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  • Jivan Parichay (जीवन परिचय) /

Udham Singh : महान क्रांतिकारी सरदार उधम सिंह का जीवन परिचय

essay of udham singh in hindi

  • Updated on  
  • जुलाई 29, 2024

Udham Singh Biography in Hindi

Udham Singh Biography in Hindi : सरदार उधम सिंह को भारतीय इतिहास में एक महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किया जाता हैं। उन्होंने 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में ‘ जलियांवाला बाग़ हत्याकांड ’ के जघन्‍य नरसंहार को अंजाम देने वाले और पंजाब के तत्‍कालीन गर्वनर जनरल ‘ माइकल फ्रांसिस ओ डायर’ (Michael Francis O’Dwyer) को 21 साल बाद लंदन में जाकर गोली मारी थी। वहीं इस घटना के बाद वे वहाँ से भागे नहीं बल्कि अपनी गिरफ्तारी दे दी। हालांकि इसके बाद उन पर मुकदमा चला और 31 जुलाई 1940 को लंदन के कॉक्सटन हॉल में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। किंतु तत्कालीन ब्रिटिश जनरल को उनके देश में मारने का जो काम उन्होंने किया था, उसकी सराहना हर एक क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी ने की। 

इस ब्लॉग में भारत के महान क्रांतिकारी सरदार उधम सिंह का जीवन परिचय (Udham Singh Biography in Hindi) और उनके कार्यों के बारे में बताया गया है। 

नाम सरदार उधम सिंह (Sardar Udham Singh) 
उपनाम राम मोहम्मद सिंह आजाद 
जन्म 26 दिसंबर, 1899
जन्म स्थान सुनाम गांव, संगरुर जिला, पंजाब 
पिता का नाम सरदार तेहाल सिंह जम्मू  
माता का नाम माता नरैन कौर 
शिक्षा मैट्रिक 
पेशा स्वतंत्रता सेनानी 
पार्टी गदर पार्टी 
मृत्यु 31 जुलाई 1940,  लंदन, यूनाइटेड किंगडम 

This Blog Includes:

पंजाब के संगरुर जिले में हुआ था जन्म – udham singh biography in hindi, जलियांवाला बाग हत्याकांड से बदल गई जिंदगी, जेल में बिताए पांच वर्ष , ‘माइकल फ्रांसिस ओ डायर’ की ली जान , फांसी की सजा सुनाई गई , पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय.

क्रांतिकारी शूरवीर सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम नामक गांव में हुआ था। उनका मूल नाम शेर सिंह था लेकिन बाद में वह सरदार उधम सिंह के नाम से जाने गए। उनके पिता का नाम ‘सरदार तेहाल सिंह जम्मू’ था जो कि पेशे से रेलवे में चौकीदारी का काम किया करते थे। जबकि उनकी माता का नाम ‘माता नरैन कौर’ था, जो कि एक गृहणी थीं। बताया जाता है कि जब वे तीन साल के थे तभी उनकी माता का देहांत हो गया था। सात वर्ष की आयु तक उनके पिता का भी आकस्मिक निधन हो गया। अल्प आयु में अनाथ हो जाने के कारण उन्हें अपने भाई ‘मुक्ता सिंह’ के साथ अमृतसर के ‘ सेंट्रल खालसा अनाथालय’ (The Central Khalsa Orphanage) में शरण लेनी पड़ी। इसके कुछ वर्ष बाद उनके भाई का भी निधन हो गया जिसके बाद वह अकेले हो गए। 

वर्ष 1919 में जब ब्रिटिश हुकूमत के काले कानून ‘ रॉलेट एक्ट’ के विरोध में देशभर में आंदोलन हो रहे थे। उस दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्य पाल और सैफुद्दीन किचलू को पंजाब से अंग्रेज सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। लेकिन जब 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग़ में ‘रॉलेट एक्ट’ के विरुद्ध में शांतिपूर्ण सभा रखी गई जिसमें महिलाओं और बच्चो के साथ हजारों भारतीय शामिल थे।   

उसी दौरान ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के तत्कालीन गवर्नर ‘माइकल फ्रांसिस ओ डायर’ (Michael Francis O’Dwyer) ने अपनी सेना के साथ वहाँ दाखिल हो गए। इसके बाद उन्होंने वहाँ मौजूद निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलाने के आदेश दे दिया जिससे वहाँ लाशों का ढेर लग गया। बताया जाता है कि इस हत्याकांड में लगभग 120 लोगों के शव कुएं से मिले थे। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था, जिनमें से एक सरदार उधम सिंह भी थे।

जलियांवाला बाग हत्याकांड का सरदार उधम सिंह के जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ा था। उन्होंने मन में ठान लिया था कि वे माइकल फ्रांसिस ओ डायर को उसके अपराधों की सजा जरूर देंगे। उन्होंने इस जघन्य हत्याकांड का बदला लेने के लिए कई देशों की यात्रा की। इसमें अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल है। वहीं अमेरिका पहुंचकर वे ‘ ग़दर पार्टी’ (Ghadar Movement) में शामिल हो गए और अन्य क्रांतिकारियों से मजबूत संपर्क बनाने लगे। 

वर्ष 1927 में स्वदेश लौटने के बाद वह ‘ भगत सिंह’ से मिले और अन्य क्रांतिकारियों के जुड़कर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ काम करने लगे। लेकिन कुछ समय बाद ही उन्हें अवैध हथियारों और प्रतिबंधित क्रांतिकारी साहित्य के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। जिसके कारण उन्हें 05 वर्ष की जेल हो गई। 

वर्ष 1931 में जेल से रिहा होने के बाद अंग्रेज सरकार ने सरदार उधम सिंह पर कड़ी निगाह रखनी शुरू कर दी। इस बीच उन्होंने पुलिस को चकमा देकर कई स्थान बदले और वर्ष 1934 में इग्लैंड पहुंचने में कामयाब हो गए। किंतु उनके लंदन पहुंचने से पहले ही तत्कालीन ब्रिटिश सैन्य अधिकारी ‘ रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर’ (Reginald Dyer) की ब्रैन हेमरेज से मौत हो गई। फिर उन्होंने अपना पूरा ध्यान ‘माइकल फ्रांसिस ओ डायर’ को मारने में लगाया। 

जब उन्हें पता चला कि 13 मार्च, 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी का संयुक्त अधिवेशन होने जा रहा है, जहां माइकल फ्रांसिस ओ डायर भी आमंत्रित है। तब वे भी इस बैठक में पहुंच गए। उन्होंने एक मोटी किताब में अपनी बंदूक छिपा रखी थी। बताया जाता है कि जैसे ही डायर मंच पर पहुंचे उसी दौरान उधम सिंह ने उनपर गोली चला दी जिससे मौके पर ही उनकी मौत हो गई। हालांकि इस घटना के बाद उधम भागे नहीं बल्कि अपनी गिरफ़्तारी दे दी।  

सरदार उधम सिंह ने 21 वर्ष बाद अपना बदला ले लिया था। वहीं इस घटना को देखकर हर कोई सन्न रह गया था। जब उन्हें गिरफ्तार करके उनपर मुकदमा चलाया गया और वे हत्या के दोषी पाए गए। फिर उन्हें 31 जुलाई, 1940 को पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। इस तरह सरदार उधम सिंह इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए अमर हो गए और क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा  बन गए। 

यहाँ महान क्रांतिकारी सरदार उधम सिंह का जीवन (Udham Singh Biography in Hindi) के साथ ही भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी दी जा रही हैं। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं-

उनका मूल नाम शेर सिंह था। 

उनका जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम नामक गांव में हुआ था।

जलियांवाला बाग़ में जनरल डायर ने निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलवाई थी जिसका बदला लेने के लिए सरदार उधम सिंह ने उन्हें मारा था। 

13 मार्च, 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी के अधिवेशन में उधम सिंह ने जनरल डायर को गोली मारी थी। 

माइकल फ्रांसिस ओ डायर की हत्या करने के जुर्म में उन्हें 31 जुलाई, 1940 को फांसी की सजा हुई थी। 

उन्हें माइकल फ्रांसिस ओ डायर को मारने के लिए जाना जाता है।  

पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह केंद्र सरकार की मदद से लंदन से शहीद उधम सिंह की अस्थियां भारत लाए थे। 

उन्हें 31 जुलाई, 1940 को लंदन के पेंटनविले जेल में फांसी की सजा दी गई थी।

आशा है कि आपको महान क्रांतिकारी सरदार उधम सिंह का जीवन (Udham Singh Biography in Hindi) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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Leverage Edu स्टडी अब्रॉड प्लेटफार्म में बतौर एसोसिएट कंटेंट राइटर के तौर पर कार्यरत हैं। नीरज को स्टडी अब्रॉड प्लेटफाॅर्म और स्टोरी राइटिंग में 3 वर्ष से अधिक का अनुभव है। वह पूर्व में upGrad Campus, Neend App और ThisDay App में कंटेंट डेवलपर और कंटेंट राइटर रह चुके हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविधालय से बौद्ध अध्ययन और चौधरी चरण सिंह विश्वविधालय से हिंदी में मास्टर डिग्री कंप्लीट की है।

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उधम सिंह जयंती पर निबंध Essay on Udham Singh Jayanti in Hindi

उधम सिंह जयंती पर निबंध Essay on Udham Singh Jayanti in Hindi

इस लेख में हमने शहीद उधम सिंह जयंती पर निबंध (Essay on Udham Singh Jayanti in Hindi) बेहद सरल रूप से लिखा है। दिए गए निबंध में उधम सिंह की जयंती के बारे में विस्तार से लिखा गया है।

उधम सिंह की जयंती क्यों तथा कैसे मनाई जाती है, उनकी जयंती का महत्व, साथ ही उधम सिंह जयंती पर 10 लाइन लिखा गया हैं। 

Table of Contents

प्रस्तावना (उधम सिंह जयंती पर निबंध Essay on Udham Singh Jayanti in Hindi)

भारत की आजादी के लिए लाखों लोगों ने अपनी कुर्बानी दी। शहीद उधम सिंह भी उन्हीं महापुरुषों में से एक हैं। जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देना का पथ चुना।

भारत के इतिहास में एक ऐसा समय आया जब लोग अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए व्याकुल होने लगे। उस समय भगत सिंह, अशफाक उल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद और उधम सिंह जैसे क्रांतिकारी भी हुए। जिन्होंने युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक सभी में स्वराज्य की भावना मजबूत की।

इतिहास के पन्नों में मिलता है कि जिस दिन जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था उस दिन शहीद उधम सिंह भी वही थे। जनरल डायर द्वारा किए गए नरसंहार को उन्होंने अपनी आंखों से देखा था।

उस वक्त जनरल डायर और पंजाब के गवर्नर ओ. ड्वायर मिलीभगत से पंजाब के जलियांवाला बाग में हजारों लोगों का नरसंहार किया गया। अंग्रेजी हुकूमत ने इस आंकड़े को बेहद कम दर्शाया लेकिन दोषियों को सजा देने के बदले उसे पुरस्कार दिया।

शहीद उधम सिंह के दिल में यह बात बहुत ही ज्यादा पीड़ा देने लगी। जहां एक तरफ गांधी जी व उनका दल इस घटना पर मौन था तो वही कुछ क्रांतिकारियों को छोड़ ज्यादा लोगों ने इतना को भूलना ही ठीक समझा।

शहीद उधम सिंह ने कई वर्षों तक अपने अंदर प्रतिशोध की ज्वाला को जीवित रखा और वर्षों तक बदला लेने के अवसर को ढूंढते-ढूंढते उन्होंने जलियांवाला बाग के दोषी को मौत के घाट उतार दिया। शहीद उधम सिंह की जयंती उनके इस साहस भरे काम के लिए मनाया जाता है।

उधम सिंह जयंती क्यों मनाया जाता है? Why is Udham Singh Jayanti Celebrated in Hindi?

13 अप्रैल सन 1919 को पंजाब अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग में एक सामूहिक सभा की स्थापना की गई थी। जिसमें हजारों की संख्या में लोगों ने भाग लिया था। जिसमें से शहीद उधम सिंह भी एक थे।

अंग्रेजी हुकूमत ने हिंदुस्तानियों की आवाज को दबाने का जिम्मा जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर को सौंपा। जिसने हजारों लोगों का कत्लेआम करवाया।

इससे खफा होकर हिंदुस्तान के सपूत उधम सिंह ने बदला लेने की सोची। उधम सिंह 1924 में गदर पार्टी से जुड़ गए इसे भारत में क्रांति भड़काने के लिए बनाया गया था। क्रांति के लिए जरूरी पैसा वह मदद जुटाने के लिए उधम सिंह ने दक्षिण अफ्रीका, जिंबाब्वे, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा भी की थी।

1927 में जब वे भारत वापस आए तो अपने साथ कई रिवाल्वर तथा गोला बारूद और 25 साथी भी लाए थे। लेकिन गदर पार्टी में काम करने के जुर्म में अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।

उन पर लंबा मुकदमा चला और उन्हें 5 साल की सजा हुई। लंबे वक्त जेल में रहने के बाद जब वे बाहर निकले तो अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें नजर कैद करना चाहा। पहले तो वे कश्मीर गए फिर वहां से गायब हो गए। बाद में पता चला कि वह जर्मनी पहुंच चुके हैं।

जर्मनी से उधम सिंह लंदन जा पहुंचे और एक किराए का घर लेकर वहां रहने लगे। घूमने फिरने के लिए उन्होंने भाड़े पर एक कार भी ली तथा 6 गोलियों वाली एक रिवाल्वर की व्यवस्था भी उन्होंने कर ली थी।

13 मार्च सन 1940 एक सम्मेलन में ओ. ड्वायर मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होने वाला था। उधम सिंह एक किताब में रिवाल्वर छुपाकर सबसे पहली पंक्ति में बैठ गए और मौका मिलते ही ओ. ड्वायर को गोलियों से भून डाला उसे मारने के बाद उधम सिंह भागे नहीं बल्कि कोठी गिरफ्तारी दी और 31 जुलाई सन 1940 के दिन उन्हें फांसी दे दी गई।

जलियांवाला बाग का बदला लेने के लिए उन्होंने दो दशकों से भी ज्यादा इंतजार किया। उनके इस हिम्मत वाले काम के लिए उन्हें शहीद का दर्जा मिला और हर वर्ष उनकी जयंती मनाई जाने लगी।

उधम सिंह जयंती कब है? When is Udham Singh Jayanti in Hindi?

हर वर्ष 26 दिसंबर को उधम सिंह की जयंती के रूप में मनाया जाता है और इस वर्ष भी उधम सिंह की जयंती 26 दिसंबर सन 2021 दिन रविवार को मनाया जाएगा। 

उधम सिंह जी के विषय में जानकारी Information About Udham Singh in Hindi

देश के बाहर फांसी पाने वाले उधम सिंह दूसरे क्रांतिकारी थे। संयोग की बात है कि 31 जुलाई के दिन ही मदन लाल धींगरा को फांसी दी गई थी और इसी दिन उधम सिंह जी को भी फांसी दी गई। उनके अवशेषों को भी इंग्लैंड ने 31 जुलाई सन 1974 के दिन भारत को सौंपा।

उधम सिंह जी का जन्म 26 दिसंबर सन 1899 को  पंजाब राज्य में संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। उनके बचपन का नाम शेर सिंह था। बेहद छोटी उम्र में माता पिता का साया उठ जाने के कारण उनका बचपन संघर्षों से भरा रहा।

उनके पिताजी श्री टहल सिंह कंबोज उस समय रेलवे क्रॉसिंग पर एक चौकीदार का काम करते थे। सन 1901 में उनकी माता जी का देहांत हो गया और सन 1907 तक उनके पिताजी भी चल बसे।

अनाथालय में उन्हें सिख धर्म के बारे में पढ़ाया गया जहां पर उनका नाम शेर सिंह से बदलकर उधम सिंह पड़ा। उनके साथ उनके बड़े भाई भी थे जिसकी मृत्यु 1917 में हो गई। इस प्रकार उधम सिंह जी एकदम ही अनाथ हो गए।

उधम सिंह जी ने अपने जीवन का बलिदान जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए अर्पित कर दिया। इसके बाद उधम सिंह जी हंसते हंसते फांसी पर झूल गए तब से उन्हें शहीद उधम सिंह के नाम से जाना जाने लगा।

उधम सिंह जयंती का महत्व Importance of Udham Singh Jayanti in Hindi

भारतवासियों के लिए उधम सिंह जी एक राष्ट्रभक्त और वीर होने के साथ-साथ एक आदर्श भी हैं। इसलिए उधम सिंह जी की जयंती का महत्व बेहद ही अधिक है। क्योंकि उधम सिंह जी के साथ और बहुत से क्रांतिकारियों के गहरे संबंध रहे हैं।

उधम सिंह व भगत सिंह एक पक्के दोस्त थे। दोनों ही खुद को नास्तिक मानते थे और सर्वधर्म समभाव में विश्वास करते थे। एक चिट्ठी में उन्होंने भगत सिंह को एक प्यारे दोस्त की तरह बताया है।

भगत सिंह से उनकी मुलाकात पहली बार लाहौर के जेल में हुई और दोनों के अंदर बहुत सी समानताएं होने के कारण वे दोनों पक्के दोस्त बन गए।

किसी भी देश के सबसे कीमती चीजों में उनके देश के महापुरुष भी होते हैं जो जब तक जीते हैं तब तक लोगों को मार्ग दिखाते हैं लेकिन उनके मरने के बाद भी उनके आदर्श जिंदा रहते हैं।

उधम सिंह जी ने सिर्फ 40 वर्ष की आयु में फांसी के तख्ते पर झूल गए थे। उनका जनरल ओ. ड्वायर को गोली मारने का इरादा अंग्रेजी हुकूमत को कड़ा संदेश देना तथा भारत वासियों में क्रांति की ज्वाला भड़काना था।

शहीद उधम सिंह जलियांवाला बाग हत्याकांड के दोनों गुनहगारों को जान से मारना चाहते थे। लेकिन जनरल डायर 1927 में लकवे के कारण मर गया था।

जब कोई व्यक्ति लोगों की मानसिकता को बदल कर रख देता है तो लोग उसे महापुरुष का दर्जा देने लगते हैं। शहीद उधम सिंह जी एक ऐसे उदाहरण है जो सदियों तक युवाओं के लिए आदर्श बने रहेंगे।

उधम सिंह जयंती कैसे मनाया जाता है? How is Udham Singh Jyanti Celebrated in Hindi?

हर वर्ष 26 दिसंबर को उधम सिंह जयंती राष्ट्रवादी लोग बेहद धूमधाम से मनाते हैं। शहीद उधम सिंह जी की जयंती के दिन सार्वजनिक अवकाश नहीं रहता। लेकिन स्कूल और कॉलेजों में इनके जीवन से जुड़ी चीजों को नाट्य मंच से प्रस्तुत किया जाता है।

नाट्य में उधम सिंह जी का बचपन तथा भगत सिंह की दोस्ती और जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला प्रमुख रूप से शामिल रहता है।

भारत के ज्यादातर राजनेता शहीद उधम सिंह की जयंती पर देशवासियों को अभिवादन जरूर देते हैं। वर्तमान सरकार ने सन 2018 में बैसाखी के दिन ही उनका स्टैच्यू बनवाया। उत्तराखंड में शहीद उधम सिंह के नाम पर एक जिले का रखा गया है।

हर राष्ट्रवादी के लिए शहीद उधम सिंह जयंती एक भावनात्मक पर्व है जिसे वह दिल से मनाता है।

उधम सिंह जयंती पर 10 लाइन 10 Lines on Udham Singh Jayanti in Hindi

  • भारत की आजादी के लिए लाखों लोगों ने अपनी कुर्बानी दी। शहीद उधम सिंह भी उन्हीं महापुरुषों में से एक हैं। 
  • इतिहास के पन्नों में मिलता है कि जिस दिन जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था उस दिन शहीद उधम सिंह भी वही थे।
  • शहीद उधम सिंह ने कई वर्षों तक अपने अंदर प्रतिशोध की ज्वाला को जीवित रखा और वर्षों तक बदला लेने के अवसर को ढूंढने लगे।
  • उधम सिंह 1924 में गदर पार्टी से जुड़ गए इसे भारत में क्रांति भड़काने के लिए बनाया गया था।
  •  क्रांति के लिए जरूरी पैसा वह मदद जुटाने के लिए उधम सिंह ने दक्षिण अफ्रीका, जिंबाब्वे, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा भी की थी।
  • 1927 में गदर पार्टी में काम करने के जुर्म में अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
  • जेल से बाहर निकलने के बाद उधम सिंह अंग्रेजों के नज़र कैद को तोड़कर जर्मनी पहुँच गए।
  • 13 मार्च सन 1940 एक सम्मेलन में ओ. ड्वायर मुख्य अतिथि बनकर आया था जिसे उधम सिंह ने मौत के घाट उतार दिया।
  • संयोग की बात है कि 31 जुलाई के दिन मदन लाल धींगरा को फांसी दी गई थी और इसी दिन उधम सिंह जी को भी फांसी दी गई।
  • उधम सिंह जी ने सिर्फ 40 वर्ष की आयु में फांसी के तख्ते पर झूल गए थे।

निष्कर्ष Conclusion

इस लेख में आपने शहीद उधम सिंह की जयंती (Essay on Udham Singh Jayanti in Hindi) को हिंदी में पढ़ा। आशा है यह लेख आपको सरल तथा जानकारियों से भरपूर लगा हो। अगर यह लेख आपको पसंद आया हो तो इसे शेयर ज़रुर करें।

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Udham Singh Biography in Hindi | उधम सिंह जीवन परिचय

Udham Singh

जन्म नाम शेर सिंह
उपनाममोहम्मद सिंह आजाद
नाम अर्जित • शहीद-ए-आजम उधम सिंह
• अकेला हत्यारा
• रोगी हत्यारा
व्यवसाय क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी
जाने जाते हैंसर माइकल ओ ड्वायर की हत्या (पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड का आदेश के नाते)
सक्रिय वर्ष1924 से 1940 तक
प्रमुख संगठन• ग़दर पार्टी
• हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)
• भारतीय कामगार संघ
विरासत• अमृतसर में केंद्रीय खालसा अनाथालय में उधम सिंह के कमरे को संग्रहालय में बदल दिया गया था।
• बर्मिंघम के सोहो रोड पर उधम सिंह को समर्पित एक चैरिटी बनाई गई है।
• सिंह का चाकू, डायरी, और कैक्सटन हॉल में शूटिंग की एक गोली स्कॉटलैंड यार्ड के ब्लैक म्यूज़ियम में संरक्षित है।
• वर्ष 1992 में भारत सरकार ने शहीद उधम सिंह के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था।
• राजस्थान के अनूपगढ़ में एक चौक का नाम शहीद उधम सिंह है।
• वर्ष 1995 में तत्कालीन उत्तराखंड सरकार ने उनके नाम पर एक जिले का नाम "उधम सिंह नगर" रखा है।
• एशियन डब फाउंडेशन ने 1998 में उधम सिंह पर एक संगीत ट्रैक "हत्यारा" जारी किया।
• उधम सिंह के जीवन पर सरफरोश सहित कई बॉलीवुड और पंजाबी फिल्में बन चुकी हैं जिसमें 'शहीद उधम सिंह (1976)', 'जलियांवाला बाग (1977)', 'शहीद उधम सिंह (2000)', और 'सरदार उधम (2021)' शामिल हैं।
• जनवरी 2006 में पंजाब सरकार ने आधिकारिक तौर पर सिंह के जन्मस्थान सुनाम का नाम बदलकर 'सुनाम उधम सिंह वाला' कर दिया।
• वर्ष 2015 में भारतीय बैंड Ska Vengers ने उधम सिंह को उनकी 75वीं पुण्यतिथि पर समर्पित 'फ्रैंक ब्राजील' नामक एक एनिमेटेड संगीत वीडियो जारी किया।
• वर्ष 2018 में बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग में रक्त से लथपथ धरती पर हाथ पकड़े उधम सिंह की 10 फीट ऊंची प्रतिमा का स्मरण किया गया।
• हर साल पंजाब और हरियाणा में 31 जुलाई को शहीद उधम सिंह के शहादत दिवस पर सार्वजनिक अवकाश मनाया जाता है।
• हर साल मार्च में उधम सिंह की जन्मस्थली पर उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है।
• गुमनाम नायक- उधम सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए अक्टूबर 2021 में फिल्म "सरदार उधम" रिलीज की गई थी।
• बॉलीवुड अभिनेता ने फिल्म में शहीद की भूमिका निभाई, और उनका दिलकश अभिनय शानदार छायांकन के साथ, फिल्म को 94वें अकादमी पुरस्कारों में शॉर्टलिस्ट किया गया था।
पुरस्कार/उपलब्धियां• वर्ष 2007 में उन्हें एफडीआई पत्रिका और फाइनेंशियल टाइम्स बिजनेस द्वारा "एफडीआई पर्सनैलिटी ऑफ द ईयर" से नामित किया गया था।

• वर्ष 2008 में उन्हें द इकोनॉमिक टाइम्स द्वारा "बिजनेस रिफॉर्मर ऑफ द ईयर" का खिताब दिया गया।

• वर्ष 2012 में उन्हें एशियन बिजनेस लीडरशिप फोरम की तरफ से "एबीएलएफ स्टेट्समैन पुरस्कार" से सम्मानित किया गया।
लम्बाई (लगभग)


से० मी०-
मी०-
फीट इन्च-
आँखों का रंगकाला
बालों का रंग काला
जन्मतिथि 28 दिसंबर 1899 (गुरुवार)
मृत्यु तिथि31 जुलाई 1940 (बुधवार)
मृत्यु स्थानपेंटनविले जेल, लंदन
मौत का कारणसर माइकल ओ ड्वायर की हत्या के बदले उन्हें अंग्रेजों द्वारा गोली मार दी गई।
आयु (मृत्यु के समय)
जन्म स्थानसुनाम, पंजाब, भारत
राशि मकर (Capricorn)
हस्ताक्षर
धर्म/धार्मिक विचारउधम सिंह एक पंजाबी सिख परिवार से थे और उन्हें एक सिख शहीद के रूप में याद किया जाता है। हालाँकि उन्होंने अपने पूरे जीवन में एक क्लीन शेव लुक रखा। उनके ऊपर यह आरोप लगाया गया था कि दिल से क्रांतिकारी सिंह ने अपने व्यक्तिगत विश्वास पर अपनी पंजाबी पहचान को कभी भी प्राथमिकता नहीं दी। सिंह जिन्होंने ब्रिक्सटन जेल में खुद को मोहम्मद सिंह आजाद कहते थे कथित तौर पर एक निरीक्षक को बताया कि सात साल की उम्र में वह खुद को मोहम्मद सिंह कहते थे उधम ने यह भी खुलासा किया कि उन्हें मुस्लिम धर्म पसंद था और उन्होंने मुसलमानों के साथ घुलने-मिलने की कोशिश भी की थी 1940 की अन्य रिपोर्टों से पता चला कि सिंह ने अपनी मौत की सजा की घोषणा के बाद स्पष्ट रूप से पगड़ी और गुटखा (सिख प्रार्थना पुस्तक) के लिए अनुरोध किया था जिसने सिख धर्म के प्रति उनके धार्मिक झुकाव के बारे में कई अटकलें लगाए। शहीद के जीवन पर अनीता आनंद की एक अन्य पुस्तक, "द पेशेंट असैसिन" ने उन्हें नास्तिक के रूप में संदर्भित किया था इसमें कहा गया है कि सिंह के विचार उनके "गुरु" भगत सिंह से प्रभावित हुए जिन्होंने उन्हें नास्तिकता की ओर झुकाव के लिए प्रेरित किया।
जातिअन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी)

वह एक किसान पंजाबी कम्बोज सिख परिवार से थे।
टैटूमोहम्मद सिंह आजाद- अंग्रेजों के खिलाफ भारत में सभी प्रमुख धर्मों के एकीकरण के प्रतीक के रूप में अपने बांह पर उनका अंतिम नाम डे ग्युरे टैटू गुदवाया था।
राष्ट्रीयता भारतीय
गृहनगर सुनाम, पंजाब
विवाद• सिंह ने ओ'डायर के लिए काम किया: द टाइम्स यूके ने 14 मार्च 1940 को प्रकाशित किया कि ओ'डायर की हत्या उनके ड्राइवर ने की थी। इस रिपोर्ट ने एक बहस शुरू कर दी कि क्या उधम सिंह ने जनरल के लिए काम किया था हालाँकि1989 में रोजर द्वारा प्रकाशित 'द अमृतसर लिगेसी' नामक पुस्तक में यह उल्लेख किया गया था कि सिंह ने एक सेवानिवृत्त भारतीय सेना अधिकारी के लिए एक चालक के रूप में कार्य किया था।
• हीर-रांझा की प्रति पर उधम सिंह की शपथ: 1940 में व्यापक रूप से यह बताया गया था कि सिंह ने किसी भी पवित्र पुस्तक पर शपथ लेने से इनकार कर दिया था। इसके बजाय उन्होंने वारिस शाह द्वारा प्रसिद्ध पंजाबी क्लासिक हीर-रांझा की एक प्रति का इस्तेमाल किया। इंग्लैंड ने इन दावों पर सवाल उठाया और खुलासा किया कि सिंह द्वारा जेल में लिखा गया पत्र हस्तलेखन विशेषज्ञों के अनुसार अप्रमाणिक था जिन्होंने इसकी जांच की थी।
वैवाहिक स्थिति (मृत्यु के समय)• स्रोत 1 विवाहित
• स्रोत 2 अविवाहित
विवाह तिथिवर्ष 1937
पत्नी• स्रोत 1 उधम सिंह ने मैक्सिकन महिला लुपे से शादी की
• स्रोत 2 उन्होंने कभी शादी नहीं की
बच्चेउधम सिंह के दो बेटे हैं जिनका नाम ज्ञात नहीं
माता/पिता
- तहल सिंह (1907 में मृत्यु हो गई) (ग्राम उप्पली में रेलवे गेट कीपर)
- नारायण कौर (1901 में मृत्यु हो गई)
भाई - साधु सिंह (पहले मुक्ता सिंह) (बड़े) (1917 में मृत्यु हो गई)
कविराम प्रसाद बिस्मल

Udham Singh

उधम सिंह से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ

  • उधम सिंह एक भारतीय क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे जो 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड का अकेले ही बदला लेने के लिए भारतीय इतिहास में एक जाना-पहचाना नाम हैं। मार्च 1940 में सिंह ने पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर सर माइकल ओ डायर की हत्या कर दी जिन्होंने रक्तपात की अनुमति दी थी।
  • उधम सिंह को भारत सरकार द्वारा शहीद-ए-आजम की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
  • लगभग उसी समय उन्होंने पूर्वी अफ्रीका में कुछ काम किया और वहाँ वह ग़दर क्रांतिकारियों के साथ अधिक समय तक जुड़े रहे। वर्ष 1922 में सिंह भारत वापस आ गए जहाँ वह बब्बर अकाली आंदोलन की उग्रवादी गतिविधियों में शामिल हो गए। भारत लौटने के बाद उन्होंने अमृतसर में एक दुकान के माध्यम से अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया करते थे।
  • उधम सिंह ने एक बढ़ई और नाविक के रूप में देश छोड़ दिया, जिन्होंने एक अमेरिकी शिपिंग लाइन के लिए काम किया था। इसके बाद उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए यूरोप की यात्रा की।
मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह [माइकल ओ’डायर] इसके हकदार थे। वह मेरे लोगों की आत्मा को कुचलना चाहता था, इसलिए मैंने उसे कुचल दिया है पूरे 21 साल से मैं बदला लेने की कोशिश कर रहा हूं मुझे खुशी है कि मैंने काम किया है। मैं मौत से नहीं डरता। मैं अपने देश के लिए मर रहा हूं मौत की सजा की परवाह मत करो…मैं एक उद्देश्य के लिए मर रहा हूं…हम ब्रिटिश साम्राज्य से पीड़ित हैं…मुझे मुक्त होने के लिए मरने पर गर्व है मेरी जन्मभूमि और मुझे आशा है कि जब मैं चला जाऊंगा … मेरे स्थान पर मेरे हजारों देशवासी आएंगे जो तुम्हें गंदे कुत्तों को बाहर निकालेंगे; मेरे देश को आजाद कराने के लिए…तुम भारत से साफ हो जाओगे और तुम्हारे ब्रिटिश साम्राज्यवाद को कुचल दिया जाएगा… मुझे अंग्रेजों के खिलाफ कुछ भी नहीं है…इंग्लैंड के मजदूरों के साथ मेरी बहुत सहानुभूति है। मैं साम्राज्यवादी सरकार के खिलाफ हूं। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के साथ नीचे!” (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
  • जुलाई 1974 में लंदन में दफनाए जाने के लगभग 35 साल बाद उधम सिंह के अवशेषों को पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह द्वारा की गई एक याचिका के बाद भारत में वापस लाया गया था। कथित तौर पर सीएम ने तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी से तत्कालीन ब्रिटिश सरकार से उनके लिए अनुरोध करने के लिए कहा था। उनका अवशेष भारत पहुंचने के बाद एक शहीद के रूप में स्वागत किया गया और उनके पार्थिव शरीर को पंजाब में उनके पैतृक गांव सुनाम ले जाया गया। जहां उनका औपचारिक अंतिम संस्कार किया गया। कथित तौर पर सिंह का अंतिम संस्कार 2 अगस्त 1974 को एक ब्राह्मण पंडित द्वारा किया गया था। उनकी राख को अलग-अलग कलशों में बांट दिया गया। एक-एक कलश को तीन धर्मों- हिंदू, मुस्लिम और सिख के पवित्र स्थानों में दफनाया गया। एक और कलश से राख गंगा नदी में विसर्जित की गई थी, जबकि एक कलश स्वतंत्रता सेनानी को श्रद्धांजलि के रूप में जलियांवाला बाग, अमृतसर में रखा गया है।
आक्रोश ने मुझे गहरा दर्द दिया है। मैं इसे पागलपन का कार्य मानता हूं…मुझे आशा है कि इसे राजनीतिक निर्णय को प्रभावित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।”

Alauddin Khilji Story in Hindi/अलाउद्दीन खिलजी की कहानी और इतिहास

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शहीद उधम सिंह का जीवन परिचय | Udham Singh Biography in hindi

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शहीद उधम सिंह बलिदान दिवस (पुण्यतिथि): (Udham Singh Biography In Hindi )

13 अप्रैल 1919 भारतीय इतिहास का वह काला दिन है जिसकी क्रूर और निर्मम घटना को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

13 अप्रैल का दिन भारतीय इतिहास का वही दिन है जब अमृतसर के जलियांवाला बाग हत्याकांड में एक हजार से ज्यादा निहत्थे और बेगुनाह लोग ब्रिटिश सैनिकों की फायरिंग में मारे गए थे।

इस जलियांवाला बाग हत्याकांड में तकरीबन 1500 बेगुनाह लोगों की हत्या हुई थी जिन पर फायरिंग का आदेश जनरल डायर ने दिया था।

इस घटना में शामिल हजारों लोगों का नरसंहार देखने के बाद शहीद उधम सिंह का दिल दहल उठा। वह भी उस दिन जलियांवाला बाग में हो रही मीटिंग मौजूद थे तथा क्रांतिकारियों को पानी पिला रहे थे।

उन्होंने उसी दिन यह प्रण लिया कि जब तक वह इस हत्याकांड और नरसंहार के आरोपी जनरल डायर की अपने हाथों से हत्या नहीं कर देंगे तब तक उनके कलेजे को ठंडक नहीं मिलेगी।

इसी प्राण के साथ उन्होंने अपनी क्रांतिकारी जीवन शुरू किया और अंततः जनरल डायर को गोलियों से छलनी कर के मौत के घाट उतार दिया।

अपने इस प्रण को पूरा करने के बाद शहीद उधम सिंह खुशी खुशी शहीद हो गए लेकिन उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सदा के लिए अमर हो गया।

आज इस लेख के जरिए हम आपको शहीद उधम सिंह के बारे में बताने वाले हैं ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी को भी पता चले कि भारत के यह वीर सपूत कौन थें और इनका भारतीय स्वतंत्रता इतिहास में क्या योगदान था।

तो आइए, उधम सिंह का जीवन परिचय ( Udham Singh Biography in hindi) के बारे में पूरी कहानी जानते हैं।

गदर पार्टी से संबंध रखने वाले उधम सिंह भारत की स्वतंत्रता आन्दोलन के एक बहुत ही दृढ़ संकल्प क्रांतिकारी नेता थे। उधम सिंह को शहीद-ए-आजम सरदार उधम सिंह के नाम से भी जाना जाता है।

विषय–सूची

उधम सिंह का जीवन परिचय (Udham Singh Biography in hindi)

नाम (Full Name)उधम सिंह
असली नाम (Real name)शेर सिंह
जन्म (Date of Birth)26 दिसंबर 1899
जन्म स्थान (Birth Place)सुनाम, पंजाब, ब्रिटिश भारत
मृत्यु (Death)31 जुलाई 1940
स्थान (Place) बार्न्सबरी, इंग्लैंड, यूके
मृत्यु कारण40 वर्ष की आयु में फांसी की सजा मिली
पेशास्वतंत्रता सेनानी व क्रांतिकारी नेता
संगठन व राजनीतिक पार्टी ग़दर पार्टी, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन,
इंडियन वर्कर्स एसोसिएशन

उधम सिंह का प्रारंभिक जीवन

उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब राज्य के सुनाम नामक जगह पर हुआ था। जो कि उस समय ब्रिटिश भारत के अंतर्गत आता था, और तभी इनका नाम शेर सिंह रखा गया था। जब शेर सिंह छोटे थे तो इनकी माता की मृत्यु हो गई थी। उधम सिंह के पिता का नाम तहल सिंह था।

तहल सिंह एक किसान थे और खेती – किसानी के आलावा उपल्ली नामक गांव में रेलवे क्रॉसिंग में चौकीदार का काम करते थे। उधम सिंह की माता की मृत्यु के कुछ समय बाद ही उनके पिता तहल सिंह की भी मृत्यु हो गई।

अपने पिता तहल सिंह की मृत्यु के बाद उधम सिंह और उनके बड़े भाई मुक्ता सिंह को अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय ले जाया गया। उधम सिंह ने अपनी मैट्रिक की परीक्षा 1918 में पास की और सन 1919 में अनाथालय छोड़ दिया।

उधम सिंह के जीवन की कुछ प्रमुख घटनाएं

जलियांवाला बाग हत्याकांड.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े कई नेताओं जैसे: सैफुद्दीन किचलू और सत्यपाल आदि को रॉलेट एक्ट के तहत 10 अप्रैल 1919 को गिरफ्तार किया गया था।

तो 13 अप्रैल 1919 को लगभग 20 हजार से अधिक लोग इकठ्ठे हुए थे जो कि बिल्कुल निहत्थे थे मतलब कि उनके पास कोई भी हथियार नहीं थे।

उस समय बाग में गोलियां चलाई गईं जिसमें कि कई लोग मारे गए ये गोलियां ब्रिटिश सैनिकों के द्वारा चलाई गईं थीं। उस समय उधम सिंह जलियांवाला बाग में भीड़ को पानी पिला रहे थे।

इस घटना का मुख्य आरोपी जनरल डायर था जिसने ब्रिटिश सैनिकों को भीड़ पर फायरिंग करने का आदेश दिया था।

उस समय में चल रही क्रांतिकारी राजनीति में उधम सिंह शामिल हो गए। उधम सिंह, भगत सिंह से बहुत ज्यादा ही प्रभावित थे। उधम सिंह गदर पार्टी में शामिल हुए थे। और वह विदेशों में भारतीयों को इकठ्ठा कर रहे थे।

भगत सिंह के कहने पर 1927 में उधम सिंह अपने 25 साथियों के साथ गोला, बारूद, रिवाल्वर आदि लेकर भारत वापस आए। जैसे ही उधम सिंह वापस आए उन्हें बिना लाइसेंस के हथियार रखने पर गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा चला कर उधम सिंह को पांच वर्ष की जेल की सजा सुनाई गई।

जेल से 1931 में रिहा होने के बाद उधम सिंह पर लगातार पुलिस की नजर बनी हुई थी। और विदेश जाने के लिए बनने वाले पासपोर्ट के लिए ही उधम सिंह ने अपना शेर सिंह से नाम बदलकर उधम सिंह रऽा था। 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे जहां पर उन्होंने एक इंजीनियर के रुप में रोजगार पाया। और उन्होंने लंदन में ही निजी रूप से जनरल डायर की हत्या की योजना बनाई।

जनरल ओ’ ड्वायर की हत्या

जलियावालां कांड ने उधम सिंह को अंदर से झंकझोर कर रख दिया था। वह बहुत ही आक्रोशित थे। उनके जीवन का एक ही दृढ संकल्प था कि उन्हें इसके मुख्य दोषियों से बदला लेना है जिनमें जनरल डायर प्रमुख थे। जिन्होंने वहा पर मौजूद महिलाओं, बच्चों व बूढ़ों को बचने का एक मौका भी नहीं दिया और सभी को गोलियों बुरी तरह भून डाला था और निकलने वाले मेन गेट पर तोपे लगा दी।

लेकिन 1927 में ही जनरल डायर अपनी मौत खुद ही मर गया था। वह दिमाग की घातक बीमारी वजह से मर चुका था। इसके बाद उन्होंने पंजाब के गर्वनर माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर को इसका प्रमुख जिम्मेदार माना, जिसने जलियावाला कांड जैसे जगन्य अपराध को जरूरी और उचित कहा था।

कैक्सटल हाल में शूटिंग

ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और मध्य एशिया सोसाइटी की संयुक्त बैठक में 13 मार्च 1940 को कैक्सटन हाल, लंदन में माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर का एक भाषण था। जब यह सूचना उधम सिंह को मिली तो उन्होंने एक पब में एक सैनिक से बहुत अधिक दामों में एक रिवॉल्वर खरीदा और उन्होंने उसे इस प्रकार से एक किताब के पन्नों को काटा कि उसमें वो रिवॉल्वर सटीक बैठे और फिर उधम सिंह ने बड़ी ही चालाकी से हॉल में प्रवेश किया।

एक खाली सीट पाकर उसमें बैठ गए। और जैसे ही जनरल डायर स्टेज की ओर भाषण देने के लिए बढ़ा वैसे ही उधम सिंह ने जनरल डायर की ओर कई गोलियां चलाईं जिनमें से एक गोली जनरल ओ’ डायर के दाहिने फेफड़े से होकर गुजरी जिसके लगभग तुरंत बाद उसकी मृत्यु हो गई और उधम सिंह द्वारा चलाई गई गोलियों में लगभग 5 से 6 अन्य लोग भी घायल हुए थे। इस हत्याकांड के तुरंत बाद ही उधम सिंह ने खुद को आत्मसमर्पित कर दिया था।

उधम सिंह पर हत्या का मुकदमा

उधम सिंह पर 01 अप्रैल 1940 को माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर की हत्या का आरोप लगाया गया। और उन्हें ब्रिक्सटन जेल में हिरासत के लिए भेज दिया गया। उन्होंने अपने एक बयान में कहा कि, वो इसी के लायक था मैंने एक पब से रिवॉल्वर खरीदी थी और मैने उसे मार दिया मुझे किसी प्रकार का कोई डर नहीं है और मुझे मृत्यु से बिल्कुल डर नहीं लगता है।

अपने मुकदमे के दौरान उधम सिंह 42 दिनों की भूख हड़ताल पर चले गए लेकिन उन्हें जबरदस्ती भोजन खिलाया गया। उधम सिंह का मुकदमा 04 जून 1940 को ओल्ड बेली के क्रिमिनल कोर्ट में जस्टिस एटिंसन के सामने शुरू हुआ।

उधम सिंह को जनरल डायर की हत्या का दोषी पाया गया और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह को अल्बर्ट पियरेपॉइंट द्वारा पेंटनविले जेल में फांसी दी गई थी। उधम सिंह के अवशेष पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग में संरक्षित हैं। प्रत्येक 31 जुलाई को विभिन्न संगठनों द्वारा सुनाम में मार्च निकाला जाता है और शहर में उधम सिंह की प्रत्येक प्रतिमा को फूलों की माला से श्रद्धांजलि दी जाती है।

सम्पूर्ण जीवन जीवन परिचय  –   महान क्रांतिकारी   चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय

उधम सिंह की उपलब्धिया और सम्मान :

उधम सिंह की जीवनी के बाद अब हम आपको उनके उपलब्धियों के बारे में जानकारियाँ देंगे। और उन्हें मिले हुए सम्मान का जिक्र करेंगे।

  • जलियांवाला बाग (अमृतसर) के नजदीक में सिंह लोगों को समर्पित एक म्यूजियम भी बनाया गया है।
  • उधम सिंह जी के द्वारा दिए गए बलिदान को कई भारतीय फिल्मों में दमदार तरीके से फिल्माया गया है जिनमें (१) शहीद उधम सिंह (१९७७) (२) जलियांवाला बाग़ (१९७७) (३) शहीद उधम सिंह (२०००) फिल्में प्रमुख हैं।
  • सिक्ख भाईयों के हथियार जैसे:- चाकू तथा शूटिंग के दौरान उपयोग की गई गोलियों को ब्लैक म्यूजियम में जो कि स्कॉटलैंड यार्ड में है।, उधम सिंह के सम्मान के रूप में दिखाया गया है।
  • Rajasthan में अनूपगढ़ में एक पुलिस चोकी का नाम उधम सिंह के नाम पर रखा गया है।
  • झारखंड के एक जिले का नाम उधम सिंह है जो कि उन्ही के नाम से प्रेरित है।
  • जिस दिन पुण्यतिथि होती है। उस दिन पंजाब और हरियाणा में सभी जगह छुट्टी रहती है।
  • हर एक 31 जुलाई को विभिन्न संगठनों के द्वारा सुनाम में मार्च पास्ट निकाला जाता है। और उस शहर में उधम सिंह की हर एक प्रतिमा को फूलों की माला से श्रद्धांजलि भी दी जाती है।

आज के इस लेख में हमने शहीद ऊधम सिंह (udham Singh biography in hindi) के विषय पर सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की है। हम उम्मीद करते हैं आपको हमारे द्वारा लिखा गया ये लेख पसंद आया होगा। यदि पसंद आया हो तो कृपया इस लेख को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।

उधम सिंह जीवन परिचय सम्बन्धित कुछ FAQ

प्रश्न- उधम सिंह का असली नाम क्या था.

उत्तर- उधम सिंह का असली नाम शेर सिंह था।

प्रश्न- उधम सिंह कौन थे?

उत्तर- उधम सिंह एक क्रांतिकारी व्यक्ति थे और वह भगत सिंह से बहुत प्रभावित थे और उधम सिंह ने ही जलियांवाला बाग के हत्याकांड के प्रमुख मास्टरमाइंड जनरल ओ’ ड्वायर को मारा था।

प्रश्न- उधम सिंह का जन्म किस जगह हुआ था?

उत्तर- उधम सिंह का जन्म स्थान सुनाम, पंजाब में हुआ था।

प्रश्न- उधम सिंह का जन्म कब हुआ था?

उत्तर- उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को हुआ था।

प्रश्न:- उधम सिंह की मृत्यु कब हुई थी?

उत्तर- उधम सिंह की मृत्यु 31 जुलाई 1940 को हुई थी।

प्रश्न- जनरल डायर को किसने मारा था?

उत्तर- जनरल डायर को उधम सिंह ने नहीं मारा था। बल्कि उसकी मृत्यु खुद ब्रेन हेम्रेज के कारण हुई। वास्तव में उधम सिंह ने माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर को मारा था। जोकि जलियांवाला कांड के समय तत्कालित पंजाब के गर्वनर थे।

प्रश्न- उधम सिंह ने जनरल डायर को कब मारा था?

उत्तर- उधम सिंह ने जनरल ओ’ ड्वायर को कैक्सटल हॉल लंदन में 13 मार्च 1940 को मारा था।

प्रश्न- उधम सिंह जनरल डायर को क्यों मारना चाहते थे?

उत्तर- उधम सिंह ने जनरल डायर को इसलिए मारना चाहते था क्योंकि जनरल डायर जलियांवाला बाग के हत्याकांड का मास्टरमाइंड था।

प्रश्न- उधम सिंह ने जेल में अपना नाम क्या रख लिया था?

उत्तर:- मोहम्मद सिंह आजाद नाम वह नाम था जो उधम सिंह ने रख लिया था। क्योंकि उन्हें जेल में बंद हिन्दू मुस्लिम सिख को आजाद करवाना था।

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शहीद उधम सिंह का जीवन परिचय एवं उनसे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

इस अध्याय के माध्यम से हम जानेंगे शहीद उधम सिंह (Udham Singh) से जुड़े महत्वपूर्ण एवं रोचक तथ्य जैसे उनकी व्यक्तिगत जानकारी, शिक्षा तथा करियर, उपलब्धि तथा सम्मानित पुरस्कार और भी अन्य जानकारियाँ। इस विषय में दिए गए शहीद उधम सिंह से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को एकत्रित किया गया है जिसे पढ़कर आपको प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने में मदद मिलेगी। Udham Singh Biography and Interesting Facts in Hindi.

शहीद उधम सिंह का संक्षिप्त सामान्य ज्ञान

शहीद उधम सिंह (Udham Singh)
26 दिसम्बर
सुनाम गाँव, पंजाब (भारत)
31 जुलाई
नारायण कौर / सरदार टहल सिंह
1919 - जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के प्रत्यक्षदर्शी
पुरुष / स्वतंत्रता सेनानी / भारत

शहीद उधम सिंह - जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के प्रत्यक्षदर्शी (1919)

उधम सिंह का नाम भारत की आज़ादी की लड़ाई में पंजाब के क्रान्तिकारी के रूप में दर्ज है। शहीद उधम सिंह ने जलियाँवाला के कांड के लिए प्रतिज्ञा ली थी की। वह जनरल डायर को मारेंगे तथा ऐसा उन्होंने लंदन की एक असेंबली में कर दिया था।

शहीद उधम सिंह का जन्म

शहीद उधम सिंह का निधन, शहीद उधम सिंह की शिक्षा, शहीद उधम सिंह का करियर, शहीद उधम सिंह के पुरस्कार और सम्मान, शहीद उधम सिंह प्रश्नोत्तर (faqs):.

शहीद उधम सिंह का जन्म कब हुआ था?

शहीद उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को सुनाम गाँव, पंजाब (भारत) में हुआ था।

शहीद उधम सिंह क्यों प्रसिद्ध हैं?

शहीद उधम सिंह को 1919 में जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के प्रत्यक्षदर्शी के रूप में जाना जाता है।

शहीद उधम सिंह की मृत्यु कब हुई थी?

शहीद उधम सिंह की मृत्यु 31 जुलाई 1940 को हुई थी।

शहीद उधम सिंह के पिता का क्या नाम था?

शहीद उधम सिंह के पिता का नाम सरदार टहल सिंह था।

शहीद उधम सिंह की माता का नाम क्या था?

शहीद उधम सिंह की माता का नाम नारायण कौर था।

Dil Se Deshi

शहीद उधम सिंह का जीवन परिचय | Shaheed Udham Singh Biography in Hindi

Shaheed Udham Singh Life Story in Hindi

शहीद उधम सिंह की जीवनी, शिक्षा, माइकल ओ’ड्वायर की हत्या, मृत्यु और आधारित फिल्मे | Udham Singh Biography, Education, Michel o’dyer Assassination, Death and Films Based in Hindi

उधम सिंह एक भारतीय क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे. अंग्रेजों द्वारा वर्ष 1919 में जलियांवाला बाग में नरसंहार किया गया था. जिसके प्रतिशोध स्वरुप उधम सिंह ने पंजाब के पूर्व उपराज्यपाल माइकल ओ ड्वायर की हत्या कर दी. जिसके बाद वह लोकप्रिय हो गए थे. उधम सिंह जलियांवाला बाग कांड के प्रत्यक्षदर्शी थे. उनके सामने उन्होंने सैकड़ों लोगों की शव यात्रा को जाते हुए देखा था. जिससे बाद उनके मन पर गहरा धक्का और आक्रोश पैदा हुआ और उन्होंने अपने सैकड़ों निर्दोष देशवासियों की मौत का बदला लेने की ठान ली. हत्या की घटना के बाद उन्हें तुरंत गिरफ्तार किया गया. जिसके बाद उन्हें ब्रिटेन की एक जेल में रखा गया और जुलाई 1940 में लंदन की पेंटोनविले जेल में उधम सिंह को फाँसी दे दी गई. बहादुरी के इस कार्य के लिए उन्हें शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह नाम से जाना पहचान जाता हैं.

पूरा नाम (Full Name)शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह
असल नाम (Real Name)शेरसिंह
जन्म दिनांक(Birth Date)26 दिसंबर 1899
जन्म स्थान (Birth Place)सुनाम, संगरूर जिला, पंजाब
पिता का नाम (Father Name)टहल सिंह कंबोज
माता का नाम (Mother Name)नारायण कौर (या नरेन कौर)
शिक्षा (Education)मैट्रिक पास
राजनीतिक विचारधारा (Political View)क्रांतिकारी
पॉलिटिकल एसोसिएशन (Political Association)ग़दर पार्टी, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
मृत्यु (Death)31 जुलाई 1940

प्रारंभिक जीवन (Udham Singh Early Life)

उधम सिंह का जन्म शेर सिंह के रूप में 26 दिसंबर 1899 को तत्कालीन रियासत पटियाला (वर्तमान में संगरूर जिला, पंजाब) के ग्राम सुनाम में एक कंबोज परिवार में हुआ था. उनके पिता टहल सिंह कंबोज उस समय पड़ोस के एक गांव उपली में एक रेलवे क्रॉसिंग पर एक चौकीदार के रूप में कार्यरत थे. शेर सिंह और उनके बड़े भाई मुक्ता सिंह ने कम उम्र में अपने माता-पिता को खो दिया. 1901 में उनकी मां की मृत्यु हो गई, और उनके पिता ने 1907 तक पालन किया. पिता का स्वर्गवास होने के बाद दोनों भाइयों को बिना किसी विकल्प के छोड़ दिया.

24 अक्टूबर 1907 को अमृतसर के पुतलीघर में केंद्रीय खालसा अनाथालय में प्रवेश लेने के लिए के साथ उन्हें सिख धर्म में दीक्षा दी गई और परिणामस्वरूप नए नाम प्राप्त किया गया. शेर सिंह उधम सिंह बने जबकि उनके भाई ने साधु सिंह का नाम लिया. साधु सिंह की भी एक दशक बाद 1917 में मृत्यु हो गई.

1918 में उधम सिंह ने अपनी मैट्रिक परीक्षा पास की और अगले साल अनाथालय छोड़ दिया. उस समय पंजाब में तीव्र राजनीतिक उथल-पुथल चल रही थी और युवा उधम उसके चारों ओर हो रही कई उथल-पुथल से वह अंजान नहीं थे.

जलियांवाला बाग नरसंहार (Udham Singh & Jallianwala Bagh Massacre)

13 अप्रैल 1919 को बैसाखी का दिन था. एक प्रमुख पंजाबी त्यौहार और नए साल के आगमन का जश्न मनाने के लिए आस-पास के गांवों के हजारों लोगों ने अमृतसर में सामान्य उत्सव और मौज-मस्ती के लिए एकत्रित किया था. मेले के बंद होने के बाद कई लोग जलियांवाला बाग में 6-7 एकड़ के सार्वजनिक उद्यान में एक सभा संबोधन के लिए साथ इकट्ठा होने लगे, जो चारों तरफ से दीवार पर लगा हुआ था. कर्नल रेजिनाल्ड डायर ने पहले सभी बैठकों पर प्रतिबंध लगा दिया था हालांकि, यह बहुत संभावना नहीं थी कि आम जनता को प्रतिबंध का पता था. जलियाँवाला बाग में सभा की बात सुनकर कर्नल डायर ने अपने सैनिकों के साथ मार्च किया और बाहर निकलने के सभी द्वार सील कर दिए. उसने अपने आदमियों को पुरुषों, महिलाओं और बच्चों पर अंधाधुंध फायर करने का आदेश दिया. गोला-बारूद खत्म होने से पहले दस मिनट के पागलपन में पूरी तबाही और नरसंहार हुआ था. आधिकारिक ब्रिटिश-भारतीय सूत्रों के अनुसार इस नरसंहार में 379 लोगों की मृत्यु हो गई और 1,100 लोग घायल हो गए हालांकि, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अनुमान लगाया कि 1,500 घायल लोगों के साथ मृत्यु 1000 से अधिक होगी.

उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन पर ऊधम सिंह उन लोगों की मण्डली को पानी पिला रहे थे जो बैसाखी के त्यौहार के लिए आस-पास के गाँवों से जलियाँवाला बाग में एकत्रित हुए थे. कुछ रिपोर्टों के अनुसार एक रतन देवी के पति के शव को निकालने के प्रयासों में उधम सिंह को भी इस घटना में घायल कर दिया गया था. निर्दोष लोगों के चौंकाने वाले नरसंहार ने युवा और प्रभावशाली उधम सिंह को अंग्रेजों के लिए नफरत से भरा छोड़ दिया और उस दिन से वह केवल मानवता के खिलाफ इस अपराध के लिए प्रतिशोध लेने के तरीकों के बारे में सोचने लगे.

Shaheed Udham Singh Biography in Hindi

क्रांतिकारी गतिविधियों में भागीदारी (Role in Revolutionary Activities)

जलियांवाला हत्याकांड और अंग्रेजों के खिलाफ गुस्से से भरे गुस्से से घिरे उधम सिंह जल्द ही उस स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए जो तब भारत और विदेशों दोनों में था. उन्होंने 1920 के दशक की शुरुआत में पूर्वी अफ्रीका की यात्रा की और संयुक्त राज्य अमेरिका पहुंचने से पहले एक मजदूर के रूप में काम किया. कुछ समय के लिए उन्होंने डेट्रायट में फोर्ड के कारखाने में एक टूलमेकर के रूप में भी काम किया. सैन फ्रांसिस्को में रहते हुए, उन्होंने ग़दर पार्टी के सदस्यों के साथ मुलाकात की. जिसमें अप्रवासी पंजाबी-सिख शामिल थे जो संयुक्त राज्य अमेरिका से भारत को अत्याचारी ब्रिटिश शासन से मुक्त करने के लिए एक क्रांतिकारी आंदोलन कर रहे थे. अगले कुछ वर्षों के लिए उन्होंने शेर सिंह, उड़े सिंह और फ्रैंक ब्राजील जैसे कई उपनामों को संभालने के लिए अपनी गतिविधियों के समर्थन के लिए पूरे अमेरिका की यात्रा की.

1927 में, भगत सिंह के निर्देशों का पालन करते हुए वे भारत लौट आए. पंजाब में वापस उन्होंने ग़दर पार्टी के कट्टरपंथी पत्रिका ग़दर-दी-गुंज को प्रकाशित करने के लिए खुद को समर्पित किया. उन्हें इस आरोप में गिरफ्तार किया गया था और हथियारों के अवैध कब्जे के लिए और पांच साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी. हालांकि, उन्हें चार साल जेल में बिताने के बाद 23 अक्टूबर 1931 को रिहा कर दिया गया था. उधम सिंह ने पाया कि 1927 में ब्रिगेडियर-जनरल डायर, ब्रिटेन में स्ट्रोक की एक श्रृंखला पीड़ित होने के बाद मर गया हैं और उनके साथी क्रांतिकारियों, भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव को भी 23 मार्च 1931 को 1928 में एक ब्रिटिश पुलिसकर्मी जॉन पी. सॉन्डर्स की हत्या में उनकी भूमिका के लिए फांसी दे दी गई.

उधम सिंह अपने गांव लौट आए लेकिन ब्रिटिश पुलिस द्वारा लगातार निगरानी में रहने के कारण उन्हें भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों द्वारा स्थापित हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के साथ बहुत करीबी संबंध रखने के लिए जाना जाता था. उन्होंने मोहम्मद सिंह आजाद का नाम लिया और इसके कवर के तहत साइनबोर्ड के चित्रकार बन गए उन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखा और जनरल ओ’ डवायर को मारने के लिए लंदन की यात्रा करने की योजना बनाई. जिन्होंने जलियांवाला रक्तबीज का समर्थन किया था.

उन्होंने कश्मीर की यात्रा की और फिर पुलिस को चकमा देकर जर्मनी भाग गए. 1934 में इंग्लैंड पहुँचने से पहले उन्होंने इटली, फ्रांस, स्विटज़रलैंड और ऑस्ट्रिया की यात्रा की. उन्होंने 9 एडलर स्ट्रीट, व्हिटचैपल (पूर्वी लंदन) में निवास किया और एक मोटर कार भी खरीदी. लंदन में रहते हुए उन्होंने एक कारपेंटर, साइनबोर्ड पेंटर, मोटर मैकेनिक और यहां तक ​​कि अलेक्जेंडर कोर्डा की कुछ फिल्मों में एक अतिरिक्त के रूप में विभिन्न क्षमताओं में काम किया. यह सब करते हुए भी उनका दिमाग माइकल ओ’डायर की हत्या के विचार से ग्रस्त रहा.

माइकल ओ’डायर की हत्या (Michel o’dyer Assassination)

उधम सिंह ने पाया कि माइकल ओ ड्वायर 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में सेंट्रल एशियन सोसाइटी (अब रॉयल सोसाइटी फॉर एशियन अफेयर्स) और ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की एक संयुक्त बैठक को संबोधित करेंगे. जैसे ही बैठक करीब आई, वे मंच की ओर आगे बढ़े और उन्होंने अपनी बन्दूक से ओडवायर में उन्होंने जो दो शॉट दागे, उनमें से एक उनके दिल और दाएं फेफड़े से होते हुए तुरंत उन्हें मार गिराया. उन्होंने लॉर्ड ज़ेटलैंड, भारत के राज्य सचिव, सर लुइस डेन और लॉर्ड लैमिंगटन को भी घायल करने में कामयाबी हासिल की.

शूटिंग के बाद, उधम सिंह शांत रहे और गिरफ्तारी से बचने या भागने की कोशिश नहीं की और पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया. ऐसा कहा जाता है कि सिंह ने अपनी हत्या के प्रयास के लिए एक सार्वजनिक स्थान को चुना ताकि वह उपद्रव मचा सके और उन अत्याचारों की ओर ध्यान आकर्षित कर सके जो अंग्रेजों ने भारत में किए थे.

Shaheed Udham Singh Biography in Hindi

जाँच और फैसला (Trial & Execution of Udham Singh Case)

उधम सिंह को औपचारिक रूप से माइकल ओ’डायर की हत्या के साथ 1 अप्रैल 1940 को चार्ज किया गया और ब्रिक्सटन जेल भेज दिया गया. सहकारी कैदी नहीं होने पर वह भूख हड़ताल पर चले गए जो 42 दिनों तक जेल अधिकारियों को जबरन खिलाने के लिए मजबूर करते रहे. उधम सिंह को 4 जून 1940 को जस्टिस एटकिन्सन के समक्ष सेंट्रल क्रिमिनल कोर्ट, ओल्ड बेली में ट्रायल के लिए रखा गया था. उन्होंने सेंट जॉन हचिंसन और वी.के. जैसे कानूनी प्रकाशकों का प्रतिनिधित्व किया था. कृष्ण मेनन के यह पूछे जाने पर कि उन्होंने दिन के उजाले की हत्या क्यों की, उधम सिंह ने अपनी टूटी-फूटी अंग्रेजी में कहा कि उन्होंने ओ’डायर के खिलाफ एक शिकायत की और कहा कि उन्हें अपनी मातृभूमि की खातिर मरने की परवाह नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि वह 21 सालों से प्रतिशोध की मांग कर रहे थे और उन्हें खुशी है कि वह आखिरकार अपना लक्ष्य हासिल करने में सफल रहे. उन्होंने यह भी आश्चर्य व्यक्त किया कि वह ज़ेटलैंड को मारने में विफल रहे जो मरने के योग्य थे. उन्हें इस बात का पछतावा था कि वह केवल एक व्यक्ति को मारने में सफल रहे.

जैसा कि अपेक्षित था, सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और मौत की सजा दी गई. दोषी ठहराए जाने के बाद, उन्होंने एक अभद्र भाषण दिया, जो हालांकि, न्यायाधीश द्वारा इस आधार पर प्रेस को जारी करने की अनुमति नहीं थी कि यह मामले के अनुसार उचित नहीं था. मुकदमे में, उधम ने अपना नाम मोहम्मद सिंह आजाद के रूप में दिया था, वही नाम उन्होंने 1933 में इंग्लैंड में प्रवेश पाने के लिए इस्तेमाल किया था. यह नाम ब्रिटिश उत्पीड़न के खिलाफ सभी धर्मों की एकता के प्रतीक के रूप में उनके हाथ पर टैटू भी था. 31 जुलाई, 1940 को, उधम सिंह को लंदन के पेंटोनविले जेल में फांसी दे दी गई और उन्हें जेल के मैदान में दफना दिया गया.

अवशेषों की स्वदेश वापसी

1974 में विधायक साधु सिंह थिंद द्वारा उधम सिंह के शरीर के अनश्वर अवशेषों को उनकी मृत्यु के तीन दशक से भी अधिक समय बाद फिर से भारत लाया गया. थिंड द्वारा व्यक्तिगत रूप से वापस लाए गए ताबूत को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी , पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह और कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने प्राप्त किया था. इसके बाद ऊधम सिंह का अंतिम संस्कार उनके जन्मस्थान सुनाम में सिख संस्कार के अनुसार किया गया और उनकी राख को सतलज नदी के पानी में डुबो दिया गया. राख का एक हिस्सा बरकरार रखा गया था और अब जलियांवाला बाग में एक सीलन में रखा गया है.

फिल्मों में काम (Work in Film)

उधम सिंह के बारे में रोचक जानकारियों में से एक यह हैं कि उधम सिंह ने हॉलीवुड की फिल्मों में काम भी किया था. वह एक नहीं दो हॉलीवुड फिल्मों में नजर आये थे. जिन फिल्मों में उन्होंने काम किया था उनका नाम Elephant Boy और The Four Feathers था जो क्रमशः 1937 और 1939 में रिलीज़ हुई थी.

शहीद उधम सिंह पर फिल्म (Films Based on Udham Singh)

क्रांतिकारी क्रांतिकारी एक बायोपिक बनायीं जा रही हैं. जिसमे इनका किरदार URI फेम विक्की कौशल निभा रहे हैं. इस बायोपिक को शूजित सिरकार द्वारा निर्देशित किया जायेगा.

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उधम सिंह का जीवन परिचय Udham Singh Biography in hindi

उधम सिंह का जीवन परिचय, कौन थे, जाति, कहानी, मृत्यु कैसे हुई, शहीद दिवस, धर्म, परिवार, फिल्म (Shaheed Udham Singh Biography in hindi) [Biopic Movie, Vicky Kaushal, Caste, Religion, Kaun the, Story, Death, Shahid Diwas, Family]

उधम सिंह एक महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे. जिनके दिल में सिर्फ और सिर्फ देश प्रेम की भावना और अंग्रेजों के प्रति अगम्य क्रोध भरा हुआ था. इन्होंने प्रतिशोध की भावना के फलस्वरुप पंजाब के पूर्व राज्यपाल माइकल ओ ड्वायर की हत्या कर दी थी. उधम सिंह 13 अप्रैल 1919 के दिन ,दिल दहला देने वाली घटना में करीब 1000 से अधिक निर्दोष लोगों की शव यात्रा देख ली थी. तभी से उनको गहरा आघात हुआ और उनके अंदर आक्रोश की भावना जागृत हो गई. फिर क्या था ? उन्होंने अपने निर्देश देशवासियों की मौत का बदला लेने के लिए संकल्प कर लिया. उन्होंने अपने संकल्प को अंजाम दिया फिर उसके बाद वह शहीद -ए -आजम सरदार उधम सिंह के नाम से भारत सहित विदेशों में भी प्रसिद्ध हो गए. आइए जानते हैं, इस महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी के बारे में.

Shaheed Udham Singh Biography in hindi

Table of Contents

उधम सिंह का जीवन परिचय (Udham Singh Biography in Hindi)

शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह
नारायण कौर (या नरेन कौर)

 

26 दिसंबर 1899

 

 पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम क्षेत्र में हुआ

 

क्रांतिकारी

 

ग़दर पार्टी, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन

 

भारतीय

 

40 वर्ष

 

सुनाम, संगरूर जिला, पंजाब

 

हिंदू

 

कंबोज

 

दलित 

 

 

अविवाहित

 

उधम सिंह का जन्म, परिवार एवं प्रारंभिक जीवन (Udham Singh Birth, Family and Early Life)

उधम सिंह जी का जन्म 26 दिसंबर 1899 में पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम में हुआ था, और उनको उस समय लोग शेर सिंह के नाम से जाना करते थे. उनके पिता सरदार तेहाल सिंह जम्मू उपली गांव के रेलवे क्रॉसिंग में वॉचमैन का काम किया करते थे. उनकी माता नारायण कौर उर्फ नरेन कौर एक गृहणी थी. जो अपने दोनों बच्चों उधम सिंह और मुक्ता सिंह की देखभाल भी किया करती थी. परंतु दुर्भाग्यवश दोनों भाइयों के सिर से माता पिता का साया शीघ्र ही हट गया था. उनके पिताजी की मृत्यु 1901 में और पिता की मृत्यु के 6 वर्ष बाद इनकी माता की भी मृत्यु हो गई. ऐसी दुखद परिस्थिति में दोनों भाइयों को अमृतसर के खालसा अनाथालय में आगे का जीवन व्यतीत करने के लिए और शिक्षा दीक्षा लेने के लिए इस अनाथालय में उनको शरण लेनी पड़ी थी. परंतु दुर्भाग्यवश उधम सिंह के भाई का भी साथ ज्यादा समय तक नहीं रहा उनकी भाई की मृत्यु 1917 में ही हो गई थी. अब उधम सिंह पंजाब में तीव्र राजनीति में मची उथल-पुथल के बीच अकेले रह गए थे. उधम सिंह हो रही इन सभी गतिविधियों से अच्छी तरह से रूबरू थे. उधम सिंह ने 1918 में अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी कर ली. इसके बाद उन्होंने 1919 में खालसा अनाथालय को छोड़ दिया.

उधम सिंह जी की विचारधारा

शहीद भगत सिंह द्वारा किए गए अपने देश के प्रति क्रांतिकारी कार्य और उनके समूहों से उधम सिंह बहुत ही प्रभावित हुए थे.1935 में जब उधम सिंह कश्मीर में थे तब उनको शहीद भगत सिंह के तस्वीर के साथ पकड़ा गया था. उस दौरान उधम सिंह जी को शहीद भगत सिंह जी का सहयोगी मान लिया गया और इसके साथ ही शहीद भगत सिंह का शिष्य उधम सिंह को भी मान लिया गया था. उधम सिंह जी को देश भक्ति गीत बहुत ही पसंद थे, वह उनको हमेशा सुना करते थे. उस समय के महान क्रांतिकारी कवि राम प्रसाद बिस्मिल जी के द्वारा लिखे गए गीतों को सुनने के, वे बहुत शौकीन थे.

उधम सिंह जी की कहानी (Udham Singh Story)

जलियांवाला बाग की निंदनीय घटना.

जलिया वाले बाग में अकारण निर्दोष लोगों को अंग्रेजों ने मृत्यु के घाट उतार दिया था. इस निंदनीय घटना में बहुत सारे लोग मरे थे. जिनमें से कुछ बुजुर्ग, बच्चे , महिलाएं और नौजवान पुरुष भी शामिल थे. इस दिल दहला देने वाली घटना को उधम सिंह ने अपने आंखों से देख लिया था , जिससे उनको बहुत ही गहरा दुख हुआ था और उन्होंने उसी समय ठान लिया, कि यह सब कुछ जिसके इशारे पर हुआ है , उसको उसके किए की सजा जरूर देकर रहेंगे ऐसा उन्होंने उसी समय प्रण ले लिया.

उधम सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियां (Udham Singh Krantikari Gatividhiyan)

  • उधम सिंह ने अपने द्वारा लिए गए संकल्प को पूरा करने के मकसद से उन्होंने अपने नाम को अलग-अलग जगहों पर बदला और वे दक्षिण अफ्रीका, जिंबाब्वे , ब्राजील , अमेरिका , नैरोबी जैसे बड़े देशों में अपनी यात्राएं की.
  • उधम सिंह जी, भगत सिंह जी के और राहों पर चलने लगे थे.
  • 1913 में गदर पार्टी का निर्माण किया गया था. इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य भारत में क्रांति भड़काने के लिए किया गया था.
  • 1924 में उधम सिंह जी ने इस पार्टी से जुड़ने का निश्चय कर लिया और वे इससे जुड़ भी गए.
  • भगत सिंह जी ने उधम सिंह जी को 1927 में वापस अपने देश आने का आदेश दिया.
  • उधम सिंह वापस लौटने के दौरान अपने साथ 25 सहयोगी, रिवाल्वर और गोला-बारूद जी लेकर आए थे. परंतु इसी दौरान उनको बिना लाइसेंस हथियार रखने के लिए उनको गिरफ्तार कर लिया गया. उन्होंने अगले 4 साल जेल में ही व्यतीत किए सिर्फ यही सोचकर कि, वह बाहर निकल कर जनरल डायर के द्वारा किए गए दंडनीय अपराध का बदला अपने देशवासियों के लिए लेकर रहेंगे.
  • 1931 में जेल से रिहा होने के बाद वे अपने संकल्प को पूरा करने के लिए कश्मीर गए फिर कश्मीर से वे भागकर जर्मनी चले गए.
  • 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंच गए और वहां पर उन्होंने अपने कार्य को अंजाम देने के लिए सही समय का इंतजार करना शुरू कर दिया.
  • भारत का यही वीर पुरुष जलिया वाले बाग के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के “कास्टन हाल” में बैठक थी. जहां माइकल ओ’ डायर को उसके किए का दंड देने के लिए तैयार बैठा था. जैसे ही वह बैठक का वक्त समीप आया वैसे ही उधम सिंह ने आगे बढ़कर जनरल डायर को मारने के लिए दो शॉर्ट दाग दिए, जिससे जनरल डायर की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई.
  • कहा जाता है, कि उन्होंने इसलिए इस दिन का इंतजार किया ताकि पूरी दुनिया जनरल डायर द्वारा किए गए जघन्य अपराध की सजा पूरी दुनिया देख सकें.
  • उन्होंने अपने काम को अंजाम देने के बाद गिरफ्तारी के डर से भागने का जरा सा भी प्रयास नहीं किया और उसी जगह पर वह शांत खड़े रहे.
  • उनको इस बात का गर्व था , कि उन्होंने अपने देशवासियों के लिए वह करके दिखाया जो सभी भारतीय देशवासी चाहते थे. ऐसे ना जाने कितने स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने देश के प्रति अपना प्रेम , सहयोग और अपना आत्मसमर्पण प्रदान किया है.

उधम सिंह की अमूल्य शहादत (Udham Singh Death, Fansi)

  • जनरल डायर के मृत्यु का दोषी 4 जून 1940 को उधम सिंह को घोषित कर दिया गया. 31 जुलाई 1940 को लंदन के “पेंटोनविले जेल” में उनको फांसी की सजा दी गई.
  • उधम सिंह जी के मृत शरीर के अवशेष को उनकी पुण्यतिथि 31 जुलाई 1974 के दिन भारत को सौंप दिया गया था.
  • उधम सिंह जी की अस्थियों को सम्मान पूर्ण भारत वापस लाया गया. और उनके गांव में उनकी समाधि को बनाया गया.

इस तरह उन्होंने अपने देशवासियों के लिए मात्र 40 वर्ष की आयु में अपने आप को समर्पण कर दिया. जिस दिन उधम सिंह जी को फांसी दी गई थी, उसी दिन से भारत में क्रांतिकारियों का आक्रोष अंग्रेजों के प्रति और भी बढ़ गया था. इनके शहीद होने के मात्र 7 वर्ष बाद भारत अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो गया था.

उधम सिंह का सम्मान और विरासत (Udham Singh Honours)

  • सिखों के हथियार जैसे :- चाकू, डायरी और शूटिंग के दौरान उपयोग की गई गोलियों को स्कॉटलैंड यार्ड में ब्लैक म्यूजियम में उनके सम्मान के रूप में रखा गया है.
  • राजस्थान के अनूपगढ़ में शहीद उधम सिंह के नाम पर चौकी भी मौजूद है.
  • अमृतसर के जलिया वाले बाग के नजदीक में सिंह लोगों को समर्पित एक म्यूजियम भी बनाया गया है.
  • उधम सिंह नगर जो झारखंड में मौजूद है. इस जिले के नाम को भी उन्हीं के नाम से प्रेरित होकर रखा गया था.
  • उनकी पुण्यतिथि के दिन पंजाब और हरियाणा में सार्वजनिक अवकाश रहता है.

उधम सिंह जी के द्वारा दिए गए बलिदान को कई भारतीय फिल्मों में फिल्माया गया है, जो इस प्रकार हैं:-

  • जलियांवाला बाग़ (1977)
  • शहीद उधम सिंह (1977)
  • शहीद उधम सिंह (2000)

विक्की कौशल स्टारर फिल्म सरदार उधम सिंह (Udham Singh Movie)

सरदार उधम सिंह एक आगामी भारतीय हिंदी भाषा की जीवनी फिल्म है, जो शूजीत सरकार द्वारा निर्देशित है, जिसे रॉनी लाहिड़ी और शील कुमार द्वारा निर्मित और रितेश शाह और शुभेंदु भट्टाचार्य द्वारा राईन सन फिल्म्स और केनो वर्क्स के बैनर तले लिखा गया है. इस फिल्म में विक्की कौशल ने सरदार उधम सिंह जी का किरदार निभाया है. इस फिल्म के माध्यम से सरदार उधम सिंह जी के जीवन में घटित घटनाओं को और उनके उद्देश्य को दर्शकों को दिखाने और समझाने की कोशिश की गई है. इस फिल्म को लगभग 120 करोड़ों रुपए की लागत में बनाया जा रहा है. 2 अक्टूबर 2020 यानी गांधी जी की जयंती के दिन अगले वर्ष हो सकता है कि आप लोगों को सरदार उधम सिंह मूवी को अपने नजदीकी सिनेमाघरों में देखने को मिलें. हम जिस स्वतंत्र भारत में रह रहे हैं. और हमको जो अपनी स्वतंत्रता पर अभिमान है. उसके पीछे उधम सिंह जैसे स्वतंत्रा सेनानियों का ही हाथ रहा है, इसको सदैव याद रखना चाहिए. हम सभी देशवासियों का यह कर्तव्य बनता है कि हमने जिन जिन स्वतंत्रा सेनानियों के द्वारा आजादी पाई है , उनको सदैव अपने दिल में बरसाए रखे. स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा दिए गए बलिदान को याद रखने के लिए हमें सदैव एकजुट रहना चाहिए और अपनी अखंडता और अपनी एकता पर सदैव गर्व करना चाहिए.

होम पेज

Ans : ये वाही व्यक्ति थे जिन्होंने जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के आरोपी जनरल डायर को मारा था.

Ans : 26 दिसंबर 1899 को

Ans : पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम क्षेत्र में हुआ

Ans : क्योकि वह जलियांवाला बाग़ का मुख्य आरोपी था.

Ans : फांसी की सजा

Ans : 31 जुलाई, 1940

Ans : उधम सिंह जी दलित जाति के थे.

Ans : राम मोहम्मद सिंह आजाद

Ans : 24 जुलाई, 1927 को

Ans : 16 अक्टूबर को रिलीज़ होने की उम्मीद है.

Ans : सरदार उधम सिंह

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Biography :

Published By : Jivani.org
    
 

भारतीय स्वतंत्रता अभियान में उधम सिंह एक जाना माना चेहरा है। स्थानिक लोग उन्हें शहीद-ए-आजम सरदार उधम सिंह के नाम से भी जानते है। अक्टूबर 1995 में मायावती सरकार ने उत्तराखंड के (उधम सिंह नगर) एक जिले का नाम उन्ही के नाम पर रखा है।

सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को एक सिख परिवार में पंजाब राज्य के संगरूर जिले के सुनम गाँव में हुआ था | सरदार उधम सिंह की माँ का उनके जन्म के दो वर्ष बाद 1901 में देहांत हो गया था और पिताजी सरदार तेजपाल सिंह रेलवे में कर्मचारी थे जिनका उधम सिंह के जन्म के 8 साल बाद 1907 में देहांत हो गया था | इस तरह केवल 8 वर्ष की उम्र के उनके सर से माता पिता का साया उठ चूका था |

अब उनके माता पिता की मृत्यु के बाद उनके बड़े भाई मुक्ता सिंह उधम सिंह को अमृतसर के खालसा अनाथालय में दाखिला कराया | शहीद उधम सिंह Udham Singh का बचपन में नाम शेर सिंह था लेकिन अनाथालय में सिख दीक्षा संस्कार देकर उनको उधम सिंह नाम दिया गया | 1918 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया |

13 अप्रैल 1919 को स्थानीय नेताओ ने अंग्रेजो के रोलेट एक्ट के विरोध में जलियावाला बाग़ में एक विशाल सभा का आयोजन किया था | इस रोलेट एक्ट के कारण भारतीयों के मूल अधिकारों का हनन हो रहा था | अमृतसर के जलियावाला बाग़ में उस समय लगभग 20000 निहत्थे प्रदर्शनकारी जमा हुए थे | उस समय उधम सिंह उस विशाल सभा के लिए पानी की व्यवस्था में लगे हुए थे |

स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में सन् 1919 का 13 अप्रैल का दिन आँसुओं में डूबा हुआ है, जब अंग्रेज़ों ने अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में सभा कर रहे निहत्थे भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलायीं और सैकड़ों बेगुनाह लोगों को मौत के घाट उतार दिया। मरने वालों में माँओं के सीने से चिपके दुधमुँहे बच्चे, जीवन की संध्या बेला में देश की आज़ादी का सपना देख रहे बूढ़े और देश के लिए सर्वस्व लुटाए को तैयार युवा सभी थे। इस घटना ने ऊधमसिंह को हिलाकर रख दिया और उन्होंने अंग्रेज़ों से इसका बदला लेने की ठान ली। हिन्दू, मुस्लिम और सिख एकता की नींव रखने वाले 'ऊधम सिंह उर्फ राम मोहम्मद आज़ाद सिंह' ने इस घटना के लिए जनरल माइकल ओडायर को ज़िम्मेदार माना जो उस समय पंजाब प्रांत का गवर्नर था। गवर्नर के आदेश पर ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड एडवर्ड हैरी डायर ने 90 सैनिकों को लेकर जलियांवाला बाग़ को चारों तरफ से घेर कर मशीनगन से गोलियाँ चलवाईं

उधम सिंह भगत सिंह के कार्यों और उनके क्रन्तिकारी समूह से बहुत ही प्रभावित हुए थे। 1935 जब वे कश्मीर गए थे, उन्हें भगत सिंह के तस्वीर के साथ पकड़ा गया था। उन्हें बिना किसी अपराध के भगत सिंह का सहयोगी मान लिया गया और भगत सिंह को उनका गुरु। उधम सिंह को देश भक्ति गीत गाना बहुत ही अच्छा लगता था और वे राम प्रसाद बिस्मिल के गीतों के बहुत शौक़ीन थे जो क्रांतिकारियों के एक महान कवी थे।

इस घटना के घुस्से और दुःख की आग के कारण उधम सिंह ने बदला लेने का सोचा। जल्दी ही उन्होंने भारत छोड़ा और वे अमरीका गए। उन्होंने 1920 के शुरुवात में Babbar Akali Movement के बारे में जाना और वे वापस भारत लौट आये। वो छुपा कर एक पिस्तौल ले कर आये थे जिसके कारण पकडे जाने पर अमृतसर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। इसके कारण उन्हें 4 साल की जेल हुई बिना लाइसेंस पिस्तौल रखने के कारण।

 

जेल से छुटने के बाद इसके बाद वे अपने स्थाई निवास सुनाम Sunam में रहने के लिए आये पर वहां के व्रिटिश पुलिस वालों ने उन्हें परेशां किया जिसके कारण वे अमृतसर चले गए। अमृतसर में उधम सिंह ने एक दुकान खोला जिसमें एक पेंटर का बोर्ड लगाया और राम मुहम्मद सिंह आजाद के नाम से रहने लगे Ram Mohammad Singh Azad. उधम सिंह ने यह नाम कुछ इस तरीके से चुना था की इसमें सभी धर्मों के नाम मौजूद थे।

उधमसिंह १३ अप्रैल १९१९ को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। राजनीतिक कारणों से जलियाँवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीर उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा।

उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुंच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके।

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इसके बाद उधम सिंह क्रांतिकारी राजनीती में शामिल हो गए और भगत सिंह एवं उनके क्रांतिकारी समूह का उनपर काफी प्रभाव पड़ा। 1924 में सिंह ग़दर पार्टी में शामिल हो गये और विदेशो में जमे भारतीयों को जमा करने लगे।

1927 में भगत सिंह के आदेश पर वे भारत वापिस गए और अपने साथ वे 25 सहयोगी, रिवाल्वर और गोलाबारूद भी ले आए। इसके तुरंत बाद उन्हें बिना लाइसेंस के हथियार रखने के लिए गिरफ्तार किया गया। इसके बाद उनपर मुकदमा चलाया गया और उन्हें पाँच साल की सजा देकर जेल भेजा गया।

1931 में जेल से रिहा होने के बाद, सिंह के अभियान पर पंजाब पुलिस निरंतर निगरानी रख रही थी। इसके बाद वे कश्मीर चले गये और वहाँ वे पुलिस से बचने में सफल रहे और भागकर जर्मनी चले गए।

1934 में सिंह लन्दन पहुचे और वहाँ उन्होंने माइकल डायर की हत्या करने की योजना बनायीं थी।

        4 जून 1940 को ऊधम सिंह को डायर की हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई, 1940 को उन्हें 'पेंटनविले जेल' में फाँसी दे दी गयी। इस प्रकार यह क्रांतिकारी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अपनी शहादत देकर अमर हो गया। 31 जुलाई, 1974 को ब्रिटेन ने उनके अवशेष भारत को सौंप दिए थे। ऊधम सिंह की अस्थियाँ सम्मान सहित भारत लायी गईं। उनके गाँव में उनकी समाधि बनी हुई है।


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शहीद उधम सिंह पर निबंध – Shaheed Udham Singh’s Martyrdom Day Essay in Hindi & English Pdf Download

Essay on Shaheed Udham Singh in hindi

सरदार उधम सिंह (26 दिसंबर 1899 से 31 जुलाई 1940) भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में पंजाब के क्रांतिकारी के रूप में पंजीकृत हैं। उन्होंने जलियांवाला बाग नरसंहार के दौरान पंजाब के गवर्नर जनरल माइकल ओ डायर (एन: सर माइकल फ्रांसिस ओ डायर) पर गोली चलाई और उन्हें लंदन में गोली मार दी। कई इतिहासकारों का मानना है कि यह नरसंहार ओ डायर और अन्य ब्रिटिश अधिकारियों की एक सुनियोजित साजिश थी, जो पंजाब पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए पंजाब को डराने के उद्देश्य से थे। यही नहीं, ओ डायर बाद में जनरल डायर के समर्थन से भी पीछे नहीं हटे।

Essay on Shaheed Udham Singh in hindi

उधम सिंह का जन्म शेर सिंह के रूप में 26 दिसंबर 1899 को तत्कालीन रियासत पटियाला (वर्तमान में पंजाब, भारत के संगरूर जिले) के ग्राम सुनाम में एक कंबोज परिवार में हुआ था। उनके पिता टहल सिंह कंबोज उस समय पड़ोस के एक अन्य गांव उपली में एक रेलवे क्रॉसिंग पर एक चौकीदार के रूप में कार्यरत थे। शेर सिंह और उनके बड़े भाई, मुक्ता सिंह, कम उम्र में अपने माता-पिता को खो चुके थे; 1901 में उनकी मां की मृत्यु हो गई, और उनके पिता ने 1907 में पालन किया, दो भाइयों को बिना किसी विकल्प के छोड़ दिया, लेकिन 24 अक्टूबर 1907 को अमृतसर के पुतलीघर में केंद्रीय खालसा अनाथालय में प्रवेश लेने के लिए। अनाथालय में, उन्हें सिख धर्म में दीक्षा दी गई और फलस्वरूप प्राप्त किया। नए नाम; शेर सिंह उधम सिंह बने, जबकि उनके भाई ने साधु सिंह का नाम लिया। दुख की बात है कि साधु सिंह की भी 1917 में एक दशक बाद मृत्यु हो गई, जिससे 17 वर्षीय उधम पूरी दुनिया में अकेली रह गईं।   रविवार, 13 अप्रैल 1919, बैसाखी का दिन था – नए साल के आगमन का जश्न मनाने के लिए एक प्रमुख पंजाबी त्यौहार – और आस-पास के गांवों के हजारों लोगों ने अमृतसर में आम उत्सव और मौज-मस्ती के लिए एकत्रित किया था। पशु मेले के बंद होने के बाद, सभी लोग जलियांवाला बाग में 6-7 एकड़ के एक सार्वजनिक उद्यान में एकत्र होने लगे, जो चारों तरफ से दीवार पर लगा हुआ था। यह आशंका है कि किसी भी समय एक बड़ा विद्रोह हो सकता है, कर्नल रेजिनाल्ड डायर ने पहले सभी बैठकों पर प्रतिबंध लगा दिया था, हालांकि, यह बहुत कम संभावना थी कि आम जनता को प्रतिबंध का पता था। जलियांवाला बाग में सभा की बात सुनकर, कर्नल डायर ने अपने सैनिकों के साथ मार्च किया, बाहर निकलने पर मुहर लगा दी और अपने आदमियों को पुरुषों, महिलाओं और बच्चों पर अंधाधुंध गोलियां चलाने का आदेश दिया। गोला-बारूद खत्म होने से पहले दस मिनट के पागलपन में, पूरा तबाही और नरसंहार हुआ था। आधिकारिक ब्रिटिश भारतीय सूत्रों के अनुसार, 379 लोगों की मौत हो गई और 1,100 लोग घायल हो गए, हालांकि, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1,500 घायलों के साथ मौतों को 1000 से अधिक होने का अनुमान लगाया। प्रारंभ में, ब्रिटिश साम्राज्य में रूढ़िवादियों द्वारा एक नायक के रूप में प्रतिष्ठित, ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स, ने अपनी नियुक्ति से हटाकर, अपनी पदोन्नति से गुजरने और आगे के रोजगार से रोककर हैरी डायर को बुरी तरह से सताया और अनुशासित किया।

Shaheed udham singh nibandh

Essay on Shaheed Udham Singh

उधम सिंह का जन्म शेर सिंह के नाम से 26 दिसम्बर 1899 को सुनम, पटियाला, में हुआ था। उनके पिता का नाम टहल सिंह था और वे पास के एक गाँव उपल्ल रेलवे क्रासिंग के चौकीदार थे। सात वर्ष की आयु में उन्होंने अपने माता पिता को खो दिया जिसके कारण उन्होंने अपना बाद का जीवन अपने बड़े भाई मुक्ता सिंह के साथ 24 अक्टूबर 1907 से केंद्रीय खालसा अनाथालय Central Khalsa Orphanage में जीवन व्यतीत किया। दोनों भाईयों को सिख समुदाय के संस्कार मिले अनाथालय में जिसके कारण उनके नए नाम रखे गए। शेर सिंह का नाम रखा गया उधम सिंह और मुक्त सिंह का नाम रखा गया साधू सिंह। साल 1917 में उधम सिंह के बड़े भाई का देहांत हो गया और वे अकेले पड़ गए। उधम सिंह ने अनाथालय 1918 को अपनी मेट्रिक की पढाई के बाद छोड़ दिया। वो 13 अप्रैल 1919 को, उस जलिवाला बाग़ हत्याकांड के दिल दहका देने वाले बैसाखी के दिन में वहीँ मजूद थे। उसी समय General Reginald Edward Harry Dyer ने बाग़ के एक दरवाज़ा को छोड़ कर सभी दरवाजों को बंद करवा दिया और निहत्थे, साधारण व्यक्तियों पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी। इस घटना में हजारों लोगों की मौत हो गयी। कई लोगों के शव तो कुए के अन्दर से मिले। इस घटना के घुस्से और दुःख की आग के कारण उधम सिंह ने बदला लेने का सोचा। जल्दी ही उन्होंने भारत छोड़ा और वे अमरीका गए। उन्होंने 1920 के शुरुवात में Babbar Akali Movement के बारे में जाना और वे वापस भारत लौट आये। वो छुपा कर एक पिस्तौल ले कर आये थे जिसके कारण पकडे जाने पर अमृतसर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। इसके कारण उन्हें 4 साल की जेल हुई बिना लाइसेंस पिस्तौल रखने के कारण। जेल से छुटने के बाद इसके बाद वे अपने स्थाई निवास सुनाम में रहने के लिए आये पर वहां के व्रिटिश पुलिस वालों ने उन्हें परेशां किया जिसके कारण वे अमृतसर चले गए। अमृतसर में उधम सिंह ने एक दुकान खोला जिसमें एक पेंटर का बोर्ड लगाया और राम मुहम्मद सिंह आजाद के नाम से रहने लगे Ram Mohammad Singh Azad. उधम सिंह ने यह नाम कुछ इस तरीके से चुना था की इसमें सभी धर्मों के नाम मौजूद थे। उधम सिंह भगत सिंह के कार्यों और उनके क्रन्तिकारी समूह से बहुत ही प्रभावित हुए थे। 1935 जब वे कश्मीर गए थे, उन्हें भगत सिंह के तस्वीर के साथ पकड़ा गया था। उन्हें बिना किसी अपराध के भगत सिंह का सहयोगी मान लिया गया और भगत सिंह को उनका गुरु। उधम सिंह को देश भक्ति गीत गाना बहुत ही अच्छा लगता था और वे राम प्रसाद बिस्मिल के गीतों के बहुत शौक़ीन थे जो क्रांतिकारियों के एक महान कवी थे। कश्मीर में कुछ महीने रहने के बाद, उधम सिंह ने भारत छोड़ा। 30 के दशक में वे इंग्लैंड गए। उधम सिंह जलियावाला बाग हत्या कांड का बदला लेने का मौका ढूंढ रहे थे। यह मौका बहुत दिन बाद 13 मार्च 1940 को आया। उस दिन काक्सटन हॉल, लन्दन Caxton Hall, London में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन East India Association और रॉयल सेंट्रल एशियाई सोसाइटी Royal Central Asian Society का मीटिंग था। लगभग शाम 4.30 बजे उधम सिंह ने पिस्तौल से 5-6 गोलियां सर माइकल ओ द्व्येर Sir Michael O’Dwyer पर फायर किया और वहीँ उसकी मौत हो गयी। इस गोलीबारी के समय भारत के राज्य सचिव को भी Secretary of State for India चोट लग गयी जो इस सभा के प्रेसिडेंट President थे। सबसे बड़ी बात तो यह थी की उधम सिंह को यह करने का कोई भी डर नहीं था। वे वहां से भागे भी नहीं बस उनके मुख से यह बात निकली की – मैंने अपने देश का कर्तव्य पूरा कर दिया। 1 अप्रैल, 1940, को उधम सिंह को जर्नल डायर Sir Michael O’Dwyer को हत्यारा माना गया। 4 जून 1940 को पूछताच के लिए सेंट्रल क्रिमिनल कोर्ट, पुराणी बरेली Central Criminal Court, Old Bailey में रखा गया था अलाकी उन्हें जस्टिस एटकिंसन Justice Atkinson के फांसी की सजा सुना दी थी। 15 जुलाई 1940 में एक अपील दायर की गयी थी उन्हें फांसी से बचाने के लिए परन्तु उसको खारीच कर दिया गया। 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह को लन्दन के Pentonville जेल में फांसी लगा दिया गया। उनकी एक आखरी इच्छा थी की उनके अस्थियों को उनके देश भेज दिया जाये पर यह नहीं किया गया। 1975 में भारत सरकार, पंजाब सरकार के साथ मिलकर उधम सिंह के अस्थियों को लाने में सफल हुई। उनको स्राधांजलि देने के लिए लाखों लोग जमा हुए थे।

Udham Singh’s Martyrdom Day essay in Punjabi

ਇਹ 13 ਮਾਰਚ, 1940 ਦਾ ਦਿਨ ਸੀ. ਈਸਟ ਇੰਡੀਆ ਐਸੋਸੀਏਸ਼ਨ ਅਤੇ ਲੰਡਨ ਦੇ ਸੈਕਸਟਨ ਹਾਲ ਦੇ ਰਾਇਲ ਏਸ਼ੀਅਨ ਸੁਸਾਇਟੀ ਦੀ ਤਰਫੋਂ ਇੱਕ ਮੀਟਿੰਗ ਆਯੋਜਿਤ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ, ਵਿਸ਼ਵ ਸਥਿਤੀ ਅਤੇ ਅਫਗਾਨਿਸਤਾਨ ਬਾਰੇ. ਆਖਰੀ ਸਪੀਕਰ ਸਰ ਮਾਈਕਲ ਓ’ਡਾਵਰ ਸੀ. ਮੁਲਾਕਾਤ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਭਾਸ਼ਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੋਈ। ਉਸੇ ਸਮੇਂ ਇੱਕ ਭਾਰਤੀ ਨੌਜਵਾਨ ਨੂੰ ਮੀਟਿੰਗ ਵਿੱਚ ਉਠਾਇਆ ਗਿਆ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸਨੇ ਜਨਰਲ ਰੀਬੇਰ ਕੈਸੀਨ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਰਿਵਾਲਡਰ ਤੋਂ ਕਈ ਗੋਲੀਆਂ ਲਾਈਆਂ ਸਨ. ਗੋਲੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਹੁੰਦਿਆਂ ਹੀ ਜਨਰਲ ਡਾਇਰ ਡਿੱਗ ਪਿਆ। ਇਕ ਪੈਨਿਕ ਮਾਰਚ ਨੇ ਅਜੇ ਗੋਲੀਆਂ ਸੁਣਣੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਸਨ ਅਤੇ ਹਰ ਕੋਈ ਆਪਣੀ ਜਾਨ ਬਚਾਉਣ ਲਈ ਬਚ ਨਿਕਲਿਆ ਸੀ. ਜਦੋਂ ਜਵਾਨ ਨੂੰ ਯਕੀਨ ਹੋ ਗਿਆ ਕਿ ਜਨਰਲ ਡਵਾਇਰ ਮਰ ਗਿਆ ਸੀ ਤਾਂ ਉਹ ਮੁੱਖ ਗੇਟ ਤੇ ਹੌਲੀ ਅਤੇ ਚੁੱਪਚਾਪ ਆ ਗਏ ਅਤੇ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸਰਜੇਂਟ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ. ਇਹ ਵੀਰ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀ hamਧਮ ਸਿੰਘ ਸੀ ਜੋ ਵਿਦੇਸ਼ ਗਿਆ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਨਿਰਦੋਸ਼ ਕਾਤਲਾਂ ਦੀ ਕੁਰਬਾਨੀ ਦਿੱਤੀ ਅਤੇ ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਕੁਰਬਾਨੀ ਦਿੱਤੀ। ਸ਼ਹੀਦ ਊਧਮ ਸਿੰਘ ਦਾ ਜਨਮ 26 ਦਸੰਬਰ 1899 ਨੂੰ ਸਰਦਾਰ ਤੁਲਹਲ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਧਾਰਨ ਪਰਵਾਰ ਵਿਚ ਸੁਨਾਮ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਸੰਗਰੂਰ ਵਿਚ ਹੋਇਆ. ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ, ਉਸਦੇ ਮਾਤਾ ਪਿਤਾ ਅਤੇ ਵੱਡੇ ਭਰਾ ਸਾਧੂ ਸਿੰਘ ਸਿਡੋਲ ਆਏ. Hamਧਮ ਸਿੰਘ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਇਕੱਲਾ ਰਹਿ ਗਿਆ ਸੀ। ਉਸਦੇ ਚਾਚੇ ਚੰਚਲ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉਸਨੂੰ ਮਨੀਟੂਲ ਸਿਕਸ ਯਤੀਮਖਾਨਾ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿਖੇ ਭਰਤੀ ਕੀਤਾ. ਉਥੇ ਉਸਨੇ ਤਰਖਾਣ ਦਾ ਕੰਮ ਸਿੱਖ ਲਿਆ ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਉਸ ਨਾਲ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਕੁਝ ਹੋਰ ਇਨਕਲਾਬੀਆਂ ਨੇ ਸੰਪਰਕ ਕੀਤਾ। . ਇਨਕਲਾਬੀ ਸਰਗਰਮੀਆਂ ਕਾਰਨ ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਉਸਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ। ਉਹ ਮੁੱਲਾਂ ਅਤੇ ਰਾਵਲਪਿੰਡੀ ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂ ਵਿੱਚ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸਰਕਾਰ ਉੱਤੇ ਚਾਰ ਸਾਲ ਤਸ਼ੱਦਦ .ਾਹਦਾ ਰਿਹਾ। ਫਿਰ ਉਸਨੇ ਅਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਲੱਕੜ ਦੀ ਦੁਕਾਨ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਉਸਦਾ ਨਾਮ ਰਾਮ ਮੁਹੰਮਦ ਸਿੰਘ ਅਜ਼ਾਦ ਰੱਖਿਆ. 6 ਅਪ੍ਰੈਲ, 1919 ਨੂੰ, ਰੋਲੇਟ ਐਕਟ ਦੀ ਵਾਪਸੀ ਲਈ ਭਾਰਤ ਨੂੰ ਦਬਾਉਣ ਲਈ ਇਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਦਿਨ ਮਨਾਇਆ ਗਿਆ. ਅਤੇ ਅਪ੍ਰੈਲ ਨੂੰ, ਸਾਰੇ ਭਾਈਚਾਰਿਆਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਰਾਮਨਵਮੀ ਦੇ ਤਿਉਹਾਰ ਨੂੰ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਏਕਤਾ ਉਤਸਵ ਵਜੋਂ ਮਨਾਇਆ. ਇਹ ਸਭ ਵੇਖ ਕੇ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸਰਕਾਰ ਘਬਰਾ ਗਈ। 10 ਅਪ੍ਰੈਲ ਨੂੰ, ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ, ਡਾ: ਸਤਪਾਲ ਅਤੇ ਡਾਕਟਰ ਕਿਚਲੂ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫਤਾਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ. ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਸ਼ਾਂਤਮਈ ਜਲੂਸ ਕੱ .ਿਆ। ਜਲਦੀ ਹੀ ਜਲੂਸ ਭੰਡਾਰ ਪੁੱਲ ‘ਤੇ ਪਹੁੰਚਦੇ ਹੀ ਫੌਜ ਨੇ ਇਸ’ ਤੇ ਫਾਇਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ, ਕਿਸ ਤੋਂ? ਵੀਹ ਲੋਕ ਮਾਰੇ ਗਏ ਅਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਜ਼ਖਮੀ ਹੋਏ। ਇਸ ਨਾਲ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਭੰਗ ਹੋ ਗਿਆ ਅਤੇ ਬਗਾਵਤ ਹੇਠਾਂ ਆ ਗਈ। ਸਰਕਾਰੀ ਸੰਪਤੀ ‘ਚ ਲੁੱਟ, ਨਸ਼ਟ ਹੋਣ ਅਤੇ ਸਾੜਫੂਕ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਵਾਪਰੀਆਂ. ਰਾਹ ਵਿਚ ਆਏ ਅੰਗਰੇਜ਼, ਉਹ ਮਾਰੇ ਗਏ। ਇਹ ਵੇਖਦਿਆਂ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੇ ਹੱਥ-ਪੈਰ ਫਿਸਲਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੇ। ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਫੌਜ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਸੀ। ਵੀਹ 144 ਲਗਾ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਸੀ ਅਤੇ ਰਾਤ ਨਿਸ਼ਚਤ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ. 11 ਤੋਂ 12 ਅਪ੍ਰੈਲ ਤੱਕ ਪੂਰਾ ਸ਼ਹਿਰ ਬੰਦ ਰਿਹਾ. ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਦੇ ਜ਼ੁਲਮ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਵਿੱਚ, 19 ਅਪ੍ਰੈਲ, 1919 ਨੂੰ, ਜਲਿਆਂਵਾਲਾ ਬਾਗ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਮੀਟਿੰਗ ਕੀਤੀ ਗਈ, ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਲੋਕ ਇਕੱਠੇ ਹੋਏ। ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸਰਕਾਰ ਇਸ ਤੋਂ ਘਬਰਾ ਗਈ ਉਸ ਸਮੇਂ, ਜਨਰਲ ਡਵੇਅਰ ਸੈਨਾ ਦੇ ਨਾਲ ਜਲਿਆਨੀ ਬਾਲਾ ਬਾਗ ਵਿੱਚ ਦਾਖਲ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਅਚਾਨਕ ਨਿਹੱਥੇ ਲੋਕਾਂ ‘ਤੇ ਫਾਇਰਿੰਗ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ. ਇਸ ਅਚਾਨਕ ਹੋਏ ਹਮਲੇ ਬਾਰੇ ਲੋਕ ਚੀਕਾਂ ਮਾਰਨ ਲੱਗੇ। ਕਈਆਂ ਨੂੰ ਗੋਲੀਆਂ ਨਾਲ ਭੁੰਨੇ ਹੋਏ ਸਨ, ਕੁਝ ਭਗਦੜ ਵਿੱਚ ਫਸ ਗਏ ਸਨ ਕੁਝ ਨੇ ਖੂਹ ਵਿੱਚ ਛਾਲ ਮਾਰ ਦਿੱਤੀ ਅਤੇ ਜਾਨ ਦਿੱਤੀ. ਦਸ ਮਿੰਟਾਂ ਲਈ, ਰਾਈਫਲਾਂ ਤੋਂ 1654 ਗੋਲੀਆਂ ਚਲਾਈਆਂ ਗਈਆਂ, ਨਤੀਜੇ ਵਜੋਂ ਨ੍ਰਿਤ ਅਤੇ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ. ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਗੋਲਾਬਾਰੀ ਵਿਚ 500 ਲੋਕ ਮਾਰੇ ਗਏ ਅਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਜ਼ਖਮੀ ਹੋਏ। ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਮਾਰਸ਼ਲ ਲਾਅ ਲਾਗੂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ। ਜਿਸ ਸਮੇਂ ਜਨਰਲ ਡਵਾਈਅਰ ਹੋਲੀ ਹੋਲੀ ਖੇਡ ਰਿਹਾ ਸੀ, ਉਸ ਸਮੇਂ hamਧਮ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਹੋਰ ਸਾਥੀ ਸਿੰਘਾਂ ਦੀ ਮਦਦ ਨਾਲ ਸਿੰਘ ਬਾਗ ਵਿਚ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦੇਣ ਲਈ ਸੇਵਾ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਇਸ ਸੀਟੀ ਨੇ hamਧਮ ਸਿੰਘ ਦੇ ਦਿਲ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਡੂੰਘਾ ਜ਼ਖ਼ਮ ਬਣਾਇਆ ਅਤੇ ਉਸਨੇ ਇਸ ਸੀਟੀ ਅੰਬ ਦਾ ਲਹੂ ਦੀ ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਮੱਥੇ ਉੱਤੇ ਰੱਖ ਕੇ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਦੀ ਸਹੁੰ ਖਾਧੀ। ਜਨਰਲ ਜਨਰਲ ਡਵੇਅਰ ਵਾਪਸ ਆਉਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ, ਉਹ ਲੰਡਨ ਵਾਪਸ ਚਲਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਸਰਕਾਰੀ ਪੈਨਸ਼ਨਾਂ ਤੇ ਐਸ਼ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਲੱਭਿਆ. Hamਧਮ ਸਿੰਘ ਦੇ ਮਨ ਵਿਚ, ਤਬਦੀਲੀ ਦੀ ਅੱਗ ਬਲ ਰਹੀ ਸੀ. ਉਹ ਲੁਕ ਕੇ ਛੁਪੇ ਹੋਏ ਕਈ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਲੰਡਨ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਥੇ ਇੰਡੀਆ ਹਾ Houseਸ ਵਿਚ ਠਹਿਰੇ। ਜਨਰਲ ਡਰਾਇਰ ਨੂੰ ਲੱਭਣ ਅਤੇ ਸੈਂਕੜੇ ਭਾਰਤੀਆਂ ਦੇ ਖੂਨ ਦੇ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਲਈ ਇੱਥੇ ਇਕੋ ਜਿਹਾ ਮਕਸਦ ਰਿਹਾ, ਉਸਨੂੰ ਉਹ ਜਾਣਕਾਰੀ ਜਲਦੀ ਮਿਲ ਗਈ ਆਖਰਕਾਰ, ਉਸ ਦੀਆਂ ਸੁੱਖਣਾ ਪੂਰੀਆਂ ਕਰਨ ਦਾ ਮੌਕਾ 13 ਮਾਰਚ ਹੈ. 1940 ਵਿਚ, ਉਸਨੇ ਲੰਡਨ ਦੇ ਸਕਸਨ ਹਾਲ ਵਿਚ ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਭੁੰਨਣ ਲਈ ਜਨਰਲ ਡੀਅਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ ਜਿਵੇਂ ਉਹ ਨਿਹੱਥੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਗੋਲੀਆਂ ਨਾਲ ਭੁੰਨਦਾ ਸੀ. ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਉਸ ਉੱਤੇ ਮੁਕਦਮਾ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਉਸਨੂੰ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਸੁਣਾਈ।

सरदार उधम सिंह एस्से इन हिंदी

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13 मार्च, 1940 का दिन था । लन्दन के सेक्सटन हाल में ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन और रॉयल एशियन सोसाइटी की ओर से विश्व स्थिति और अफगानिस्तान के विषय पर एक गोष्ठी हो रही थी । इसमें अन्तिम वक्ता जनरल सर माइकेल ओ डॉयर थे । उनके भाषण के बाद सभा समाप्त हो गयी । उसी समय सभा में एक भारतीय नौजवान उठा और उसने अपने रिवालवर से जनरल डीयर केसीने में कई गोलियां उतार दीं । गोलियां लगते ही जनरल डॉयर गिर पड़ा । गोलियों की आवाज सुनते ही हाल में भगदड़ मच गई और हर कोई अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगा । उस नौजवान को जब यह विश्वास हो गया कि जनरल डॉयर मर चुका है तब वह शान्त भाव से धीरे- धीरे चलता हुआ मुख्य द्वार पर आ गया और स्वयं को ब्रिटिश सार्जेन्ट के सामने गिरफ्तार करा दिया । यह वीर क्रान्तिकारी ऊधम सिंह था जिसने विदेश में जाकर भारत में निर्दोष लोगों के हत्यारे को उसी के देश में मौत के घाट उतारकर आजादी की लड़ाई में अपनी आहुति दी । शहीद ऊधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर, 1899 को जिला संगरूर के सुनाम में सरदार टहल सिंह के यहाँ एक साधारण परिवार में हुआ । बचपन में ही एक के बाद उसके माता-पिता और बड़ा भाई साधू सिंह परलोक सिधार गये । ऊधम सिंह इस दुनिया में अकेला रह गया । इसके चाचा चंचल सिंह ने उसे मेंटुल सिक्स यतीमखाना, अमृतसर में भर्ती करा दिया । वहाँ उन्होंने बढ़ई का काम सीखा । इसी दौरान उसका सम्पर्क भगत सिंह और कुछ दूसरे क्रान्तिकारियों से हुआ. । क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया । वे चार वर्ष मुल्लान और रावलपिंडी की जेलों में ब्रिटिश हुकूमत की यातनायें सहते रहे । तब उन्होंने अमृतसर में ही एक लकड़ी की दुकान शुरू कर दी और अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया । भारत पर दमन करने वाले रौलेट एक्ट की वापसी के लिये 6 अप्रैल, 1919 को एक विशेष दिवस के रूप में मनाया गया । व अप्रैल को सभी समुदायों के लोगों ने रामनवमी का त्योहार राष्ट्रीय एकता पर्व के रूप में मनाया । यह सब देखकर ब्रिटिश हुकूमत बौखला गयी । 10 अप्रैल को महात्मा गाँधी, डॉक्टर सतपाल और डॉक्टर किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया । इसके बाद लोगों ने एक शान्तिप्रिय जुलूस निकाला । जैसे ही यह जुलूस भण्डारी पुल पर पहुँचा, सेना ने इस पर गोली चला दी जिससे? बीस लोग मारे गये और कई घायल हो गये । इससे जनता भड़क उठी और बगावत रार उतर आयी । सरकारी सम्पत्ति की लूट- पाट, तोड़-फोड़ और आगजनी जैसी घटनायें हुईं । जो भी अंग्रेज रास्ते में आया उसे मार दिया गया । यह देखकर अधिकारियों के हाथ-पाँव फूल गये । शहर को सेना के हवाले कर दिया गया । दफा 144 लगा दी गयी और रात का र्म्म लगा दिया गया । 11 से 12 अप्रैल को सारा शहर बन्द रहा । विदेशी शासकों के दमनकारी कानूनों का विरोध करने के लिए 19 अप्रैल, 1919 जलियांवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया जिसमें हजारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी । इससे ब्रिटिश सरकार बौखला गई । तभी जनरल डॉयर ने सेना के साथ जलियांबाला बाग में एक तंग गली से प्रवेश करके अचानक निहत्थे लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं । लोग इस अचानक हमले से बौखला कर इधर-उधर भागने लगे । कुछ गोलियों से भूने गये, कुछ भगदड़ में रौंदे गये । कुछ ने कुएं में छलांग लगा कर जान दे दी । दस मिनट तक राइफलों से 1654 गोलियां चलाई गयीं जिससे मौत का तांडव नाच होता रहा । भीषण गोलाबारी से 500 लोग मारे गये और हजारों घायल हो गये । इसके साथ ही पंजाब में मार्शल लॉ लगा दिया गया । जिस समय जनरल डॉयर खून की होली खेल रहा था, उस समय ऊधम सिंह बाग में अपने दूसरे साथियों के साथ मिलकर लोगों को पानी पिलाने की सेवा कर रहा था । इस कल्लेआम ने ऊधम सिंह के दिल में एक गहरा घाव कर दिया और उसने खून से रंगी मिट्टी को माथे से लगाकर इस कल्ले आम का बदला लेने की कसम खाई । जनरल डॉयर रिटायर होने के पश्चात् वापिस लन्दन चला गया और सरकारी पेन्हान पर ऐश की जिन्दगी बिताने लगा । ऊधम सिंह के मन में बदले की आग धक- धक कर जल रही थी । वह छिपता-छिपाता कई देशों से होता हुआ लन्दन जा पहुंचा और वहाँ इण्डिया हाऊस में रहने लगा । उसका वहाँ पर ठहरने का एक ही उद्देश्य था कि किसी तरह से जनरल डॉयर का पता लगाना और सैकड़ों भारतवासियों के खून का बदला लेना । उसे वह जानकारी जल्दी ही मिल गई । आखिर उसे अपनी कसम पूरी करने का मौका 13 मार्च. 1940 को मिल गया तब उसने लन्दन के सेक्सन हॉल में जनरल डीयर को गोलियां से उसी प्रकार भूना जैसे उसने निहत्थे लोगों को गोलियां से भूना था । अंग्रेज सरकार ने उस पर मुकद्दमा चलाया और उसे फांसी की सजा दी ।

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उधम सिंह: भारत का वो 'शेर', जिसकी 6 गोलियों ने लिया जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला

1919 में रॉलेट एक्ट के तहत कांग्रेस के सत्य पाल और सैफुद्दीन किचलू को अंग्रेजों द्वारा अरेस्ट करने के बाद पंजाब के अमृतसर में हजारों की तादाद में लोग एक पार्क में जमा हुए थे. इन लोगों का मकसद शांति से प्रोटेस्ट करना था. हालांकि अंग्रेजों के जनरल reginald dyer ने अपनी फौज के साथ उन मासूम लोगों को मार गिराया था. इसमें उसका साथ उस समय पंजाब के गवर्नर रहे michael o'dwyer ने दिया था. इस नरसंहार को जलियांवाला बाग हत्याकांड का नाम दिया गया. उधम सिंह 1919 में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार के साक्षी थे..

विक्की कौशल

  • 30 सितंबर 2021,
  • (अपडेटेड 30 सितंबर 2021, 3:00 PM IST)

essay of udham singh in hindi

  • जालियांवाला बाग नरसंहार का लिया बदला
  • विक्की कौशल निभा रहे सरदार उधम सिंह का रोल
  • क्रांतिकारी थे उधम सिंह

विक्की कौशल जल्द ही भारत के स्वतंत्रता सैनानी सरदार उधम सिंह पर बनी फिल्म लेकर आने वाले हैं. इस फिल्म का नाम सरदार उधम है और विक्की इसमें मुख्य भूमिका निभाने वाले हैं. फिल्म में उधम सिंह के लंदन जाकर जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने की कहानी को दिखाया जाएगा. लेकिन आखिर सरदार उधम सिंह थे कौन और उन्होंने इस हत्याकांड का बदला क्यों लिया? आइए हम बताते हैं. 

कौन थे उधम सिंह?

सरदार उधम सिंह 26 दिसंबर 1899 का जन्म पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था. उनके पिता सरदार तेहाल सिंह जम्मू उपल्ली गांव में रेलवे चौकीदार थे. उधम सिंह का असली नाम शेर सिंह था. उनका एक भाई भी था, इसका नाम मुख्ता सिंह था. सात साल की उम्र में उधम अनाथ हो गए थे. पहले उनकी मां चल बसीं और फिर उसके 6 साल बाद पिता ने दुनिया को अलविदा कह दिया था. मां-बाप के मरने के बाद उधम और उनके भाई को अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय में भेज दिया गया था.

अनाथालय में लोगों ने दोनों भाइयों को नया नाम दिया. शेर सिंह बन गए उधम सिंह और मुख्ता सिंह बन गए साधु सिंह. सरदार उधम सिंह ने भारतीय समाज की एकता के लिए अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था, जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है. साल 1917 में उधम के भाई साधु की भी मौत हो गई. 1918 में उधम ने मैट्रिक के एग्जाम पास किए. साल 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया. उधम सिंह, शहीद भगत सिंह को अपना गुरु मानते थे. 

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1919 का जलियांवाला बाग हत्याकांड

1919 में रॉलेट एक्ट के तहत कांग्रेस के सत्य पाल और सैफुद्दीन किचलू को अंग्रेजों द्वारा अरेस्ट करने के बाद पंजाब के अमृतसर में हजारों की तादाद में लोग एक पार्क में जमा हुए थे. इन लोगों का मकसद शांति से प्रोटेस्ट करना था. हालांकि अंग्रेजों के जनरल Reginald Dyer ने अपनी फौज के साथ उन मासूम लोगों को मार गिराया था. इसमें उसका साथ उस समय पंजाब के गवर्नर रहे Michael O'Dwyer ने दिया था. इस नरसंहार को जलियांवाला बाग हत्याकांड का नाम दिया गया. उधम सिंह 1919 में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार के साक्षी थे. इस नरसंहार को देखने के बाद उधम सिंह ने स्वतंत्रता की लड़ाई में कूदने और Reginald Dyer और Michael O'Dwyer से बदला लेने की प्रतिज्ञा ली थी. 

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उधम सिंह ने Michael O'Dwyer की ली जान

सरदार उधम सिंह क्रांतिकारियों के साथ शामिल हुए और उनसे चंदा इकट्ठा कर देश के बाहर चले गए. उधम सिंह के लंदन पहुंचने से पहले जनरल Reginald Dyer ब्रेन हैमरेज के चलते मौत हो गई थी. ऐसे में उन्होंने अपना पूरा ध्यान Michael O'Dwyer को मारने पर लगाया और उसे पूरा भी किया. 13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हॉल में बैठक थी. वहां Michael O'Dwyer भी स्पीकर्स में से एक था. उधम सिंह उस दिन टाइम से वहां पहुंच गए. उधम ने अपनी बन्दूक को एक मोती किताब में छुपाया था. मौका लगने पर उन्होंने निशाना लगाया, दो गोलियां Michael O'Dwyer को लगी जिससे उसकी तुरंत मौत हो गई. हालांकि वहां से भागने की कोशिश में उधम सिंह पकड़े गए थे. इसके बाद उनके ऊपर मुकदमा चला और कोर्ट में उनकी पेशी भी हुई. 

4 जून 1940 को उधम सिंह को Michael O'Dwyer की हत्या का दोषी ठहराया गया. 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई. इस तरह उधम सिंह भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास में अमर हो गए. 1974 में ब्रिटेन ने उनके अवशेष भारत को सौंप दिए. अंग्रेजों को उनके घर में घुसकर मारने का जो काम सरदार उधम सिंह ने किया था, उसकी हर जगह तारीफ हुई. 

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शहीद उधम सिंह

Shaheed Udham Singh

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वरस मेले

वतन पे मिटने वालों का वस यही बाकी निशां होगा।

भूमिका – शहीद उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर, 1899 को जिला संगरूर के सुनाम में सरदार टहल सिंह के यहाँ एक साधारण परिवार में हुआ। बचपन से ही इनकी माता-पिता बड़ा भाई साधु सिंह परलोक सिधार गए। अब उधम सिंह घर में अकेला था।। इसके चाचा चंचल सिंह ने उसे मैंटल सिक्ख यतीमखाना. अमतसर में भर्ती करा दिया। वहाँ उन्होंने बढ़ई का काम सीखा। इसी दौरान उनका सम्पर्क भगत सिंह और कुछ क्रान्तिकारियों से हुआ। शंका की दृष्टि से पुलिस ने इन्हें गिरफतार कर लिया। वे चार वर्ष मुलतान और रावलपिंडी की जेलों ब्रिटिश हकूमत की यातनाएं सहन करते रहे। रिहा होने के बाद अमृतसर आकर इन्होंने लकड़ी की दुकान शुरू कर दी और अपना नाम बदल कर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया। ।

रौलेट एक्ट का विरोध- भारत पर दमन चक्र चलाने के लिए एक एक्ट पास किया जिसका नाम रौलेट एक्ट था। भारतीयों ने इसका डटकर विरोध किया। इस एक्ट की वापिसी के लिए 6 अप्रैल, 1919 को एक विशेष दिवस के रूप में मनाया गया। 9अप्रैल को सभी समुदायों के लोगों ने रामनवमी का त्यौहार राष्ट्रीय एकता पर्व के रूप में मनाया गया। ऐसा देखकर ब्रिटिश सरकार बौखला गई। 10 अप्रैल को महात्मा गाँधी, डॉ० सतपाल और डॉ० किचलू को गिरफतार कर लिया गया। बाद में लोगों ने एक शान्तिप्रिय जलूस निकाला। जब जलूस भण्डारी पुल के पास पहुँचा तो सेना ने अन्धाधुंध गोली चलानी शुरू कर दी जिससे 20 लोग मारे गए और कई घायल हो गए। इस से जनता भड़क उठी और बगावत पर उतर आई। सरकारी सम्पति की लूट-पाट, तोड़-फोड़ और आगजीनी जैसी घटनाएं हुई। रास्ते में जो भी अग्रेज़ आया उसे मार दिया गया। अंग्रेज़ सरकार घबरा गई। शहर को सेना के हवाले । कर दिया गया। दफा 144 लगा दी गई। रात का कयूं लगा दिया गया। 2 दिन तक सारा शहर बन्द रहा।।

जलियांवाला बाग की घटना- विदेशी शासकों की दमनकारी नीति का विरोध करने के लिए 19 अप्रैल, 1010 को जलियांवाला बाग में एक सभाका आयोजन किया गया। हजारों भारतीय वहाँ इकट्ठे थे। ब्रिटिश सरकार बौखला गई। तभी जनरल डॉयर ने सेना के साथ जलियांवाला बाग में एक तंग गली से प्रवेश करके अचानक निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाने का हुकम दिया। लोग घबराकर इधर-उधर भागने लगे। कुछ ने कुएं में छलांग लगा दी। दस मिन्ट तक रइफलों से 1654 गोलियां चलाई गई। भीषण गोलाबारी से 500 लोग मारे गए और हजारों घायल हो गए। उस समय उधम सिंह बाग में घायलों को पानी पिला रहा था। उधम सिंह ने खून से रंगी मिट्टी को माथे से लगाकर इस कत्लेआम का बदला लेने की कसम खाई।

जनरल डॉयर रिटायर होने के बाद वापिस लन्दन चला गया। उधम सिंह छिपता-छिपाता कई देशों से होता हुआ लन्दन जा पहुंचा और इण्डिया हाऊस में रहने लगा। 13 मार्च 1940 को लन्दन के सेक्टसन हाल में जनरल डॉयर को गोली से उड़ा दिया गया। गोलियों की आवाज सुनकर सभी भागने लगे। उधम सिंह भागा नहीं। स्वयं ब्रिटिश सार्जेन्ट के सामने पेश हो गया। अग्रेज सरकार ने उस पर मुकदमा चलाया और उसे फांसी की सजा दी। महान सपूत ने बड़े गर्व से कहा मुझे मौत की सजा की परवाह नहीं क्योंकि मैंने भारत माता के सम्मान का बदला ले लिया है। यह वीर क्रान्तिकारी 31 जुलाई, 1940 को लन्दन में हँसते-हँसते फांसी पर झूल गया। देश पर मिटने वाले अमर शहीद ऊधम सिंह को शत्-शत् प्रणाम।

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शहीद उधम सिंह जीवनी Shaheed Udham Singh History in Hindi

Table of Content

जन्म और प्रारंभिक जीवन

दोनों भाईयों को सिख समुदाय के संस्कार मिले अनाथालय में जिसके कारण उनके नए नाम रखे गए। शेर सिंह का नाम रखा गया उधम सिंह और मुक्त सिंह का नाम रखा गया साधू सिंह। साल 1917 में उधम सिंह के बड़े भाई का देहांत हो गया और वे अकेले पड़ गए।

क्रन्तिकारी जीवन की शुरुवात

वो छुपा कर एक पिस्तौल ले कर आये थे जिसके कारण पकडे जाने पर अमृतसर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। इसके कारण उन्हें 4 साल की जेल हुई बिना लाइसेंस पिस्तौल रखने के कारण।

शहीद भगत सिंह के विचारों से प्रेरित

कश्मीर में कुछ महीने रहने के बाद, उधम सिंह ने भारत छोड़ा। 30 के दशक में वे इंग्लैंड गए। उधम सिंह जलियावाला बाग हत्या कांड का बदला लेने का मौका ढूंढ रहे थे। यह मौका बहुत दिन बाद 13 मार्च 1940 को आया।

लन्दन में उधम सिंह ने लिया जलिवाला हत्याकांड का बदला

15 जुलाई 1940 में एक अपील दायर की गयी थी उन्हें फांसी से बचाने के लिए परन्तु उसको खारीच कर दिया गया। 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह को लन्दन के Pentonville जेल में फांसी लगा दिया गया।\

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शहीद उधम सिंह 2000  फिल्म मैं संगीत music.

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Cultural India

Udham singh.

Born: 26 December 1899

Place of Birth: Village Sunam, Sangrur district, Punjab, India

Parents: Tehal Singh Kamboj (Father), Narain Kaur (Mother)

Political Association: Ghadar Party, Hindustan Socialist Republican Association

Political Ideology: Revolutionary

Death: 31 July 1940

Udham Singh was an Indian revolutionary and freedom fighter. He became popular when he assassinated Michael O’ Dwyer, the former Lieutenant Governor of the Punjab, who was responsible for the 1919 Jallianwala Bagh massacre. The carnage that Udham Singh witnessed left him deeply shocked and resentful, and it was only two decades later that he was able to avenge the deaths of hundreds of his innocent countrymen. For this singular act of bravery, Shaheed-i-Azam Sardar Udham Singh, as he is also popularly referred to, became famous in India and abroad. Arrested immediately after the incident, he was tried in Britain and hanged subsequently at London’s Pentonville prison in July 1940.

Image Credit : https://www.thebetterindia.com/95695/udham-singh-punjab-jallianwala-bagh-massacre/

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Udham Singh was born as Sher Singh on 26 December 1899 to a Kamboj family in village Sunam in the then princely state of Patiala (presently Sangrur district of Punjab, India). His father, Tahal Singh Kamboj, was then employed as a watchman at a railway crossing in Upali, another village in the neighbourhood. Sher Singh and his elder brother, Mukta Singh, lost their parents at an early age; their mother died in 1901, and their father followed in 1907, leaving the two brothers with no option but to seek admittance to the Central Khalsa Orphanage at Putlighar in Amritsar on 24 October 1907. At the orphanage, they were initiated into Sikhism and consequently received new names; Sher Singh became Udham Singh while his brother took on the name of Sadhu Singh. Tragically, Sadhu Singh also died just a decade later in 1917, leaving the 17-year-old Udham all alone in the world. In 1918, Udham Singh passed his matriculation examination and left the orphanage for good the next year. At that time, there was intense political turmoil in Punjab and young Udham was no stranger to the many upheavals taking place all around him.

Jallianwala Bagh Massacre

Sunday, 13 April 1919 was the day of Baisakhi—a major Punjabi festival to celebrate the arrival of the New Year—and thousands of people from neighbouring villages had congregated in Amritsar for the usual festivities and fun fairs. After the closure of the cattle fair, many people started gathering together at Jallianwala Bagh a public garden of 6-7 acres that was walled on all the sides. Fearing that a major insurrection could take place at any time, Colonel Reginald Dyer had earlier banned all meetings, however, it was very unlikely that the general public knew of the ban. Upon hearing of the gathering at Jallianwala Bagh, Colonel Dyer marched with his troops, sealed off the exits, and ordered his men to fire indiscriminately at the men, women, and children. In the ten minutes of insanity before the ammunition got exhausted, there was complete mayhem and carnage. According to official British Indian sources, 379 people died and 1,100 were wounded, however, the Indian National Congress estimated the deaths to be over 1000 with 1,500 wounded. Initially, hailed as a hero by the conservatives in the British Empire, the British House of Commons, horrified with the brutality of the attack severely censured and disciplined Harry Dyer by removing from his appointment, passing over his promotion, and barring him from further employment in India.

On that fateful day, Udham Singh was serving drinking water to the congregation of people who had gathered together at Jallianwalla Bagh from the neighbouring villages for the Baisakhi festivities. According to some reports, even Udham Singh was wounded in the incident in his efforts to retrieve the body of one Rattan Devi’s husband. The shocking massacre of innocent people left the young and impressionable Udham Singh full of hatred for the British and from that day he would only think of ways of exacting retribution for this crime against humanity.

Image Credit : https://www.pustakmandi.com/shaheed-udham-singh

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Involvement in Revolutionary Activities

Deeply scarred by the Jallianwala massacre and full of anger against the British, Udham Singh soon got involved in the freedom struggle that was then unfolding both in India and in foreign countries. He travelled to East Africa in the early 1920s working as a labourer before arriving in the USA. For some time, he even worked as a toolmaker at the factory of Ford in Detroit. While in San Francisco, he met up with the members of the Ghadar Party, which comprised of immigrant Punjabi-Sikhs who were conducting a revolutionary movement from the USA to free India from the tyrannical British rule. For the next few years, he travelled all over America to garner support for their activities assuming a number of aliases like Sher Singh, Ude Singh, and Frank Brazil.

In 1927, following the instructions of Bhagat Singh, he returned to India. Back in Punjab, he devoted himself to publishing the Ghadr-di-Gunj, the radical journal of Ghadar Party. He was arrested on this charge and for illegal possession of arms and sentenced to imprisonment for five years. However, he was released on 23 October 1931 after spending four years in jail. Udham Singh discovered that in 1927, Brigadier-General Dyer, “The Butcher of Amritsar”, had died in Britain, after suffering a series of strokes. His fellow revolutionaries, Bhagat Singh, Raj Guru, and Sukhdev had also been hanged on 23 March 1931 for their role in the murder of John P. Saunders, a British policeman, in 1928.

Udham Singh returned to his village but found himself under constant watch by the British police as he was known to have a very close association with Hindustan Socialist Republican Association established by Bhagat Singh and other revolutionaries. He took the name of Mohammed Singh Azad and became a painter of signboards under the cover of which, he continued his revolutionary activities and planned to travel to London to kill O’Dwyer who had endorsed the Jallianwala bloodbath.

He travelled to Kashmir and then escaped to Germany after duping the police. From there he successively travelled to Italy, France, Switzerland, and Austria before reaching England in 1934. He took up residence at 9 Adler Street, Whitechapel (East London) and even purchased a motor car. While in London, he worked in various capacities like a carpenter, signboard painter, motor mechanic, and even as an extra in a couple of Alexander Korda films. All this while he remained obsessed with the idea of assassinating Michael O’Dwyer.

Image Credit : http://www.freepressjournal.in/featured-blog/remembering-udham-singh-the-avenger-of-the-jallianwala-bagh-massacre/1050673

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Assassination of Michael O’Dwyer

Udham Singh found out that Michael O’Dwyer would be addressing a joint meeting of Central Asian Society (now Royal Society for Asian Affairs) and the East India Association at Caxton Hall, London on 13 March 1940. He managed to buy a revolver in a pub from a soldier, concealed it in the pocket of his jacket and gained entry to the hall. As the meeting came to a close, he approached the platform and unleashed a volley of shots. Of the two shots that he fired at O’Dwyer, one passed through his heart and right lung killing him immediately. He also managed to wound Lord Zetland, the Secretary of State for India, Sir Luis Dane, and Lord Lamington. After the shooting, Udham Singh remained calm and did not try to flee or resist arrest and was taken into custody by the police. It is said that Singh chose a public place for his assassination attempt so that he could create a furore and draw attention to the atrocities that the British had carried out in India.

Trial & Execution

Udham Singh was formally charged on 1 April 1940 with Michael O’Dwyer’s murder and sent to Brixton Prison. Not a cooperative prisoner, he went on a hunger strike that went on for 42 days compelling the prison authorities to forcibly feed him. Udham Singh was put on trial at the Central Criminal Court, Old Bailey on 4 June 1940 before Justice Atkinson. He was represented by legal luminaries like St. John Hutchinson and V.K. Krishna Menon. When asked why he committed the broad daylight murder, Udham Singh, in his broken English, stated that he bore a grudge against O’Dwyer and that he didn’t care about being put to death for the sake of his motherland. He further said that he had been seeking vengeance for 21 years and he was happy that he had finally managed to achieve his goal. He also expressed surprise that he failed to kill Zetland who deserved to die. He seemed to regret that he had managed to kill only one person.

As was expected, Singh was convicted of murder and awarded a death sentence. After he was convicted he made an impassioned speech which, however, was not allowed to be released to the press by the judge on the ground that it was not pertinent to the case. At the trial, Udham had given his name as Mohammad Singh Azad, the same name he had used to gain entry to England in 1933. The name was also tattooed on his arm as a symbol of the unity of all religions against the British oppression. On July 31, 1940, Udham Singh was hanged at the Pentonville Prison in London and was buried in the prison grounds.

Image Credit :https://naidunia.jagran.com/special-story-when-udham-singh-shot-michael-francis-odwyer-for-jallianwala-bagh-massacre-1603607

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Repatriation of Remains

In 1974, more than three decades after his death, at the behest of MLA Sadhu Singh Thind Udham Singh’s mortal remains were exhumed and returned to India. The casket, brought back personally by Thind was received by Prime Minister Indira Gandhi, Giani Zail Singh, the then chief minister of Punjab, and Shankar Dayal Sharma, the then President of the Congress party. Subsequently, Udham Singh was cremated according to Sikh rites at Sunam, his birthplace, and his ashes were immersed in the waters of the River Sutlej. A part of the ashes was retained and are now kept in a sealed urn at Jallianwala Bagh.

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Shaheed Udham Singh Biography: Birth, Death, Jallianwala Bagh Massacre, Assassination of O'Dwyer and More About Shaheed-i-Azam

Shaheed udham singh biography: udham singh was a freedom fighter who belonged to the gadar party. he killed michael o'dwyer, former lieutenant governor of the punjab, india in london to avenge the jallianwala bagh massacre. he was hanged to death on july 31, 1940, for committing a murder. read the below article to know more about his birth, early life, the assassination of o'dyer and more. .

Arfa Javaid

It is rightly said, "For every O’Dwyer, there is a Shaheed Udham Singh." 

Udham Singh, a Freedom Fighter who belonged to the Gadar Party was hanged to death on July 31, 1940, after he was found guilty of committing murder. Shaheed Udham Singh killed Michael O'Dwyer, former lieutenant governor of Punjab, India in London to avenge the Jallianwala Bagh massacre in Amritsar.

In October 1995, Udham Singh Nagar, a district in Uttarakhand, was named after him by the then Chief Minister of undivided Uttar Pradesh, Mayawati. 

Udham Singh: Birth and Early Life

Udham Singh was born on December 26, 1899, at Sunam, Sangrur district of Punjab, India to Sardar Tehal Singh Jammu and Mata Narain Kaur. His father was a farmer and also worked as the railway crossing watchman in the village of Upali. 

Udham Singh: Jallianwala Bagh Massacre

On April 10, 1919, leaders of the Indian National Congress were arrested under the Rowlatt Act. This, in turn, led to a widespread protest at Jallianwala Bagh on April 13, 1919. More than 20,000 unarmed people were a part of the protest. At that time, Udham Singh and his friends from the orphanage were serving water to the protestors. General O'Dwyer along with his troops entered Jallianwala Bagh, blocked the main entrance, and took up the position on a raised bank and without any warning open fired on the crowd for about 10 minutes until the ammunition supply was almost exhausted. 

Udham Singh: Assassination of O'Dwyer

In 1931, Udham Singh was released from the prison, but his movements were monitored by the Punjab Police. However, he was able to dodge the Punjab Police and reached Germany via Kashmir. In the year 1935, he reached London and was employed as an engineer. He made plans to kill O'Dwyer, who was responsible for killing hundreds of peaceful protestors at the Jalianwala Bagh. 

Udham Singh: Trial and Execution 

After almost twenty days of the Assassination of  Michael O'Dwyer, on April 1, 1940, Udham Singh faced formal charges and was remanded in custody at Brixton Prison. 

As per Udham Singh, after he assassinated O'Dwyer, ' I did it because I had a grudge against him. He deserved it. I don't belong to society or anything else. I don't care. I don't mind dying. What is the use of waiting until you get old? Is Zetland dead? He ought to be. I put two into him? I bought the revolver from a soldier in a public house. My parents died when I was three or four. Only one dead? I thought I could get more.' 

While in custody at Brixton, Udham Singh called himself 'Ram Mohammad Singh Azad', with the first three words representing three major religions of Punjab (Hindu, Muslim and Sikh) and the last word representing his anti-colonial sentiment. The word Azad means 'Free'. 

In the prison, awaiting his trial, Singh went on a hunger strike which was broken on the 42nd day after he was force-fed by the prison authorities. On June 4, 1940, Singh's trial commenced at the Central Criminal Court, Old Bailey, before Justice Atkinson, with V.K. Krishna Menon and St John Hutchinson representing him. G. B. McClure was the prosecuting barrister. He was inquired about his motivation behind the assassination of O'Dwyer, to which he replied, 'I did it because I had a grudge against him. He deserved it. He was the real culprit. He wanted to crush the spirit of my people, so I have crushed him. For the full 21 years, I have been trying to seek vengeance. I am happy that I have done the job. I am not scared of death. I am dying for my country. I have seen my people starving in India under British rule. I have protested against this, it was my duty. What greater honour could be bestowed on me than death for the sake of my motherland?'

Udham Singh: Remains at Jallianwala Bagh

On the request of the then MLA Sadhu Singh Thind, Singh's mortal remains were exhumed and repatriated to India in the year 1974. The casket was received by the then Prime Minister Indira Gandhi, the then President Shankar Dayal Sharma and the 7th President of India, Zail Singh. 

Udham Singh: Legacy

1- A charity is dedicated to Udham Singh and it operates on Soho Road, Birmingham.

2- A museum has also been dedicated to him which is located near Jallianwala Bagh, in Amritsar.

3- Singh's weapons, his knife, diary, and a bullet from the shooting are kept in his honour in the Black Museum of Scotland Yard.

4- A number of films have been picturised on him-- Jallian Wala Bagh (1977), Shaheed Uddham Singh (1977), and Shaheed Uddham Singh (2000).

5- Udham Singh Nagar district in Uttarakhand is named after Udham Singh, on the orders of the then Chief Minister of undivided Uttar Pradesh.

6- Singh is the subject of the 1998 track "Assassin" by the Asian Dub Foundation.

7- A chowk has been named after him in Anupgarh, Rajasthan-- Shaheed Udham Singh Chowk. 

8- The day of his execution is a public holiday in Punjab and Haryana.

9- Singh is the subject of the 2015 music video and tracks "Frank Brazil" by The Ska Vengers.

10- On March 13, 2018, a 10 ft tall statue of Udham Singh was installed by International Sarv Kamboj Samaj at the main entrance of Jallianwala Bagh, Amritsar. The statue was unveiled by the then Union Home Minister Rajnath Singh . 

Also Read | Bhagat Singh Biography: Remembering Shaheed-e-Azam on his 114th birth anniversary

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