षा देना होगी। यह एक अच्छा संकेत है कि हमारे लोगों का एक वर्ग, जो विशेष रूप से मध्यम वर्ग से संबंधित हैं, धीरे-धीरे जनसंख्या जागरूक हो रहे हैं और आबादी नियंत्रण के लिए तैयार किए गए तरीकों में सक्रिय रुचि ले रहे हैं।
निष्कर्ष Conclusion
आशा करते हों आपको जनसंख्या वृद्धि पर निबंध (समस्या, समाधान) सहित Essay on Population problem in Hindi लेख अच्छा लगा होगा और पूर्ण जानकारी मिली होगी।
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जनसंख्या वृद्धि - आपदा अथवा अवसर.
- 03 Jan, 2023 | हर्ष कुमार त्रिपाठी
कुछ दिनों पहले मैं अपने विद्यालय में आठवीं कक्षा में एक स्थानापन्न कालांश में गया था. वह कालांश शायद सामाजिक विज्ञान विषय का था. बच्चों से मैंने पूछा "कोई 5 कारण बताओ जिसके कारण यह देश तुमको बहुत अच्छा लगता है." छोटे बच्चों ने उत्साहपूर्वक कई जवाब दिये. फिर मैंने पूछा "अच्छा, देश की कोई 5 समस्याएं बताओ जो तुमको काफी बुरी लगती हैं और देश को भी बुरा बनाती हैं." मैंने एक बालक का नाम पूछा और उसे उठाया तो उसने पहली समस्या बतायी "सर, यहाँ आबादी बहुत ही ज्यादा है…..यह एक बहुत बड़ी समस्या है." इसके पहले कि मैं कुछ प्रतिक्रिया दे पाता, उस बच्चे के कुछ सीट पीछे बैठे एक दूसरे बच्चे ने कुछ चिढ़कर तेज आवाज में कहा "...तो क्या सबको मार कर फेंक दें क्या?"
वे दोनों ही बच्चे एक ही समुदाय के थे.
अब इस से मैं 3 बातें समझ पाया-
1. अधिक जनसंख्या एक समस्या है और यहाँ तक कि बच्चे भी इस बात को समझते हैं. 2. निश्चित तौर पर किसी को मार कर तो नहीं फेंक सकते, मतलब यह कि 'जनसंख्या प्रबंधन' जरूरी है. 3. जनसंख्या वृद्धि को किसी धर्म या जाति विशेष के चश्मे से न तो देखा जा सकता है, न ही ऐसा किया जाना चाहिये.
विश्व स्तर पर यदि हम जनसंख्या वृद्धि को देखें तो हमें 2 तस्वीरें नज़र आती हैं. एक तरफ तो जापान, नीदरलैंड, लक्जमबर्ग जैसे अति विकसित देश हैं जहाँ की अत्यल्प जनसंख्या वृद्धि उनके लिये चिंता का बहुत बड़ा कारण बन गयी है, क्योंकि वे देश "प्रजातीय संहार" की स्थिति से गुज़र रहे हैं. वहाँ के प्रतिष्ठानों में कार्य करने हेतु पर्याप्त श्रमबल ही उपलब्ध नहीं है, और वहाँ अनुत्पादक जनसंख्या (वृद्ध जन की आबादी) लगातार बढ़ रही है. वहाँ अधिक बच्चों को जन्म देने वाली महिला को पुरस्कार व अन्य सामाजिक लाभ दिये जाते हैं. वहीं दूसरी स्थिति भारत व चीन जैसे देशों की है, जहाँ अतिरेक जनसंख्या की स्थिति है और जहाँ भूमि व अन्य संसाधनों पर जनसंख्या का दबाव अत्यधिक है. यहाँ सरकारें बढ़ती आबादी पर लगाम लगाने के प्रयास कर रही हैं. UN द्वारा जारी "विश्व जनसंख्या अनुमान रिपोर्ट 2022" के अनुसार 2022 में विश्व की आबादी 8 अरब हो जायेगी जिसके 2050 तक 10 अरब तक पहुँच जाने का अंदेशा है. भारत के लिहाज से अहम बात यह है कि 2023 तक भारत चीन को पीछे छोड़ते हुए विश्व की सर्वाधिक आबादी वाला देश बन जायेगा.
इसका सीधा अर्थ है कि जनसंख्या वरदान भी सिद्ध हो सकती है और समस्या भी. जनसंख्या के सकारात्मक पक्षों को यदि देखें तो भारत और चीन जैसे विकासशील देशों के सन्दर्भ में एक शब्द प्राय: प्रयोग में लाया जाता है - जनांकिकीय लाभांश. इसका तात्पर्य उस जनांकिकीय स्थिति से है, जब जनसंख्या में युवा उत्पादक वर्ग (20 से 45 वर्ष) की जनसंख्या सर्वाधिक हो जो अनुत्पादक वर्ग (नाबालिग बच्चे और वृद्ध जन) की कुल जनसंख्या से अधिक हो तथा वृद्धजनों की जनसंख्या सबसे कम हो. इस स्थिति में उस देश के पास सबसे अधिक, और सबसे सक्षम व ऊर्जावान मानव संसाधन मौजूद होगा जो दीर्घकालिक सन्दर्भों में देश की प्रगति को बल देने में सक्षम होगा. विश्व की कई प्रतिष्ठित कंसल्टेंसी फर्म व रेटिंग एजेंसियां, शोध संस्थान भारत व चीन के लिये इस जनांकिकीय लाभांश की अवधि 2015 से 2050, अर्थात इन्हीं 35 वर्षों की विंडो को मानतीं हैं, और उसमें भी भारत को वरीयता देती हैं.
डेलॉयट इंटरनेशनल के अनुसार 2018 में भारत का कार्यकारी श्रमबल (20 से 60 वर्ष आयु वर्ग) 885 मिलियन था जो 2038 तक 1.08 बिलियन तक हो जायेगा. सी.आई.आई (CII) के अनुसार भारत के सम्मुख लगभग 30 वर्षों का समय है जिसमें यदि भारत की कार्यकारी उत्पादक जनसंख्या का उचित प्रकार से प्रबंधन किया गया तो 2047 तक भारत लगभग 40 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जायेगा. इस गणितीय समीकरण के अलावा जो बात भारत को आगे रखेगी वह होगी लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था, बहुदलीय प्रजातंत्र, देश में अंकीय विभाजन (Digital divide) का लगातार कम होते जाना और तेजी से बढ़ता नगरीकरण. चीन के बारे में इन सभी संस्थाओं का यह मानना है कि लंबे समय तक अपनायी गयी "वन चाइल्ड पॉलिसी" के कारण और लोकतांत्रिक मूल्यों के अभाव, अति केंद्रीकृत शासन व्यवस्था, हुकोउ रजिस्ट्रेशन जैसी कठोर व प्रतिगामी प्रणाली आदि के कारण चीन अब अपने पराभव के मुहाने पर खड़ा है. वहाँ वृद्धजनों की आबादी लगातार बढ़ रही है और जनसंख्या का कार्यकारी उत्पादक वर्ग निकट भविष्य में अधिक संकट का सामना करेगा जब जनसंख्या का निर्भरता अनुपात अधिक हो जायेगा. इसका बुरा प्रभाव चीन की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था पर पड़ना तय है.
लेकिन लगातार बढ़ती हुई अपनी इस कार्यकारी उत्पादक जनसंख्या का प्रबंधन वास्तव में भारत के लिये एक गंभीर चुनौती होगी, और यदि समय रहते इस पर काम न किया गया तो यह जनांकिकीय लाभांश की बजाय जनांकिकीय विपदा (Demographic disaster) का मार्ग खोल देगी. सिंगापुर, ताईवान, दक्षिण कोरिया जैसे देश इस बात का उदाहरण हैं कि कैसे भविष्योन्मुखी और ठोस नीतियां बनाकर जनांकिकीय लाभांश का सही मायनों में फायदा उठाया जा सकता है. इसलिये इस बात को दृष्टिगत रखते हुये मजबूत कदम लेने की जरूरत है, जैसे-
1. स्वास्थ्य पर अधिक खर्च बढ़ाने की जरूरत– वर्तमान में देश की कुल जी.डी.पी. का मात्र 1.5% तक ही सरकारें सार्वजानिक स्वास्थ्य हेतु खर्च कर रही हैं जबकि विश्व के अग्रणी देशों में यह प्रतिशत लगभग 6% से 10% के बीच है. अतः भारत को स्वास्थ क्षेत्र में भारी सरकारी निवेश की जरूरत होगी. इसमें भी महिलाओं, किशोरवय के बच्चों और नवजात बच्चों पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये.
2. उच्च शिक्षा, कौशल विकास व उद्यमशीलता पर अधिक निवेश की जरूरत - यह एक ऐसा क्षेत्रक है जो किसी स्थान विशेष की जनसंख्या को क्षमतावान व मूल्यवान मानव संसाधन के रूप में तब्दील करने की सामर्थ्य रखता है. दक्षिण कोरिया यहाँ पर एक आदर्श प्रस्तुत करता है. भारत में युवा, कार्यकारी उत्पादक जनसंख्या में अपेक्षाकृत जल्दी शामिल हो जाते हैं, ऐसे में द्वितीयक शिक्षा स्तर (6th से 12th कक्षा) से तृतीयक शिक्षा स्तर, कौशल विकास (skill development) व उद्यमशीलता में आबादी का जल्दी और तेजी से संक्रमण (transition) होना चाहिये, जिसके लिये बड़े पैमाने पर उच्च शिक्षा और कौशल विकास में निवेश की आवश्यकता होगी. दक्षिण कोरिया व जापान में जी.डी.पी. का 8% से 10% तक हिस्सा सरकारें शिक्षा पर खर्च करतीं हैं. भारत में यही प्रतिशत 2% से 2.5% के बीच है.
3. प्रजनन सम्बन्धी मामलों पर महिलाओं की अधिकारिता - भारत एक पितृसत्तात्मक समाज है तथा प्रजनन सम्बन्धी मामलों पर महिलाओं की अधिकारिता न के बराबर ही है जबकि गर्भावस्था और उसके बाद की शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना महिलाओं को ही करना होता है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5, 2019-21) के अनुसार देश की कुल प्रजनन योग्य महिलाओं में 9.4% महिला आबादी की पहुँच किसी गर्भनिरोधक साधन तक नहीं है. चीन में यह प्रतिशत 3.3% व दक्षिण कोरिया में 6% है. इसलिये ऐसे मामलों पर महिला का निर्णय ही अंतिम होना चाहिये.
4. शिक्षा व रोज़गार में महिलाओं की अधिक भागीदारी हो - भारत में द्वितीयक व तृतीयक शिक्षा स्तरों में पुरुषों की भागीदारी, महिलाओं की तुलना में अभी भी काफी अधिक है. अपने अनुभव से अगर मैं कहूँ तो निम्न आय वर्ग या निम्न-मध्यम वर्ग जो बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजता है, वहाँ लड़कियां 9th या 10th के बाद अक्सर पढ़ाई छोड़ देती हैं, और यदि 12th पूरी की भी तो भी स्नातक स्तर पर दाखिला नहीं लेतीं. चीन, फिलीपींस में यही स्थिति उल्टी है और महिलाओं की भागीदारी शिक्षा में काफी अधिक है.
अब जब शिक्षा ही नहीं होगी तो रोज़गार में भी उनकी भागीदारी सम्भव नहीं होगी.
5. अर्थव्यवस्था व सामाजिक क्षेत्रक में महिलाओं की भूमिका - 2003-04 में 34.1% महिलाएं भारत के जॉब मार्केट में रोज़गार की तलाश में थीं, जो 2019-20 में 20.3% रह गईं. दक्षिण कोरिया की वर्तमान श्रमशक्ति का 50% महिलाएं ही हैं. वहाँ उनके लिये जेंडर बजटिंग, पार्ट-टाइम कार्य हेतु अतिरिक्त कर लाभ, बालिका कल्याण से जुड़े सामाजिक लाभों, आदि की व्यवस्था है.
6. भोजन व पोषण सुरक्षा - यह भारत की एक दुखती रग हैं. पिछले 75 वर्षों में तमाम उपलब्धियों के बावजूद देश की एक विशाल आबादी भोजन व पोषण सुरक्षा से वंचित है, जिसमें सबसे बड़ी संख्या छोटे बच्चों, किशोरवय महिलाओं तथा वयस्क महिलाओं की है. NFHS-3, NFHS-4 व NFHS-5 तीनों से ही इस बात की पुष्टि बार-बार होती है.
7. संघवाद व विविधतापूर्ण व्यवस्था को सम्मान देना - देश में अलग-अलग राज्यों में जनांकिकीय स्थितियां अलग-अलग हैं और हर राज्य ने अपने यहाँ जनसंख्या प्रबंधन के अलग-अलग प्रयास किये हैं. दक्षिण भारत के राज्य निश्चित रूप से अब तक इसमें काफी आगे रहे हैं परंतु वर्तमान स्थिति ऐसी है कि उत्तर भारत के राज्य देश की कार्यकारी उत्पादक जनसंख्या के प्रमुख केंद्र बन रहे हैं. इस लिहाज से राज्य वार विविधता को सम्मान दिया जाना और राज्यों के बीच आपसी समन्वय व सद्भाव विकास की इस यात्रा की धुरी होंगे.
उपरोक्त कदम उठाने में भारत को शीघ्रता दिखानी होगी अन्यथा अधिक (कुप्रबंधित) आबादी के कारण उत्पन्न होने वाली निम्न समस्यायें देश की प्रगति को अवरुद्ध कर देंगी–
1. अधिक आबादी संसाधनों पर, विशेष रूप से भूमि व कृषि संसाधनों पर बोझ साबित होगी. 2. बेरोजगारी की एक भयावह तस्वीर सामने आयेगी जिससे दुष्परिणामों से आँखें चुराना असम्भव होगा. अभी ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की भर्ती हेतु B.Tech. व Ph.D. पास लोगों को आवेदन करते देखना कष्टप्रद है. 3. आधारभूत संरचना की कमर टूट जायेगी. आवासीय क्षेत्रक, स्कूलों, अस्पतालों, परिवहन व्यवस्था पर काफी बुरा असर होगा. सरकारी विद्यालयों में अभी ही बुरा हाल है जहाँ 50 लोगों के बैठने लायक कक्षा में 80-85 बच्चों के एडमिशन हैं. 4. सीमित संसाधनों के बीच विशाल जनसंख्या होना अर्थात महँगाई इसका एक अन्य दुष्प्रभाव होगा, तथा इसका असर यह होगा कि आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित होगी और सीमांत गरीब, निरपेक्ष गरीब परिवारों की जनसंख्या में भी वृद्धि हो जायेगी. 5. अशिक्षित, बेरोजगार, दिशाहीन युवाओं की बड़ी आबादी होगी जो एक सामाजिक आपदा की तरह होगी. कुशल प्रबंधन के अभाव में यह असामाजिक गतिविधियों की ओर बढ़ेगी जो दूसरी कई प्रकार की समस्याएं पैदा करेगी. 6. बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय व पारिस्थितिकी समस्याएं सामने आयेंगी जिन्हें नज़रंदाज करना असंभव होगा.
इस प्रकार प्रबंधन के अभाव में विशाल आबादी 'जनांकिकीय लाभांश' की बजाय 'जनांकिकीय अभिशाप' की स्थिति ला सकती है. फोस्टर व मैडोज़ ने 1972 में जारी "Limits to Growth" मॉडल का एक प्रमुख आधार 'लगातार तेजी से बढ़ती जनसंख्या' को भी बताया था.
हर्ष कुमार त्रिपाठी ने पूर्वांचल विश्वविद्यालय से बी. टेक. की उपाधि प्राप्त की है तथा DU के दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स से भूगोल विषय में परास्नातक किया है। वर्तमान में वे शिक्षा निदेशालय, दिल्ली सरकार के अधीन Govt. Boys. Sr. Sec. School, New Ashok Nagar में भूगोल विषय के प्रवक्ता के पद पर कार्यरत हैं। |
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- यात्रा वृत्तांत
बढ़ती जनसंख्या भारत के विकास की सबसे बड़ी चुनौती | Hindi essay
निबंध : बढ़ती जनसंख्या भारत के विकास की
सबसे बड़ी चुनौती.
( Growing population is the biggest challenge for the development of India
: Essay in Hindi )
प्रस्तावना ( Preface ) :-
आज जनसंख्या वृद्धि देश के ज्यादातर समस्याओं का कारण बन गई है। गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सेवा की कमी, अपराध, स्वच्छ पानी की कमी जैसी समस्याएं बढ़ती आबादी की वजह से ही हैं। देश के पास दुनिया की जमीन का 2.4 फीसदी हिस्सा है।
इसमें दुनिया की 18% से भी अधिक आबादी निवास करती है। देश में जमीन के कुल 60 फ़ीसदी हिस्से पर खेती की जाती है। इसके बावजूद 20 करोड़ों लोग भुखमरी के शिकार हैं।
117 देशों की ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2021 में भारत का स्थान 101 है। देश की आबादी अनियंत्रित रूप से बढ़ने की वजह से ट्रैफिक जाम की समस्या आने वाले भविष्य में बढ़ सकती है।
देश में वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। जिस हिसाब से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है सड़कों का निर्माण नहीं हो रहा है।
बढ़ती आबादी का बोझ सड़कों पर आसानी से देखने को मिल रहा है। 1950 में भारत की आबादी 37 करोड़ थी। वर्तमान समय में भारत की जनसंख्या 130 करोड़ हो गई है।
जनसंख्या इसी दर से बढ़ती रही हो ऐसा अनुमान है कि साल 2050 तक भारत की जनसंख्या 140 करोड़ तक पहुंच जाएगी।
जनसंख्या वृद्धि में दिल्ली पहले स्थान पर है। एक अनुमान के अनुसार अगले एक दशक तक दिल्ली दुनिया के सबसे बड़ी आबादी वाला शहर बन जाएगा।
भारतीय जनसंख्या के विभिन्न आयाम :-
दुनिया की कुल जनसंख्या में भारत की हिस्सेदारी 18 फ़ीसदी है, जबकि पृथ्वी के धरातल का मात्र 2.4 फीसदी है। भारत में संसाधनों को विकसित करने की रफ्तार जनसंख्या वृद्धि दर से कम है।
इसलिए जनसंख्या का संसाधनों पर दबाव बढ़ने से देश में आर्थिक, सामाजिक समस्याओं पर प्रभाव और बढ़ेगा।
चाहे देश की विकास दर बढ़ती है या संसाधन, देश में हासिल सुविधाओं के न्यायपूर्ण वितरण की ठोस व्यवस्था न होने पर आबादी के एक बड़े हिस्से को अनिवार्य जरूरतों को पूरा करने में चुनौतियां आएंगी।
तेजी से बढ़ती जनसंख्या देश की सामाजिक आर्थिक समस्याओं की जननी बनकर देश के सामने खतरे की घंटी बन सकती है। एक अनुमान के अनुसार देश में कामकाजी लोगों की संख्या अगले दो दशक में 30 फीसदी तक बढ़ जाएगी।
वहीं अगर चीन से तुलना की जाए तो आने वाले दशक में चीन की कामकाजी लोगों की संख्या 20 फीसदी कम होगी। आज जनसंख्या नियंत्रण राष्ट्रीय हित से जुड़ा मुद्दा बन गया है।
लेकिन इस पर नियंत्रण के लिए किसी भी राजनैतिक दल या संगठन के द्वारा आवाज नहीं उठाई जाती। देश के तमाम राजनैतिक पार्टियां रोटी, कपड़ा, मकान की बात करती हैं लेकिन जनसंख्या नियंत्रण जैसे मुद्दे पर न कानून बनाने का कोई वादा करती हैं न कोई चर्चा होती है।
यही वजह है कि राष्ट्रीय हित के मुद्दे चुनावी मुद्दे नहीं बन पाते हैं। जनसंख्या वृद्धि का सबसे ज्यादा असर भारत पर पड़ रहा है। ग्रामीण आबादी को रोजगार की तलाश में शहरों की तरफ पलायन करना पड़ता है।
जिससे शहरी लोगों की जिंदगी भी मुश्किल हो जाती है। काफी हद तक इसके लिए सरकारी नीतियां जिम्मेदार हैं। आजादी के 74 साल बाद भी आज तक कोई ठोस रणनीति नहीं बन पाई है। जिससे ग्रामीण आबादी का शहरों की तरफ पलायन रुक सके।
लोग गांव छोड़कर शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं। सरकार गांव में रोजगार, अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधा उपलब्ध करवा दें तो शायद इस पलायन को रोकने में मदद मिले।
संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट के अनुसार साल 2050 तक दुनिया का 68 फीसदी हिस्सा शहरों में रहने लगेगा। वर्तमान समय में 55 फीसदी जनसंख्या शहरों में निवास करती हैं। देश की आबादी यदि इसी दर से बढ़ती रही तो आने वाले समय में यह संकट और गंभीर रूप धारण कर सकता है।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत साल 2024 तक दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा। भारत में 10 से 35 वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं की आबादी 7 करोड़ है।
युवा आबादी को सही दिशा और पर्याप्त संसाधन उपलब्ध न हो तो भारत के लिए और चुनौतियां बढ़ जाएंगी। सच्चाई यह है कि देश में केवल कुछ ही युवाओं के लिए आबादी स्किल युक्त है।
देश में 10 करोड़ युवा ऐसे हैं जो शिक्षित होने के बावजूद किसी कौशल में दक्ष नहीं है। आने वाले दशक में लगभग 10 करोड़ नौकरियों की आवश्यकता होगी।
जनसंख्या विस्फोट के प्रभाव से बचने के लिए लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना जैसी नीतियों का निर्माण करने की जरूरत है, जिससे लोग बीमारी और बेरोजगारी जैसे विपरीत परिस्थितियों में दूसरों पर निर्भर न रहें।
जनसंख्या वृद्धि देश के लिए चुनौती
मानव जीवन स्वतंत्र नहीं है। जीवन प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होता है और कृषि संसाधन सीमित हैं। इसलिए मनुष्य के सुखमय जीवन के तमाम संसाधन सीमित हैं। शिक्षा, स्वास्थ, अपराध नियंत्रण की व्यवस्था जैसे संसाधन भी सीमित संसाधनों में एक है।
महानगरों में रोड जाम पर फ्लाईओवर बनते हैं और कुछ दिन बाद उन पर भी भारी भीड़ जमा हो जाती हैं। अस्पतालों की बढ़ती संख्या भी बढ़ती जनसंख्या से भरमार है।
अवकाश, सड़क मार्ग से सटे हुए हैं। शिक्षा केंद्रों में बढ़ती जनसंख्या के कारण लाखों छात्रों का दाखिला भी नहीं हो पाता है।
बढ़ती आबादी के कारण महानगर फैल रहे हैं। नागरिक सुविधाएं अस्त-व्यस्त हो रही हैं, गांव फैल रहे हैं। बढ़ती जनसंख्या की वजह से संसाधन व कृषि क्षेत्र घट रहा है।
निष्कर्ष ( Conclusion ) :-
बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या देश के विकास को प्रभावित कर रही है। बड़ी जनसंख्या तक योजनाओं का लाभ समान रूप से नहीं पहुंच पा रहा हैं। जिसकी वजह से गरीबी और बेरोजगारी समस्या बनी हुई है।
विश्व में सबसे अधिक गरीब और भूखे लोग भारत में रहते है। कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या भी भारत में ही सबसे अधिक है। युवाओं में हताशा और तनाव बढ़ रहा है।
भारत की जनसंख्या सकल घरेलू उत्पाद और गरीबी को जोड़ने वाले हैं इज़की दो दिशा है। पहले दिशा में प्रति व्यक्ति जीडीपी का ग्राफ बढ़ने के साथ गरीबी दर घटी है जिससे जनसंख्या वृद्धि कम हो जाती हैं। इसके विपरीत दिशा मेंजनसंख्या पर काबू पाते ही जीडीपी बढ़नी चाहिए।
लेकिन क्या गरीबी दर इससेकम होती है। माल्थस की परिकल्पना की थी कि जनसंख्या वृद्धि दर से गरीबी, अकाल, महामारी बढ़ेगी जब कि सच्चाई यह है कि बढ़ती जनसंख्या जीडीपी और गरीबी दोनों ही दिशा में जुड़ी हुई है और दोनों भी एक दूसरे की बाधक है।
लेखिका : अर्चना यादव
यह भी पढ़ें :-.
भारत में बाल श्रम कारण एवं उन्मूलन हेतु सरकारी प्रयास | Essay in Hindi on causes of child labor
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जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम पर निबंध – Problem Of Increasing Population Essay In Hindi
जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम पर निबंध – essay on problem of increasing population in hindi, जनसंख्या–वृद्धि : घटती समृद्धि – population growth: decreasing prosperity.
- प्रस्तावना,
- बढ़ती जनसंख्या की समस्या,
- जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम,
- नियन्त्रण के उपाय,
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम पर निबंध – Janasankhya Vrddhi Ke Dushparinaam Par Nibandh
प्रस्तावना– भूमि, जन और संस्कृति ये तीनों राष्ट्र के अनिवार्य अंग माने गए हैं। इनमें भूमि और संस्कृति दोनों का महत्त्व ‘जन’ के सापेक्ष ही होता है। जन के बिना भूमि निरर्थक है और संस्कृति का विकास ही सम्भव नहीं है। जन या जनसंख्या का अति विस्तार भी राष्ट्र के लिए घातक होता है,
क्योंकि उसके भरण–पोषण और सुरक्षा के लिए, उत्तरदायित्व जन को ही निभाना पड़ता है। आज हमारे देश में बेलगाम बढ़ती जनसंख्या एक विकट चुनौती बनी हुई है। विकास का रथ एक अरब से भी अधिक जनसंख्या को ढोने में असहाय–सा दिखाई दे रहा है।
बढ़ती जनसंख्या की समस्या– भारत की जनसंख्या में अनियंत्रित वृद्धि सारी समस्याओं का मूल कारण बनी हुई है। गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, अपराधवृद्धि, तनाव, असुरक्षा, सभी जनसंख्या वृद्धि के ही परिणाम हैं। यद्यपि सरकार और विवेकशील नागरिक इस पर नियंत्रण के प्रयास करते आ रहे हैं, किन्तु स्थिति ऐसी है कि ‘जस जस सुरसा बदन बढ़ावा। तासु दुगन कपि रूप दिखावा।
‘ भारत के विश्व की महाशक्ति बनने के सपने जनसंख्या के प्रहार से ध्वस्त होते दिखाई दे रहे हैं। ‘एक अनार सौ बीमार’ यह कहावत चरितार्थ हो रही है। जनसंख्या वृद्धि के महा–अश्वमेध का घोड़ा. शेयर बाजार के उफान, मुद्राकोष की ठसक, विदेशी निवेश की दमक सबको अँगूठा दिखाता, आगे–आगे दौड़ रहा है।
जनसंख्या– वृद्धि के दुष्परिणाम–जब किसी समाज के सदस्यों की संख्या बढ़ती है तो उसे उनके भरण–पोषण के लिए जीवनोपयोगी वस्तुओं की भी आवश्यकता पड़ती है। उत्पादन तथा जनसंख्या वृद्धि में संतुलन न होने से जनसंख्या आगे चलने लगती है, फलस्वरूप जनसंख्या–वृद्धि आगे–आगे दौड़ती है और पीछे–पीछे उत्पादन–वृद्धि। जनसंख्या और उत्पादन–दर में चोर–सिपाही का खेल शुरू हो जाता है।
वास्तविकता यह है कि उत्पादन वृद्धि के सारे लाभ को जनसंख्या की वृद्धि व्यर्थ कर . देती है। आज हमारे देश में यही हो रहा है। जनसंख्या–वृद्धि सारी समस्याओं की जननी है। बढ़ती महँगाई, बेरोजगारी, कृषि–भूमि की कमी, उपभोक्ता–वस्तुओं का अभाव, यातायात की कठिनाई सबके मूल में यही बढ़ती जनसंख्या है।
नियंत्रण के उपाय– आज के विश्व में जनसंख्या पर नियंत्रण रखना प्रगति और समृद्धि के लिए अनिवार्य आवश्यकता है। भारत जैसे विकासशील देश के लिए जनसंख्या नियंत्रण परम आवश्यक है। जनसंख्या पर नियंत्रण के अनेक उपाय हो सकते हैं। वैवाहिक आयु में वृद्धि करना एक सहज उपाय है। बाल–विवाहों पर कठोर नियंत्रण होना चाहिए। दूसरा उपाय, संतति–निग्रह अर्थात् छोटा परिवार है।
परिवार नियोजन के अनेक उपाय आज उपलब्ध हैं। तीसरा उपाय, राजकीय सुविधाएँ केवल परिवार नियोजन का पालन करने वालों तक सीमित करना है। परिवार नियोजन अपनाने वाले व्यक्तियों को वेतन वृद्धि देकर, पुरस्कृत करके तथा नौकरियों में प्राथमिकता देकर भी जनसंख्या–नियंत्रण को प्रभावी बनाया अतिरिक्त शिक्षा के प्रसार द्वारा तथा धार्मिक और सामाजिक नेताओं का सहयोग भी जनसंख्या नियंत्रण में सहायक हो सकता है।
उपसंहार– जनसंख्या की अनियंत्रित वृद्धि खतरे की घंटी है। यह विस्फोटक बनकर राष्ट्र के कुशल–क्षेम को निगल जाय, उससे पहले ही इस समस्या का गम्भीरता से निराकरण होना चाहिए। आज संसार में संख्या–बल नहीं, अर्थ और बुद्धि–बल से ही सफलता प्राप्त होती है। भारत को एक समृद्ध और शक्ति–सम्पन्न राष्ट्र बनाने के लिए जनसंख्या की असीमित वृद्धि को यथाशीघ्र नियंत्रित करना चाहिए।
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जनसंख्या वृद्धि की समस्या पर निबंध Essay On Population Growth In Hindi
जनसंख्या वृद्धि की समस्या पर निबंध Essay On Population Growth In Hindi दुनिया की आधी से अधिक आबादी दक्षिण एशिया में बसती हैं विश्व की कुल जनसंख्या का 1/6 वाँ भाग हम भारतीय हैं.
तेजी से हो रहे जनसंख्या के विस्फोट के चलते नित्य नई समस्याएं हमारे सामने आ रही हैं. अधिकतर समस्याओं का मूल कारण तेज जनसंख्या वृद्धि ही हैं.
आज हम भारत की Population Explosion पर निबंध (Essay) यहाँ साझा कर रहे हैं.
जनसंख्या वृद्धि पर निबंध Essay On Population Growth In Hindi
Overpopulation In India In Hindi प्रिय विद्यार्थियों आज हम आपके साथ जनसंख्या वृद्धि की समस्या पर निबंध साझा कर रहे हैं.
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जनसंख्या वृद्धि की समस्या पर निबंध Population Problem in India in Hindi
प्रस्तावना – आज भारत की जनसंख्या एक अरब पच्चीस करोड़ से ऊपर जा पहुची हैं. महान भारत की इस उपलब्धि पर भी इतराने वाले कुछ विचार विमूढ़ हो सकते हैं.
हर बुद्धिमान व्यक्ति जानता हैं कि जनसंख्या का यह दैत्याकार रथ विकास के सारे कीर्तिमानों को रौदता हुआ देश के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा रहा हैं.
बढ़ती जनसंख्या की समस्या – भारत की जनसंख्या में अनियंत्रित वृद्धि सारी समस्याओं का मूल कारण बनी हुई हैं. गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, अपराध वृद्धि, तनाव, असुरक्षा सभी जनसंख्या वृद्धि के ही परिणाम हैं.
भारत के विश्व की महाशक्ति बनने के सपने जनसंख्या के प्रहार से ध्वस्त होते दिखाई दे रहे हैं. एक अनार सौ बीमार यह कहावत चरितार्थ हो रही हैं.
जनसंख्या वृद्धि के महा अश्वमेध का घोडा शेयर बाजार के उफान, मुद्रा कोष की ठसक, विदेशी निवेश की दमक सबको अंगूठा दिखाता आगे आगे दौड़ रहा हैं.
जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम – जनसंख्या और उत्पादन दर में चोर सिपाही का खेल होता रहता हैं. जनसंख्या वृद्धि आगे आगे दौड़ती हैं और पीछे पीछे उत्पादन वृद्धि, वास्तविकता यह हैं कि उत्पादन वृद्धि के सारे लाभ जनसंख्या की वृद्धि व्यर्थ कर देती हैं.
आज हमारे देश में यही हो रहा हैं. जनसंख्या वृद्धि सारी समस्याओं की जननी हैं. बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, कृषि भूमि की कमी, उपभोक्ता वस्तुओं का अभाव, यातायात की कठिनाई सबके मूल में यही बढ़ती जनसंख्या हैं.
नियंत्रण के उपाय – आज के विश्व में जनसंख्या पर नियंत्रित रखना प्रगति और समृद्धि के लिए अनिवार्यत आवश्यकत हैं. भारत जैसे विकासशील देश के लिए जनसंख्या नियंत्रण परम आवश्यक हैं.
जनसंख्या पर नियंत्रण के अनेक उपाय हैं. वैवाहिक आयु में वृद्धि करना एक सहज उपाय हैं. बाल विवाहों पर कठोर नियंत्रण होना चाहिए.
दूसरा उपाय संतति निग्रह अर्थात छोटा परिवार हैं. परिवार नियोजन के अनेक उपाय आज उपलब्ध हैं. तीसरा उपाय राजकीय सुविधाएं उपलब्ध कराना हैं.
परिवार नियोजन अपनाने वाले व्यक्तियों को वेतन वृद्धि देकर पुरस्कृत करके तथा नौकरियों में प्राथमिकता देकर भी जनसंख्या नियंत्रण को प्रभावी बनाया जा सकता हैं.
इनके अतिरिक्त शिक्षा के प्रसार द्वारा तथा धार्मिक और सामजिक नेताओं का सहयोग भी जनसंख्या नियंत्रण में सहायक हो सकते हैं.
ये सभी तो प्रोत्साहन और पुरस्कार से संबंधित हैं किन्तु कठोर दंड के भय के बिना विशेष सफलता नहीं मिल सकती, धर्म जाति के आधार पर भेदभावपूर्ण व्यवस्था के रहते हुए जनसंख्या पर नियंत्रण असम्भव हैं.
उपसंहार – आज देश के सामने जितनी समस्याएं हैं. प्रायः सभी के मूल में जनसंख्या वृद्धि ही मुख्य कारण दिखाई देता हैं जनता और सरकार दोनों ने ही इस भयावह समस्या से आँखें बंद कर रखी हैं.
इस खतरे की घंटी की आवाज को अनसुना किया जा रहा हैं कहीं ऐसा न हो कि यह सुप्त ज्वालामुखी एक दिन अपने विकट विस्फोट से राष्ट्र के कुशल क्षेम को जलाकर राख कर दे.
जनसंख्या वृद्धि पर निबंध समस्या और समाधान सहित (Essay on Population problem in Hindi)
यदि यह कहा जाय कि बढ़ती जनसंख्या देश की सारी समस्याओ की जड़ है तो यह बात बहुत कुछ सच माननी पड़ेगी. बाजारों में चलना दुश्वार है, रेलों और बसों में मारामार है, मंहगाई से हाहाकार है,
राशन पानी, नोकरी के लिए लम्बी कतार है, एक खली जगह के लिए प्रार्थना पत्र हजारों हजार हैं. सिर्फ जनसंख्या वृद्धि के कारण सारे विकास कार्यो का बंटाढार है संक्षेप कहें तो ‘सौ बीमार हैं. और एक अनार है.
यह देश लगभग एक जनसंख्या व्रद्धी के कारण जनसंख्या में व्रद्धी के अनेक कारण है. धार्मिक अंधविश्वास इसका एक प्रमुख कारण हैं. सन्तान को इश्वर का वरदान मानने वाले लोग इसके लिए जिमेदार हैं. चाहे खिलाने के लिए रोटी, पहनाने के लिए वस्त्र पढाने को धन और रहने को छप्पर न हो.
लेकिन ये मूढ़ लोग भूखे, अधनंगे, अनपढ बच्चों की कतारे खड़ी करने में नही शरमाते. पुत्र को पुत्री से अधिक महत्व देना, गरीबी, बाल विवाह, असुरक्षा की भावना आदि अन्य कारण भी जनसंख्या को बढ़ाने वाले हैं.
बढ़ती जनसंख्या के दुष्परिणाम
जनसंख्या की अबाध वृद्धि ने संदेस में अनेक समस्याएँ खड़ी कर दी हैं. विकट बेरोजगारी, हाहाकार मचाती मंहगाई, गरीबी, अशिक्षा, बढ़ते अपराध, कुपोषण, बढ़ता प्रदूषण आदि जनसंख्या वृद्धि के ही कुपरिणाम हैं. बिजली, पानी, सड़क एंव स्वास्थ्य सेवाएँ दुर्लभ होते जा रहे है.
जनसख्या का यह विकराल देत्य सारे विकास कार्यो और प्रगति को हजम कर जाता है राजनेता भी इसके लिए कम जिमेदार नही है इस राष्ट्रीय समस्या पर भी उनका द्रष्टिकोण सम्प्रदायवादी हैं.
नियत्रण के उपाय –
जनसख्या पर नियत्रण किया जाना अत्यंत आवश्यक है इस समस्या के हल के लिए विवाह की न्युन्तम आयु में वृद्धि को सीमित रखने के उपायों का समुचित प्रसार होना चाहिए सरकार की और से छोटे परिवार वालो को प्रोत्साहन और विशेष सुविधाए मिलनी चाहिए मनोवेग्यानिक प्रसार भी बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है
किन्तु वह आज कल टीवी पर दिखाई जाने वाले भोंडे और अश्लील विज्ञापनों जैसा न हो. इसके अतिरिक्त कुछ कठोर उपाय भी अपनाने होगे.
दो बच्चों से अधिक पैदा करने वालो को रसं की सुविधा से वंचित किया जाए आरक्षण या छुट केवल दो या तीन बच्चों तक ही सीमित रहे धर्माचार्यो को भी अधवीश्वासो पर प्रहार करते हुए लोगों को सही मार्गदर्शन करना चाहिए.
बढ़ती जनसंख्या पूरी मानव जाती के लिए खतरे की घटीं हैं. यदि हम इसी तरह आखं बंद करके जनसंख्या बढ़ाते रहे तो हमारी धरती एक दिन भूखी –नंगी, उजाड़ और हिसक मनुष्यों की निवास स्थली बनकर रह जायेगी.
जनसंख्या वृद्धि समस्या पर निबंध | Population Problems Essay In Hindi
वर्तमान शताब्दी में विश्व अनेक समस्याओं से घिरा हुआ है. कही कही अकाल एवं जलाभाव की समस्या है, तो कही कुपोषण की समस्या, कही पड़ोसी देशों की कलह से अशांति का वातावरण विद्यमान है.
परन्तु इन सभी से प्रबल समस्या है, जनसंख्या की समस्या. जनसंख्या की असीमित वृद्धि से न केवल भारत, अपितु अन्य देश भी आक्रांत है. नवविकसित एवं विकासशील देशों में तो यह मुख्य समस्या बन गई है.
जनसंख्या वृद्धि एक समस्या (essay on population)
जब भारत स्वतन्त्र हुआ तो उस समय हमारे देश की कुल जनसंख्या लगभग तैतीस करोड़ थी परन्तु आज यह एक अरब से अधिक हो गई है जनसंख्या की इस असीमित वृध्दि से रोजगार के अवसर कम हुए है इस कारण बेरोजगारी बढ़ी है इसी समस्या के कारण खाद्यान्न की कमी हो रही है.
शहरों के समीप की उपजाऊ भूमि पर औद्योगिक उपनगर बस रहे है चारागाह भी उजाड़ रहे है वन काटे जा रहे है अधिक यातायात की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सड़को का निर्माण हो रहा है बाँध बनाये जा रहे है.
नये उद्योघ एव शिक्षण संस्थान खड़े किये जा रहे है इन सब पर देश का अपार धन व्यय हो रहा है इस प्रकार वर्तमान में हमारे देश में जीतनी भी अन्य समस्याएं है. उनके मूल में जनसंख्या वृद्धि ही समस्या है.
जनसंख्या वृद्धि के कारण (problems due to population growth)
जनसंख्या वृद्धि के अनेक कारण है. हमारे देश में स्वतंत्रता मिलने के तुरंत बाद जनसंख्या वृद्धि पर कोई नियन्त्रण नही था. उस समय परिवार नियोजन के साधन भी नही थे. अंधविश्वास और धार्मिक कट्टरता के कारण कुछ लोग अधिक सन्तान पैदा करने में ही अपना गौरव समझते थे.
निम्न वर्ग के लोग सोचते थे कि अधिक सन्तान होने से घर में कमाने वाले अधिक सदस्य हो जाएगे. कुछ लोग अधिक सन्तान का होना ईश्वरीय कृपा मानते है. इन सभी कारणों से नव स्वतंत्र भारत में जनसंख्या की विस्फोट वृद्धि हुई है.
जनसंख्या नियंत्रण के उपाय (population control measures in india)
जनसंख्या की तीव्रगति से वृद्धि को देखकर सरकार ने अनेक कदम उठाए है. प्रारम्भ में परिवार नियोजन के साधनों का प्रसार किया गया, फिर पुरुष एवं स्त्री नसबंदी कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया. जनता में परिवार नियोजन की चेतना जागृत की गई.
सरकारी नौकरियों में दो सन्तान से अधिक पर स्वैच्छिक प्रतिबंध लगाया गया है. कम उम्र में युवक युवतियों के विवाह को रोकने का भी कानून बनाया गया है. परिवार नियोजन के लिए प्रोत्साहन राशि भी दी गई है. इस तरह के उपाय करने से जनसंख्या वृद्धि पर कुछ हद तक अंकुश लगा है.
जनसंख्या एक समस्या और इसका समाधान (population problem of india and its solution)
जनसंख्या की असीमित वृद्धि से हमारे देश की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा गई है. विकास की तीव्रगति भी लाभकारी दिखाई नही दे रही है.
जब प्रत्येक व्यक्ति परिवार नियोजन को प्राथमिकता देगा, तभी जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लग सकेगा. अपने समाज तथा देश की खुशहाली के लिए अब यह नियंत्रण जरुरी है.
जनसंख्या वृद्धि का पर्यावरण पर प्रभाव Impact Of Population Growth On Environment Essay In Hindi
भारत की भूमि का क्षेत्रफल विश्व की धरती का कुल 2.4% ही है. जबकि यहाँ की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का पांचवां भाग है. यहाँ हर वर्ष एक नया ऑस्ट्रेलिया बन जाता है. अतः यहाँ कृषी भूमि के लिए अभाव पैदा हो गया है.
इसके परिणामस्वरूप हजारों वर्षो से हमारी सुख सम्रद्धि में योगदान कर रहे वनों को काटा जा रहा है. आवास की बढ़ती हुई समस्या के कारण यहाँ हरे भरे वनों के स्थान पर कंक्रीट के जंगल बन गये है. इससे हमकों दोहरा नुक्सान हो रहा है.
एक तो खेती के लिए भूमि का अभाव हो रहा है. दूसरा जंगलो के काटने से प्रदूषण सुरसा की तरह मुँह फैला रहा है. हमारी अमूल्य वन संपदा का विनाश, दुर्लभ वनस्पतियों का अभाव, वर्षा पर घातक प्रभाव और दुर्लभ जंगली जंगलो के लोप का भय पैदा हो गया है.
जंगलो के काटने से हमारी प्राकृतिक आपदाएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. हस्त शिल्प और कुटीर उद्योगों के चौपट होने के कारण ग्रामवासी आजीविका की खोज में गाँव छोड़कर शहरों में बसते जा रहे है.
इससे शहरों में कुपोषण अपराध और आवास की विकट समस्या खड़ी हो गई है. नगरो में भीषण गंदगी और अवैध बस्तियां का निर्माण हो रहा है. प्रदूषण रोगों में असाधारण वृद्धि, कमरतोड़ महंगाई तथा समुचित चिकित्सा सुविधाओं की कमी ने शहरी जीवन को नरकीय बना दिया है.
अधिक जनसंख्या के लिए अधिक मात्रा में खाद्यान की आवश्यकता होती है. धरती से अधिक उपज के लोभ में रासायनिक खादों का उपयोग किया जाता है. इस खादों के प्रयोग से एक ओर तो जहाँ अनाज और सब्जियों का जहाँ स्वाभाविक स्वाद खत्म हो गया है दूसरी तरफ खादों के रूप में विष पेट में जा रहा है.
यह विष नाना प्रकार के रोगों को जन्म देता है भारत में जनसंख्या वर्द्धि के अनेक कारण है. अज्ञानता शिक्षा की कमी तथा भाग्यवाद जनसंख्या वृद्धि के मुख्य कारण है. जनसंख्या की वृद्दि के लिए सरकार की गलत नीतियाँ भी जिम्मेदार है.
भारत में इस समय 2 करोड़ बांग्लादेशी शरणार्थी डेरा डाले हुए है. ये विदेशी तस्करी और नशीले पदार्थो की तस्करी करते है. भारत सरकार की नीतियाँ वास्तव में उदार है. किन्तु उदार का मलतब विदेशियों के हित में सलग्न रहना तो नही है.
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जनसंख्या वृद्धिपर निबंध, Essay on Population Growth in Hindi
by Meenu Saini | Jul 19, 2022 | Hindi | 0 comments
Hindi Essay Writing – जनसंख्या वृद्धि (Population Growth)
जनसंख्या वृद्धि पर निबंध – इस लेख हम जनसंख्या वृद्धि का अर्थ क्या है? जनसंख्या वृद्धि के कारण, दुष्प्रभाव, जनसंख्या वृद्धि रोकने के उपाय आदि के बारे में जानेगे |
प्रस्तावना
जनसंख्या वृद्धि का अर्थ, विश्व में जनसंख्या की स्थिति, जनसंख्या वृद्धि के कारण, जनसंख्या वृद्धि के दुष्प्रभाव, जनसंख्या वृद्धि रोकने के उपाय, जनसंख्या और विकास, विश्व जनसंख्या दिवस.
भारत एक विकासशील देश है और यहां की जनसंख्या भी तेजी से विकास कर रही है । जनसंख्या वृद्धि के मामले में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है । पहले पायदान पर चीन है किंतु विशेषज्ञों का मानना है कि भारत शीघ्र ही चीन को पछाड़कर विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा किंतु यह जनसंख्या वृद्धि ठीक नहीं । इसके भयंकर दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। सीमित प्राकृतिक संसाधन और मनुष्य की असीमित आवश्यकताओं से असंतुलन का खतरा बढ़ रहा हैं। Top
जनसंख्या वृद्धि का अर्थ है किसी विशेष समय अंतराल में, जैसे 10 वर्षों के भीतर किसी देश या राज्य के निवासियों की संख्या में होने वाला परिवर्तन। इस प्रकार के परिवर्तन को दो प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है। पहला, सापेक्ष वृद्धि तथा दूसरा प्रति वर्ष होने वाले प्रतिशत परिवर्तन के द्वारा।
यदि हम 2001 की जनगणना को, 2011 की जनगणना से घटाते हैं तो जो अंतर प्राप्त होता है, उसे निरपेक्ष वृद्धि कहते हैं।
भारत में हर 10 वर्षों के अंतराल में जनगणना की जाती है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ थी। जो कि विश्व की कुल जनसंख्या का 17.5% है। जबकि दशकीय वृद्धि 17.7% है।
भारत में जनगणना की शुरुआत 1872 में लॉर्ड मेयो के कार्यकाल में हुई थी। भारत में नियमित जनगणना की शुरुआत 1881 में लॉर्ड रिपन के कार्यकाल में हुई थी। Top
हम अभूतपूर्व जनसंख्या वृध्दि के युग में रह रहे हैं | बीसवीं सदी के मध्य में, संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के पाँच साल बाद, दुनिया की आबादी लगभग 2.5 अरब थी | तब से, विश्व की जनसँख्या के आकार में तीन गुना से भी ज्यादा वृध्दि हुई हैं, जो 2021 में लगभग 7.7 अरब हो चुकी है। इतना ही नहीं, अगले 30 वर्षों में दुनिया की जनसँख्या में 2 अरब लोगों की वृध्दि होने की उम्मीद है, जो वर्तमान में 7.7 अरब से बढ़कर 2050 में 9.7 अरब हो जाएगी | और 2100 के आसपास लगभग 11 अरब के शिखर पर पहुँच सकती हैं | इस साल जनसँख्या 8 अरब तक पहुँच जाएगी, जो कि एक चौंकाने वाली स्थिति होगी | Top
- जागरूकता में कमी – लोगों में इस बात की जागरूकता की कमी है कि जनसंख्या वृद्धि के क्या क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं। कई रूढ़िवादी परंपराओं और मान्यताओं के चलते लोग अपने परिवार को बढ़ाते जाते हैं और फलस्वरुप जनसंख्या में लगातार वृद्धि होती है।
- अशिक्षा – भारत की साक्षरता दर 73% है । इसमें भी पुरुष साक्षरता 80% जबकि महिला साक्षरता 64% है। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में अभी भी अशिक्षा व्याप्त है और कई ग्रामीण इलाके ऐसे हैं जहां लोगों के पास शिक्षा प्राप्ति का कोई स्त्रोत ही नहीं है। इस वजह से भी आम नागरिकों में इस बात की जागरूकता का अभाव है कि बढ़ती जनसंख्या हमें कितने संकट में डाल सकती है या कितनी परेशानियां उत्पन्न कर सकती है।
- ग़रीबी – गरीबी भी जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख कारणों में से एक है । एक गरीब, अशिक्षित व्यक्ति की मानसिकता होती है – केवल अपना पेट भरना, दो वक्त की रोटी का गुजारा करना । इस कार्य के लिए उसे दो हाथ और मिल जाए तो इसमें बुराई क्या है? यही ओछी सोच जनसंख्या में वृद्धि का कारण बन जाती है। गरीब, भिखारी इसीलिए ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं ताकि उनसे भीख मंगवा सके और अपना पेट भर सके।
- वंश वृद्धि – हम तेजी से आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं, प्रतिदिन तकनीक में नए आयाम स्थापित कर रहे हैं, किंतु इन सबके बावजूद कुछ मानसिकताएं ऐसी हैं जो आज भी 50 साल पुरानी ही है – बेटे की चाहत। हर परिवार के मुखिया को अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए वंश वृद्धि के लिए लड़के की कामना होती हैं। कुछ लोगों की सोच कभी नहीं बदलती और यही सोच वो अपनी अगली पीढ़ी को देते हैं। ज्यादातर लोगों का यह मानना होता है कि लड़की तो शादी के बाद दूसरे घर चली जाएगी, तो उनका वंश आगे कौन बढ़ाएगा इसीलिए भी ज्यादातर भारतीय घरों में देखा गया है कि बड़ी लड़कियां होने के बाद एक लड़का होता है।
- घटती मृत्यु दर – वर्तमान में विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि आज हर असंभव से असंभव बीमारी के इलाज को संभव कर दिखाया है। एक्स-रे, लेजर तकनीक के आ जाने से बड़े से बड़े ऑपरेशन आसानी से हो जाते हैं । भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का तेजी से विकास हुआ है और कई सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं के चलते लोगों को निशुल्क स्वास्थ्य सेवाएं मिल रही हैं, जिससे मृत्यु दर में कमी आई है । इस प्रकार यदि एक ओर अधिक उम्र वाले लोगों की मृत्यु नहीं हो रही तो दूसरी ओर लोग परिवार बढ़ाते जा रहे हैं तो फलस्वरुप जनसंख्या में वृद्धि हो रही है।
Top
- संसाधनों में कमी – जनसंख्या के पालन पोषण के लिए प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है । किंतु प्राकृतिक संसाधन सीमित मात्रा में है। इसी वजह से सरकारों को देश की जनता के कल्याण के लिए जिन संसाधनों की आवश्यकता होती है उनकी पूर्ति नहीं हो पा रही है। इतनी तेजी से बढ़ती जनसंख्या को रहने के लिए आवास और खाने के लिए भोजन उपलब्ध करवाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
- पर्यावरण पर प्रभाव – तेजी से जनसंख्या वृद्धि से पर्यावरण में परिवर्तन होते हैं। मनुष्य अपनी सुविधाओं के लिए पर्यावरण के संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग करता हैं। खेती करने के लिए जंगलों का नाश करता हैं और उद्योगों की स्थापना करता है। पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों जैसे पहाड़ी क्षेत्रों, उष्णकटिबंधीय जंगलों इत्यादि को कृषि कार्यों के लिये काटा जाता है। बढ़ती जनसंख्या वृद्धि से औद्योगीकरण के साथ बड़ी संख्या में शहरी क्षेत्रों का प्रवास/विकास होता है जिससे बड़े शहरों एवं कस्बों में प्रदूषित हवा, पानी, शोर इत्यादि में वृद्धि होती है।
- बेरोज़गारी में वृद्धि
बीते वर्षों में बेरोज़गार पुरुषों एवं महिलाओं की संख्या में तीव्र वृद्धि हुई है। क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में मौजूद युवाओं को रोजगार देने के लिए सरकार के पास पर्याप्त उपाय नहीं है। देश में हर साल लाखों की संख्या में बच्चे ग्रेजुएट होते हैं, किंतु इतनी ही संख्या में रोजगार के अवसरों का सृजन नहीं हो पा रहा हैं।
- खद्दानों पर प्रभाव – तेज़ी से बढ़ी हुई जनसंख्या के कारण भोजन एवं खाद्यानों के उपलब्ध स्टॉक पर दबाव बनता है। तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या वाले अल्प विकसित देशों को आम तौर पर भोजन की कमी की समस्या का सामना करना पड़ता है।
- सामाजिक प्रभाव – तीव्र जनसंख्या वृद्धि का मतलब श्रम बाजार में आने वाले व्यक्तियों की एक बड़ी संख्या से है। ऐसी स्थिति में बेरोज़गारी की समस्या और अधिक उत्पन्न हो सकती है। बेरोज़गारी के चलते व्यक्तियों के जीवन स्तर में गिरावट आएगी। जनसंख्या वृद्धि के कारण शिक्षा, आवास और चिकित्सा सहायता जैसी बुनियादी सुविधाओं पर और अधिक बोझ उत्पन्न होगा।
जनसंख्या में कमी, अधिकतम समानता, बेहतर पोषण, सार्वभौमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे सभी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये सरकारों और मज़बूत नागरिक सामाजिक संस्थाओं के बीच बेहतर सामंजस्य की आवश्यकता है।
महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार तथा उन्हें निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना तथा अधिक बच्चों के जन्म देने के दृष्टिकोण को परिवर्तित करना। इत्यादि कुछ ऐसे उपाय है जिनके माध्यम से जनसंख्या वृद्धि की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।
- जागरूकता – कुछ सामाजिक कार्यक्रम जैसे नुक्कड़ नाटक सांस्कृतिक कार्यक्रम तरह-तरह की प्रतियोगिताओं के माध्यम से भी लोगों को जनसंख्या वृद्धि के कारण होने वाली समस्याओं की जानकारी देकर इसमें कमी लाई जा सकती है।
- परिवार नियोजन कार्यक्रम – परिवार नियोजन के उपायों को लोगों तक पहुंचाने के लिए इसका प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए। जिससे लोगों में जागरूकता की भावना उत्पन्न हो क्योंकि यह जनसंख्या वृद्धि के नियंत्रण एवं निवारण के लिए आवश्यक है। परिवार नियोजन संबंधित शिक्षा कापर-टी, नसबंदी गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन आदि की जानकारी देकर तथा इसका प्रचार करके जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
- यौन शिक्षा – हम भले ही कितने आधुनिक होने का दिखावा करते किंतु हमारे समाज की सोच आज भी रूढ़ीवादी है। यौन शिक्षा यानि यौन संबंध किस तरह से बनाने चाहिए, क्या सावधानियां रखनी चाहिए, हम इस तरह की बातें करने में झिझकते हैं । लोग इस विषय पर खुलकर बात करने से कतराते हैं। इसी वजह से सही जानकारी के अभाव में असमय तथा अत्यधिक संख्या में बच्चे पैदा होते हैं । अतः ऐसी जानकारियों का प्रचार प्रसार कर जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है।
- विवाह की उम्र बढ़ाना – भारत में तेजी से बढ़ती जनसंख्या का सबसे प्रमुख कारण है कम उम्र में विवाह होना। जल्दी विवाह होने से लड़कियां कम उम्र में ही मां बन जाती हैं और अधिक संख्या में संतानोत्पत्ति करती है। भारत में ऐसे कई इलाके हैं जहां बाल विवाह होता है अतः प्रशासन को बाल विवाह पर रोक लगानी चाहिए। साथ ही लड़के लड़कियों के विवाह की उम्र में वृद्धि करनी चाहिए। ताकि वे मानसिक रूप से परिपक्व हो और छोटे परिवार के महत्व को समझे।
- महिलाओं को शिक्षित करना –
हमारे देश में आज भी महिलाओं में जागरूकता की कमी है । महिलाओं को जागरूक व शिक्षित कर जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है। हमें स्त्रियों के आर्थिक स्वावलम्बन पर जोर देना होगा, उन्हें शिक्षित करना होगा। एक शिक्षित स्त्री ही जनसंख्या वृद्धि से होने वाले दुष्परिणामों को समझ सकती है और उन्हें नियंत्रित करने में अपना योगदान दे सकती है। Top
जनसंख्या और स्वास्थ्य किसी भी राष्ट्र की विकास प्रक्रिया की जड़ होते हैं और परिवार नियोजन एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्धारक के रूप में कार्य करता है | परिवार नियोजन के लाभ केवल जनसँख्या स्थिरीकरण तक सीमित नहीं हैं; बल्कि इनका महिलाओं, परिवारों और समुदायों के लिए अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित करने में प्रमुख योगदान हैं। निरंतर तेजी से होने वाली जनसँख्या वृध्दि, सामाजिक और आर्थिक विकास को हासिल करने की चुनौती को बढ़ाती है और यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक निवेश और प्रयास के पैमाने को बढ़ाती है कि कोई भी पीछे ना रहे | तीव्र जनसँख्या वृध्दि निम्न माध्यम आय वाले देशों के लिए प्रति व्यक्ति आधार पर सार्वजानिक व्यय में वृध्दि को और अधिक कठिन बना देती हैं, जो गरीबी उन्मूलन, भूख और कुपोषण को समाप्त करने और स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और अन्य आवश्यक सेवाओं के लिए सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं। गरीबी और भूख को समाप्त करने, स्वास्थ्य, शिक्षा और अच्छे कार्य तक पहुँच से सम्बंधित सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने और पर्यावरण चुनौतियों का समाधान करने की क्षमता का निर्माण करने के लिए, निम्न आय और निम्न मध्यम आय वाले देशों की अर्थव्यवस्थाओ को उनकी तुलना में कहीं अधिक तेजी से बढ़ने की आवश्यकता हैं । आबादी, बुनियादी ढांचे में अत्यधिक विस्तारित निवेश के साथ-साथ सभी क्षेत्रों में किफायती ऊर्जा और आधुनिक प्रोद्योगिकी तक पहुँच में वृध्दि की आवश्यकता हैं । Top
हर वर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। दरअसल इस दिन की स्थापना 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की गवर्निंग काउंसिल द्वारा की गई थी। जब विश्व की आबादी 5 अरब तक पहुंची थी, इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से चिंता प्रकट की गई और तब बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने और परिवार नियोजन को लेकर लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए 11 जुलाई 1987 को “पाँच अरब दिवस” मनाने का फैसला किया गया और तभी से हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जा रहा है। Top
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी 121 करोड़ थी तथा अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्तमान में यह 130 करोड़ को भी पार कर चुकी है, साथ ही वर्ष 2030 तक भारत की आबादी चीन से भी ज़्यादा होने का अनुमान है। ऐसे में भारत के समक्ष तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या एक बड़ी चुनौती है क्योंकि जनसंख्या के अनुपात में संसाधनों की वृद्धि सीमित है। इस स्थिति में जनसांख्यिकीय लाभांश जनसांख्यिकीय अभिशाप में बदलता जा रहा है। इसी स्थिति को संबोधित करते हुए भारत के प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर इस समस्या को दोहराया है। हालाँकि जनसंख्या वृद्धि ने कई चुनौतियों को जन्म दिया है किंतु इसके नियंत्रण के लिये क़ानूनी तरीका एक उपयुक्त कदम नहीं माना जा सकता। भारत की स्थिति चीन से पृथक है तथा चीन के विपरीत भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ हर किसी को अपने व्यक्तिगत जीवन के विषय में निर्णय लेने का अधिकार है। भारत में कानून का सहारा लेने के बजाय जागरूकता अभियान, शिक्षा के स्तर को बढ़ाकर तथा गरीबी को समाप्त करने जैसे उपाय करके जनसंख्या नियंत्रण के लिये प्रयास करने चाहिये। परिवार नियोजन से जुड़े परिवारों को आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये तथा ऐसे परिवार जिन्होंने परिवार नियोजन को नहीं अपनाया है उन्हें विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से परिवार नियोजन हेतु प्रेरित करना चाहिये। Top
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भारत में डिजिटल असमानता के बीच कैसे तेजी से फल-फूल रहा है डिजिटल पेमेंट
इमेज स्रोत, Getty Images
- Author, सुमेधा पाल
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
- 3 सितंबर 2024
दिल्ली में ट्रांसवुमन के लिए बने एक शेल्टर होम में प्रियंका अपने सिंगल बेड पर बैठी हुई हैं. उनका फोन बज रहा है.
इस साधारण दिखने वाले कमरे से ही प्रियंका चाय का एक वैश्विक स्तर का कारोबार चलाती हैं.
वो भी ऐसे समय में जब कुछ वक़्त पहले तक ही उन्होंने तमाम तरह की मुश्किलें झेली थीं.
अपने पिता की मौत और कारोबार को आगे बढ़ाने के कम मौक़ों की वजह से प्रियंका को अपना गृह राज्य असम छोड़ना पड़ा था.
वो कहती हैं, ''मुझे इसका अहसास हुआ कि फूल तभी खिलते हैं, जब उन्हें पर्याप्त मौक़े और जगह मिलते हैं- मुझे फिर से नई शुरुआत के लिए अपना घर छोड़ना पड़ा.''
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प्रियंका जैसे युवा उद्यमियों के लिए यूपीआई एक वित्तीय सशक्तीकरण का ज़रिया बन गया है.
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डिजिटल पेमेंट बना सशक्तीकरण का हथियार
31 साल की प्रियंका ने शुरुआत में देश की राजधानी दिल्ली की सड़कों पर चाय पत्ती बेचने से अपना कारोबार शुरू किया था. प्रियंका के सामने कई चुनौतियां थीं.
अपने पुराने नाम को पीछे छोड़ना, अपनी चुनी हुई पहचान यानी बतौर ट्रांसवुमन बैंकिंग करना, बैंकों में लंबी-लंबी क़तारों का सामना करना, दस्तावेज़ों को फिर से पेश करना और जटिल नौकरशाही से गुज़रना इसमें शामिल था.
प्रियंका मित्र ट्रस्ट नाम के गरिमा गृह में रहती हैं. यहां मिली ट्रेनिंग के ज़रिए उन्होंने यूपीआई के बारे में जाना और अपने व्यापार को शुरू किया.
प्रियंका कहती हैं, ''डिजिटल इकोसिस्टम ने मुझे अपने पैरों पर मज़बूती से खड़ा होने में मदद की है. फोन पर ऑर्डर मिलने से लेकर, जो वेंडर मेरा सामान स्टोर और पैक करते हैं, उनके पेमेंट तक, ये सब मैंने स्कैन-एंड-पे सिस्टम के ज़रिए किया है. मेरे दस्तावेज़ चोरी हो गए थे और पैसा भी चला गया. यूपीआई सिस्टम की वजह से मैंने इन चुनौतियों को पीछे छोड़ा और कारोबार को आगे बढ़ाया.''
प्रियंका उन 44 करोड़ डिजिटल ट्रांजेक्शन करने वालों में से एक हैं, जो हर रोज़ देश में स्वदेशी स्कैन-एंड-पे यूनिफाइड पेमेंट इंटरफ़ेस (यूपीआई) का इस्तेमाल कर रही हैं.
इसे भारत के डिजिटल आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा क़दम माना जाता है.
कई बैंक खातों को एक ही मोबाइल ऐप पर लाकर और कई सारे बैंकिंग सुविधाओं के साथ कारोबारियों को भुगतान करने की सुविधा दी जा रही है.
ऐसे में सिर्फ़ 2024 में ही यूपीआई के जरिए 131 अरब ट्रांजेक्शन दर्ज़ हुए हैं, जिनकी कुल क़ीमत 2.39 ट्रिलियन डॉलर है.
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि डिजिटल असमानता और इंटरनेट की पहुंच जैसी गंभीर चुनौतियों पर ध्यान देने की ज़रूरत बनी हुई है.
हर रोज़ होने वाले इस ट्रांजेक्शन की संख्या 2026-27 तक एक अरब तक पहुंचने का अनुमान है.
सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़, साल 2022 में दुनियभर में की गई सभी रीयल टाइम पेमेंट का 46 फ़ीसदी भारत से ही किया गया.
यूपीआई पेमेंट के मामले में भारत डिजिटल पेमेंट करने वाले चार बड़े देशों को पीछे छोड़ चुका है, चीन और अमेरिका भी इसमें शामिल हैं.
''पैसा ही आज़ादी है''
देश में काम करने वाले लोगों में से 90 फ़ीसदी अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं.
शहरी क्षेत्रों और दिल्ली में ये अनुपात 80 फ़ीसदी का है. इन्हीं लोगों में से एक हैं दिल्ली की अंजु.
48 साल की अंजु को प्लास्टिक के 1200 फूल जोड़ने पर दिन में एक डॉलर यानी क़रीब 83 रुपये से भी कम मिलता है.
अंजु की दूसरी भूमिकाओं में अपना घर चलाना और बतौर सिंगल मदर अपने बेटों और बुज़ुर्ग ससुर की देखभाल शामिल है.
वो कहती हैं, ''पहले बिचौलिए ये वादा करते थे कि वो हमारी दिहाड़ी भेज देंगे या अपने सहूलियत से पैसा ले आएंगे. लेकिन अब हमें हमारी कमाई तुरंत मिल जाती है और वो भी पूरी ज़िम्मेदारी के साथ.''
अंजु कहती हैं, ''सिंगल मदर होने का मतलब ये था कि मैंने कभी अपने घर के बाहर क़दम तक नहीं रखा था. अब डिजिटल पेमेंट की वजह से मैं अपनी सुविधा के हिसाब से घर चला पाती हूं.''
आर्थिक विश्लेषक चार्ल्स असीसी मोबाइल बेस्ड डिजिटल पेमेंट सिस्टम को तकनीक में नएपन के अलावा ''वित्तीय स्वतंत्रता का माध्यम'' मानते हैं.
वो कहते हैं, ''जब आपके पास सीधे पैसा भेजने का सिस्टम होता है, ऐसे पैसे में सामाजिक कल्याण के योजनाओं के ज़रिए भेजे जाने वाली सरकारी मदद भी शामिल हैं, जो ज़्यादातर ग्रामीण इलाक़ों में भेजे जाते हैं, तब लोग ख़ुद को सशक्त महसूस करते हैं. आख़िरकार, पैसा ही तो आज़ादी है.''
एक अरब से ज़्यादा लोगों के लिए डिजिटल सिस्टम बनाना, तब जब इसमें से एक बड़ी आबादी डिजिटल असमानता और इंटरनेट की पहुंच की समस्या से जूझ रही है, एक ऐसा काम था जिसे ज़ीरो से शुरू करना था. मतलब ये है कि ज़ीरो से एक डिजिटल पेमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) को तैयार करना.
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भारत के डिजिटल पेमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर को अब दुनिया के कुछ देश अपना रहे हैं. लेकिन इसके साथ ही चुनौतियां भी बढ़ती जा रही हैं.
भारत की क़रीब 70 फ़ीसदी आबादी तक डिजिटल सर्विस की या तो पहुंच नहीं है या बेहद कम है. इस चुनौती को महिलाओं का आंकड़ा और गंभीर बना देता है.
महिलाएं, पुरुषों की तुलना में 41 फ़ीसदी कम मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल करती हैं.
भारत के 94 फ़ीसदी गांवों में कम से कम एक मोबाइल टावर है लेकिन इसकी गांव के हर कोने में पहुंच नहीं होती है. इन सबके बीच गुजरात का अकोदरा एक दशक पहले ही डिजिटल हो गया था.
वो ऐसा करने वाला देश का पहला गांव बना. भारत के दूरदराज के इलाक़े धीरे-धीरे कनेक्टिविटी की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.
झारखंड का एक छोटा सा आदिवासी गांव लोढ़ाई, जो देश की राजधानी से क़रीब एक हज़ार किलोमीटर दूर है. यहां के लोगों ने डिजिटल कनेक्शन हासिल करने के लिए सालों तक संघर्ष किया.
लोढ़ाई अब भी स्थिर इंटरनेट कनेक्शन से दूर है. लेकिन यहां की क़रीब 15 हज़ार की आबादी, जिसमें से ज़्यादातर जनजाति समुदाय से हैं, इन लोगों ने सस्ता समाधान निकाला है.
हर सुबह, दुकानदार अपने मोबाइल डिवाइस को सावधानी से पैक करके 20 से 30 फ़ुट की ऊंचाई पर लटका देते हैं ताकि उन्हें स्थिर इंटरनेट कनेक्टिविटी मिल सके. इस क़दम से दुकानों पर जो मोबाइल या लैपटॉप लगे होते हैं, उन्हें हॉट स्पॉट की तरह इंटरनेट मिल जाता है.
गाँव वालों को दस्तावेज़ मुहैया कराने वाले प्रज्ञा सेंटर नाम की दुकान के युवा प्रबंधक जॉन बंदिया कहते हैं, ''हम पहले नेटवर्क के लिए अपनी छतों पर चढ़ जाते थे. फिर हमने सोचा, हम दुकानों या बाज़ारों के लिए क्या कर सकते हैं? इस नई पहल के साथ हम अब दुनिया से कनेक्ट कर सकते हैं. हम पैसा, मैसेज और बहुत कुछ भेजने में सक्षम हैं.''
जॉन के बगल में ही बैठे एक ग्रामीण विश्वनाथ कंडैथ इस तरह के संघर्ष को याद करते हुए कहते हैं, ''हमारे पास स्मार्टफोन है, तब भी हम पर्याप्त इंटरनेट कनेक्शन पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हम भी भारत के दूसरे लोगों की तरह इसमें आसानी चाहते हैं.''
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सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए काम करने वाली कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज इन चुनौतियों को बख़ूबी समझती हैं.
वो कहती हैं, ''भारत ने डिजिटल अर्थव्यवस्था की दिशा में अहम क़दम उठाए हैं. साथ ही रिकॉर्ड्स और जानकारी के डिजिटलीकरण की दिशा में भी काम किया है. यहां सशक्तीकरण की अपार मौक़े हैं, ख़ासतौर पर उन लोगों के लिए जो समाज में हाशिए पर हैं. अब भी पहुंच का मुद्दा बना हुआ है और हमें ये समझना होगा कि डिजिटल सेटअप में कैशलेस अर्थव्यवस्था के लिए लोग हमेशा सक्षम नहीं होते हैं.''
वो कहती हैं, ''चुनौतियों के बारे में सोचना ज़रूरी है, जिससे कि ग्रामीण क्षेत्र के लोग पीछे न छूट जाएं. अगर किसी को दिक्क़त होती है तो वित्तीय धोखाधड़ी को ख़त्म करने के लिए शिकायत निवारण तंत्र होना चाहिए.''
कई देशों में अपनाया जा रहा है भारत का मॉडल
इन सब चुनौतियों के बीच, भारत में दुनिया के 40 फ़ीसदी रीयल टाइम डिजिटल पेमेंट हो रहे हैं और यूपीआई सिस्टम को दुनियाभर में मान्यता मिल रही है. यूपीआई सर्विस श्रीलंका, मॉरिशस, भूटान और नेपाल जैसे देशों में शुरू हो चुकी है.
मालदीव ने अपने देश में शुरू करने के लिए साझेदारी की है. ये सिस्टम दूसरे देश के नागरिकों के लिए आसान है, वो आसानी से अपने किसी भी बैंक कार्ड के ज़रिए यूपीआई डिजिटल वॉलेट में पैसा रख सकते हैं और फिर उसका इस्तेमाल किसी भारतीय कारोबार के लिए कर सकते हैं.
एशिया, अफ्रीका और मध्य-पूर्व ने भारतीय मॉडल को अपने-अपने देशों में लागू करने में दिलचस्पी दिखाई है. दूसरे देशों में जैसे फ्रांस ने भारतीय पर्यटकों के लिए यूपीआई क्यूआर कोड के इस्तेमाल की शुरुआत कर दी है.
अप्रैल, 2016 में लॉन्च किए गए यूपीआई को नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) नियंत्रित करता है. ये यूपीआई पेमेंट को नियंत्रित करने वाला एक सरकारी निकाय है.
हालांकि, यूपीआई की कामयाबी की भविष्यवाणी 2016 से बहुत पहले ही की जा चुकी थी.
भारत का डिजिटल आइडेंटिटी प्रोजेक्ट या यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (UIDAI) जिसे आधार के नाम से भी जाना जाता है, ये साल 2009 में लाया गया था. इसे कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन सरकार के वक़्त लाया गया था.
उस वक़्त इसके पीछे की सोच ये थी कि हर भारतीय को एक 12 अंकों वाली पहचान संख्या दी जाए, जिसका इस्तेमाल अलग-अलग सेवाओं में किया जा सके.
बैंकिंग सेवा को आधार नंबरों से जोड़ा गया, जिससे लाखों लोगों को अपने मोबाइल नंबर के ज़रिए बैंक खाता खोलने की सुविधा मिली.
इससे देश में साल 2013 से 2017 के बीच रिकॉर्ड संख्या में बैंक अकाउंट खोले गए, ये संख्या दुनिया भर में खोले गए सभी खातों का आधा था.
भारत सरकार के पूर्व वित्तीय सलाहकार अशोक पाल सिंह, ऐसे लोगों में शामिल थे, जिन्होंने देश में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए नीतियां बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. वे भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) में वित्तीय समावेशन के प्रमुख रह चुके हैं.
वो कहते हैं, ''सरकारी बैंकों ने कैशलेस बदलाव की दिशा में शुरुआती भूमिका निभाई थी. छोटे यूनिट्स को उस वक़्त बिज़नेस कॉरस्पॉन्डेंस के तौर पर इस्तेमाल किया गया और बैंकिंग के कामकाज़ में उन्हें लगाया गया. बैंकिंग के लिए एक यूनिक आईडी बनाना एक ऐसा काम बन गया, जो पहले कभी भी नहीं देखा गया.''
ऐसे में दुनिया भारत से क्या सीख सकती है?
अशोक पाल सिंह कहते हैं, ''पहला है, तकनीक आधारित प्लेटफॉर्म और ओपन सिस्टम मॉडल बनाना. दूसरी, वो चीज़ है जो भारत और बेहतर कर सकता है और दूसरे देश हमारे मॉडल से सीख सकते हैं, वो है कि स्टेट या सरकार आधारित एकाधिकार मॉडल नहीं बनाना और इसे बाज़ार को अपने हिसाब से तैयार करने देना.''
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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How Young India is Traveling – India Report
Bulbul Dhawan , Skift
September 3rd, 2024 at 11:00 PM EDT
More than 65% of Indian population is aged below 35. With increasing spending power, these young travelers make for a large potential traveler base.
Bulbul Dhawan
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Indian Gen Z and Millennials prefer to travel in the off-peak season to avoid crowds and reduce costs, according to a report by online visa application platform Atlys.
Young travelers are attending international sports events, looking at cultural hotspots, and going on solo adventures as part of their travels. During the Olympic Games this year, the platform saw a 60% increase in visa applications from India for France. This was driven in large part by younger travelers, Atlys said.
“Understanding the preferences of younger travelers is crucial as they drive major trends in the travel industry,” said Mohak Nahta, CEO of Atlys.
Gen Z and Millennials prefer destinations such as the UAE, Vietnam, and Egypt. On the other hand, solo travelers are preferring Egypt, Azerbaijan, and Oman.
Interestingly, Gen Z and Millennials from Maharashtra, Delhi, and Uttar Pradesh are driving outbound travel from India, Atlys said. These states have shown a significant volume of visa applications.
The Young Indian Travelers: India is a growing source of outbound tourism, as it is developing “fast-growing pools of first-time tourists,” according to consulting firm McKinsey and Company . McKinsey has also projected that India will become the fourth-largest domestic travel market in terms of spending by 2030 – it currently ranks sixth.
Earlier this year, a report by online travel agency Skyscanner had said that over 81% of Indian Gen Zs start planning their first international trips as soon as they secure a job or receive their first paycheck.
Budget is the most important consideration for the young travelers, as more than half of the youth prefer to use their own money, including income and personal savings, for these travels. About 20% of young Indian travelers are also using schemes such as buy-now-pay-later while booking their trips.
South Africa Announces New Preferred Visa System
South Africa’s department of home affairs has announced a new preferred visa system aiming to attract Chinese and Indian travelers. The system will be implemented in January next year.
Indian and Chinese nationals do not have visa-free access to South Africa. The new system, the Trusted Tour Operator Scheme, is expected to cut down some of the red tape around South Africa’s visa process for the nationals of the two countries. Under the scheme, approved tour operators from India and China will be able to register with the department and offer fast-tracked visas to their clients.
Meanwhile, South African Tourism has partnered with Ethiopian Airlines to offer affordable air travel to the country as part of a new campaign. The campaign offers special low airfare on Ethiopian Airlines’ routes from Mumbai, Delhi, Bengaluru, Chennai to Cape Town and Johannesburg.
Thomas Cook Witnessing Growing Festival Tourism
Travel services company Thomas Cook India and its group company SOTC are witnessing a growing trend of festival tourism. Thomas Cook said that there is a shift from the traditional home-based celebrations among Indians, as they are now increasingly traveling with family for fun celebrations during festivals.
The company has launched festive tours for Durga Puja and Diwali to capitalize on the trend.
It said that Indians are now opting for longer stays during festival vacations: the stays have increased from three days earlier to 6-15 days now. “The appetite to spend has increased by 10-15% YoY,” the company said.
Apart from destinations like Kashmir, Himachal Pradesh, Dubai, and Abu Dhabi, new destinations are also emerging in the list of preferred locations: Azerbaijan, Uzbekistan, Kazakhstan, Vietnam, Cambodia, and Georgia.
Accor Signs Pullman in Varanasi
Accor has announced the signing of a Pullman hotel in Varanasi. The 180-room hotel is set to open in January 2029. In November last year, Accor had signed its second Pullman in India, set to come up in Amritsar in 2027.
Accor currently operates 64 properties in India, and has a developmental pipeline of 30 hotels.
In an earnings call earlier this year , Accor CEO Sébastien Bazin had said that it will benefit as the middle class expands, especially in India. “What’s most important … is the increase of the emerging middle-class population, which went up one billion in the last 10 years, half of those from India. Those are the preferred targets for Ibis, Mercure, and many of the hotels in our core,” he had said.
He further said, ““India alone… had 35 million international travelers for the last two to three years,” Bazin said. “There is no question in my mind that India will reach the 150 million mark that we’ve been enjoying with China and America.”
The Leela Partners With RedBeryl
The Leela Palaces, Hotels and Resorts has entered into a strategic alliance with luxury lifestyle management company RedBeryl. The partnership will provide RedBeryl members access to the Leela Discovery membership.
Shweta Jain, Chief Marketing and Sales Officer of The Leela, said, “Desire for immersive travel experiences continues to rise, particularly among the young affluent. Over 60% of luxury travelers are seeking custom, stress-free experiences that align with their lifestyle.”
As part of the alliance, RedBeryl and The Leela will launch joint marketing campaigns and co-create exclusive events to highlight the features of the partnership.
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Student suicides now exceed farmers' in India: Report
The rate of student suicides has consistently outpaced both population growth and overall suicide trends..
Listen to Story
- Student suicides continue to surpass both population growth rates, overall suicide trends
- Maharashtra, Tamil Nadu, Madhya Pradesh have the highest number of student suicides
- Data compiled by National Crime Records Bureau based on police-recorded FIRs
A new report reveals that student suicides in India are rising at a disturbing rate, far outpacing both population growth and overall suicide trends. The report, titled "Student Suicides: An Epidemic Sweeping India," was released on Wednesday during the Annual IC3 Conference and Expo 2024.
Drawing on data from the National Crime Records Bureau (NCRB), the report highlights that while overall suicide rates in India have increased by 2% annually, the rate of student suicides has surged by 4%. The report also suggests these figures may be underreported, indicating a potentially even more severe issue.
The IC3 Institute, a volunteer-driven organisation, supports high schools worldwide by providing guidance and training resources and helping to establish and maintain strong career and college counselling departments for administrators, teachers, and counsellors.
The rate of student suicides has consistently outpaced both population growth and overall suicide trends. Over the past decade, while the population of individuals aged 0-24 decreased from 582 million to 581 million, the number of student suicides rose sharply from 6,654 to 13,044," the report stated.
One in seven young people between the ages of 15 and 24 in India experiences poor mental health, including symptoms of depression and disinterest. Shockingly, only 41% of those surveyed felt the need to seek support when dealing with mental health challenges." UNICEF Report, The State of the World's Children.
Last year, the IC3 Institute released the first report on student suicides, revealing that over 13,000 students died by suicide annually in India. This alarming trend persists. In response, the IC3 Institute established a task force dedicated to strategic leadership in student mental health.
1. In 2022, there were 13,044 reported student suicides compared to 13,089 in 2021, representing an insignificant decrease in Y-O-Y.
2. In comparison, total suicides (students and other people) increased by 4.2 percent, from 164,033 in 2021 to 170,924 in 2022.
3. Over the last 10 and 20 years, total suicides increased 2 percent annually on average while student suicides increased 4 percent - i.e. 2X that of total suicides.
4. Student suicides are 7.6 percent of the total suicides, similar to that of many other professions such as salaried persons, farmers, unemployed persons, and self-employed persons.
STUDENT SUICIDE RATES: WHICH INDIAN STATES HAVE THE HIGHEST STUDENT SUICIDE RATES?
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जनसंख्या: समस्या एवं समाधान पर निबंध | Essay on Population : Problems and Solution in Hindi!
हमारे देश में अनेकों जटिल समस्याएँ हैं जो देश के विकास में अवरोध उत्पन्न करती हैं । जनसंख्या वृदधि भी देश की इन्हीं जटिल समस्याओं में से एक है । संपूर्ण विश्व में चीन के पश्चात् भारत सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है ।
परंतु जिस गति से हमारी जनसंख्या बढ़ रही है उसे देखते हुए वह दिन दूर नहीं जब यह चीन से भी अधिक हो जाएगी । हमारी जनसंख्या वृदधि की दर का इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् मात्र पाँच दशकों में यह 33 करोड़ से 100 करोड़ के आँकड़े को पार कर गई ह ।
देश में जनसंख्या वृद्धि के अनेकों कारण हैं । सर्वप्रथम यहाँ की जलवायु प्रजनन के लिए अधिक अनुकूल है । इसके अतिरिक्त निर्धनता, अशिक्षा, रूढ़िवादिता तथा संकीर्ण विचार आदि भी जनसंख्या वृदधि के अन्य कारण हैं । देश में बाल-विवाह की परंपरा प्राचीन काल से थी जो आज भी गाँवों में विद्यमान है जिसके फलस्वरूप भी अधिक बच्चे पैदा हो जाते हैं ।
शिक्षा का अभाव भी जनसंख्या वृद्धि का एक प्रमुख कारण है । परिवार नियोजन के महत्व को अज्ञानतावश लोग समझ नहीं पाते हैं । इसके अतिरिक्त पुरुष समाज की प्रधानता होने के कारण लोग लड़के की चाह में कई संतानें उत्पन्न कर लेते हैं । परन्तु इसके पश्चात् उनका उचित भरण-पोषण करने की सामर्थ्य न होने पर निर्धनता व कष्टमय जीवन व्यतीत करते हैं ।
देश ने चिकित्सा के क्षेत्र में अपार सफलताएँ अर्जित की हैं जिसके फलस्वरूप जन्मदर की वृदधि के साथ ही साथ मृत्युदर में कमी आई है । कुष्ठ, तपेदिक व कैंसर जैसे असाध्य रोगों का इलाज संभव हुआ है जिसके कारण भी जनसंख्या अनियंत्रित गति से बढ़ रही है । इसके अतिरिक्त जनसंख्या में बढ़ोतरी का मूल कारण है अशिक्षा और निर्धनता ।
आँकड़े बताते हैं कि जिन राज्यों में शिक्षा-स्तर बढ़ा है और निर्धनता घटी है वहाँ जनसंख्या की वृद्धि दर में भी ह्रास हुआ है । बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि प्रांतों में जनसंख्या वृद्धि दर सबसे अधिक है क्योंकि इन प्रांतों में समाज की धीमी तरक्की हुई है ।
देश में जनसंख्या वृद्धि की समस्या आज अत्यंत भयावह स्थिति में है जिसके फलस्वरूप देश को अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है । देश में उपलब्ध संसाधनों की तुलना में जनसंख्या अधिक होने का दुष्परिणाम यह है कि स्वतंत्रता के पाँच दशकों बाद भी लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रही है ।
इन लोगों को अपनी आम भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है । हमने निस्संदेह नाभिकीय शक्तियाँ हासिल कर ली हैं परंतु दुर्भाग्य की बात है कि आज भी करोड़ों लोग निरक्षर हैं । देश में बहुत से बच्चे कुपोषण के शिकार हैं जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि एक स्वस्थ भारत की हमारी परिकल्पना को साकार रूप देना कितना दुष्कर कार्य है ।
बढ़ती हुई जनसंख्या पर अंकुश लगाना देश के चहुमुखी त्रिकास के लिए अत्यंत आवश्यक है । यदि इस दिशा में सार्थक कदम नहीं उठाए गए तो वह दिन दूर नहीं जब स्थिति हमारे नियत्रंण से दूर हो जाएगी । सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि हम परिवार-नियोजन के कार्यक्रमों को और विस्तृत रूप दें ।
जनसंख्या वृदधि की रोकथाम के लिए केवल प्रशासनिक स्तर पर ही नहीं अपितु सामाजिक, धार्मिक एवं व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास आवश्यक हैं । सभी स्तरों पर इसकी रोकथाम के लिए जनमानस के प्रति जागृति अभियान छेड़ा जाना चाहिए ।
भारत सरकार ने विगत वर्षों में इस दिशा में अनेक कदम उठाए हैं परंतु इन्हें सार्थक बनाने के लिए और भी अधिक कठोर कदम उठाना आवश्यक है । देश के स्वर्णिम भविष्य के लिए हमें कुछ ऐसे निर्णय भी लेने चाहिए जो वर्तमान में भले ही अरुचिकर लगें परंतु दूरगामी परिणाम अवश्य ही सुखद हों – जैसे हमारे पड़ोसी देश चीन की भाँति एक परिवार में एक से अधिक बच्चे पर पाबंदी लगाई जा सकती है ।
अधिक बच्चे पैदा करने वालों का प्रशासनिक एवं सामाजिक स्तर पर बहिष्कार भी एक प्रभावी हल हो सकता है । यदि समय रहते इस दिशा में देशव्यापी जागरूकता उत्पन्न होती है तो निस्संदेह हम विश्व के अग्रणी देशों में अपना स्थान बना सकते हैं ।
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Conservation priorities for Indian biodiversity: spatiotemporal patterns, policy efficacy, and future outlook
- Original Paper
- Published: 31 August 2024
Cite this article
- C. Vishwapriya 1 &
- N. G. Devaiah 1
As one of the world’s mega-biodiverse regions, the Indian subcontinent harbors exceptional biological riches spanning diverse taxa and ecosystems. However, rapid economic growth and associated anthropogenic pressures pose ever-increasing threats to native biota through habitat loss, overexploitation, invasive species, climate change, and pollution. This paper analyzes India’s changing biodiversity landscape, evaluates the efficacy of conservation policies, and charts strategic priorities for the future. Spatiotemporal trends for 3563 species across terrestrial, fresh water and marine realms were assessed using IUCN Red List data. We find that birds and mammals show modest improvements recently owing to legal protections and habitat recovery initiatives. However, other less-charismatic taxa exhibit alarming population declines nationwide. Our policy analysis highlights critical gaps in implementation frameworks involving multi-sector coordination, capacity building, benefit sharing, and participatory decision-making. To arrest biodiversity erosion and achieve stated policy targets by 2030, we propose an integrated, evidence-driven strategy prioritizing invasives control, agro-ecological transitions, pollution abatement, ecological connectivity via green-gray infrastructure, and community-based adaptation. Mindful of inherent socio-ecological complexities, our recommendations provide a framework for targeted conservation investments attuned to India’s development aspirations.
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Prioritizing India’s landscapes for biodiversity, ecosystem services and human well-being
Challenges beyond reaching a 30% of area protection
Challenges and opportunities of area-based conservation in reaching biodiversity and sustainability goals
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Acknowledgements
The author(s) would like to acknowledge that no financial support or grants were received for the research, authorship, and/or publication of this article.
The authors declare that no funds were received to support the work presented in this study.
Author information
Authors and affiliations.
Alliance School of Law, Alliance University, Bengaluru, India
C. Vishwapriya & N. G. Devaiah
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Contributions
B. contributed in review of literature, conceptualization of the idea, and designing the methodology. A. contributed in the analysis and investigation of research, in presenting the results, and highlighting the major findings.
Corresponding author
Correspondence to C. Vishwapriya .
Ethics declarations
Competing interests.
The authors declare no competing interests.
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Species-level extinction risk trends disaggregated by major taxonomic groups.
Taxonomic Group | % Threatened at First Assessment | % Threatened in Latest 2022 Assessment |
---|---|---|
Amphibians (n = 250) | 5.2 | 38.6 |
Mammals (n = 423) | 14.7% | 25.3 |
Birds (n = 1172) | 3.2 | 12.5 |
Reptiles (n = 260) | 4.2 | 10.6 |
Actinopterygii (n = 223) | 5.1 | 21.5 |
Anthozoans (n = 240) | 8.6 | 32.5 |
Gastropods (n = 91) | 4.4 | 30.8 |
Odonates (n = 60) | 2.1 | 8.4 |
Plants (n = 40) | 1.8 | 7.3 |
Species-level extinction risk trends disaggregated by biodiversity hotspot regions.
Biodiversity Hotspot | Region | % Threatened at First Assessment | % Threatened in Latest 2022 Assessment |
---|---|---|---|
Western Ghats & West Coast (n = 1182) | Overall | 6.2 | 23.7 |
Plants | 12.5 | 67.2 | |
Amphibians | 17.8 | 59.3 | |
Freshwater Fish | 11.2 | 42.0 | |
Odonates | 3.4 | 18.6 | |
Reptiles | 7.9 | 26.4 | |
North-East India (n = 927) | Overall | 6.7 | 22.4 |
Mammals | 18.5 | 37.6 | |
Birds | 4.9 | 18.7 | |
Reptiles | 5.2 | 16.5 | |
Amphibians | 11.3 | 42.2 | |
Freshwater Fish | 7.6 | 35.8 | |
Andaman & Nicobar Islands (n = 253) | Overall | 9.3 | 29.6 |
Plants | 5.8 | 17.4 | |
Birds | 11.2 | 23.6 | |
Mammals | 23.1 | 53.8 | |
Reptiles | 16.7 | 41.7 | |
Amphibians | 33.3 | 66.7 |
Alien invasive plants, mammals and reptiles severely endanger native biota across habitats. Potential interventions include import restrictions, early detection via monitoring, mechanical/chemical control and biocontrol research.
Habitat degradation is pervasive with Protected Areas also impacted. Restoration through native plantations, managed natural regeneration and hydrological revitalization can accelerate recovery.
Agricultural intensification critically threatens endemic dryland biota and wetland ecosystems via chemical effluents and desertification. State advisory services should actively incentivize minimum tillage, organic farming, mixed cropping, conservation agriculture and agroforestry.
Industrial effluents and untreated urban sewage have created overly polluted waterways hostile to intrinsic biota while fostering invasive species. Command-and-control restrictions coupled with compliance assistance programs are essential to control contamination at source.
Linear infrastructure like roads and canals severely fragments habitats driving population isolation and gene flow disruption. Strategic mitigation via wildlife underpasses and overpasses aligned with identified dispersal corridors can re-connect habitats for improved viability.
Revitalizing community forest rights, customary tenure and co-management institutions supports self-organized stewardship attuned to local socio-ecological feedbacks. This culturally resonant model cost-effectively safeguards ecosystem health and local livelihoods simultaneously.
Indigenous communities possess invaluable medicinal plant knowledge but lack recognized stakes in commercial applications undermining conservation incentives. Clarifying administrative procedures for bioprospecting patents, licensing and royalty flows offers a potential solution.
Complementing the existing built fabric with green elements like urban wetlands, peri-urban woodlots and mangrove buffers amplifies habitat extent while delivering air/water quality co-benefits to human settlements.
Pursuing sustainable transitions across energy, mobility and agricultural sectors will require judiciously balancing ecological impacts against development gains through appropriate regulatory frameworks.
Expanding nationwide biodiversity surveillance through citizen science platforms and remote sensing coupled with stronger enforcement mechanisms can improve compliance and accountability across policies.
Collectively these ten interventions constitute targeted, evidence-driven conservation investments closely aligned with India’s unique socio-cultural milieu and sustainability challenges.
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About this article
Vishwapriya, C., Devaiah, N.G. Conservation priorities for Indian biodiversity: spatiotemporal patterns, policy efficacy, and future outlook. Biodivers Conserv (2024). https://doi.org/10.1007/s10531-024-02924-8
Download citation
Received : 09 March 2024
Revised : 08 August 2024
Accepted : 18 August 2024
Published : 31 August 2024
DOI : https://doi.org/10.1007/s10531-024-02924-8
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Global Report on Food Crises (GRFC) 2024
Published by the Food Security Information Network (FSIN) in support of the Global Network against Food Crises (GNAFC), the GRFC 2024 is the reference document for global, regional and country-level acute food insecurity in 2023. The report is the result of a collaborative effort among 16 partners to achieve a consensus-based assessment of acute food insecurity and malnutrition in countries with food crises and aims to inform humanitarian and development action.
FSIN and Global Network Against Food Crises. 2024. GRFC 2024 . Rome.
When citing this report online please use this link:
https://www.fsinplatform.org/report/global-report-food-crises-2024/
Document | File |
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Global Report on Food Crises 2021 - September update | |
Global Report on Food Crises 2021 | |
Global Report on Food Crises 2021 (In brief) | |
Global Report on Food Crises 2020 - September update In times of COVID-19 | |
Global Report on Food Crises 2020 | |
Global Report on Food Crises 2019 - September update | |
Global Report on Food Crises 2019 | |
Global Report on Food Crises 2019 (In brief) | |
Global Report on Food Crises 2019 (Key Messages) | |
Global Report on Food Crises 2019 (Key Messages) - French | |
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जनसंख्या वृद्धि पर निबंध (समस्या, समाधान) सहित Essay on Population problem in Hindi. इस अनुच्छेद में हमने जनसंख्या वृद्धि पर निबंध समस्या और समाधान (Essay on Population ...
अब इस से मैं 3 बातें समझ पाया-. 1. अधिक जनसंख्या एक समस्या है और यहाँ तक कि बच्चे भी इस बात को समझते हैं. 2. निश्चित तौर पर किसी को मार कर तो ...
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भारत में बाल श्रम कारण एवं उन्मूलन हेतु सरकारी प्रयास | Essay in Hindi on causes of child labor TAGS Essay on Increasing Population
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भारत एक साथ कई विरोधाभासों को जीता है. एक तरफ़ भारत के आम लोग ...
More than 65% of Indian population is aged below 35. With increasing spending power, these young travelers make for a large traveler base. Javascript is required for this site to display correctly.
Over the past decade, while the population of individuals aged 0-24 decreased from 582 million to 581 million, the number of student suicides rose sharply from 6,654 to 13,044," the report stated. One in seven young people between the ages of 15 and 24 in India experiences poor mental health, including symptoms of depression and disinterest.
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ADVERTISEMENTS: जनसंख्या: समस्या एवं समाधान पर निबंध | Essay on Population : Problems and Solution in Hindi! हमारे देश में अनेकों जटिल समस्याएँ हैं जो देश के विकास में अवरोध ...
As one of the world's mega-biodiverse regions, the Indian subcontinent harbors exceptional biological riches spanning diverse taxa and ecosystems. However, rapid economic growth and associated anthropogenic pressures pose ever-increasing threats to native biota through habitat loss, overexploitation, invasive species, climate change, and pollution. This paper analyzes India's changing ...
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